जब भारत-पाक क्रिकेट मैच में हो चुकी थी दाऊद को मारने की तैयारी! फिर कैसे बचा डॉन?
32 साल पहले मुंबई की लेडी डॉन ने डी कंपनी के सरगना को मारने का प्लान बना लिया था. मगर ऐन मौके पर कुछ ऐसा हो गया, जिसके चलते दाऊद इब्राहिम कासकर बच निकलने में कामयाब हो गया.
मुंबई का नागपाड़ा इलाका. यहां हुजरा मोहल्ले में बने एक घर में एक औरत टीवी के सामने बैठी हुई है. साल 1991 की बात है. टीवी पर भारत-पाकिस्तान का मैच चल रहा है. शारजाह क्रिकेट ग्राउंड में खेला जा रहा ये मैच विल्स ट्रॉफी का फ़ाइनल था. पाकिस्तान ने पहले बैटिंग करते हुए 262 रन बनाए थे. और बाद में खेलते हुए भारत 47 रन पर चार विकेट गंवा चुका था. आकिब जावेद ने अपनी पहली ही बॉल पर सचिन को LBW कर दिया था. (India-Pak Cricket)
पूरे भारत के टीवी बंद होने को थे. हालांकि मुंबई की उस औरत को इससे कोई फर्क न पड़ता था कि कौन जीता, कौन हारा. क्रिकेट से उसका दूर दूर तक नाता नहीं था. फिर भी पूरे मैच के दौरान उसने टीवी पर निगाहें गढ़ाए रखीं. उसे मतलब था उस शख्स से, जो उस रोज़ शारजाह में ऑडियंस के बीच VIP सीट पर बैठा हुआ था. जितनी बार वो शख्स टीवी पर आता, टीवी के इस पार दो भौहें तन जाती थीं. उन आंखों को इंतज़ार था एक बदले का. बदला जो क्रिकेट के मैदान पर लिया जाना था. और पूरी दुनिया के सामने. (Dawood Ibrahim)
दाऊद की दोस्ती अच्छी न दुश्मनीकहानी सपना दीदी(Sapna Didi) की. मुंबई अंडरवर्ल्ड की वो लेडी डॉन जो दाऊद इब्राहिम को मारने के लिए दुबई जाने को तैयार हो गयी थी. सपना दीदी - कहानी इस नाम से शुरू नहीं होती. सपना दीदी का असली नाम अशरफ था. एक रोज़ अशरफ अपने घर में सोई हुई थी, जब दरवाज़े पर एक दस्तक हुई. पड़ोस की आपा बताने आई थीं कि दुबई से फोन आया है. इन शब्दों ने अशरफ को जैसे नई जिंदगी दे दी. वो भागते भागते टेलीफोन तक पहुंची. रिसीवर उठाया. सामने से आवाज आई, शाम को पहुंचूंगा, एयर पोर्ट पर मिलना. अशरफ ने तुरंत अपने कपड़े बदले और शाम होने का इंतज़ार करने लगी. फ्लाइट का वक्त शाम के चार बजे था. अशरफ ने एक घंटे पहले ही टैक्सी बुला ली और सीधे सांता क्रूज़ एयर पोर्ट के लिए रवाना हो गयी.
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अशरफ का पूरा नाम था अशरफ खान. उसका पति महमूद दुबई से कई दिनों बाद लौट रहा था. पांच साल पहले दोनों की मुलाक़ात एक शादी में हुई थी. पहली मुलाक़ात में ही दोनों की नजरें मिलीं. प्यार हुआ और जल्द ही शादी हो गयी. अशरफ के दिन हंसी खुशी बीतने लगे. अच्छा घर, कपड़े लत्ते, घूमना-फिरना किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. पति अच्छा कमाता था और खर्च भी खूब करता था. हालांकि ये पैसा आता कहां से था, न कभी महमूद ने अशरफ को बताया, न उसने पूछा. उसे बस इतना पता था कि उसका पति दुबई में किसी के साथ बिजनेस करता था. एयरपोर्ट जाते हुए अशरफ पुराने दिनों को याद कर रही थी. हालांकि आज उसे पता चलने वाला था कि उसका पति क्या काम करता है. और उस काम का अंजाम क्या होता है.
