जैसे उर्दू शायरी के मंच पर बैठा हिंदी का कवि! वैसे BJP में शाहनवाज़ हुसैन औरमुख़्तार अब्बास नकवी! एक छुटभैये नेता के इस जुमले को यहां पेश करने के लिए माफकरें. लेकिन उसके सवाल की अनदेखी मुश्किल है. पान मसाले की झौंक में उसने कहा था किBJP में मुसलमान होना अकेलापन नहीं पैदा करता होगा?शाहनवाज, नकवी, नजमा हेपतुल्लाह, एमजे अकबर. बीजेपी के मुस्लिम चेहरे. लेकिन क्याआप जानते हैं कि बीजेपी का पहला बड़ा मुस्लिम चेहरा कौन था?ये थे चमकीले बालों वाले 'पद्म भूषण' सिकंदर बख़्त, जो एक समय कांग्रेस में थे. बख्त हफ्ते भर के लिए भारत के विदेश मंत्री भी रहे. ये पहले राज्यपाल थे, जिनकी पदपर रहने के दौरान मौत हो गई. ये वो मुस्लिम नेता थे, जिन्हें बीजेपी अपना फाउंडिंगमेंबर कहती थी.आज कहानी सिकंदर बख्त कीसिकंदर बख्त 1918 में एक तंबाकू विक्रेता के यहां पैदा हुए थे. दिल्ली केएंग्लो-अरेबिक कॉलेज (अब जाकिर हुसैन कॉलेज) से पढ़ाई हुई. स्कूली दिनों में हॉकीखेलते थे. शुरू में लाइफ बहुत सिंपल थी. 1945 तक वो भारत सरकार के सप्लाईडिपार्टमेंट में क्लर्क थे.1952 में सिकंदर बख्त कांग्रेस से एमसीडी चुनाव जीत गए. 1968 में वो दिल्लीइलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग के चेयरमैन चुने गए. 1969 में जब कांग्रेस मेंदो-फाड़ हुई तो सिकंदर बख्त इंदिरा गांधी के साथ न जाकर कांग्रेस (ओ) के साथ बनेरहे. इस तरह उन्होंने इंदिरा के विश्वासपात्रों की दुश्मनी मोल ले ली. 25 जून, 1975को जब देश में इमरजेंसी घोषित हुई तो सिकंदर बख्त भी जेल में डाल दिए गए. दिसंबर1976 तक वो रोहतक जेल में रहे. इमरजेंसी खत्म हुई तो जेल से निकले नेताओं ने इंदिराके खिलाफ जनता पार्टी बना ली. सिकंदर बख्त अब जनता पार्टी के नेता हो चुके थे. 1977में वो जनता पार्टी के टिकट से चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़े और जीत गए. मोरारजीदेसाई सरकार बनी और सिकंदर बख्त कैबिनेट मिनिस्टर बनाए गए. 1979 तक वो मंत्री रहे. अटल से यारी ले आई बीजेपी मेंइमरजेंसी के दौर में सिकंदर बख्त की अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छी दोस्ती हो गई थी.1980 में जब जनता पार्टी से टूटकर बीजेपी बनी तो वो सिकंदर बख्त भी उसमें शामिल होगए और सीधे पार्टी महासचिव बना दिए गए. 1984 में उन्हें उपाध्यक्ष बना दियागया. बीजेपी के शुरुआती दौर में वो इकलौते बड़े मुस्लिम नेता थे.साल 1990 में वो मध्य प्रदेश से राज्यसभा में चुने गए. सन् 92 में वो राज्यसभा मेंनेता विपक्ष चुने गए. 1996 में वो फिर राज्य सभा के रास्ते संसद पहुंचे. बीजेपी कोपहली बार केंद्र की सत्ता का स्वाद मिला 1996 में. NDA सरकार बनी तो अटल बिहारीवाजपेयी ने सिकंदर बख्त को शहरी मामलों का मंत्री पद ऑफर किया. लेकिन बख्त इससे खुशनहीं थे. इस दौरान पत्रकार राजदीप सरदेसाई उनका इंटरव्यू करने गए तो गुस्से मेंबख्त ने कहा, 'मुझे पता है तुम पूछोगे कि क्या मेरे मुसलमान होने की वजह से मेरीवरिष्ठता को सम्मान नहीं मिला?' हफ्ते भर बाद, यानी 24 मई को उन्हें विदेश मंत्रालयका अतिरिक्त कार्यभार दिया गया. लेकिन उनका दुर्भाग्य कि अटल सरकार 13 दिन ही चलपाई. बख्त एक ही हफ्ते विदेश मंत्री रह पाए. सरकार गिरने के बाद उन्होंने दोबाराराज्यसभा में नेता विपक्ष की कुर्सी संभाल ली.अटल दौर में आडवाणी के खिलाफ मोर्चा खोला1997 में अटल बीजेपी के सबसे बड़े नेता थे, पर अध्यक्ष की कुर्सी आडवाणी के पास थी.