अगर जिन्ना की ऐम्बुलेंस का पेट्रोल खत्म न हुआ होता, तो शायद पाकिस्तान इतना बर्बाद न होता
मरते वक्त इतने लाचार हो गए थे जिन्ना कि मुंह पर मक्खियां भिनभिना रही थीं.
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पाकिस्तान को बनाने का क्रेडिट जाता है मोहम्मद अली जिन्ना को. आज जिन्ना की बरसी है. इस मौके पर पढ़ें उनके बारे में.
11 सितंबर, 1948.
शाम के 4.15 बजे थे. स्पेशल विमान मौरीपुर एयरपोर्ट पर लैंड हुआ. स्ट्रैचर पर लेटा वो शख्स एक साल पहले जब यहां उतरा था, तो अपने पैरों पर था. तब एयरपोर्ट पर हजारों की भीड़ उसे बस एक नजर देखने के लिए घंटों खड़ी रही थी. मगर आज ये एयरपोर्ट खाली था. बिल्कुल सूना. सिवा एक मिलिटरी अधिकारी के कोई उसे लेने नहीं आया था. जबकि कायदे से वहां अधिकारियों का जत्था मौजूद होना चाहिए था. स्ट्रैचर पर लिटाकर मरीज को प्लेन से बाहर लाया गया. फिर उसका इंतजार कर रही एक मिलिटरी ऐम्बुलेंस में लिटा दिया गया. ऐम्बुलेंस बिल्कुल धीमी रफ्तार से कराची के लिए रवाना हुई. बहुत धीरे-धीरे, ताकि अंदर लेटे उस वीआईपी मरीज को हिचकोलों से दिक्कत न हो. जहां जाना था, वो जगह बस 30 मिनट की दूरी पर थी. करीब आधा सफर तय करने के बाद ऐम्बुलेंस एकाएक रुक गई. वहीं बीच सड़क पर. मालूम चला, उसका पेट्रोल खत्म हो गया है.
मरीज स्ट्रैचर पर पड़ा था, मुंह पर मक्खियां भिनक रही थीं तब कराची आमतौर पर ठंडा हुआ करता था. समंदर से तेज हवा बहकर आती और शहर को ठंडा करती. हवाओं के असर से गर्मी महसूस नहीं होती थी. मगर उस दिन शायद कोई चीज मुताबिक नहीं थी. हवा गायब थी. भयंकर गर्मी और बीच सड़क पर रुकी ऐम्बुलेंस. बेचारे मरीज की हालत बदतर होने लगी. वो पहले ही बहुत बीमार था. गर्मी ने उसका हाल बदतर कर दिया. मुंह पर झुंड-झुंड मक्खियां भिनक रही थीं उसके. मगर हाथों में इतनी ताकत भी नहीं बची थी कि मक्खियों को हटा सके. उसकी बहन फातिमा और नर्स डनहम बारी-बारी से उसके मुंह पर पंखा झलती रहीं. दूसरी ऐम्बुलेंस के इंतजार में एक-एक मिनट युगों की मानिंद कचोट रहा था. हर बीतता मिनट जैसे उसे जिंदगी से दूर ले जा रहा था.
ये मई, 1947 की फोटो है. कलकत्ता की. बंटवारे के समय यहां खूब हिंसा हुई. Getty ने अपनी इस तस्वीर के ऑरिजनल कैप्शन में लिखा हुआ है. कि अगर यहां शांति लानी है, तो जिन्ना और गांधी को साथ मिलकर यहां का दौरा करना होगा. लोगों से खूनखराबा बंद करने की अपील करनी होगी (फोटो: Getty)
मरने से पहले उसने आखिरी बात क्या कही? संयोग देखिए. जिस जगह ये ऐम्बुलेंस खड़ी थी, उसके आसपास चारों तरफ सैकड़ों तंबू तने थे. शरणार्थियों का ठिकाना. जो किसी तरह जान बचाकर सरहद लांघ आए थे. अपने पीछे अपना घर, अपनी जमीन और कई सारे अपनों को छोड़ आए थे. उन्हें इल्म भी नहीं था. कि उनसे कुछ फर्लांग दूरी पर ऐम्बुलेंस के अंदर वो शख्स लेटा है, जिसकी जिद ने उन्हें इस हाल में पहुंचाया था. वतन का बंटवारा करवा दिया था. लंबे इंतजार के बाद दूसरी ऐम्बुलेंस आई. मरीज को गर्वनर जनरल के बंगले पर पहुंचाया गया. डॉक्टरों ने उसे देखा. कहा, पहले प्लेन की यात्रा. फिर ऐम्बुलेंस रुकने पर गर्मी में रुके रहना. ये दोनों ही चीजें मरीज का शरीर झेल नहीं पाया. इस वजह से उसके जीने और ठीक होने की उम्मीद बहुत कम हो गई. मरीज को उसकी बहन के पास छोड़कर डॉक्टर चले गए. दो घंटे तक मरीज गहरी नींद में सोता रहा. फिर बहन ने देखा, उसने आंखें खोली हैं. सिर को झटका देकर इशारा किया है. अपने करीब बुलाया है. बड़ा जोर लगाकर उसके गले से फुसफुसाहट की शक्ल में आवाज निकली है-
फाति, खुदा हाफिज.... ला इलाहा इल अल्लाह.... मुहम्मद... रसूल... अल्लाहये कहते ही उसका सिर दाहिनी ओर ढलक गया. आंखें बंद हो गईं. जो शख्स मरा था, वो जिन्ना था. पूरा नाम, मुहम्मद अली जिन्ना.
