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अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम की रियल स्टोरी, जिन पर राजामौली ने RRR बनाई

RRR कहानी है अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम की. ये लोग आंध्र प्रदेश-तेलंगाना से आने वाले रियल लाइफ फ्रीडम फाइटर थे. फिल्म में जो कहानी दिखाई गई, वो फिक्शनल है. जानिये असली कहानी.

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alluri sitaram raju
फिल्म RRR के पोस्टर पर राम चरण और एनटीआर जूनियर. बीच वाली तस्वीर रियल अल्लूरी सीताराम राजू की.
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श्वेतांक
10 जनवरी 2022 (Updated: 4 जुलाई 2022, 11:55 IST)
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RRR का फुल फॉर्म हुआ Rise Roar Revolt. हिंदी में बोले तो, उठो, गरजो और विद्रोह करो. साथ ही इस फिल्म से जुड़े तीनों लोगों का नाम भी R से ही शुरू होता है. राजामौली, राम चरण और नंदमुरी तारक रामा राव यानी NTR जूनियर. ये फिल्म दो ऐतिहासिक किरदारों के बारे में है. ये दो लोग हैं अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम. ये लोग आंध्र प्रदेश-तेलंगाना से आने वाले रियल लाइफ फ्रीडम फाइटर थे. मगर इस फिल्म में जो कहानी दिखाई गई, वो फिक्शनल है. असली लोगों की फिक्शनल कहानी. आइए जानते हैं कि ये दो लोग कौन थे और इनकी कहानी क्या थी. यहां देखिए RRR का ट्रेलर-


# अल्लूरी सीताराम राजू, जिन्हें अंग्रेज़ों ने पेड़ से बांधकर गोली मार दी
1882 में ब्रिटिश राज ने मद्रास फॉरेस्ट एक्ट पास कर दिया. इस एक्ट के तहत स्थानीय आदिवासी समुदाय के जंगल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. आम तौर पर ये लोग जंगल जलाकर जमीन को खाली करते और उसी की राख में खेती करते. खेती की इस पारंपरिक प्रणाली को पोडू फार्मिंग कहा जाता था. मगर ब्रिटिश लोग जंगल को कमर्शियल पर्पज़ के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे. ऐसे में जंगलों का जलाया जाना उन्हें ठीक नहीं लगा. नतीजतन, 1882 में लोगों को रोकने के लिए वो एक्ट पास कराया गया. इस घटना के ठीक 15 साल बाद 4 जुलाई, 1897 को विशाखापटनम में वेंकट रामा राजू और सूर्यनारायणम्मा के यहां एक बच्चा पैदा हुआ. इस बच्चे का नाम रखा गया अल्लूरी सीताराम राजू. सीताराम राजू को 1922 से शुरू होकर 1924 तक चले राम्पा विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है.

ब्रिटिश सरकार के हाथों पास हुए इस एक्ट के प्रति लोकल लोगों में गुस्सा था. मगर उनके हालात ऐसे थे कि वो कुछ नहीं कर सकते थे. ऐसे में 25 साल के सीताराम राजू ने उन लोगों को साथ लेकर ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया. 1922 में शुरू हुई इस लड़ाई को राम्पा विद्रोह कहा गया. सीताराम राजू ने सैकड़ों लड़ाकों के साथ मिलकर पुलिस स्टेशनों पर छापे मारे. उनके हथियार और गोला-बारूद लूटे. ब्रिटिश पुलिस फोर्स की जो भी टीम उन्हें पकड़ने के लिए भेजी जाती, वो उसे मार देते.
अल्लूरी सीताराम राजू की ओरिजिनल फोटो.
अल्लूरी सीताराम राजू की ओरिजिनल फोटो.

हालांकि इतनी भागम-भाग के बाद 7 मई, 1924 को ब्रिटिश फोर्स ने चिंतपल्ली के जंगलों में सीताराम राजू को घेर लिया. वो सीताराम राजू की मौत को क्रांतिकारियों के बीच कड़ा संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे. ताकि कोई ब्रिटिश सरकार के सामने खड़े होने की हिम्मत न कर सके. सीताराम राजू को पकड़कर पास के कोयुरी गांव ले जाया. उन्हें पेड़े से बांधा गया और लोगों के सामने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई. द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस रिबेलियन को कुचलने में ब्रिटिश को दो साल का समय लगा. और उसके लिए तकरीबन 40 लाख रुपए खर्च करने पड़े. ये चीज़ खुद इस विद्रोह की सफलता की तसदीक करती है.
फिल्मी अल्लूरी सीताराम राजू के रोल में राम चरण.
फिल्मी अल्लूरी सीताराम राजू के रोल में राम चरण.

