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प्रयागराज की घटना का पाकिस्तानी कट्टरपंथी धर्मगुरु खादिम हुसैन रिजवी से क्या संबंध?

दुनिया में रेडिकलाइज़ेशन से बड़ी समस्या हो गई है सेल्फ रैडिकलाइज़ेशन. इतना नफरती और कट्टरपंथी कॉन्टेंट इंटरनेट पर उपलब्ध है, कि किसी संगठन से जुड़ना ज़रूरी नहीं रह गया है. बैठे-बैठे फोन पर वीडियो देखते रहिए, आप कट्टरपंथ के दलदल में उतरते जाएंगे.

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बस कंडक्टर पर हमला करने वाला लारेब (बाएं), पाकिस्तानी कट्टरपंथी धर्मगुरु खादिम हुसैन रिजवी (दाएं)
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नीरज कुमार
27 नवंबर 2023 (Updated: 2 दिसंबर 2023, 10:53 IST)
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''उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक लड़के ने बस कंडक्टर पर चापड़ से हमला कर दिया. पीड़ित की गर्दन और शरीर के कई हिस्सों पर गंभीर चोटें आईं हैं. अस्पताल में इलाज चल रहा है.'' 

24  को नवंबर ये मामला सामने आया था तब इसी पेस के साथ ये खबर फ्लैश हो रही थी. वैसे ही जैसे अपराध की छोटी-मोटी खबरें जगह बना पाती हैं.  लेकिन इस समाचार के सूरत-ए-हाल उस वक्त बदल गए जब इस घटना के आरोपी लारेब हाशमी का चापड़ लहराते एक वीडियो वायरल हुआ. वीडियो गाली-गलौज से भरपूर है इसलिए हम उसे आपको सुना नहीं सकते हैं. लेकिन गालियों के अलावा वीडियो में लारेब क्या कुछ कहता नजर आ रहा है वो हम आपको ज़रूर बताएंगे. लेकिन उसके पहले इस मामले की टाइमलाइन जान लेते हैं

आज तक के आनंद राज की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले हफ्ते शुक्रवार यानी 24 नवंबर को सुबह 9 बजे का वक्त था. प्रयागराज से सिविल लाइंस इलाके से करछना जाने वाली इलेक्ट्रिक बस में आरोपी लारेब हाशमी सफर कर रहा था. दर्शकों की जानकारी के लिए बता दें कि लारेब इंजीनियरिंग के फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट है. और प्रयागराज के यूनाइटेड इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र है. आरोप है कि  24 नवंबर के दिन लारेब बस में सवार होकर अपने कॉलेज जा रहा था. इस दौरान बस के कंडक्टर से उसका विवाद हो गया. जिसके बाद लारेब ने बस कंडक्टर हरिकेश विश्वकर्मा पर धारदार हथियार से हमला कर दिया.

पुलिस की शुरुआती जांच के मुताबिक लारेब और कंडक्टर हरिकेश के बीच टिकट के पैसों को लेकर झगड़ा हुआ था. जैसा कि हमने बताया कि हमला चलती बस में हुआ तो उस वक्त बस में कुछ और लोग भी सवार थे. उनमें से एक थे नंदन यादव. बस के दूसरे कंडक्टर हैं. बताया जा रहा है कि जब लारेब ने हरिकेश विश्वकर्मा पर हमला किया तब उन्हें बचाने के लिए नंदन यादव बीच में आए. इस दौरान वो घायल भी हो गए. नंदन यादव घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं. उन्होंने टिकट के पैसों को लेकर विवाद होने जैसी कोई बात नहीं बताई है.

आगे बढ़ते हैं... और जानते हैं कि बस कंडक्टर पर हमले के बाद लारेब ने क्या किया? बताया जा रहा है कि लारेब ने ये वारदात कॉलेज से कुछ ही दूर पहले अंजाम दी. जब तक बस में मौजूद यात्री कुछ समझ पाते, तब तक लारेब बस से उतर कर कॉलेज के अंदर घुस गया. कुछ समय बाद घटनास्थल से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर चांडी बंदरगाह के पास से लारेब को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस का कहना है कि जब लारेब को हमले में इस्तेमाल चापड़ की बरामदगी के लिए ले जाया जा रहा था, तो उसने पुलिस पर फायर कर दिया. जवाबी कार्रवाई में लारेब के पैर में गोली लग गई. जिसके बाद उसे इलाज के लिए प्रयागराज के एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया गया. दूसरी तरफ इस घटना में घायल बस कंडक्टर हरिकेश विश्वकर्मा को भी इलाज के लिए इसी अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

अब बात उस वीडियो की जिसका जिक्र हमने शुरू में किया था. लारेब वारदात को अंजाम देने के बाद जब अपने कॉलेज में घुसा तब उसने एक वीडियो बनाया था. जिसमें उसने कहा था.

"अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकात हुं. वो मुसलमानों को गाली दे रहा था. हजरत-ए-खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाह ताला अन्हु की बरकत से मैंने उसको मारा है. इंशाअल्लाह वो बचेगा नहीं. इंशाअल्लाह वो मरेगा. यहां से फनाज तक, पूरी दुनिया तक ये गरीब नवाज की दर का पैगाम दे रहा कि जिसने हुजूर के खिलाफ बात की है, लब्बैक या रसूलअल्लाह हम जिएंगे आपके लिए, मरेंगे आपके लिए. ये हुकूमत मोदी और योगी की नहीं है. अपनी जान हुजूर के लिए कुर्बान कर दो. लाशों के ढेर लगा देंगे इंशाल्लाह.''

इस वीडियो में भी लारेब ने बस कंडक्टर से पैसों को लेकर हुए किसी विवाद का जिक्र नहीं किया. इस वीडियो के सामने आने के बाद इस मामले की जांच के एंगल बदल गए. आज तक के सहयोगी संतोष शर्मा के मुताबिक प्रयागराज पुलिस और एटीएस की शुरुआती पुछताछ में कई अहम जानकारियां सामने आई हैं. जैसे

- लारेब के लैपटॉप और बरामद मोबाइल फोन की सर्च हिस्ट्री में धार्मिक कट्टरता से संबंधित वीडियो देखने की पुष्टि हुई है.
- पिछले 8 महीनों से लारेब इस तरह के वीडियो देख रहा था
- पिछले 2 महीनों में लारेब ने पाकिस्तान के मौलाना खादिम हुसैन रिजवी के काफी वीडियो देखे थे.

खादिम हुसैन रिजवी ये कौन हैं? इनका संक्षिप्त परिचय इतना है कि ये तहरीक-ए-लब्बैक या रसूलल्लाह के संस्थापक थे. खादिम हुसैन रिजवी इस्लाम धर्म को लेकर काफी कट्टर विचारधारा के समर्थक थे. लारेब से पूछताछ में जब पुलिस ने खादिम हुसैन रिजवी का जिक्र किया तो उसने बताया कि वो उन्हें जानता नहीं है लेकिन उनकी विचारधारा हमसे मिलती थी. इसलिए वो उन्हें फॉलो करता था. लारेब ने अपने वायरल वीडियो में लब्बैक के नारे का भी जिक्र किया है. ये एक धार्मिक नारा है. जिसका इस्तेमाल मुस्लिम कट्टरपंथी नेता खादिम हुसैन रिजवी ने लोगों को भड़काने के तौर पर किया था.

खादिम हुसैन रिजवी भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसके जहर भरे भाषण आज भी यूट्यूब पर उपलब्ध हैं जो लारेब हाशमी जैसे नौजवानों के दिमाग में जहर भरने के लिए काफी हैं. लेकिन इन सबका एक बस कंडक्टर पर हमले से क्या ताल्लुक है यही सवाल जब लारेब ने पुलिस से किया तब उसने क्या जवाब दिया सुनिए

लारेब के मुताबिक कंडक्टर ने किसी दूसरे व्यक्ति को जातिसूचक शब्द बोले थे. जिस वजह से उसने बस कंडक्टर पर जानलेवा हमला कर दिया. लारेब ने पूछताछ में खुद को अतीक अहमद का भी फैन बताया है. कैमरे के सामने लारेब के इन कबूलनामों की वजह से कहा जा रहा है कि लारेब सेल्फ रेडिकलाइजेशन की जद में आ चुका है. आपने रैडिक्लाइजेशन सुना होगा. माने किसी राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक विचारधारा को लेकर उग्र होना. इसके लिए कुछ भी करने को तैयार होना. इसी रैडिकल अप्रोच से हिंसा का रास्ता भी तैयार होता है. आज पूरी दुनिया में धार्मिक कट्टरता एक बड़ी समस्या है.

कुछ साल पहले तक कट्टरता फैलाना इतना भी आसान नहीं था. धर्मगुरु या कट्टरपंथी संगठन युवाओं को समाज सेवा के नाम पर जोड़ते. और फिर धीरे-धीरे उनमें नफरत का ज़हर भरते. आपने कई बार मॉड्यूल पकड़ में आने की खबर सुनी देखी होगी. इसके लिए फिज़िकल इंफ्रा लगता था. मुस्लिम कट्टरपंथ के मामले में ये इंफ्रा मदरसों और मस्जिदों की शक्ल में होता है. अब ऐसे तंत्र तो पकड़ना कुछ आसान है. एक व्यक्ति आपको मिल गया, उससे दूसरा व्यक्ति, उसका संगठन, सब पकड़ में आ जाएगा.