एयरपोर्ट के गेट से लोग बाहर आ रहे थे. अशरफ को महमूद का इंतज़ार था. इस बीच उसने देखा कि पुलिस की दो गाड़ियां उसके पीछे आकर खड़ी हो गई हैं.गाड़ी में से पुलिस वाले निकले लेकिन अशरफ ने कुछ खास ध्यान नहीं दिया. कुछ देर बाद उसे महमूद का चेहरा दिखाई दिया. महमूद उसकी तरफ आ रहा था.लेकिन पलक झपकते ही वो भीड़ में ओझल हो गया. महमूद कहां गया, अशरफ ये सोच ही रही थी कि अचानक उसे गोलियों की आवाज सुनाई दी. अगले ही पल एक एम्बुलेंस उसके बगल से गुजरी और गाड़ियों की भीड़ में ओझल हो गई.
अशरफ के मन में आशंका के बादल घिर आए. उसने एम्बुलेंस का पता किया. एम्बुलेंस कूपर हॉस्पिटल की तरफ जा रही थी. लेकिन वहां पहुंचकर भी अशरफ को महमूद का कोई पता नहीं चला. वो सीधे अंधेरी थाने गए. वहां से एक थाने से दूसरे थाने होते हुए शाम हो गयी लेकिन महमूद की कहीं कोई खबर नहीं थी. फिर एक पुलिस वाले ने उसे JJ हॉस्पिटल जाने को कहा. अशरफ अस्पताल पहुंची. वहां एक कोने में बिस्तर पर महमूद की लाश पड़ी थी. उसे गोलियों से भून डाला गया था. अशरफ इससे पहले कुछ समझ पाती, परिवार वाले आए और महमूद को कब्रिस्तान ले गए.
अगले रोज़ अशरफ को पुलिस की प्रेस कांफ्रेस से पूरी कहानी का पता चला. महमूद का पूरा नाम महमूद खान था. लेकिन बिजनेस में उसे एक दूसरे नाम से जाना जाता था- महमूद कालिया. महमूद अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के लिए काम करता था. दाऊद की किसी बात से इंकार करने पर उसके गुर्गों ने पुलिस से मुखबिरी कर दी थी. और वो एनकाउंटर में मारा गया था. अशरफ को जब इस सच्चाई का पता चला, वो दाऊद से बदला लेने के लिए आतुर हो गयी. हालांकि सच्चाई ये थी कि अंडरवर्ल्ड के तौर तरीकों से वो अनजान थी और दाऊद उसकी पहुंच से बहुत दूर था.
सपना की अंडरवर्ल्ड से पहली मुलाक़ात हुई हुसैन उस्तरा के जरिए. लड़कपन के दिनों में उसने एक लड़के को ऐसा चीरा मारा था. कि डॉक्टर को कहना पड़ा था,
"लगता है किसी ने सर्जिकल तरीके से काटा है".
उसी दिन से मुहम्मद हुसैन का नाम हुसैन उस्तरा पड़ गया. हुसैन अपना एक गैंग चलाता था. और अंडरवर्ल्ड के बड़े नामों में उसका उठना बैठना था. उसकी दाऊद से बनती नहीं थी. किसी ने ये बात अशरफ को बताई और वो सीधे हुसैन से मिलने पहुंच गयी. हुसैन पहले तो उसकी बात सुनकर हंसा लेकिन फिर उसके पक्के इरादे सुनकर मदद के लिए तैयार हो गया. उसने अशरफ को मार्शल आर्ट्स और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी. दोनों पक्के दोस्त बन गए. हुसैन की मदद से अशरफ ने दाऊद के ठिकानों पर जासूसी शुरू कर दी.
