17 अगस्त 1909 को मदन लाल धींगरा को फांसी हुई थी. वो लड़का जिसने लंदन में कर्जनवायली को गोली मार दी थी. उस वक़्त, जब गोरे साहिबों के सामने हिन्दुस्तानी खड़े होनेसे भी डरते थे. जिसके पिता ने अखबार में छपवा दिया था कि इस लड़के से मेरा कोईलेना-देना नहीं. घरवालों ने उस लड़के को पागल कह दिया था. जिसके खानदान वाले आज भीउसे अपना नहीं मानते. इतना कि 2015 में मदन लाल की कुरबानी की याद में हुए समारोहमें नहीं आये.आज़ादी के कॉन्सेप्ट तो बचपन से ही क्लियर थे8 फ़रवरी 1883 को अमृतसर में पैदा हुए मदन लाल धींगरा. पिताजी सिविल सर्जन थे. नामीआदमी थे. इतने कि अंग्रेज अफसर कर्जन वायली इनके दोस्त हुआ करते थे. मदन 6 भाई थे.सारे लन्दन गए थे पढ़ने के लिए. पर उसके पहले ही मदन लाल धींगरा ने अपने इरादे जाहिरकर दिए थे. लाहौर में MA करते हुए मदन स्वदेशी आन्दोलन के मूड में आ गए. कॉलेज मेंइंग्लैंड से आये कपड़ों के खिलाफ धरना दे दिया. कॉलेज से निकाल दिए गए. मदन काकॉन्सेप्ट एकदम क्लियर था. गरीबी, अकाल सब पर अच्छा-खासा पढ़ा था इन्होंने. पता थाकि भारत की 'भलाई' का दंभ भरता अंग्रेजी राज ही इसकी वजह है. और स्वराज उपाय. कॉलेजछूटने के बाद मदन ने कालका में क्लर्क का काम करना शुरू कर दिया. पर वहां भी कामकरने वालों की यूनियन बनाने लगे. तो छोड़ना पड़ा. फिर बम्बई चले गए. कुछ-कुछ करतेरहे. बड़े भाई ने सलाह दी कि लंदन चले आओ तुम. सारे भाई यही हैं. 1906 में मदन लालने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया.लन्दन में मिले सावरकर और श्यामजी सेलन्दन में मदन लाल की मुलाकात हुई विनायक सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा से. वहीवर्मा जी जिनकी अस्थियाँ नरेन्द्र मोदी लन्दन से लाये थे. दोनों लोगों को मदन लालकी स्पष्ट सोच और हिम्मत पसंद आई. सावरकर क्रांति में भरोसा रखते थे. उनका मानना थाकि क्रांति लानी है, चाहे जैसे आये. ऐसा कहा जाता है कि सावरकर ने ही मदन लाल कोबन्दूक चलानी सिखाई. और अपने अभिनव भारत मंडल में जगह दी. इसी दौरान बंगाल काविभाजन हो गया. इस विभाजन ने देश के लोगों में काफी गुस्सा भर दिया था. क्योंकिबिलावजह लोग एक-दूसरे से अलग होने लगे थे. मदन लाल ने इस विभाजन के खिलाफ कुछ करनेका मन बना लिया.और फिर भरे हॉल में कर्जन वायली को गोली मार दी1 जुलाई 1909 को इम्पीरियल इंस्टिट्यूट, लन्दन में एक फंक्शन हुआ. इसमें सेक्रेटरीऑफ़ स्टेट, इंडिया के असिस्टेंट कर्जन वायली भी आये. मदन लाल ने अपने भाई से कह करवहां जाने का जुगाड़ बना लिया. फंक्शन चलता रहा. मदन लाल मौके का इन्तजार करते रहे.ऐसी चीजें आसान नहीं होती हैं. कितने तरह के मनोभावों से गुजरा होगा वो लड़का. क्याक़त्ल करना सही है? मैं इसे कैसे सही साबित करूंगा? फंक्शन ख़त्म होने के बाद जबवायली घर जा रहा था, मदन लाल धींगरा उसके सामने आ गए. चार फायर किये. सारी गोलियांवायली को लग गईं. इसी बीच एक पारसी डॉक्टर वायली को बचाने सामने आ गया. दो गोलियांउनको भी लग गईं.