क्रांति. ये शब्द अगर आप सुनकर अपनी आंखें मूंदें तो आमतौर पर जो तस्वीरें आपके ज़हनमें तैरेंगी वो कुछ इस प्रकार होंगी - आगजनी के बीच नारे लगाते कुछ नकाबपोश 'लड़के'या हिंसा में डूबे किसी मुच्छड़ पुरुष की आंखें लेकिन जो मैं कहूं कि क्रांतिकारियोंकी तस्वीर किसी तानाशाह की कब्र पर खिले फूल भी हो सकते हैं, तो आपको कैसा लगेगा?या किसी कॉलेज जाती लड़की का अपने प्रेमी का सरेबाज़ार हाथ पकड़ना भी एक क्रांतिकारीतस्वीर है. यकीनन इन घटनाओं को आप क्रांति नहीं मानते होंगे. कैसे मानेंगे? आपकेइर्द-गिर्द जो कोहरा बारीकी से बुना गया है, वो आपके अंतर्मन को प्रेम से लबरेज़ औरमुहब्बत से भरपूर दृश्यों को क्रांति मानने से रोकता है. ख़ैर, लब्बोलुआब ये है किक्रांति और प्रेम एक दूसरे का हाथ थामे चलते हैं. ऐसे ही एक क्रांतिकारी प्रेमी कविको आज ही के दिन गोलियों से छलनी कर दिया गया था. नाम था - पाश. अवतार सिंह संधू'पाश'. अपने जीवन के अनुभवों के बारे में पाश कहा करते थे - 'मैं जो सिर्फ आदमी बनारहना चाहता था, यह क्या बना दिया गया हूं' पाश को जीने की इतनी चाह थी कि वो गले तकज़िन्दगी में डूब जाना चाहते थे. बेशक पाश पंजाबी कवि थे, मगर उनकी कविताओं को हिंदीमें बाहें पसारे स्वीकारने वाले इतने लोग हैं कि उन्हें किसी हिंदी कवि से कमप्रसिद्धि प्राप्त नहीं. क्रांति का इत्तेफ़ाक़ ऐसा था कि पाश की हत्या ठीक उसी दिनकी गई जिस दिन तीनों महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गईथी. क्रांतिकारियों को फांसी के तख्ते पर झुला देना या गोलियों से भून डालना कोई नईबात नहीं. जैसा कि फैज़ कहते हैं - यूंही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़ न उनकी रस्म नई है ,न अपनी रीत नई यूंही हमेशा खिलाए हैं, हम ने आग में फूल न उन की हारनई है ,न अपनी जीत नई इसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते तिरे फ़िराक़ में हम दिलबुरा नहीं करते आज अवतार सिंह संधू 'पाश' की बरसी पर 'एक कविता रोज़' में उनकी एककविता पढ़िए जिसका शीर्षक है - दो और दो तीन.दो और दो तीन पाशमैं प्रमाणित कर सकता हूं - कि दो और दो तीन होते हैं वर्तमान मिथिहास होता हैमनुष्य की शक्ल चमचे जैसी होती है. तुम जानते हो - कचहरियों, बस-अड्डों और पार्कोंमें सौ-सौ के नोट घूमते फिरते हैं. डायरियां लिखते, तस्वीरें खींचते और रिपोर्टेंभरते हैं. ‘कानून रक्षा केन्द्र’ में बेटे को मां पर चढ़ाया जाता है. खेतों में‘डाकू’ मज़दूरी करते हैं मांगें माने जाने का ऐलान बमों से किया जाता है. अपने लोगोंसे प्यार का अर्थ ‘दुश्मन देश’ की एजेण्टी होता है और बड़ी से बड़ी ग़द्दारी का तमग़ाबड़े से बड़ा रुतबा हो सकता है. तो - दो और दो तीन भी हो सकते हैं वर्तमान मिथिहास होसकता है मनुष्य की शक्ल भी चमचे जैसी हो सकती है.