दिनभर स्कैन करके चलती है आपकी दुनिया, लेकिन ये QR कोड काम कैसे करता है?
QR Code Technology: 10 डिजिट के बार कोड प्रोडक्ट की इनफार्मेशन के लिए पर्याप्त नहीं पड़ रहे थे. इसलिए साल 1994 में इस तकनीक को और बेहतर बनाया गया. और आज अपने जिस रूप में ये हमारे सामने है उसे कहा जाता है QR कोड. QR कोड में 7089 नंबर स्टोर किये जा सकते हैं. माने बार कोड की तुलना में 350 गुने से भी ज्यादा डेटा स्टोर हो सकता है.
15 अप्रैल 1912 की रात, ‘द अनसिंकेबल’, यानी जो कभी ना डूब सके की उपाधि पाए हुए एक विशाल जहाज़ से एक वायरलेस कोड भेजा जाता है. तीन डॉट, तीन डैश फिर तीन डॉट. मतलब था SOS. जहाज़ का नाम टाइटैनिक, वही ‘एवरीडे इन माय ड्रीम…’ वाला टाइटैनिक. ये जहाज एक आइसबर्ग से टकराकर डूब गया था. घटना में कई लोग मारे गए थे लेकिन कुछ लोग बचा लिए गए एक वायरलेस कोड के चलते, जिसका जिक्र शुरुआत में किया गया था.
इस SOS को रिसीव करने वाले आसपास के कुछ जहाज टाइटैनिक की तरफ बढ़े जिससे उन लोगों को बचा लिया गया जो अन्यथा नहीं बचाए जा सकते थे. डॉट्स डैशेज और स्पेस वाले इन लाइफ सेविंग कोड्स को मोर्स कोड कहा जाता है. हालांकि, टाइटैनिक वाला ये वाक़या मोर्स कोड के उपयोग का ना तो पहला और ना ही एकमात्र वाक़या था. इसके पहले और ख़ास तौर पर इस घटना के बाद हुए दोनों विश्व युद्धों में इसका खूब इस्तेमाल हुआ. तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसे कोड्स का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी किया जा सकता है. संदेश भेजने की जगह डेटा को स्टोर करने के लिए.
बार कोड से QR कोड तकबदलते समय के साथ अमेरिका में कई सुपरमार्केट्स खुले. बिलिंग काउंटर्स पर लगने वाली लंबी लाइनों से कस्टमर्स बेहद परेशान थे. तब साल 1952 में जोई वुडलैंड नाम के एक अमेरिकी इंजीनियर ने मोर्स कोड की तकनीक का इस्तेमाल करके बार कोड का अविष्कार किया. इसके जरिए किसी को वायरलेस सिग्नल नहीं भेजा जाता था लेकिन मोटी-पतली 10 लाइनों के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल कर हर प्रोडक्ट को 10 डिजिट का कोड दिया गया. लेकिन ये ज्यादा दिन चला नहीं. समय के साथ बदलते दौर ने व्यापार का अंतरराष्ट्रीयकारण कर दिया, माने ग्लोबलाइजेशन.
कई देशों की मार्केट लाखों करोड़ों प्रोडक्ट्स से भर गईं. ऐसे में ये 10 डिजिट के बार कोड प्रोडक्ट की इनफार्मेशन के लिए पर्याप्त नहीं पड़ रहे थे. साल 1994 में इस तकनीक को और बेहतर बनाया गया. और आज अपने जिस रूप में ये हमारे सामने है उसे कहा जाता है QR कोड. प्रोडक्ट की पहचान, पेमेंट सिस्टम में इसका भरपूर इस्तेमाल होता है. सो मच सो कि शायद ही कोई दिन बीतता होगा जब आप इसका उपयोग नहीं करते हों, या कम से कम दर्शन नहीं करते हों.
कैसे काम करती है QR कोड की तकनीक?QR Code का फ़ुल फॉर्म हुआ ‘क्विक रिस्पांस कोड’ या हिन्दी में बोले तो ‘तुरत-प्रतिक्रिया’ कूट. हिन्दी में ये थोड़ा ज़्यादा मुश्किल है तो अपन क्विक रिस्पांस कोड या QR कोड से काम चलाते हैं. तो QR टेक्नोलॉजी में मुख्यत: 2 हिस्से होते हैं.