ट्रायल में लगा दिया मजमा23 जुलाई को मदन लाल का ट्रायल शुरू हुआ. उन्होंने ब्रिटिश कोर्ट को अथॉरिटी माननेसे ही इनकार कर दिया. कहा: मैं अपने डिफेन्स में कुछ नहीं कहना चाहता. मुझे कोईवकील भी नहीं चाहिए. पर मैं अपने इस काम के बारे में जरूर बताऊंगा. पहली बात तो येकि मैं इस कोर्ट को ही नहीं मानता. इस कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है मुझ पर केसचलाने का. पिछले 50 सालों में 8 करोड़ हिन्दुस्तानियों की हत्याओं के जिम्मेदारब्रिटिश क्या चलाएंगे केस. मेरे देश के नौजवानों को फांसी दी हैं इन लोगों ने. जबजर्मन तुम पर हमला करेंगे, तो क्या कहोगे अपने लोगों से? लड़ने के लिए ही बोलोगे ना?वही मैं कर रहा हूं. जब तुम्हारे लोग जर्मन को मारेंगे तो देशभक्त हो जायेंगे. तोमैं क्या हूं? मेरी इच्छा है कि तुम लोग मुझे फांसी दो. मेरे देशवासी इसका बढ़िया सेबदला लेंगे. मैं फिर कहता हूं कि मैं तुम्हारे कोर्ट को नहीं मानता. तुम अभी ताकतवरहो. जो चाहे, करो. पर हमारा दिन भी आएगा. कोर्ट ने फांसी की सजा दी. वहां से बाहरनिकलते हुए मदन लाल ने जज को थैंक यू बोला.गांधी से लेकर चर्चिल तक सबने बोला धींगरा की बात परमहात्मा गांधी की अपनी अहिंसा की थ्योरी थी. मदन लाल धींगरा के मामले पर उन्होंनेकहा: जर्मनी और ब्रिटेन की मिसाल देना सही नहीं है. लड़ाई में ऐसा होता है. इसकामतलब ये नहीं है कि कोई भी कहीं मिले, उसे मार दो. मदन लाल धींगरा को देश से प्यारथा. पर वो प्यार अंधा था. फांसी के बाद The Times ने लिखा: The nonchalancedisplayed by the assassin was of a character which is happily unusual in suchtrials in this country. He asked no questions. He maintained a defiance ofstudied indifference. He walked smiling from the Dock.ब्रिटेन के भावी प्रधानमन्त्री चर्चिल ने प्राइवेट में किसी से कहा था, मदन लालधींगरा की कोर्ट स्पीच के बारे में:Finest ever made in the name of Patriotism.देशभक्ति के नाम पर बोली गयी सबसे अच्छी स्पीच.कहा जाता है कि फांसी होने से पहले मदन लाल धींगरा ने कहा था:मैं ऐसा मानता हूं कि जो देश किसी विदेशी के हाथों बन्दूक की नोक पर खड़ा है, वो हरक्षण युद्ध की पोजीशन में है. ये एक ऐसा युद्ध है जिसमें हमारे पास हथियार नहींहैं. तो जो मुझे मिला, मैंने उसी से हमला कर दिया. ना तो मैं अमीर हूं, ना मेरे पासबहुत ज्यादा बुद्धि है. मेरे पास खून देने के अलावा कुछ नहीं है. वो मैंने कर दिया.भारत के लोगों को अभी बस ये सीखना है कि कैसे जान दें. और सिखाने का सबसे बढ़ियारास्ता यही है. मैं बार-बार जन्म लेकर यही करना चाहूंगा. वन्दे मातरम.महात्मा गांधी की बात का रिफरेन्स: Freedom fighters of India (Book) Terror andPerformance (Book)