हमारे दफ्तर में नई कुर्सियां आई हैं. नया कारपेट भी. और इन दोनों के आने के बाद सेएक समस्या खड़ी हो गई है. जब-जब हम कुछ देर काम करके उठते हैं, तो हमारी कुर्सीहमें ज़ोर का झटका दे देती है. और धीरे से नहीं, ज़ोर से ही. अंधेरे में देखो तोकुर्सी और हमारे बीच पल-भर के लिए एक छोटी सी चिंगारी भी चलती नज़र आती है. हमहैरान-परेशान थे कि स्याला हो क्या रहा है. माने आदमी काम करे कि झटके ही खाता रहे?तो हमने अहद किया कि मालूम करके रहेंगे कि ऐसा होता क्यों है. चाहे फिर स्टोरी हीकरनी पड़े. हमारे अहद का नतीजा ये रहा. ऐसा कभी न कभी आपके साथ भी हुआ होगा. तो आजआप भी जानकर रहिए कि दफ्तर की कुर्सी झटका मारती है तो कैसे और क्यों?एटम - इलेक्ट्रॉन - प्रोटॉनदुनिया में जितनी चीज़ें हैं - पत्थर से लेकर पेड़ तक और प्लास्टिक से लेकर आपकेशरीर तक - सबकी बुनियाद में एटम है. हिंदी में अणु. और हर एटम में दो चीज़ें होतीहैं - प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन. इन दोनों के पास बराबर चार्ज (बिजली वाला चार्ज समझलीजिए) होता है. प्रोटॉन के पास +1 और इलेक्ट्रॉन के पास -1. प्रोटॉन अच्छा बच्चाहोता है. कभी अपने घर से बाहर नहीं जाता. इसके घर का नाम न्यूक्लियस होता है.इलेक्ट्रॉन इसी अच्छे बच्चे का महा-शैतान दोस्त है. बेहद चंचल. वो उसके घर यानीन्यूक्लियस के आस-पास चक्कर मारता रहता है. और अगर उसे मौका मिल जाए, माने उसे कोईऔर घर यानी न्यूक्लियस आजू-बाजू मिल जाए, तो निकल भी लेता है. और जब वो निकल लेताहै, तो एटम में बिजली का बैलेंस बिगड़ जाता है. वो 'चार्ज' हो जाता है. कैसे? हमबताते हैं. एक इलेक्ट्रॉन यानी -1 और एक प्रोटॉन यानी +1. इन दोनों को जोड़ा जाए तोशून्य आता है. अब ऐसे में एक इलेक्ट्रॉन अगर गायब हो जाता है तो पूरे मामले काचार्ज +1 हो जाता है. इस प्रकार जितने भी इलेक्ट्रॉन भागेंगे, उतने ही +1 चार्जबढ़ते जाएंगे. प्रोटॉन इतना सीधा होता है कि कहीं भी भागता नहीं है.इस बात को गांठ बांध लीजिए. प्रोटॉन मोदी जी हैं. वो 2024 तक रहेंगे ही!इलेक्ट्रॉन नरेश अग्रवाल हैं. जहां 'चार्ज' दिखा, चल देते हैं.बिजली वाला वीडियो - पुरानी यादें ताज़ा कीजिए-एक चीज़ समझिए. जो चीज़ें बिजली की अच्छी कंडक्टर (सुचालक) होती हैं - जैसे लोहा औरबाकी धातुएं (कॉपर, जिसके तार से आपको झटके लगते रहते हैं. इत्यादि इत्यादि.) -अपने इलेक्ट्रॉन आसानी से जाने नहीं देती. इसीलिए उनमें इलेक्ट्रॉन दौड़ते तो रहतेहैं मगर उनकी बाउंड्री से बाहर नहीं भाग जाते. इलेक्ट्रॉन के दौड़ते रहने पर ही किसीभी चीज़ में करंट दौड़ सकता है. ठीक इसके उलट, जो बिजली के खराब कंडक्टर (कुचालक)होते हैं, वो अपने इलेक्ट्रॉन को लेकर उतने सीरियस नहीं होते. इनके इलेक्ट्रॉनआसानी से छूट जाते हैं.