1-QR कोड का स्ट्रक्चरएक चेस बोर्ड की कल्पना कीजिए. जिसमें चौसठ खाने हैं. आप इनका नाम या तो 1,2,3,4…. इसे 64 रख सकते हैं. या हर ROW को नंबर और हर कॉलम को अल्फाबेट से डिनोट करने के बाद क्रमशः A1, A2, A3…; B1, B2, B3… रख सकते हैं. और प्रोफेशनली इन खानों का नामकरण इस दूसरे तरीके से ही किया जाता है.
A1-A2-A3, B1-B2-B3, C1-C2-C3. ख़ैर वापस कल्पना के किसी मोमेंट में डाइव इन करते हैं. जहां हम अपने एक दोस्त के साथ चेस खेल रहे हैं. गेम इंटेंस हो चला है. एक एक पाव परवल की मिठाई की शर्त जो लगी है. लेकिन फिर माताजी आपको कूटने के लिए रूम में प्रवेश कर चुकी हैं.
कूटे जाने से पहले माताजी से आप दो मिनट का स्ट्रेटेजिक टाइम आउट मांगते हैं और गोटियों की लोकेशन कहीं कॉपी पर नोट कर लेते हो. तेरा हाथी B6 में, मेरा राजा E4 में… वग़ैरह वग़ैरह. ज़ाहिर है सभी गोटियां अलग-अलग पोजीशन पर हैं. ऐसे में बनेगा एक यूनिक अरेंजमेंट. कितना यूनिक. इतना कि जो कॉम्बिनेशन आपने अभी कॉपी में लिखा है, ऐसे ही इतने यूनीक कॉम्बिनेशन बनाए जा सकते हैं, जितने यूनिवर्स में एटम भी नहीं हैं. इसलिए उनके एक दूसरे से मेल खाने की प्रॉबेबिलीटी न के बराबर होती है. यहां हम तारे या ग्रह नहीं कह रहे, एटम कह रहे हैं और जिस पर पक्की रिसर्च है. अब इसी तर्ज पर QR कोड में भी लाइनों की पोजीशन और शेप यूनिक होता है. और चूंकि एक QR कोड में स्टोर होता है डेटा, तो इसके यूनिक होते ही डेटा भी यूनिक हो जाता है सिंपल.
2 - डेटा कोडिंग और स्कैन करके डिकोडिंगशतरंज का खेल, मम्मी वाला इंटरमिशन. और कुटाई के बाद फिरसे शुरू हुआ परवल की मिठाई के लिए मुकाबला. यूनिक पोजिशन को आपने वापस अरेंज कर लिया. बस ऐसे ही काम करता है QR कोड. लाइन की पोजीशन और स्ट्रक्चर निर्धारित होता है. उन्हीं के जरिये इसमें डेटा एनकोड होता है. और इस पैटर्न को स्कैन करने पर ये डिकोड हो जाता है. QR कोड दो तरीके से स्कैन किया जाता है.
पहला लेज़र वही जो आपने बिलिंग काउंटर पर देखा होगा. बिलिंग वाले भैया के हांथ में एक मशीन होती है, जिससे लाल लाइट निकल रही होती है. स्कैन करते ही ‘टूं’ की आवाज़ आती है. दूसरा कैमरा से इंटीग्रेटेड QR रीडर यानी कैमरे में जो QR रीडर होता है, उससे कैसे स्कैन किया जाता है, वो तो आप जानते ही हैं. यूं समझिए कि वो तुरंत शतरंज के कॉपी में नोट किए हुए मूव को रेप्लिकेट कर देता है और खुल जाता है एक यूनीक व्यक्ति को पेमेंट का दरवाज़ा.
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QR कोड और बार कोड में फर्कQR कोड और बार कोड के बीच में सबसे बड़ा फर्क जो सबको पता है, वो है इनका शेप या स्ट्रकचर का. QR कोड स्क्वायर शेप में होता है, जबकि बार कोड में सिर्फ एक लाइन से कुछ डंडियां होती हैं, जैसी नमकीन के पैकेट पर देखी होंगी आपने फ्राइडे को. लेकिन ये स्ट्रक्चर का फर्क इनके काम करने के तरीके और एफिशिएंसी में डिफरेंस पैदा कर देता है. कैसे? सबसे पहले तो फर्क आता है इनको डिकोड करने के तरीके में. बार कोड को सिर्फ लेफ्ट टू राइट पढ़ा जा सकता है. जैसे किसी किताब में लिखे एक सेंटेंस को पढ़ते हैं. जबकि QR कोड को किसी भी डायरेक्शन में पढ़ा जा सकता है. माने लेफ्ट लेफ्ट टू राइट या टॉप टू बॉटम. किसी भी तरफ से स्कैन करो सेम इनफॉर्मेशन मिलेगी.