मुम्बई में दाऊद के ड्रग्स के, सट्टेबाज़ी के धंधे चलते थे. अशरफ इन सब के बारे में पुलिस को बताने लग गयी. और जल्द ही पुलिस की एक पक्की इनफॉर्मर बन गयी. दाऊद के कई अड्डों को उसने बंद करवाया लेकिन इनसे दाऊद पर कोई असर नहीं पड़ा. दाऊद का अटेंशन पाने के लिए एक बड़ा धमाका जरूरी था. और ये काम अशरफ नहीं कर सकती थी. इसके लिए सपना की जरुरत थी. और जल्द ही एक मुलाक़ात ने सपना की भी एंट्री करा दी.
अशरफ कैसे बनी सपना दीदी?सपना - अशरफ ने ये नाम क्यों चुना. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. एक रोज़ अशरफ को पता चला कि दाऊद का सबसे बड़ा दुश्मन अरुण गवली है. जो राजनीति में साख रखता था. अशरफ ने उससे जाकर मदद मांगी लेकिन गवली ने ये कहकर मदद करने से इंकार कर दिया कि वो "उस जैसे" लोगों का भरोसा नहीं कर सकता. अशरफ को समझ आ गया कि अशरफ बने रहने से काम नहीं चलने वाला. उस दिन से उसने अपना नाम बदलकर सपना कर लिया. बुरका छोड़कर वो जींस टॉप पहनने लगी. बाइक चलाने लगी. जल्द ही उसने कुछ गुर्गे भी जमा कर लिए. जो दाऊद से खार खाए बैठे थे. इन गुर्गों की बदौलत सपना बन गयी सपना दीदी - लेडी डॉन. सपना बनकर उसने दाऊद पर पहला बड़ा निशाना लगाया.
1988 के आसपास वो हुसैन उस्तरा के साथ नेपाल गई. दाऊद नेपाल से स्मगल कर मुम्बई तक हथियार भेजा करता था. ये उसके समग्लिंग ऑपरेशन का मुख्य बिंदु था. सपना ने यहीं सेंध लगाई. उसने दाऊद के माल को लूटना शुरू कर दिया. इस माल को वो और हुसैन कलकत्ता में बेचते और मोटा मुनाफा कमाते. इस चक्कर में एक बार उसकी और हुसैन की बॉर्डर सिक्योरिटी पुलिस से भी भिड़ंत हो गयी थी. किसी तरह वो बचते बचाते वहां से निकले.इस घटना के बाद सपना ने नेपाल जाना बंद कर दिया. और अपना पूरा ध्यान मुम्बई में लगाया. मुंबई में वो दाऊद को जितना हो सके नुकसान पहुंचाना चाहती थी. और इस काम में हुसैन उस्तरा उसकी भरपूर मदद किया करता था. सपना के लिए दोनों का रिश्ता दोस्ती तक सीमित था. लेकिन पूरे अंडरवर्ल्ड को पता था कि हुसैन सपना को अपना दिल दे बैठा है. इसी चक्कर में एक रोज़ उससे एक गलती हो गयी.
एक दिन सपना के पीछे दाऊद के कुछ लोग पड़े थे. वो मदद मांगने के लिए आधी रात हुसैन के घर पहुंची. हुसैन ने उसे अपने घर में आसरा तो दिया लेकिन साथ ही इस मौके का फ़ायदा उठाने की कोशिश भी कर डाली. उस दिन सपना ने उससे सारे रिश्ते तोड़ लिए. और वो पूरी तरह अपने मकसद को पूरा करने में जुट गई. मुंबई में सपना ने अच्छी खासी पहचान बना ली थी. वो अपना गैंग चलाने लगी थी. और नेताओं से भी उसके रिश्ते बन गए थे. उसने एक पुलिस वाले से शादी भी की लेकिन जल्द ही ये रिश्ता भी टूट गया. हालांकि इन सब के बीच दाऊद अभी भी उसकी पहुंच से दूर दुबई में बैठा था.
