1724 के जून की 24वीं तारीख को अभय सिंह राठौड़ अपने पिता अजीत सिंह की लाश पर चढ़करजोधपुर की राजगद्दी तक पहुंचे थे. इस काम में उनका साथ दिया था उनके भाई बख्त सिंहने. अजीत सिंह ने गद्दी हथियाने के लिए अपने ही पिता की हत्या की थी. सत्ता हथियानेके इस तरीके से कई राठौड़ सरदार बेहद खफा हो गए. नतीजा यह हुआ कि मारवाड़ गृहयुद्धमें फंस गया. चार साल के करीब चले गृह युद्ध में अभय सिंह अपने विरोधी राठौड़सरदारों को या तो घुटनों पर ला दिया या फिर मौत के घाट उतार दिया.अभय सिंह ने सत्ता की बागडोर संभालने के बाद अपने वफादार सिपहसालारों को जागीरेंबंटाना शुरू किया. खरडा ठिकाने ने भीतरी कलह के मुशकिल दौर में अभय सिंह की काफीमदद की थी. 1726 के साल में खरडा ठिकाने के सूरत सिंह को जोधपुर से 16 मील दूरखेजड़ली गांव का ठाकुर नियुक्त किया गया.जोधपुर के महाराजा अभय सिंह1730 आते-आते अभय सिंह मारवाड़ पर पूरी तरह से नियंत्रण पा चुके थे. उनका राज नागौरसे लेकर पाली तक फैला हुआ था. जोधपुर इस राज की राजधानी हुआ करती थी. युद्ध सेफारिग होने के बाद अभय सिंह ने जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में कुछ नया निर्माण कार्यकराने की सोची.अभी चूने और जिप्सम को मिलाकर बनने वाले स्लेटी रंग के पाउडर 'सीमेंट' को खोजे जानेवक़्त था. उस दौर में पक्का घर बनाने में चूने का इस्तेमाल किया जाता था. चूने कोभवन निर्माण के लायक बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. उसमें गुड़ मिलाया जाताथा ताकि उसकी पकड़ अच्छी बने. मेथी मिलाई जाती थी ताकि गुड़ की वजह से लगने वाले कीड़ेना लगें. बजरी तो खैर मिलाई ही जाती ही थी. चूने की पकड़ को मजबूती देने के लिए उसेकई दिनों तक आग में पकाया जाता था.अभय सिंह नया महल बनाने का आदेश देकर गुजरात के सैनिक अभियान पर निकल गए. उनके जानेके बाद राज चलाने और महल बनाने की जिम्मेदारी थी उनके दीवान गिरधारी भंडारी की.गिरधारी जानते थे कि चूना पकाने के लिए बड़ी तादाद में लकड़ियों की जरुरत होगी.उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारीयों से जानकारी मिली कि खेजड़ली गांव में काफी सारेखेजड़ी के पेड़ हैं. वहां से जलावन लकड़ी काटी जा सकती है.खेजड़ली की अमर शहीद अमृता देवीयह 1730 के मानसून का वक़्त था. भारतीय कैलेंडर भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की दशमीथी. दिन था मंगलवार. खेजड़ली गांव के रामोजी खोड़ के घर के बाहर कुल्हाड़ी चल रही थी.उनकी बीवी अमृता ने जब बाहर आकर देखा तो बाहर जोधपुर के दीवान गिरधारी भंडारी मयसैनिक जाब्ते वहां मौजूद थे. अमृता उन्हें पेड़ काटने से मना किया. दीवान के साथगांव के नए-नए बने ठाकुर सूरत सिंह भी मौके पर मौजूद थे. ऐसे में एक किसान औरत कीबात पर कौन ध्यान देता.अमृता को जब समझ में आय कि उनकी बात कोई नहीं सुन रहा तो उन्होंने वो तरकीब अपनाईजिसे 243 बाद हिमायल के पहाड़ों में एक बड़े आंदोलन का रूप लेना था. वो अपनी तीनबेटियों आसी, रतनी और भागू के साथ जाकर कट रहे पेड़ों से लिपट गईं. पेड़ काट रहेकुल्हाड़े एक मिनट के लिए ठिठक गए.यह सामंती दौर था और एक नागरिक की नाफ़रमानी घातक अपराध की श्रेणी में आता था.