# कोमाराम भीम- निज़ाम ने मिलने से मना किया, तो युद्ध शुरू कर दिया
कोमाराम भीम का जन्म तेलंगाना में आदिलाबाद जिले के संकपल्ली गांव में हुआ था. जन्म की तारीख 22 अक्टूबर, 1900 बताई जाती है. मगर साल को लेकर कंफ्यूज़न रहता है. भीम का बचपन बड़ी दिक्कत में गुज़रा. उन्हें किसी तरह की फॉर्मल एजुकेशन नहीं मिली. उन्होंने अपने लोगों की दुर्दशा देखी. पुलिस से लेकर व्यापारियों और ज़मींदारों के हाथ होता शोषण देखा. ज़िंदा रहने के लिए भी संघर्ष किया. गांव के लोग जंगलों में पोडू खेती से जो भी फसल उगाते, उसे निज़ाम के लोग छीनकर ले जाते. ये कहकर कि जिस जमीन पर फसल उगी है, वो उन लोगों की नहीं है. इन पीड़ित आदिवासियों के खिलाफ जब भीम के पिता ने आवाज़ उठाई, तो उन्हें जान से मार दिया गया.
एक बार फसल की कटाई चल रही थी. तभी वहां पटवारी लक्ष्मण राव और निजाम के पट्टेदार सिद्दीकी आए. उन्होंने गोंड लोगों से टैक्स भरने को कहा. गाली-गलौज की और परेशान करने लगे. बात बढ़ गई और कोमाराम भीम के हाथों सिद्दीकी की हत्या हो गई. जान बचाने के लिए भागना पड़ा. इसके बाद एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करना शुरू किया. वहां अंग्रेज़ी-हिंदी-उर्दू लिखना सीखा. जब प्रेस बंद हुआ, तो असम के चाय बगानों में काम करने लगे. वहां काम करने वाले मजदूरों के लिए आवाज़ उठाई, तो जेल में डाल दिए गए. चार दिन बाद जेल से छूटे और जोड़े घाट आ गए. भीम ने यहां आकर आदिवासियों को इकट्ठा किया और उनके ऊपर होने वाले अत्याचारों और शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए मोटिवेट किया. 1928 से लेकर 1940 तक वो निज़ाम के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध करते रहे.
हैदराबाद के एक सड़क पर लगी कोमाराम भीम की मूर्ति.
हैदराबाद के एक सड़क पर लगी कोमाराम भीम की मूर्ति.


कई रिपोर्ट्स में ये दावा किया जाता है कि कोमाराम भीम, निज़ाम से मिलकर आदिवासियों की समस्या पर चर्चा करना चाहते थे. मगर वो प्लान वर्क आउट नहीं हुआ. इस चीज़ से नाराज़ भीम ने अपनी गुरिल्ला आर्मी जमा की और निज़ाम के लिए काम करने वाले ज़मींदारों को मारना शुरू कर दिया. जब निज़ाम को लगा कि भीम के नेतृत्व में ये विद्रोह और बड़ा हो सकता है, तो उन्होंने बातचीत करने के लिए एक कलेक्टर भेजा. निज़ाम का ऑफर था कि सभी किसानों को उनकी ज़मीन का पट्टा वापस कर दिया जाएगा. साथ ही कोमाराम भीम को भी कुछ ज़मीन दी जाएगी. मगर भीम ने नेगोशिएट करने से मना कर दिया. फाइनली भीम और उनकी आर्मी से निपटने के लिए निज़ाम ने अपने 300 सैनिक जोड़े घाट भेजे. इन सैनिकों से लड़ते हुए कोमाराम भीम और उनकी आर्मी, सितंबर 1940 में शहीद हो गई.
फिल्मी कोमाराम भीम के रोल में NTR जूनियर.
फिल्मी कोमाराम भीम के रोल में NTR जूनियर.


# RRR फिल्म में कौन सी फिक्शनल कहानी दिखाई गयी?
एस.एस. राजामौली बताते हैं कि उन्हें RRR को बनाने का आइडिया चे ग्वेरा की डायरी पर बनी फिल्म The Motorcycle Diaries देखने के बाद आया. उन्हें अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम की कहानी पता थी. मगर जब उन्होंने रिसर्च शुरू किया, तो उन्हें कुछ दिलचस्प बातें पता चलीं. सीताराम राजू और कोमाराम भीम तकरीबन एक ही राज्य में, कुछ सालों के अंतराल पर पैदा हुए. दोनों कुछ सालों के लिए अपने गांव-घर से गायब रहे. जब लौटे तो अपने ब्रिटिश राज के खिलाफ बंदूक उठा लिया. अपनी आखिरी सांस तक लड़े और फिर शहीद हो गए. मगर रियल लाइफ में ये दोनों एक-दूसरे से कभी नहीं मिले.

राजामौली अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उनकी क्रांति और विद्रोह की कहानी सबको पता है. मगर जब ये दोनों क्रांतिकारी कुछ समय के लिए घर से दूर रहे, उस दौरान इनके साथ क्या हुआ, इस बारे में कोई डिटेल या रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. राजामौली इसी ब्लाइंड स्पॉट को सिनेमाई चश्मे से देखना चाहते थे. क्या होता, अगर इस वनवास के दौरान इन दोनों लोगों की दोस्ती हो जाती. ये लोग एक दूसरे को इंस्पायर करना शुरू कर देते. ये फिल्म इसी फिक्शनल जोन को एक्सप्लोर करती है.

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