साल 1960. 29 अगस्त की तारीख थी. रोम ओलंपिक्स चल रहे थे. भारतीय फुटबॉल टीम केसामने थी मजबूत फ्रांस. फ्रांस ने तीन दिन पहले अपना पहला गेम पेरू के खिलाफ 2-1 सेजीता था. भारत उसी दिन हंगरी से 2-1 से हारा था. इस मैच में किसी को उम्मीद नहीं थीकि भारत कुछ कर पाएगा. लेकिन इंडियन कैप्टन प्रदीप कुमार उर्फ पीके बैनर्जी कुछ औरही सोच रहे थे.मैच के पहले हाफ में एक भी गोल नहीं हुआ. दूसरे हाफ से टीम इंडिया ने गियर बदला औरमैच के 71वें मिनट में पहला गोल दाग दिया. यह गोल पीके बैनर्जी ने ही किया. अब टीम1-0 से आगे थी. जीत से बस कुछ मिनट दूर. लेकिन तभी फ्रेंच फुटबॉलर जेरार्डक्वाइनकॉन ने मैच के 82वें मिनट में गोल मार मैच बचा लिया. भारत ओलंपिक में अपनीपहली जीत दर्ज करते-करते रह गया. मैच 1-1 से बराबर छूटा. यह ओलंपिक में भारत केसबसे बेहतरीन मैचों में से एक रहा.यह मैच गवाह था भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम युग यानी गोल्डेन एज का. टीम इंडिया इसओलंपिक में एक भी मैच नहीं जीत पाई. फ्रांस के खिलाफ ड्रॉ हुए मैच ने टीम कोएकमात्र पॉइंट दिलाया. लेकिन इस ओलंपिक में टीम ने हर मैच में जो दमखम दिखाया उसनेकाफी चर्चा बटोरी. इसके दो साल बाद हुए एशियन गेम्स.# अपने रोनाल्डो, मेसी और नेमारसाल 1962 के इंडो-चाइना वॉर से पहले. ये गेम्स इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता मेंहुए. यहां खेलने गई इंडियन फुटबॉल टीम की कप्तानी चुनी गोस्वामी कर रहे थे. चुनीगोस्वामी, तुलसीदास बलराम और प्रदीप कुमार बैनर्जी. मिलेनियल्स को समझाना हो तोइन्हें आज का रोनाल्डो, मेसी और नेमार कहा जा सकता है. ये तीनों उस वक्त पूरे एशियाकी बेस्ट फॉरवर्ड तिकड़ी थे. टीम के मैनेजर थे सैयद अब्दुल रहीम. वही रहीम जिनकारोल अजय देवगन 'मैदान' नाम की मूवी में कर रहे हैं. रहीम को लोग रहीम साब बुलातेथे.टूर्नामेंट शुरू हुआ. भारत ग्रुप बी में जापान, कोरिया और थाईलैंड जैसी दिग्गजटीमों के साथ था. उस दौर में एशिया में भारत को टक्कर देने वाली टीमें कम ही थीं.और जब भी ऐसी टीमों की बात होती थी तब साउथ कोरिया उनमें पहले नंबर पर आती थी. साउथकोरिया अपने स्टेटस के हिसाब से ही खेली. 26 अगस्त, 1962 को भारत ने अपना पहला मैचखेला. साउथ कोरिया के साथ हुए इस मैच में टीम 2-0 से हारी. पहले ही मैच में हारमिलने के बाद टीम का आत्मविश्वास हिल गया.एशिया की बेस्ट फॉरवर्ड तिकड़ी थे Chuni Goswami, PK Banerjee और Tulsidas Balaram(फोटो सोशल मीडिया से साभार)टीम का अगला मैच 28 अगस्त को थाईलैंड से था. थाईलैंड ने 27 तारीख को साउथ कोरिया कोकड़ी टक्कर दी थी. इस 3-2 की हार के दौरान थाईलैंड ने कोरिया को लगातार प्रेशर मेंरखा. ऐसे में लोगों को लगा था कि भारत के लिए मैच आसान नहीं होगा. लेकिन इस मैच मेंभारतीय तिकड़ी ने थाईलैंड की हालत खराब कर दी.