मां-बाप की नौ संतानों में से एक, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 केदिन हुआ था. हुबली में. जन्मदिन के मौके पर हम आपको उन्हीं की कहानी पढ़ा रहे हैं. पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूं. मैं अकेला नहीं हूं,दस-बारह जने हैं. जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकारविद्या-लाभ करना पड़ता है. अत: लाभ के अंकों में अन्त तक बिल्कुल शून्य न पड़ने परभी जो पड़ता है, उसका हिसाब लगाने के लिए इन कुछेक बातों पर विचार कर लेना काफीहोगा कि जिन लड़कों को सबेरे आठ बजे के भीतर ही बाहर निकल कर आने-जाने में चार कोसका रास्ता तय करना पड़ता है, चार कोस के माने आठ मील नहीं, उससे भी बहुत अधिक.बरसात के दिनों में सिर पर बादलों का पानी और पांवों के नीचे घुटनों तक कीचड़ केबदले धूप के समुद्र में तैरते हुए स्कूल और घर आना-जाना पड़ता है, उन अभागे बालकोंको मां-सरस्वती प्रसन्न होकर वर दें कि उनके कष्टों को देखकर वे कहीं अपना मुंहदिखाने की बात भी नहीं सोच पातीं. तदुपरान्त यह कृतविद्य बालकों का दल बड़ा होकर एकदिन गांव में ही बैठे या भूख की आग बुझाने के लिए कहीं अन्यत्र चला जाय, उनके चारकोस तक पैदल आने जाने की विद्या का तेज आत्म-प्रकाश करेगा-ही-करेगा. कोई-कोई कोकहते सुना है, 'अच्छा, जिन्हें भूख की आग है, उनकी बात भले ही छोड़ दी जाय, परन्तुजिन्हें वह आग नहीं है, वैसे सब भले आदमी किस (जाने किस गांव के लड़के की डायरी सेउद्धृत. उनका असली नाम जानने की किसी को आवश्यकता नहीं, निषेध भी है. चालू नाम तोरख लीजिये- न्याड़ा -जिसके केश मुड़े हों.) सुख के लिए गांव छोड़कर जाते हैं? उनकेरहने पर तो गांव की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. मलेरिया की बात नहीं छेड़ता. उसे रहनेदो, परन्तु इन चार कोस तक पैदल चलने की आग में कितने भद्र लोग बाल-बच्चों को लेकरगांव छोड़कर शहर चले गए हैं, उनकी कोई संख्या नहीं है. इसके बाद एक दिन बाल-बच्चोंका पढ़ना-लिखना भी समाप्त हो जाता है, तब फिर शहर की सुख सुविधा में रुचि लेकर वेलोग गांव में लौटकर नहीं आ पाते! परन्तु रहने दो इन सब व्यर्थ बातों को. स्कूल जाताहूं- दो कोस के बीच ऐसे ही दो-तीन गांव पार करने पड़ते हैं. किसके बाग में आम पकनेशुरू हुये हैं, किस जंगल में करौंदे काफी लगे हैं, किसके पेड़ पर कटहल पकने को हैं,किसके अमृतवान केले की गहर करने वाली ही है, किसके घर के सामने वाली झाड़ी मेंअनन्नास का फल रंग बदल रहा है, किसकी पोखर के किनारे वाले खजूर के पेड़ से खजूरतोड़कर खाने से पकड़े जाने की संभावना कम है, इन सब खबरों को लेने में समय चला जाताहै, परन्तु जो वास्तविक विद्या है, कमस्फट्का की राजधानी का क्या नाम है एवंसाइबेरिया की खान में चांदी मिलती है या सोना मिलता है-यह सब आवश्यक तथ्य जानने कातनिक भी फुरसत नहीं मिलती. इसीलिए इम्तहान के समय 'एडिन क्या है' पूछे जाने पर कहता'पर्शिया का बन्दर' और हुमायूं के पिता का नाम पूछे जाने पर लिख आया तुगलक खां-एवंआज चालीस का कोठा पार हो जाने पर भी देखता हूं, उन सब विषयों में धारणा प्राय: वैसीही बनी हुई है-तदुपरान्त प्रमोशन के दिन मुंह लटकाकर घर लौट आता और कभी दल बांधकरमास्टर को ठीक करने की सोचता, और कभी सोचता, ऐसे वाहियात स्कूल को छोड़ देना ही ठीकहै हमारे गांव के एक लड़के के साथ बीच-बीच में स्कूल मार्ग पर भेंट हो जाया करतीथी. उसका नाम था मृत्युन्जय. मेरी अपेक्षा वह बहुत बड़ा था. तीसरी क्लास में पढ़ताथा. कब वह पहले-पहल तीसरी क्लास में चढ़ा, यह बात हममें से कोई नहीं जानताथा-सम्भवत:वह पुरातत्वविदों की गवेषणा का विषय था, परन्तु हम लोग उसे इस तीसरेक्लास में ही बहुत दिनों से देखते आ रहे थे. उसके चौथे दर्जे में पढ़ने का इतिहासभी