उस दौर में सिकंदर बख्त ने खुलकर माना कि पार्टी अध्यक्ष के नियमों को लेकर उनकेआडवाणी से मतभेद हैं. बख्त का मानना था कि किसी को भी पार्टी अध्यक्ष के बतौर दूसराकार्यकाल नहीं मिलना चाहिए. उन्होंने वरिष्ठ नेता सुंदर सिंह भंडारी को अध्यक्षबनाने की मांग की. संकेतों में ये भी माना कि वो भी अध्यक्ष पद में दिलचस्पी रखतेहैं, लेकिन अंतत: सीनियर नेताओं को ही उनका नाम आगे करना होगा. बख्त चाहते थे किपार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल 5 साल का होना चाहिए, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई औरइसे दो साल का बनाए रखा गया. हालांकि पार्टी संविधान में ये इंतजाम जोड़ दिया किजरूरत पड़ने पर कार्यकाल बढ़ाया भी जा सके.'मुसलमान क्यों नहीं गाते वंदे मातरम्, इसमें क्या गुनाह है?'1997 में बख्त 'वंदे मातरम' न गाने को लेकर मुस्लिम समाज पर भड़क गए थे. भाजयुमो कानेशनल मुस्लिम यूथ सम्मेलन था. लेकिन बीजेपी की परंपरा के उलट इस सम्मेलन मेंराष्ट्रगीत नहीं गाया गया. बख्त इसके लिए मुस्लिम समाज पर काफी नाराज हुए और यहांतक कह गए कि वह शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम अपनीमातृभूमि को सलाम करना है. हमें इसमें शर्म क्यों आती है?बाद में उमा भारती ने बताया, भाजयुमो प्रेसिडेंट होने के नाते उन्होंने ये गानानहीं करवाया था, क्योंकि कोई उसकी तैयारी करके नहीं आया था. लेकिन दुर्भाग्य सेबख्त जी को इससे गलत संदेश गया.बाद में बख्त ने कहा, 'मैं उमा भारती से खफा नहीं हूं. उन्होंने मुस्लिम समाज केमद्देनजर कोई फैसला नहीं लिया था. मुझे गुस्सा है कि मुसलमान इस तरह से सोचते हैं.ये सोच होनी ही क्यों चाहिए?'--------------------------------------------------------------------------------कई पत्रकार और जानकार यही मानते रहे कि बख्त भी बीजेपी में एक सामान्य मुसलमान कीतरह ही रहे. हमेशा पार्टी काडर के बीच राष्ट्रवाद के लिए अपनी निष्ठा साबित करने कोआतुर! बीजेपी अब 'सबका साथ, सबका विकास' की बात करती है, लेकिन उसके 36 साल केइतिहास में सिर्फ तीन मुसलमान नेता हुए हैं जो लोकसभा से बीजेपी सांसद बने- शाहनवाजहुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी और आरिफ बेग. बाकी राज्यसभा से भेजे गए. बख्त जनतापार्टी से लोकसभा सांसद थे. बीजेपी में आने के बाद वो राज्यसभा से ही चुने जातेरहे.सिकंदर बख्त ने भी ज्यादातर भाजपाई मुसलमान नेताओं की तरह एक हिंदू महिला से शादीकी थी. राज शर्मा से उनके दो बेटे हुए. जिनके उन्होंने हिंदू नाम रखे, अनिल बख्त औरसुनील बख्त.--------------------------------------------------------------------------------राज्यपाल के तौर पर अगली पारी1998 में जब दोबारा वाजपेयी सरकार बनी तो बख्त को इंडस्ट्री मिनिस्टर बनाया गया.इसके साथ ही वह लोकसभा में नेता सदन भी रहे. साल 2000 में उन्हें देश का दूसरा सबसेबड़ा नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण' मिला. 9 अप्रैल 2002 को उनका राज्यसभा कार्यकालखत्म हो गया. इसके बाद उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया.ठीक 9 दिन बाद उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया. 83 साल 237 दिन की उम्रमें वो केरल के सबसे उम्रदराज गवर्नर थे. 23 फरवरी 2004 को तिरुवनंतपुरम के मेडिकलकॉलेज अस्पताल में उनका देहांत हो गया. वो पहले राज्यपाल थे, जिनका राज्यपाल रहनेके दौरान देहांत हुआ. आरोप ये भी लगा कि मेडिकल अनदेखी की वजह से उनका निधन हुआ.एके एंटनी उस वक्त केरल के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने जांच के आदेश दिए, लेकिन ऐसाकुछ साबित नहीं हो सका.कांग्रेसियों ने ठीक से इलाज नहीं करवाया क्या?बख्त को पहले 18 फरवरी को पेटदर्द की शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया था. उनकाअल्ट्रासाउंड हुआ था, जिसके बाद डॉक्टर ने रुटीन एंटीबायोटिक्स और पेनकिलर्स देकरघर भेज दिए थे. दो दिन बाद बख्त को इन्हीं शिकायतों के साथ दोबारा अस्पताल लायागया. तब पता चला कि उनके पेट में गैंग्रीन है और यह खतरनाक साबित हो सकता है.