ये खराब कंडक्टर इतने गैर-ज़िम्मेदार होते हैं कि इनमें एक्स्ट्रा इलेक्ट्रॉन जमा भीहो जाते हैं. प्लास्टिक में यही समस्या होती है. जब आप प्लास्टिक की कंघी अपनेबालों में फिराते हैं, तो उससे कुछ इलेक्ट्रॉन छूटकर आपके बालों में समा जाते हैं.तो कंघी के पास नेगेटिव चार्ज कम हो जाता है. तो उसपर बन जाता है पॉज़िटिव चार्ज.और ये पॉज़िटिव चार्ज वाली चीज़ किसी भी नेगेटिव चार्ज वाली चीज़ को अपनी ओर खींचसकती है. अगर न्यूट्रल बॉडी हुई और इलेक्ट्रॉन छुड़ाए न जा सके, तब भी उसकेइलेक्ट्रॉन उस तरफ खिंचे चले जाएंगे. साथ में बॉडी भी सरकती जाएगी. मसलन कागज़ केटुकड़े.एक और बात है, कंघी इस बढ़े हुए पॉज़िटिव चार्ज के साथ अनंत काल के लिए नहीं रहनाचाहती है. इसलिए वो पहली फुर्सत के साथ अपना चार्ज बराबर कर लेना चाहती है. और ऐसाकरने का सबसे आसान तरीका है उसे ज़मीन से छुआ देना. माने 'अर्थिंग' कर देना. धरतीकिसी भी तरह का चार्ज ले सकती है, किसी भी मात्रा में. इसलिए धरती को मां कहते हैं.स्टैटिक चार्ज के चलते पेपर के टुकड़े प्लास्टिक की ओर खिंचे चले आते हैं.कुर्सी का 'टेंशन' बढ़ता कैसे है?कुर्सी (यहां हम प्लास्टिक की कुर्सी की बात कर रहे हैं) और टेंशन का बड़े करीब कारिश्ता है. ज़िम्मेदारी हुई तो बैठने वाले को टेंशन मिल जाता है. न हुई, तो बैठनेवाला हिलता-डुलता ज़्यादा है और कुर्सी खुद टेंशन ले लेती है. होता ये है कि जब हमकुर्सी पर हिलते-डुलते हैं तो प्लास्टिक की कुर्सी हमारे कपड़ों से अलग होने वालेइलेक्ट्रॉन जमा करने लगती है (अगर हमारे पैर ज़मीन को न छू रहे हों). तो इससे हमारेपास पॉज़िटिव चार्ज जमा होने लगता है. माने ढेर सारे +1. जितनी देर ये हलचल चलतीहै, उतना ही ज़्यादा ये चार्ज होता है.अब ये बढ़ा हुआ चार्ज आपके पास से निकलने को बेकरार होता है. लेकिन वो तब तक आप हीके पास बना रहता है जब तक आप कुर्सी पर बैठे रहते हैं. आप जैसे ही उठते हैं, चार्जवापस कुर्सी के पास जाने की हड़बड़ी में आ जाता है. और आप जैसे ही कुर्सी को छूतेहैं, ये पूरा चार्ज एकसाथ कुर्सी की तरफ लपक जाता है. कई बार चार्ज इतना होता है किवो आपके कुर्सी को छूने का इंतज़ार भी नहीं करता. वो हवा से होते हुए कुर्सी पर चलाजाता है. और तब एक चमक पैदा होती है.जिस तरह आसमान में बिजली कड़कती है, उसी तरह कुर्सी आपको करंट मारती है.इस चमक को हल्के में न लें. ये बिल्कुल वैसी ही चमक होती है जो बिजली कड़कने परहोती है. कुर्सी पर हिलने-डुलने से जमा हुआ चार्ज इतना होता है कि हवा से गुज़रतेवक्त उसे इस कदर गर्म कर देता है कि उसकी अवस्था बदल जाती है (माने स्टेट चेंज होजाता है). वो गैस से प्लाज़्मा में बदल जाती है. प्लाज़्मा मैटर यानी पदार्थ कीचौथी अवस्था होती है. ये प्लाज़्मा दमकता है.