संभाजी राजे. मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराजके सबसे बड़े सुपुत्र. महज़ 32 साल की उम्र में जिनकी मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने हत्याकरवा दी थी. कहते हैं कि बहुत कम उम्र में ही उनको राजनीति की गहरी समझ थी.सबसे लोकप्रिय मराठी शासक का बेटासंभाजी राजे का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले पर हुआ. ये पुणे से लगभग 50किलोमीटर की दूरी पर है. वो शिवाजी महाराज की पहली और प्रिय पत्नी सईबाई के बेटेथे. वो महज़ दो साल के थे जब उनकी मां की मौत हो गई, जिसके चलते उनकी परवरिश उनकीदादी जिजाबाई ने की.पुरंदर के किले का मुख्य द्वार.जब संभाजी नौ साल के थे तब उन्हें एक समझौते के तहत राजपूत राजा जय सिंह के यहांबंदी के तौर पर रहना पड़ा था. जब शिवाजी महाराज औरंगज़ेब को चकमा देकर आगरा से भागेथे तब संभाजी उनके साथ ही थे. उनकी जान को ख़तरा भांप कर शिवाजी महाराज ने उन्हेंअपने रिश्तेदार के घर मथुरा छोड़ दिया. और उनके मरने की अफवाह फैला दी. कुछ दिनोंबाद वो महाराष्ट्र सही-सलामत पहुंचे.बग़ावती रवैयासंभाजी शुरू से ही रिबेल टाइप के थे. उन्हें गैर-ज़िम्मेदार भी माना गया. यही वजहरही कि उनके आचरण को काबू में लाने के लिए 1678 में शिवाजी महाराज ने उन्हेंपन्हाला किले में क़ैद कर लिया था. वहां से वो अपनी पत्नी के साथ भाग निकले औरमुग़लों से जा मिले. लगभग एक साल तक मुग़लों के साथ रहे. एक दिन उन्हें पता चला किमुग़ल सरदार दिलेर ख़ान उन्हें गिरफ्तार कर के दिल्ली भिजवाने का मंसूबा बना रहा है.वो मुग़लों का साथ छोड़ के महाराष्ट्र लौट आए. लौटने के बाद भी उनकी किस्मत अलग नहींरही और उन्हें फिर से बंदी बना कर पन्हाला भेज दिया गया.युवराज से बने राजा, लेकिन घात-प्रतिघात के बाद हीजब अप्रैल 1680 में शिवाजी महाराज की मौत हुई, संभाजी पन्हाला में ही कैद थे.शिवाजी महाराज के दूसरे बेटे राजाराम को सिंहासन पर बिठाया गया. ख़बर लगते ही संभाजीराजे ने अपनी मुक्ति का अभियान प्लान किया. कुछ शुभचिंतकों के साथ मिल कर उन्होंनेपन्हाला के किलेदार को मार डाला और किले पर कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद 18 जून 1680 कोरायगढ़ का किला भी कब्ज़ा लिया. राजाराम, उनकी बीवी जानकी और उनकी मां सोयराबाई कोगिरफ्तार किया गया. 20 जुलाई 1680 को संभाजी की ताजपोशी हुई.संभाजी राजे के राज्याभिषेक की तस्वीर. सोर्स: संभाजीराजे.कॉम.बताते हैं कि अक्टूबर 1680 में संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई को षड़यंत्र रचने केइल्ज़ाम में फांसी दी गई.मुग़लों से जंगसत्ता में आने के बाद संभाजी राजे ने मुग़लों से पंगे लेने शुरू किए. बुरहानपुर शहरपर हमला किया और उसे बरबाद कर के रख दिया. शहर की सुरक्षा के लिए रखी गई मुग़ल सेनाके परखच्चे उड़ा दिए. शहर को आग के हवाले कर दिया. इसके बाद से मुग़लों से उनकी खुलीदुश्मनी रही.इमेज सोर्स: इंडियन ब्लॉगर.औरंगज़ेब से उनकी चिढ़ का एक किस्सा मशहूर है. औरंगज़ेब के चौथे बेटे अकबर ने जब अपनेपिता से बग़ावत की तो संभाजी राजे ने ही उसे आसरा दिया था. उस दौरान संभाजी राजे नेअकबर की बहन ज़ीनत को एक ख़त लिखा. वो ख़त औरंगज़ेब के लोगों के हाथ लगा और भरे दरबारमें औरंगज़ेब को पढ़ कर सुनाया गया. ख़त कुछ इस तरह था,“बादशाह सलामत सिर्फ मुसलमानों के बादशाह नहीं हैं. हिंदुस्तान की जनता अलग-अलगधर्मों की है. उन सबके ही बादशाह हैं वो. वो जो सोच कर दक्कन आये थे, वो मकसद पूराहो गया है. इसी से संतुष्ट होकर उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए. एक बार हम और हमारेपिता उनके कब्ज़े से छूट कर दिखा चुके हैं. लेकिन अगर वो यूं ही ज़िद पर अड़े रहे, तोहमारे कब्ज़े से छूट कर दिल्ली नहीं जा पाएंगे. अगर उनकी यही इच्छा है तो उन्हेंदक्कन में ही अपनी क़बर के लिए जगह ढूंढ लेनी चाहिए.”