आनन-फानन में उनकी सर्जरी की गई. कुछ लोगों का कहना है कि सर्जरी ही उनके लिएजानलेवा साबित हुई. पर डॉक्टरों का कहना है कि कोई और चारा नहीं था और यह सर्जरीपरिवार की इजाजत और सीनियर डॉक्टरों की सलाह के बाद ही की गई थी.सिकंदर बख्त को श्रद्धांजलि देते अटल बिहारी वाजपेयीउनकी अंत्येष्टि में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सभी बड़े नेता शामिल हुए. उस वक्तके बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने कहा था, 'श्री बख्त बीजेपी के फाउंडर नेताओंमें से थे. वो ईमानदार और गंभीर नेता थे. जो जिम्मेदारियां उन्होंने संभाली, उनकाअच्छे से निर्वाह किया. वह पक्के राष्ट्रवादी और सच्चे सेक्युलर थे और इन सबसेबढ़कर एक सच्चे इंसान थे.'उस वक्त सोशल मीडिया नहीं था. इसलिए आजादी के ठीक बाद के संघ के मुखपत्र'ऑर्गनाइजर' के पुराने संस्करणों की कॉपी वायरल नहीं हुई. जब तक सिकंदर बख्तकांग्रेसी थे, 'ऑर्गनाइजर' उन्हें मुस्लिम लीग का पिट्ठू कहता था. लेकिन उनकेबीजेपी में आने के बाद जाहिराना तौर पर 'ऑर्गनाइजर' के सुर भी बदल गए.RSS पहले उन्हें मुस्लिम लीग का पिट्ठू कहता थाजून 1952 में ऑर्गनाइजर ने सिकंदर बख्त पर एक स्टोरी लिखी थी. इसकी हेडलाइन थी,'सिकंदर बख्त एंड कंपनी.'इस स्टोरी में सिकंदर बख्त को एक वेश्या का बेटा बताया गया था. ऑर्गनाइजर ने लिखाथा, '1945 में सिकंदर बख्त मुस्लिम लीग नेशनल गार्ड्स से जुड़ गए और बहुत जल्द'अंसार' (कमांडर) हो गए. अंसार होने के नाते वो मुस्लिम लीग के लीडर लियाकत अली खानके संपर्क में आए. इसी समय दिल्ली की कांग्रेस नेता सुभद्रा जोशी की सिकंदर सेजान-पहचान हुई. सुभद्रा जोशी उन्हें पसंद करने लगीं. जब विभाजन बाद के दंगे शुरूहुए तो वे सिकंदर बख्त को कांग्रेस में ले आईं और 'शांति दल' का लीडर बना दिया.'RSS के इस अखबार का दावा था कि सिकंदर बख्त ने बंटवारे के बाद कुछ कुछ मुस्लिमशरणार्थियों की प्रॉपर्टी हड़प ली थी और इसका केस भी उन पर चला था. लेकिन कांग्रेसनेता सुभद्रा तब ताकतवर हैसियत में थीं. उन्होंने केस वापस करवा दिया. ऑर्गनाइजर नेसुभद्रा और सिकंदर बख्त के बारे में फूहड़ तरीके से लिखा था, 'सिकंदर बख्त स्वदेशीके नाम पर खद्दर पहनने के हिमायती नहीं थे. उन्हें यूरोपीय परिधान पसंद थे. लेकिनसुभद्रा उन्हें बहुत पसंद करती थीं. 1947 में वो सिकंदर बख्त के साथ उनके बस्तीहरपूल सिंह के आवास पर शिफ्ट हो गई थीं. उसके बाद वो वहीं रहीं.' लेकिन उनके बीजेपी में आने के बाद संघ ने उनकी आलोचना बंद कर दी. उनके निधन के बादसंघ सरसंघचालक केसी सुदर्शन ने कहा था, 'वो व्यक्ति एक सिद्धांत-स्तंभ था. मिलनसारतबीयत वाला और अपने संपर्क में आने वालों से स्नेह करने वाला. सिकंदर बख्त किसी तरहकी राजनीतिक छुआछूत नहीं मानते थे और उनकी सबसे ईमानदार कोशिश भारत के मुसलमानों कोमुख्यधारा में लाने की थी.'सिकंदर बख्त के हिस्से लंबे समय तक रबर स्टाम्प पद ही आए. संगठन में उनकी बहुतनिर्णायक हैसियत कभी नहीं रही. फाउंडर मेंबर होने के बावजूद उन्हें कभी अध्यक्षनहीं बनाया गया.--------------------------------------------------------------------------------Also Read:आजादी का जश्न मना रहे पकिस्तान को पता तक नहीं था कि ग्लोब में वो कहां पर है75 साल पहले बंबई के मैदान में गांधी ने वो नारा बुलंद किया था जो आज भी रोएं खड़ेकर देता हैजब गांधी ने देश की जनता के गुस्से को ललकाराभारत-पाकिस्तान बंटवारे से जुड़ी वो तारीख जिसे हम याद नहीं करना चाहते