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भारत ने कैसे बनाया था एशिया का सबसे बड़ा बांध? भाखड़ा-नांगल डैम के बनने की कहानी

आजाद भारत की सरकार को उस समय ये सबसे जरूरी बांध परियोजना लगी, क्योंकि इससे न सिर्फ पंजाब, बल्कि राजस्थान के उन इलाकों में भी पानी पहुंचाया जा सकता था, जहां मानसून के बाद सिंचाई करना संभव ही नहीं था. ऐसे में उस समय ये सबसे बड़ी बांध परियोजना बन गई. पढ़िए कहानी Bhakra-Nangal Dam के बनने की. जिसने देश के रेगिस्तान तक पानी पहुंचा दिया था.

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Bhakra-Nangal Dam History
तब ये एशिया का एकमात्र ऐसा बांध था जो 1500 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने की क्षमता रखता था | फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स
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अभय शर्मा
3 नवंबर 2023 (Updated: 3 नवंबर 2023, 15:26 IST)
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महात्मा गांधी अक्सर कहते थे कि भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है. ऐसा था भी क्योंकि आजादी के समय भारत अधिकांशतः किसानों और मजदूरों का देश था. इसकी करीब तीन चौथाई आबादी खेती के कामों में लगी हुई थी. देश का साठ फीसदी सकल घरेलू उत्पाद इसी क्षेत्र से आता था. यानी भारत के किसान राष्ट्र और उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे.

लेकिन ऐसा तब था जब खेती के काम में कुछ भी निश्चित नहीं था. किसान की फसल केवल मानसूनी बारिश पर निर्भर थी. इसके बाद खेतों तक पानी पहुंचना मुश्किल पड़ जाता था. नहरों का लगभग अकाल सा था. मानसून के पानी को रोकने के लिए बांध भी नहीं थे. जिससे देश के कई इलाके सूखे ही रह जाते थे. अकाल पड़ता था और हर साल सैकड़ों लोग भूख से भी मरते थे. लगभग हर साल देश में जबरदस्त बाढ़ आती थी और उसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं थे.

दूसरी तरफ एक समस्या और थी. सन 1880 से लेकर 1945 तक यानी आजादी की देहरी पर कदम रखने तक, देश में केवल एक चीज बढ़ी थी वो थी जनसंख्या. 25 करोड़ से तकरीबन 39 करोड़ हो गई थी. जनसंख्या बढ़ी लेकिन अनाज का उत्पादन नहीं. ऐसे में हर एक आदमी तक अनाज की उपलब्धता और कम हुई.

आजाद हुए भारत के राजनेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी समस्या से निपटने की थी. देश आजाद हुआ और पंडित नेहरू पर इसकी जिम्मेदारी आयी. ब्रिटिश हुकूमत द्वारा खोखले कर दिए गये देश के आर्थिक पहिये को घुमाने के लिए अब उन्हें कुछ अलग और बड़ा करना था.

तो सबसे पहले क्या फैसला लिया जवाहर लाल नेहरू ने? और इस फैसले का किसानों की हालत पर कैसा असर दिखा? तारीख में आज कहानी भाखड़ा-नांगल बांध (Bhakra-Nangal Dam) के बनने की. जिसने देश के रेगिस्तान तक पानी पहुंचा दिया था.

शुरू से शुरू करते हैं. जब भारत से अंग्रेजों की रवानगी की बात पक्की हुई. तभी 1946 में पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने केसी नियोगी की अध्यक्षता में एक सलाहकारी नियोजन बोर्ड बना दिया था. इसने अपनी रिपोर्ट में सरकार को योजना आयोग बनाने का सुझाव दिया था. इस पर सरकार ने 15 मार्च, 1950 को अपनी सहमति दे दी और यह संस्था वजूद में आ गई.

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले इस योजना आयोग को देश में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकास के लिए एक प्रभावी योजना बनानी थी. जिसे अंतिम मंजूरी राष्ट्रीय विकास परिषद देती थी. जिसके अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री नेहरू ही थे. राज्यों के मुख्यमंत्री इसमें पदेन सदस्य थे. जवाहर लाल नेहरू तत्कालीन सोवियत संघ की चार वर्षीय योजना और इसकी सफलता से प्रभावित थे. इसलिए उन्होंने इसी तर्ज पर एक अप्रैल 1951 से देश में पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की.

पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई. कुल 2378 करोड़ रुपए इस प्लान के लिए आवंटित किये गए थे. जिसमें सबसे ज्यादा खर्चा सिंचाई और ऊर्जा पर होना था, करीब 27.2 फीसदी.