ये झटका आपको तब भी लगेगा अगर आप कुर्सी से उठकर जल्द से किसी लोहे के दरवाज़ेवगैरह को छू दें. तब लोहा कंडक्टर का काम करेगा और आपका चार्ज अर्थ कर देगा. और तबआपको झटका लगेगा.कितने वोल्ट का होता है झटका?आमतौर पर आप झटका तभी महसूस करते हैं जब इस चार्ज का वोल्टेज 4000 - 5000 वोल्ट केबीच होता है. जी हां. आपने सही पढ़ा है. कुर्सी आपको जो बिजली का झटका मारती है वो5000 वोल्ट से ऊपर का होता है. कुछ मामलों में ये झटका 25000 वोल्ट तक पहुंच जाताहै. 25000 वोल्ट हाई टेंशन की श्रेणी में आता है. इसी वोल्टेज पर भारतीय रेल चलतीहै. दिल्ली मेट्रो में भी. माने ये बहुत ज़्यादा वोल्टेज है.इलेक्ट्रिक फेंस में भी हाई वोल्टेज होता है लेकिन कम एम्पीयरेज पर. इसलिए कुकुर बचगया.तो फिर हम बच कैसे जाते हैं?आज तक कुर्सी से लगने वाले झटके से शायद ही कोई मरा हो. ये शायद हमने सिर्फ इसलिएलगाया है कि आज के ज़माने में निश्चित लिखकर देना असंभव है. लेकिन ये सवाल जायज़ हैकि 25000 वोल्ट का झटका खाकर कोई ज़िंदा कैसे बच सकता है. तो बंधु इसका जवाब ये हैकि कुर्सी के झटके में वोल्टेज तो ज़्यादा होता है (माने चार्ज का प्रेशर बहुत है),लेकिन एम्पीयरेज (एम्पीयर करंट मापने की यूनिट होती है) बहुत ही कम होता है. सादीभाषा में कहें तो बहुत प्रेशर के साथ आपको बहुत थोड़ी सी मात्रा में करंट लगता है.ये वैसा ही है जैसे कोई आपको बड़ी स्पीड से रुई का फाहा मार दे. आप उफ तक नहींकरेंगे. लेकिन अगर इसकी जगह 1 किलो का बाट हुआ तो मुंह टूट जाएगा.वैसे टेकनीकली कुर्सी से लगने वाले झटके को करंट कहना भी नहीं चाहिए. क्योंकि करंटचार्ज के लगातार चलते रहने को कहते हैं. कुर्सी वाले मामले में सब एक झटके में खत्महो जाता है. इसलिए ये करंट नहीं 'डिस्चार्ज' बस है. लेकिन समझने की आसानी के लिएहमने करंट शब्द का इस्तेमाल किया है. खैर, कम एम्पीयरेज के कारण आप ज़ोर का झटकाखाकर भी बच जाते हैं. वरना इतने वोल्टेज के साथ अगर ज़्यादा एम्पीयर का करंट आपकोलग जाए, तो निश्चित तौर पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा. जान भी जा सकती है.25000 वोल्ट के साथ तो बाल भी नहीं बचता है.झटके से बचने का कोई रास्ता है?बस एक. कि समय-समय पर अपने पैर ज़मीन से छूते रहें. तो चार्ज बिल्ड नहीं होगा.क्योंकि वो थोड़ी-थोड़ी मात्रा में धरती मां में समाता रहेगा.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ेंःटेस्ला को ग़लत साबित करने के लिए एडिसन ने सबके सामने एक आदमी को करंट से मरवा डालाथा!वो सनकी वैज्ञानिक जिसने भूकंप लाने वाली मशीन बना दी थी'IIT कोचिंग से बुरा कुछ नहीं हो सकता' कहने वाले यश पाल नहीं रहेइस इंसान को थैंक्यू बोलिए, इसकी वजह से दुनिया में लाखों प्रेम कहानियां बनींजब 14 साल के लड़के को कोर्ट ने 10 मिनट में मौत की सजा दे दीवीडियोः दुनिया में सिर्फ दो लोगों के पास नोबेल और ऑस्कर दोनों हैं