लेकिन अब दुनिया में रेडिकलाइज़ेशन से बड़ी समस्या हो गई है सेल्फ रैडिकलाइज़ेशन. इतना नफरती और कट्टरपंथी कॉन्टेंट इंटरनेट पर उपलब्ध है, कि किसी संगठन से जुड़ना ज़रूरी नहीं रह गया है. बैठे-बैठे फोन पर वीडियो देखते रहिए, आप कट्टरपंथ के दलदल में उतरते जाएंगे और पता भी नहीं चलेगा. सोशल मीडिया का अलगॉरिदम भी ऐसा है कि एक बार आप घटिया सामग्री देखने लगें, तो वो आपको घटिया सामग्री ही दिखाई जाती रहेगी.

लारेब के केस में इसी सेल्फ रैडिक्लाइजेशन की बात हो रही है यानी बिना किसी संगठन से जुड़कर कट्टर विचारों को अपनाना. किसी चरमपंथी संगठन से बिना ट्रेनिंग लिए लोग उनके बहकावे में आते हैं. लगातार वीडियो और दूसरे कॉन्टेंट को देखकर या पढ़कर वे उस विचारधारा पर इस तरीके से यकीन करने लगते हैं कि वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हों. दर्शकों की जानकारी के लिए एक और बात साझा कर दें कि इस सेल्फ रेडिकलाइजेशन के सहारे खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने अपने ग्रुप के कई लोगों की भर्ती की थी. सोशल मीडिया को सेल्फ रेडिकलाइजेशन का सबसे बड़ा टूल माना जाता है.

बैक टू लारेब केस. इस मामले में लेटेस्ट अपडेट ये है कि आरोपी लारेब हाशमी की 14 दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी रिमांड मंजूर हो गई है. और उसे नैनी जेल भेज दिया गया है. घटना के बाद उसे कॉलेज से भी सस्पेंड कर दिया गया है. लारेब के पिता और परिवार के बाकी सदस्यों से भी पूछताछ की जा रही है.

अब चलते हैं दिन की दूसरी बड़ी खबर की तरफ. 
चीन में फैल रही एक और बीमारी दुनिया को डरा रही है. कुछ दिन पहले खबर आई कि उत्तरी चीन के इलाके में बच्चों के बीच सांस की बीमारी तेजी से फैल रही है. इसे 'रहस्यमयी निमोनिया' भी कहा जा रहा है. कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि चीन के इन उत्तरी इलाकों में अस्पतालों में बड़ी संख्या में बीमार बच्चे इलाज के लिए आ रहे हैं. अब इसे देखते हुए भारत सरकार भी सतर्क हो गई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार, 26 नवंबर को राज्य सरकारों को एक एडवाइजरी जारी की है. मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार स्थिति को करीब से देख रही है और अभी कोई चिंता की बात नहीं है.

राज्यों को जो पत्र लिखा गया है उसमें अस्पतालों की तैयारियों की तुरंत समीक्षा करने को कहा गया है. राज्यों को कोविड-19 को लेकर इस साल की शुरुआत में जो गाइडलाइंस दिए गए थे, उसे लागू करने को कहा गया है. निर्देश है कि वे अस्पतालों में चेक करें कि वहां---
1. स्टाफ और बेड की कमी न हो
2. जरूरी दवाएं, मेडिकल ऑक्सीन और एंटीबायोटिक्स उपलब्ध हों
3. पीपीई किट, टेस्टिंग किट उपलब्ध रहे
4. ऑक्सीजन प्लांट और वेंटिलेटर्स काम कर रहे हों
5. संक्रमण रोकने के प्रोटोकॉल का पालन हो

अब बताते हैं कि चीन में हुआ क्या है. 13 नवंबर को चीन के नैशनल हेल्थ कमीशन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि सांस से जुड़ी बीमारियों में तेजी आई है. इसके कारण अस्पतालों में मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है. कई लोगों को लंबा इंतजार भी करना पड़ रहा है. फिर 19 नवंबर को संक्रामक बीमारियों के फैलने पर रिपोर्टिंग करने वाली संस्था प्रोग्राम फॉर मॉनिटरिंग इमर्जिंग डिजीज (ProMED) की रिपोर्ट आई. बताया कि उत्तरी चीन में कई जगहों पर बच्चों में बड़ी संख्या में निमोनिया के लक्षण दिखे हैं. ProMED की रिपोर्ट के मुताबिक, ये संक्रमण बीजिंग में और देश के उत्तर-पूर्व में स्थित लियाओनिंग शहर में फैल रहा है.