गिरधारी भंडारी ने अमृता को डराया कि अगर वो नहीं हटी तो उन्हें पेड़ के साथ ही काटदिया जाएगा. अमृता टस से मस नहीं हुईं. गिरधारी ने सैनिकों को आदेश दिया कि अमृताऔर उनकी बेटी को पेड़ के साथ ही काट दें. शाम ढलने तक राजा के सैनिक कटे पेड़ के ठूंठऔर चार लाशें पीछे छोड़कर जोधपुर लौट गए.बिश्नोई समाज के संस्थापक जाम्भोजी महाराजअमृता देवी की मौत के बाद 84 गांवों की पंचायत बुलाई गयी. इस पंचायत में यह तय कियागया कि राजा के लोग जब भी पेड़ काटने आएं तो प्रतिरोध में लोग पेड़ो से चिपक जाएं.कुल जमा 363 लोगों ने इस आंदोलन में मारे गए. इसमें से 111 महिलाऐं थीं.आखिर ऐसा क्या था कि 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए जान दे दी. दरअसल ये चारोंअपने गुरु से किए गए 29 वायदों पर कायम थीं जिन्होंने उनके पुरखों को 245 साल पहलेजीवन जीने का नया तरिका सीखाया था. गुरु का नाम था जम्भेश्वर. उन्होंने अपनेअनुयायियों को जीवन जीने के 29 सूत्र दिए थे. इन 29 नियमों को मनाने वाले लोगों कोबाद में बिश्नोई कहा जाने लगा. बिश मतलब 20, और नोई मतलब 9.नागौर जिले में उत्तर की तरफ एक गांव है पीपासर. 15वीं सदी में लोहट पंवार इस गांवके ठाकुर हुआ करते थे. 50 साल की उम्र तक उनके घर कोई संतान नहीं थी. 1451 मेंकृष्ण जन्माष्ठमी के दिन उनके यहां एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा जाम्भा. लोकश्रुतिहै कि जन्म से आठ साल की उम्र तक जाम्भा कुछ नहीं बोले.मुकाम में विश्नोई समुदाय का मंदिरअपने माता-पिता की मौत के बाद जाम्भा पीपासर के पास ही समराथल चले गए. यहां एक बड़ासा रेत का टीला है. जाम्भाजी ने यहीं अपना आश्रम बनाया. सन 1485 में जाम्भोजी कीउम्र 34 साल हो चुकी थी. उन्होंने कार्तिक के महीने में आठ दिन लंबा यज्ञ किया.इसके बाद उन्होंने कुल 29 सिद्धांत दिए. इनमें से आठ सिद्धांत ऐसे थे जो सीधे तौरपर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े हुए थे. इन 29 सिद्धांतों में से 18वां नियम था,'प्राणी मात्र पर दया रखना' और 19वां नियम है, 'हरे वृक्ष नहीं काटना'. बिश्नोईसमाज के लोगों के लिए खेजड़ी का पेड़ और हिरण पवित्र जीव हैं.अमृता देवी और उनके 362 दूसरे साथियों ने खेजड़ी के पवित्र पेड़ो के लिए अपनी जान दीथी. जब इस घटना की जानकारी महाराजा अभय सिंह को मिली तो उन्होंने खेजड़ली गांव जाकर84 गांवों के बिश्नोईयों से अपने दीवान की गलती के लिए माफ़ी मांगी. उन्होंने उस समयबिश्नोई समाज के लोगों को लिखित शपथ-पत्र दिया कि अब से जिस गांव में बिश्नोई रहतेहैं वहां ना तो हरा पेड़ काटा जाएगा और ना ही किसी जानवार का शिकार होगा. लोकतंत्रआने के बाद राजा के बाने कानून खत्म हो गए लेकिन अभय सिंह का दिया हुआ वचन आज भीमारवाड़ के इलाकों में एक सामाजिक नियम की तरह बदस्तूर लागू है.सलमान खान का एक काला हिरण मारना, उसका केस लड़ते रहना, फिर जेल जाना हम सबके लिएचारा हो सकता है. घंटों टीवी के सामने बैठकर अलग-अलग न्यूज चैनल देखते रहें. मगरकिसी समुदाय के लिए ये उनकी पहचान और परंपरा पर हमला था.--------------------------------------------------------------------------------यह भी पढ़ें सलमान खान केस के वो दो सवाल जिनका जवाब अभी तक नहीं मिलाजेल में आसाराम ने सलमान से पूछा- क्यों मारा काला हिरन!सलमान ख़ान पर सबसे टुच्ची बात पाकिस्तान ने कही हैजब सलमान ने एक इंटरव्यू में कहा, 'मैंने गोली नहीं चलाई'