Dawood को मारने की प्लानिंग1990 के आसपास सपना को दाऊद तक पहुंचने का एक रास्ता नज़र आया. जो क्रिकेट के मैदान से होकर गुजरता था. उस दौर में दुबई में भारत और पाकिस्तान के मैच हुआ करते थे. और इन मैचों में एक VIP सीट हमेशा बुक रहती थी. दाऊद को क्रिकेट का शौक तो था ही, साथ ही उसके गुर्गे सट्टेबाज़ी का रैकेट भी चलाते थे. मुम्बई पुलिस को दाऊद की खोज थी. लेकिन दुबई और शारजाह में वो आराम से मैच देख सकता था. जब सपना को इस बात का पता चला उसने अपने लड़कों के साथ मिलकर एक प्लान बनाया.
उसने अपने लड़कों को दुबई भेजा. मैच के दौरान वो दाऊद का वीडियो बनाते और सपना तक पहुंचाते. इसके बाद सपना ने क्रिकेट स्टेडियम के नक़्शे तैयार करवाए. उसने स्टेडियम की रेकी करवाई. दाऊद स्टेडियम में हथियार लेकर नहीं आ सकता था. और इसी बात पर सपना का मास्टर प्लान टिका था. प्लान यूं था कि उसके लड़के चाकू छुरी जैसे हथियार छुपाकर स्टेडियम में दाखिल होंगे और जैसे ही भीड़ ताली बजाने के लिए उठेगी, कोई दाऊद का काम तमाम कर देगा. इस प्लान पर सपना को इतना विश्वास था कि वो खुद भी दुबई जाने के लिए तैयार हो गई थी. उसे इंतज़ार था एक सही मौके का.
उसने नागपाड़ा के हुजरा मोहल्ले में एक घर लिया और यही से दाऊद की हत्या का प्लान बनाने लगी. हुजरा मोहल्ला मुसाफिर खाना के ठीक बगल में था. जहां कभी दाऊद का पुश्तैनी मकान हुआ करता था. सपना दुश्मन के डेरे में रहकर उसे चुनौती देना चाहती थी. लेकिन यही शेरदिली उसके लिए खतरा बन गई.
सपना के प्लान की खबर किसी ने छोटा शकील(Chhota Shakeel) तक पहुंचा दी.शकील तब दाऊद का दायां हाथ हुआ करता था. उसके लड़के मुम्बई पर पूरी नज़र रखते थे. और उन्हें सपना के मूवमेंट की भी पूरी खबर थी. एक रोज़ जब सपना अपने घर में लेटी हुई थी. शकील के कुछ लड़के आधी रात घर में दाखिल हुए. और सपना को उठाकर ले गए. उसी के घर के नीचे चाकुओं से गोद गोद कर सपना की हत्या कर दी गई.
हुसैन जैदी अपनी किताब Mafia Queens of Mumbai में बताते हैं, सपना की मौत मुम्बई अंडरवर्ल्ड में अपनी तरह की इकलौती वारदात थी. क्योंकि इससे पहले औरतों पर हमला नहीं किया जाता था. दाऊद ने कई साल सपना की हरकतों को नज़र अंदाज़ किया लेकिन जब उसे अपनी मौत की प्लानिंग का पता चला ,उसने सपना को भी मरवा दिया. सपना दीदी - लेडी डॉन का चैप्टर यहीं अंत हो गया.
हुसैन उस्तरा का क्या हुआ?सपना की मौत के बाद भी कई सालों तक हुसैन अपना गैंग चलाता रहा. लड़कियां उसकी कमजोरी थीं और यही कमजोरी उसकी मौत का कारण बनी. सितम्बर 1998 में हुसैन अपने आदमियों को पीछे छोड़ अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गया. यहां बिल्डिंग से बाहर निकलकर जब वो अपनी कार की तरफ बड़ा, शकील के लड़कों से उसे गोलियों से छलनी कर दिया. सपना के साथ साथ हुसैन उस्तरा की पारी भी ख़त्म हो गयी. जहां तक दाऊद की बात है. 1998 तक वो मुंबई बम ब्लास्ट का आरोपी बन चुका था. क्रिकेट में उसका शौक अब भी पहले जैसा ही था. लेकिन उसने पब्लिक में दिखाई देना बंद कर दिया था.
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