मैच से पहले कोच रहीम ने टीम को खूब मोटिवेट किया था. उन्होंने टीम को यकीन दिलायाकि वे अभी भी चीजें सही कर सकते हैं. रहीम का मोटिवेशन काम आया. इंडिया ने थाईलैंडको 4-1 से हरा दिया. पीके ने इस मैच में दो गोल मारे. बलराम और गोस्वामी ने भीएक-एक गोल किए. इस जीत के बाद उम्मीदें जिंदा थीं. लेकिन अगले राउंड में जाने केलिए जापान के खिलाफ आखिरी मैच हर हाल में जीतना था.# जब भड़के रहीम साबयह काम आसान नहीं था. थाईलैंड के खिलाफ डिफेंडर जरनैल सिंह को चोट लग गई. यह चोटइतनी खतरनाक थी कि उन्हें छह टांके लगे और वह आखिरी मैच से बाहर हो गए. जापान एकमैच जीत चुका था. उसके दो मैच बाकी थे. थाईलैंड तीनों मैच हार चुकी थी. मतलब अगरजापान, भारत को हरा देता तो भारत वहीं बाहर हो जाता. थाईलैंड को हराने के सिर्फ 20घंटे बाद भारत के सामने थी जापान की टीम.जापानी टीम चार दिन से आराम कर रही थी. मैच के पहले हाफ में उन्होंने टीम इंडिया कोखूब परेशान किया. जरनैल सिंह की कमी को पूरा करने के लिए इंडियन डिफेंस को पूरा जोरलगाना पड़ा. गोलकीपर प्रद्युत बर्मन ने तीन बेहतरीन सेव किए और चंद्रशेखरन नेडिफेंस में काफी मेहनत की. किसी तरह से पहला हाफ 0-0 पर खत्म हुआ. हाफ टाइम मेंरहीम भूखे शेर की तरह अपनी टीम पर टूट पड़े. सीनियर्स को उन्होंने जमकर लताड़ा.पीके को तो उन्होंने खासतौर पर सुनाया.रहीम की डांट काम आई. सेकंड हाफ में टीम इंडिया एकदम अलग ही दिखी. राम बहादुरछेत्री के असिस्ट पर पीके ने 54वें मिनट में टीम इंडिया को लीड दिला दी. इसके बादमैच के 70वें मिनट में बलराम ने जापानी गोलकीपर की गलती का फायदा उठाया. स्कोर 2-0हो गया. भारत ने मैच जीत लिया. अगले दिन कोरिया ने जापान को हराकर भारत कासेमीफाइनल खेलना पक्का कर दिया.एक मैच के दौरान अपना जलवा दिखाते PK Banerjee और दाहिनी तरफ मैच से पहलेमुस्कुराते PK (फोटो सोशल मीडिया से साभार)सेमीफाइनल में भारत को साउथ वियतनाम से खेलना था. पूरे टूर्नामेंट में टीम ने बस एकगोल खाया था. कोच रहीम ने इस मैच में तीन चेंज किए. पहले तो वह जरनैल सिंह को टीममें वापस लाए. लेकिन नई पोजिशन पर. सेंटर बैक यानी डिफेंडर खेलने वाले जरनैल कोसेंट्रल फॉरवर्ड यानी स्ट्राइकर उतारा गया. मजेदार बात है कि उन्होंने अपना करियरफॉरवर्ड पोजिशन से ही शुरू किया था.इनके अलावा प्रशांत सिन्हा और अरुण घोष को भी टीम में एंट्री मिली. भारत ने कड़ेसंघर्ष के बाद यह मैच 3-2 से जीत लिया. गोस्वामी ने दो जबकि जरनैल ने मैच में एकगोल दागा. उधर कोरिया ने मलय को हराकर फाइनल में एंट्री कर ली.टीम इंडिया 11 साल बाद अपना पहला फाइनल खेल रही थी. सामने थी साउथ कोरिया, जो भारतसे कभी नहीं हारी थी. 1958 एशियन गेम्स के सेमीफाइनल और 1962 गेम्स के ग्रुप राउंडमें भारत, कोरिया से हार चुका था. कोरिया का स्टेटस और फॉर्म सब भारत की उम्मीदेंतोड़ने वाले थे.Indian Football Team के साथ Jarnail Singh, बाएं से तीसरे. (फेसबुक/जरनैल सिंहढिल्लों)# मुझे चाहिए गोल्डमैच से पहले प्लेयर्स को नींद नहीं आई. टीम ने तय किया कि चलो बाहर घूमते हैं.