कृषि को लेकर सरकार का प्लान था कि सिंचाई व्यवस्था में व्यापक बढ़ोत्तरी की जाएगी. इसके लिए बांध बनाने जरूरी थे. बांध बनने से मानसून पर निर्भरता काम होती, सिंचाई व्यवस्था अच्छी होती और कृषि की उत्पादकता बढ़ती. बांध के बनने से एक लाभ और था बिजली बनती जिससे उद्योगों को भी लाभ मिलता. और फिर अर्थव्यवस्था का चक्का घूमना शुरू हो जाता.

भाखड़ा-नांगल बांध पर सरकार की नजर कैसे गई?

पहली पंचवर्षीय योजना में खेती और सिंचाई को तवज्जो मिलने के बाद सरकार का पहला बड़ा लक्ष्य था बड़े-बड़े बांधों का निर्माण करने का. इसी दौरान सरकार की नजर एक ऐसे डैम प्रोजेक्ट पर गई जिसे अंग्रेज बनाना चाहते थे. ये बांध उन्हें बनाना था हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच में. जिससे बारिश के दौरान हिमाचल से आने वाले पानी को जमा किया जा सके. परियोजना का नाम था भाखड़ा नांगल बांध परियोजना. इसके लिए आजादी से पहले नवंबर 1944 में पंजाब के तत्कालीन राजस्व मंत्री सर छोटू राम ने हिमाचल के बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौता साइन किया था. 8 जनवरी 1945 को परियोजना के प्लान को अंतिम रूप दिया गया था. इसका शुरूआती काम 1946 में शुरू भी हुआ था. लेकिन आगे बढ़ता इससे पहले ही भारत आजाद हो गया और अंग्रेज वापस चले गए.

आजाद भारत की सरकार को उस समय ये सबसे जरूरी बांध परियोजना लगी, क्योंकि इससे न सिर्फ पंजाब, बल्कि राजस्थान के उन इलाकों में भी पानी पहुंचाया जा सकता था, जहां मानसून के बाद सिंचाई करना संभव ही नहीं था. ऐसे में उस समय ये सबसे बड़ी बांध परियोजना बन गई.

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कई सर्वेक्षणों के बाद 1948 में बांध के निर्माण का काम शुरू हुआ. यहां पर बता दें कि नांगल बांध एक बैराज बांध है, जो भाखड़ा बांध से 10 किमी नीचे की ओर है पंजाब में स्थित है. जबकि भाखड़ा बांध हिमाचल के बिलासपुर में है. चूंकि दोनों बाँध लगभग एक साथ ही बने थे, इसलिए इस पूरी परियोजना का नाम भाखड़ा-नांगल परियोजना रखा गया था. तब से नाम भी दोनों के साथ-साथ ही लिए जाते हैं.

Bhakra-Nangal में इतना सामान लगा मिस्र के 14 पिरामिड बन जाएं?

भाखड़ा बांध का प्लान तैयार हुआ. इंजीनियर्स ने कहा कि अगर इसका पानी राजस्थान तक पहुंचाना है, तो इसकी ऊंचाई 741 फीट यानी 226 मीटर तक रखनी पड़ेगी. यानी तब ये भारत का और एशिया का सबसे ऊंचा बांध बनने वाला था. जब ये बनकर तैयार हुआ, तब दुनिया में इससे ऊंचे केवल दो ही बाँध थे, जिनमें से एक इटली में और दूसरा स्विट्जरलैंड में था.

इतिहासकार रामचंद्र 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखते हैं कि इस बांध को बनाने में जितना कंक्रीट और पत्थरों का इस्तेमाल होना था, वो करीब 50 करोड़ क्यूबिक फीट के बराबर था. ये मटीरियल मिश्र के सात महान पिरामिडों में लगी सामग्री के दोगुने से भी ज्यादा था. इससे अगर कोई सड़क बनती को हजारों किमी की बनती. इसके अलावा करीब एक लाख टन लोहा भी इसमें लगना था.

अब सवाल ये उठा कि इतना मटीरियल कंस्ट्रक्शन वाली जगह तक पहुंचेगा कैसे? इस दिक्क्त को दूर करने के लिए पहले भाखड़ा तक रेल लाइन बिछाई गई, जिससे निर्माण का सामान बांध बनाने वाली जगह तक पहुंचा. भाखड़ा-नांगल डैम में पहले नांगल डैम बनकर तैयार हुआ. वहां बिजली का उत्पादन हुआ और फिर ये बिजली भाखड़ा तक भेजी गई, जिससे अमेरिका और यूरोप से आईं बड़ी-बड़ी मशीनें चलाई गईं और भाखड़ा डैम का निर्माण किया गया.