औरंगज़ेब की एक पेंटिंग.अपनों ने ही दिया धोखा1687 में मराठा फ़ौज की मुग़लों से एक भयंकर लड़ाई हुई. हालांकि जीत मराठों के ही हाथलगी, लेकिन उनकी सेना बहुत कमज़ोर हो गई. यही नहीं उनके सेनापति और संभाजी केविश्वासपात्र हंबीरराव मोहिते की इस लड़ाई में मौत हो गई. संभाजी राजे के खिलाफ़षड्यंत्रों का बाज़ार गर्म होने लगा. उनकी जासूसी की जाने लगी. उनके रिश्तेदारशिर्के परिवार की इसमें बड़ी भूमिका थी.फ़रवरी 1689 में जब संभाजी एक बैठक के लिए संगमेश्वर पहुंचे, तो वहां उनपर घात लगाकर हमला किया गया. मुग़ल सरदार मुक़र्रब ख़ान की अगुआई में संभाजी के सभी सरदारों कोमार डाला गया. उन्हें और उनके सलाहकार कविकलश को पकड़ कर बहादुरगढ़ ले जाया गया.औरंगज़ेब ने संभाजी के सामने एक प्रस्ताव रखा. सारे किले औरंगज़ेब को सौंप कर इस्लामकबूल करने का प्रस्ताव. इसे मान लिया जाने पर उनकी जानबख्शी करने का वादा किया.संभाजी राजे ने इस प्रस्ताव को मानने से साफ़ इंकार कर दिया. इसके बाद शुरू हुआटॉर्चर और बेइज्ज़ती का दौर.सोर्स: हिंदू हिस्ट्री. इन्फो.मार डालने से पहले यातनाओं का लंबा सिलसिलाकहते हैं कि इस्लाम कबूलने से इंकार करने के बाद संभाजी राजे और कविकलश को जोकरोंवाली पोशाक पहना कर पूरे शहरभर में परेड़ कराई गई. पूरे रास्ते भर उन पर पत्थरों कीबरसात की गई. भाले चुभाए गए. उसके बाद उन्हें फिर से इस्लाम कबूलने के लिए कहा गया.फिर से इंकार करने पर और ज़्यादा यातनाएं दी गई. दोनों कैदियों की ज़ुबान कटवा दी गई.आंखें निकाल ली गई.यूरोपियन इतिहासकार डेनिस किनकैड़ लिखते हैं,“बादशाह ने उनको इस्लाम कबूलने का हुक्म दिया. इंकार करने पर उनको बुरी तरह पीटागया. दोबारा पूछने पर भी संभाजी ने इंकार ही किया. इस बार उनकी ज़ुबान खींच ली गई.एक बार फिर से पूछा गया. संभाजी ने लिखने की सामग्री मंगवाई और लिखा, ‘अगर बादशाहअपनी बेटी भी दे, तब भी नहीं करूंगा’. इसके बाद उनको तड़पा-तड़पा कर मार डाला गया.”11 मार्च 1689 को उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के उनकी जान ली गई. इस वक़्त की एककिवंदती महाराष्ट्र में बेहद मशहूर है. कहते हैं कि मार डालने से जस्ट पहले औरंगज़ेबने संभाजी राजे से कहा था, “अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता,तो सारा हिंदुस्तान कब का मुग़ल सल्तनत में समा चुका होता.”तुलापुर में कविकलश की समाधि. सोर्स: panoramio.comकुछ लोगों के मुताबिक़ उनकी लाश के टुकड़ों को तुलापुर की नदी में फेंक दिया गया.वहां से उन्हें कुछ लोगों ने निकाला और उनके जिस्म को सी कर उसका अंतिम संस्कार करदिया. कुछ और लोग मानते हैं कि उनके जिस्म को मुग़लों ने कुत्तों को खिलाया.मौत के बादऔरंगज़ेब ने सोचा था कि संभाजी की मौत के बाद मराठा साम्राज्य ख़त्म हो जाएगा और उसपर काबू पा लेना मुमकिन होगा. लेकिन हुआ उलट. संभाजी के जीते जी जो मराठा सरदारबिखरे-बिखरे थे, वो उनकी मौत के बाद एक होकर लड़ने लगे. इसके चलते औरंगज़ेब का दक्कनपर काबिज़ होने का सपना मरते दम तक नहीं पूरा हो सका. और जैसा कि संभाजी ने कहा थाऔरंगज़ेब को दक्कन में ही दफ़न होना पड़ा.छत्रपति संभाजी राजे पर मराठी साहित्य में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. जिनमें शिवाजीसावंत का लिखा उपन्यास ‘छावा’ बेहद उम्दा है. छावा यानी शेर का शावक. आज भीमहाराष्ट्र में संभाजी राजे की छवि शेर के बच्चे की ही है.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:विश्वास तो पानीपत के युद्ध में ही मर गया था - कहावत का अर्थ जानें, बड़ा काम आएगाजब सेनापति ही निकल आया था ‘गद्दार’क्या शिवाजी के वंशज पराक्रम से नहीं, आरक्षण से लड़ेंगे?