घूमते-घूमते वह ट्रेनिंग ग्राउंड पर पहुंचे तो उन्हें जलती हुई सिगरेट दिखी. सिगरेटपीने वाले व्यक्ति के पास पहुंचे तो पता चला कि वह कोच रहीम थे. कोच ने टीम को देखातो अपने पास बुलाया और बोले, कल मुझे गोल्ड चाहिए. फिर आया 4 सितंबर. फाइनल कीतैयारियां पूरी थीं. टीम इंडिया स्टेडियम तक के रास्ते में देशभक्ति के गीत गातीरही. स्टेडियम पहुंचे. प्लेयर्स फील्ड की तरफ बढ़ रहे थे तभी जरनैल सिंह ने सबकोइकट्ठा किया और बोले, 'आज हमारे सामने करो या मरो के हालात हैं. हमें आज देश के लिएअपनी जान दांव पर लगा देनी है.' टीमें आईं. स्टेडियम में एक लाख लोग बैठे थे. इसक्राउड का ज्यादातर हिस्सा भारतीय टीम का हौसला तोड़ रहा था. लेकिन यहां इंडिया केकुछ ऐसे समर्थक भी बैठे थे जिनके वहां होने की उम्मीद किसी ने नहीं की थी. इनसमर्थकों में पाकिस्तानी हॉकी टीम भी शामिल थी. यह वही टीम थी जिसने 3 सितंबर कोभारतीय हॉकी टीम को फाइनल में मात दी थी.व्हीलचेयर पर बैठे PK Banerjee के साथ Ajay Devgn. अजय जल्दी ही Syed Abdul Rahim(दाहिनी तरफ) के रोल में दिखेंगे. (तस्वीरें सोशल मीडिया से साभार)# गुस्साए फैंस का सामनादर्शकों के भारत से गुस्सा होने के पीछे एक बड़ा कारण था. इंडोनेशिया सरकार ने अरबदेशों और चाइना के दबाव में ताइवान और इजराइज के एथलीट्स को वीजा देने से इनकार करदिया था. इस बात का खूब विरोध हुआ. विरोध करने वालों में इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी(IOC) मेंबर गुरु दत्त सोंधी भी शामिल थे. एशियन गेम्स के फाउंडिंग मेंबर्स में सेएक रहे सोंधी इंडोनेशिया के इस फैसले से काफी गुस्सा हुए. उन्होंने कहा, 'जकार्ताएशियन गेम्स को सिर्फ जकार्ता गेम्स बुलाया जाना चाहिए. क्योंकि एशिया के देशों कोतो उसमें खेलने ही नहीं दिया जा रहा.' इस बयान ने इंडोनेशिया के लोगों को भड़कादिया. अखबारों में इंडिया के खिलाफ खूब लिखा गया. लोगों ने प्रदर्शन किए. इंडियनएथलीट्स का मजाक बनाया गया. जकार्ता स्थित इंडियन हाई कमिशन दफ्तर पर प्रदर्शन हुए.हालात इतने बिगड़े थे कि इंडियंस को देख बसों पर पथराव होने लगता था. पगधारी सिखजरनैल सिंह को कई बार बस की फर्श पर यात्रा करनी पड़ी.# जब सन्न हुए एक लाख लोगमैच पर लौटें तो शुरुआत से ही क्राउड भारत के खिलाफ नारेबाजी कर रहा था. इंडियनप्लेयर्स के पास बॉल जाते ही यह शोर और बढ़ जाता था. लेकिन अपने कोच के लिए गोल्डजीतने निकले भारतीय खिलाड़ियों ने खुद को इस दबाव से बाहर निकाला. अटैकिंग फुटबॉलखेलनी शुरू की. मैच के 17वें मिनट में बलराम ने मैदान की बाईं तरफ बॉल संभाली. आगेबढ़े और गोल के करीब चुनी गोस्वामी को बॉल पास कर दी. चुनी को हमेशा की तरह इस बारभी डिफेंडर्स ने घेर रखा था. लेकिन उन्होंने धैर्य से काम लिया और सबको छकाकर बॉलपीके की तरफ धकेल दी. पीके ने इस पर करारा शॉट जमाया और पूरा स्टेडियम सन्न. स्कोर1-0 हो चुका था.