कभी नहीं सुना था, दूसरे दर्जे से चढ़ने की खबर भी कभी नहीं मिली थी. मृत्युन्जयके माता-पिता, भाई-बहिन कोई नहीं थे, था केवल गांव के एक ओर एक बहुत बड़ा आम-कटहलका बगीचा और उसके बीच एक बहुत बड़ा खण्डहर-सा मकान, और थे एक दूसरे के रिश्ते केचाचा. चाचा का काम था भतीजे को अनेकों प्रकार से बदनामी करते रहना, 'वह गांजा पीताहै' ऐसे ही और भी क्या-क्या! उनका एक और काम था यह कहते फिरना, 'इस बगीचे का आधाहिस्सा उनका है, नालिश करके दखल करने भर की देर है.' उन्होंने एक दिन दखल भी अवश्यपा लिया, परन्तु वह जिले की अदालत में नालिश करके ही, ऊपर की अदालत के हुक्म से.परन्तु वह बात पीछे होगी. मृत्युन्जय स्वयं ही पका कर खाता एवं आमों की फसल में आमका बगीचा किसी को उठा देने पर उसका सालभर खाने-पहिनने का काम चल जाता, और अच्छी तरहही चल जाता. जिस दिन मुलाकात हुई, उसी दिन देखा, वह छिन्न-भिन्न मैली किताबों कोबगल में दबाये रास्ते के किनारे चुप-चाप चल रहा है. उसे कभी किसी के साथ अपनी ओर सेबातचीत करते नहीं देखा-अपितु अपनी ओर से बात स्वयं हमीं लोग करते. उसका प्रधान कारणथा कि दुकान से खाने-पीने की चीजें खरीदकर खिलाने वाला गांव में उस जैसा कोई नहींथा. और केवल लड़के ही नहीं ! कितने ही लड़कों के बाप कितनी ही बार गुप्त रूप सेअपने लड़कों को भेजकर उसके पास 'स्कूल की फीस खो गई है' पुस्तक चोरी चली गई'इत्यादि कहलवा कर रुपये मंगवा लेते, इसे कहा नहीं जा सकता. परन्तु ऋण स्वीकार करनेकी बात तो दूर रही, उसके लड़के ने कोई बात भी की है, यह बात भी कोई बाप भद्र-समाजमें कबूल नहीं करना चाहता-गांव भर में मृत्युन्जय का ऐसा ही सुनाम था. बहुत दिनोंसे मृत्युन्जय से भेंट नही हुई. एक दिन सुनाई पड़ा, वह मराऊ रक्खा है. फिर एक दिनसुना गया, मालपाड़े के एक बुड्ढ़े ने उसका इलाज करके एवं उसकी लड़की विलासी ने सेवाकरके मृत्युन्जय को यमराज के माल* मुंह में जाने से बचा लिया है.माल- बंगाल की एक जाति जो सांप के काटे का इलाज करती है.बहुत दिनों तक मैंने उसकी बहुत-सी मिठाई का सदुपयोग किया था-मन न जाने कैसा होनेलगा, एक दिन शाम के अंधेरे में छिपकर उसे देखने गया- उसके खण्डर-से मकान मेंदीवालों की बला नहीं है. स्वच्छन्दता से भीतर घुसकर देखा, घर का दरवाजा खुला है, एकबहुत तेज दीपक जल रहा है, और ठीक सामने ही तख्त के ऊपर धुले-उजले बिछौने परमृत्युन्जय सो रहा है. उसके कंकाल जैसे शरीर को देखते ही समझ में आ गया, सचमुच हीयमराज ने प्रयत्न करने में कोई कमी नहीं रक्खी, तो भी वह अन्त तक सुविधापूर्वक उठानहीं सका, केवल उसी लड़की के जोर से. वह सिरहाने बैठी पंखे से हवा झल रही थी. अचानकमनुष्य को देख चौंककर उठ खड़ी हुई. यह उसी बुड्ढ़े सपेरे की लड़की विलासी है. उसकीआयु अट्ठारह की है या अट्ठाईस की-सो ठीक निश्चित नहीं कर सका, परन्तु मुंह की ओरदेखने भर से खूब समझ गया, आयु चाहे जो हो, मेहनत करते-करते और रात-रात भर जागतेरहने से इसके शरीर में अब कुछ नहीं रहा है. ठीक जैसे फूलदानी में पानी देकर भिगोरक्खे गये बासी फूल की भांति हाथ का थोड़ा-सा स्पर्श लगते ही, थोड़ा-साहिलाते-डुलाते ही झड़ पड़ेगा. मृत्युन्जय मुझे पहिचानते हुये बोला- 'कौन न्याड़ा ?'बोला- 'हां.' मृत्युन्जय ने कहा- 'बैठो.' लड़की गर्दन झुकाए खड़ी रही. मृत्युन्जयने दो-चार बातों में जो कहा, उसका सार यह था कि उसे खाट पर पड़े डेढ़ महीना हो चलाहै. बीच में दस-पन्द्रह दिन वह अज्ञान-अचैतन्य अवस्था में पड़ा रहा, अब कुछ दिन हुएवह आदमियों को पहिचानने लगा है, यद्यपि अभी तक वह बिछौना छोड़कर उठ नहीं सकता,परन्तु अब कोई डर की बात नहीं है.--------------------------------------------------------------------------------मैं मरना नहीं चाहता अंकल, मम्मी-पापा से बिछडना नहीं चाहता!