नांगल डैम को पहले बनाया गया
किसने बनाया था ये डैम?

शुरुआत में भाखड़ा डैम में काम करने वाले सभी महिला और पुरुष भारतीय थे. सिवाय एक को छोड़कर. इनका नाम था 'हार्वे स्लोकम'. हार्वे उस समय अमेरिका और यूरोप में डैम बनाने के महारथी माने जाते थे. पंडित नेहरू के विशेष बुलावे पर वो भाखड़ा डैम के निर्माण की कमान संभालने भारत आए थे. हार्वे का जो काम था उन्होंने उसकी बहुत कम पढ़ाई की थी. सुनकर किसी को भी हैरानी होगी कि उन्होंने स्टील के एक कारखाने में मजदूर की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की थी. तेजी से काम सीखा, उनके एक मालिक ने उनकी काबिलियत से प्रभावित होकर उन्हें वाशिंगटन के ग्रैंड कोली बांध का सुपरिटेंडेंट इंजीनियर बना दिया. इसके बाद कई बांध प्रोजेक्ट पर उन्होंने काम किया. 1952 में पंडित नेहरू ने उन्हें भाखड़ा परियोजना का चीफ इंजीनयर बना दिया.

जब हार्वे स्लोकम ने गुस्से में प्रधानमंत्री नेहरू को लिख दी चिट्ठी 

उन्हें भारत सरकार से आदेश दिया गया था कि बांध का काम तेजी से होना चाहिए. हार्वे ने करीब 13,000 लोगों को काम पर लगाया. इनमें से 300 भारतीय इंजीनियर और 30 एक्सपर्ट्स उन्होंने बाहर से बुलाए थे. हार्वे स्लोकम अनुशासन पसंद व्यक्ति थे. उन्होंने यहां अपने काम से काफी अच्छी छाप छोड़ी. आते ही आदेश दिया कि सभी स्तर के अफसर और मजदूर ड्रेस पहनेंगे. तीन शिफ्टों में काम चलेगा. खुद सुबह आठ बजे कंस्ट्रक्शन साइट पर आ जाते और देर शाम को ही वापस जाते. वो अपने आसपास किसी भी अफसर और मजदूर के आलस और ढीलेपन को बर्दाश्त नहीं करते थे. बताते हैं कि एक बार भाखड़ा-नांगल परियोजना के अंदर बनाए गए टेलीफोन नेटवर्क में खराबी आ गई. कई घंटे तक ठीक नहीं हुआ. तो हार्वे स्लोकम ने सीधे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिख दिया. उन्होंने तीखे शब्दों में लिखा- 'अगर ऐसा ही चलता रहा तो हार्वे स्लोकम नहीं, बल्कि ईश्वर ही खुद जमीन पर आकर भाखड़ा डैम को समय पर बना सकता है.'

हार्वे स्लोकम पंडित नेहरू के साथ 

1963 के अंत में भखाडा डैम बनकर तैयार हो गया. अक्टूबर 1963 में पंडित नेहरू ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया. इस बांध की ऊंचाई 226 मीटर, लंबाई 518.25 मीटर और चौड़ाई लगभग 9.1 मीटर है. बांध का पानी जिस एरिया में इकट्ठा होता है उस जलाशय का नाम "गोबिंद सागर" है. इसमें 9.34 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी जमा किया जा सकता है. इसकी लंबाई 90 किमी है. जब सतलुज नदी पर ये बांध बनकर तैयार हुआ था, तब ये एशिया का एकमात्र ऐसा बांध था जो 1500 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने की क्षमता रखता था.

जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरु हुई थी. कृषि को इसमें प्राथमिकता दी गई थी. लेकिन इस योजना के लागू होने के दो साल बाद यानी 1953 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश की जनता से एक बात कही.

उन्होंने कहा-

‘मैं तब तक आराम से नहीं बैठ सकता जब तक कि इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम सुविधाएं हासिल नहीं हो जातीं. एक राष्ट्र को जांचने के लिए पांच-छह साल का वक्त काफी कम होता है. आप 10 साल और इंतजार कीजिए. इसके बाद आप पाएंगे कि हमारी योजनाएं इस देश का नजारा ऐसे बदल देंगी कि दुनिया भौचक्की रह जाएगी.’

अपनी कही इस बात के ठीक 10 साल बाद ही उन्होंने भाखड़ा बांध का बटन दबाकर, राजस्थान तक पानी पहुंचा दिया. ये वो पल था जिसे देख सच में कई लोग हैरान हुए थे.

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