तीन ही मिनट बाद भारत को फ्री किक मिली. फ्रैंको फर्टुनाटो ने फ्री किक ली. बॉलजरनैल सिंह के पास पहुंची. दो डिफेंडर्स उन्हें घेरे खड़े थे लेकिन जरनैल ने उन्हेंधकेला और बाएं पैर से बॉल को गोल में भेज दिया. स्कोर 2-0 हो गया था..स्टेडियम किसीगिरिजाघर की तरह एकदम शांत. बाद में मैच खत्म होने से कुछ मिनट पहले कोरिया ने एकगोल किया. लेकिन भारतीय डिफेंडर्स और गोलकीपर पीटर थंगराज ने उन्हें दूसरा मौकानहीं दिया. भारत ने मैच 2-1 से जीत लिया और बन गया एशियन गेम्स का फुटबॉल चैंपियन.Indian Express में छपी Indian Football Team के Asian Games Champion बनने की ख़बर(आर्काइव)# कमाल के पीकेपीके ने सिर्फ 15 साल की उम्र में बिहार के लिए डेब्यू किया था. बाद में उन्होंनेईस्टर्न रेलवे जॉइन किया और फिर उसके लिए खेले भी. पीके ने सिर्फ 19 साल की उम्रमें नेशनल टीम के लिए डेब्यू किया था. ऐसा कर उन्होंने एक रिवाज तोड़ा. वह इंडियनफुटबॉल के बिग थ्री, ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग के लिए बिनाखेले नेशनल टीम तक पहुंच गए थे.पीके ने भारत के लिए दो ओलंपिक्स खेले. 1956, जब भारत नजदीकी अंतर से ब्रॉन्ज़ मेडलजीतने से चूक गया. और 1960, जिसकी कहानी हम पहले ही बता चुके हैं.बाद में पीके टीम इंडिया के कोच भी बने. उनके अंडर टीम ने 1970 एशियन गेम्स मेंब्रॉन्ज़ मेडल भी जीता. यह इन गेम्स में भारत का आखिरी फुटबॉल मेडल था. ईस्ट बंगालके कोच के रूप में पीके ने खूब सफलता बटोरी. वह मोहन बागान के कोच भी रहे.पीके को साल 1961 में अर्जुन अवॉर्ड और 1990 में पद्म श्री से सम्मानित किया गयाथा. वह अर्जुन अवॉर्ड पाने वाले पहले भारतीय फुटबॉलर थे. उन्हें साल 2004 मेंफुटबॉल की सर्वोच्च संस्था फीफा द्वारा ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया था. यहफीफा द्वारा दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है. वह फेयर प्ले अवॉर्ड पाने वालेइकलौते एशियन फुटबॉलर हैं. भारत के लिए 84 मैचों में 65 गोल करने वाले पीके बैनर्जीका 20 मार्च 2020 को 83 साल की उम्र में देहांत हो गया.Sachin Tendulkar, Sourav Ganguly के साथ PK दूसरी तस्वीर में Durand Cup के साथखड़े Mohun Bagan Captain Shyamal Banerjee और Coach PK Banerjee (फोटो श्यामलबनर्जी के फेसबुक पेज से साभार)पीके ने न सिर्फ इंडियन फुटबॉल बल्कि ओवरऑल इंडियन स्पोर्ट्स पर काफी असर डाला था.उनके निधन के बाद BCCI चीफ सौरव गांगुली और सचिन तेंडुलकर ने भी शोक जाहिर किया.--------------------------------------------------------------------------------कहानी महान भारतीय फील्डर एकनाथ सोल्कर की, जिन्हें 'गरीबों का गैरी सोबर्स' कहतेथे