इसके अलावा ये स्ट्रक्चर का फर्क इस बात का निर्णय भी करता है कि दोनों में कितनी इनफार्मेशन स्टोर की जा सकती है. कैसे? जहां QR कोड चेस की तरह डेटा सेव करता है वहीं बार कोड कॉलम की तरह डाटा सेव करता है . तो देखिए 7 हॉरिज़ोनेटल या 7 वर्टिकल लाइनों से 8 डब्बे बनेंगे. लेकिन 7 हॉरिज़ोनेटल और 7 वर्टिकल लाइनों से बन जाएंगे कुल 64 डब्बे. यानी तुलनात्मक रूप से 7 गुना ज़्यादा यूनिक बॉक्सेस.
स्टोरेज कैपीसिटी में कितना फर्क?दोनों की बनावट से समझा जा सकता है कि बार कोड और QR कोड की इनफॉर्मेशन स्टोरिंग कैपीसिटी में कितना फर्क है. चलिए, इसे आंकड़ों से भी समझ लेते हैं. एक बार कोड में लाइनें खीचकर मैक्सिमम 20 नंबर स्टोर किए जा सकते हैं. लेकिन QR कोड में 7089 नंबर स्टोर किए जा सकते हैं. माने तुलनात्मक रूप से 350 गुने से भी ज्यादा डेटा स्टोर हो सकता है. इसके अलावा QR कोड में नंबर्स में साथ अल्फाबेट भी स्टोर किये जा सकते हैं. यानी वही फर्क है जो फ्लॉपी डिस्क और हार्ड ड्राइव में होता है. इसी इनफार्मेशन स्टोरेज की लिमिट की वजह से इनकी उपयोगता में भी फर्क होता है.
मिसाल के तौर पर, बार कोड वेयरहाउस में सामान का डेटा स्टोर करने या ग्रॉसरी शॉप पर प्रोडक्ट्स की लिस्टिंग करने जैसी सेवाओं तक सीमित है. लेकिन QR कोड है विशाल समंदर. जिस दरवाज़े से वेबसाइट का यू.आर.एल. खुल सकता है, किसी पेमेंट का पाथ बनाया जा सकता है या फिर किसी प्रोडक्ट की डिलीवरी को ट्रैक करने जैसी हेवी डेटा वाली चीज़ों में यूज़ किया जा सकता है. अब तो हाल ये है कि लोग Wifi का पासवर्ड नहीं मांगते हैं बस कहते हैं भैया QR कोड स्कैन करवा दो.
QR कोड से सिक्योरिटी की समस्याQR कोड से फिशिंग का खतरा होता है. फिशिंग डिजिटल फ्रॉड का एक तरीका है. जैसे मछली को बेंट में कीड़ा फंसाकर पकड़ा जाता है. वैसे ही हैकर्स भी लोगों को ठगने के लिए के एक जाल बिछाते हैं. लोग जाल में फंसते हैं उनके साथ फ्रॉड हो जाता है. फिशिंग का इस्तेमाल QR कोड के जरिए भी होता है. असल में कई फ्रॉडिए फ़र्ज़ी QR कोड बनाते हैं. जिसे स्कैन करने पर एक फ़र्ज़ी बैंक या फिनेंशियल वेबसाइट खुलती है. लोग ट्रस्टेड समझ के उसमें अपने अकाउंट डिटेल्स डाल देते हैं और जिससे हैकर्स तक आपके अकाउंट की डीटेल पहुंच जाती है.
दूसरी चीज़ है डेटा की चोरी. इसका इस्तेमाल करके हैकर्स मोबाइल का डेटा भी चोरी कर लेते हैं. असल में कई बार QR कोड स्कैन करने से फ़ोन में फ़र्ज़ी एप डाउनलोड हो जाते हैं. और फ़ोन की सभी जानकारियां, मैसेज, फोटोज, वीडियोस या फाइल्स चोरी हो जाती हैं.
तो QR कोड जैसी टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल करें लेकिन इस्तेमाल करते समय सचेत रहें. कुछ भी स्कैन न कर बैठें. एक बार आपका पैसा जामताड़ा गया तो गया. फिर ‘दिल गलती कर बैठा है, गलती कर बैठा है दिलट, एक ही गाना सुनते सुनते शामें गुज़र जाएंगी.
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