बीजिंग के एक निवासी ने ताइवानी न्यूज वेबसाइट FTV न्यूज को बताया कि अस्पताल में बड़ी संख्या में बच्चे भर्ती हैं और कई बच्चों के फेफड़ों में गांठें पाई गई हैं. अभी तक इस बीमारी के केस को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं आया है. हालांकि कतर के मीडिया नेटवर्क अलजजीरा की बीजिंग संवाददाता कटरीना यू ने बताया कि बीजिंग के एक बड़े अस्पताल में औसतन हर दिन करीब 1200 मरीज इमरजेंसी वॉर्ड में पहुंच रहे हैं. अलजजीरा संवाददाता के मुताबिक बीजिंग के स्कूलों में बच्चों की संख्या में भी काफी कमी दिख रही है. अगर कुछ छात्र बीमार पड़ रहे हैं तो पूरी क्लास को कम से कम एक हफ्ते तक सस्पेंड कर रहे हैं.

फेफड़े के संक्रमण को आम तौर पर निमोनिया कहा जाता है. निमोनिया के अलग-अलग प्रकार होते हैं- बैक्टीरियल निमोनिया, वायरल निमोनिया, फंगल निमोनिया. संक्रमण करने वाले तत्व यानी एजेंट के नाम से निमोनिया का नाम रखा जाता है. हमारे फेफड़े सांस की नली के जरिये सीधे वातावरण से जुड़े हुए हैं. शरीर की इम्युनिटी जब कमज़ोर हो जाती है तब कोई भी संक्रात्मक तत्व सांस के जरिये फेफड़ों को संक्रमित कर सकता है. इसके अलग-अलग लक्षण है मसलन- खांसी, बुखार आना, छाती में दर्द, सांस लेने में दिक्कत, सांस की नली में  सूजन वगैरह.

चीन में जो हो रहा है उसे लोग कोविड महामारी से जोड़कर देख रहे हैं. हालांकि चीन ने किसी भी नए या अज्ञात बैक्टीरिया या वायरस की मौजूदगी को खारिज किया है. अगर चीन के इस दावे पर भरोसा करें तो इससे कम से कम कोविड जैसी महामारी का खतरा अभी नहीं है. डॉक्टर्स भी इससे सहमत नजर आते हैं कि इसका कोई बड़ा खतरा नहीं है.

चीनी नैशनल हेल्थ कमीशन के अधिकारियों ने बताया कि सांस से जुड़ी बीमारियां कोरोना महामारी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों को वापस लेने से बढ़ी हैं. स्वास्थ्य अधिकारी भी मानते हैं कि ये एक संभावित कारण हो सकता है. संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ राम शंकर उपाध्याय ने दैनिक भास्कर को बताया है कि कोविड के दौरान सख्ती बरते जाने के कारण अधिकतर बच्चों में इम्युनिटी डेवलप नहीं हो पाई. वे लंबे समय तक घर के भीतर रहे. अब जब वो बाहर निकल रहे हैं तो वायरस और बैक्टीरिया की चपेट में आ रहे हैं. इसलिए वे तेजी से बीमार पड़ रहे हैं.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीनी अधिकारियों ने भी कहा था कि सर्विलांस बढ़ाने और स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने चीन से इस बीमारी को लेकर डिटेल्ट रिपोर्ट मांगी थी. जैसे लैब रिजल्ट, अस्पतालों की स्थिति वगैरह. साथ ही कहा कि संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए. चीनी अधिकारियों ने जवाब में बताया कि इसके लिए माइकोप्लाज्मा, रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (RSV) और कोविड-19 वाले वायरस को जिम्मेदार हैं.

22 अक्टूबर को WHO ने एक प्रेस रिलीज जारी की थी. कहा था कि वो चीन में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के संपर्क में है. WHO ने ये भी बताया कि मिड अक्टूबर से ही उत्तरी चीन में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियां पिछले तीन सालों की तुलना में बढ़ी हैं. निमोनिया का इलाज करने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है. इससे बचने के लिए बच्चों को लंबे समय से न्यूमोकोकल वैक्सीन लगाई जा रही है.

अब सवाल ये है कि क्या ये कोविड की तरह ही दुनिया के दूसरे हिस्सों में फैलेगा. अभी तक एक्सपर्ट्स इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं. क्योंकि वे मानते हैं कि ये कोई नया वायरस नहीं है. बीमारियों को लेकर हमें सतर्क रहने की जरूरत है. जब पहले ही हम गंभीर प्रदूषण से घिरे हैं. क्योंकि ये भी सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य पर असर कर रहा है.

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