माउंटबेटन भारत की ब्रितानिया हुकूमत के आखिरी वायसराय थे. जिन्ना के बारे में माउंटबेटन की राय बहुत खराब थी. अप्रैल 1947 में ब्रिटेन के PM को रिपोर्ट भेजते हुए माउंटबेटन ने जिन्ना को 'मनोरोगी' और 'अव्वल दर्जे का गैरजिम्मेदार इंसान' बताया था. फोटो में माउंटबेटन और उनकी पत्नी इरविना के साथ हैं जिन्ना. ये अगस्त 1947 की फोटो है (तस्वीर: Getty)
जिन्ना को डॉक्टरों से बेहद डर लगता था जिन्ना रोजाना करीब 50 सिगरेट पीते थे. क्रैवन ए. ये उनका पसंदीदा सिगरेट ब्रैंड था. इसके धुएं ने उनका फेफड़ा सोख लिया था. कराची में पैदा हुआ इंसान. पूरी दुनिया घूमकर वापस कराची ही पहुंचा. मरने के लिए. जिन्ना का यूं मर जाना छोटी बात नहीं थी. वो अपनी तमाम जिम्मेदारियां पीछे छोड़कर चले गए थे. गलत लोगों के हाथ में मुल्क सौंप गए थे. कई सारी बीमारियां थीं उनको. टीबी. ब्रॉन्काइटिस. दिल भी कमजोर हो गया था. फेफड़े में कैंसर पैठ गया था उनके. बहन जिद करती रही कि बीमार हो, इलाज करवा लो. लेकिन जिन्ना को डॉक्टरों से डर लगता था. उन्हें इलाज करवाने से, दवाएं खाने से डर लगता था. वो अक्सर ये साबित करने की कोशिश करते कि डॉक्टर कन्फ्यूज रहते हैं. एक कुछ बताता है. दूसरा कुछ और कहता है. जिन्ना कहते थे. कि उन्हें डॉक्टरों पर ऐतबार नहीं होता. कि वो खुद को डॉक्टरों के हवाले करने से घबराते हैं.
ये 3 जून, 1947 को ली गई ऐतिहासिक फोटो है. माउंटबेटन के साथ हैं नेहरू और जिन्ना. ये भारत के बंटवारे की योजना पर बात हो रही थी. जिन्ना इस प्लान से सहमत नहीं थे. मगर माउंटबेटन ने एक तरह से उनको चेतावनी दी. कि इस प्लान को मानने के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है (फोटो: Getty)
सिगरेट पीना फिर भी नहीं छोड़ा बीमारी से कमजोर उनका शरीर बार-बार इशारे करता रहा. जवाब देता रहा. मगर जिन्ना सूट-बूट पहनकर फंक्शनों में जाते रहे. झूठी मुस्कान के पीछे बीमार शरीर को छुपाते रहे. उन्हें बिस्तर से उठने में भी संघर्ष करना पड़ता. शरीर की सारी ऊर्जा झोंकनी पड़ती. लेकिन वो ठीक होने का दिखावा करते रहे. भूख नहीं लगती थी. जिंदगी भर बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में सो जाने वाले जिन्ना की रातें जगकर बीतने लगी थीं. मगर वो इलाज न कराने की अपनी जिद पर अड़े रहे. रोजाना चौदह-चौदह घंटे काम करते रहे. फिर जब इलाज करवाने के लिए राजी हुए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. शरीर इस हाल पर पहुंच गया था कि चाहे अमृत दे दो, लेकिन ठीक नहीं होगा. जिन्ना ने कई बार अपनी बहन फातिमा से कहा. कि इतने जरूरी काम पड़े हैं कि वो बीमार होना अफॉर्ड नहीं कर सकते. उन्हें शायद लग रहा था. कि वो बिस्तर पर पड़े नहीं कि एकदम कगार पर धकेल दिए जाएंगे. पाकिस्तान पटरी से उतर जाएगा. हालांकि देर-सबेर हुआ भी ऐसा ही. मगर ये बात भी है कि अगर जिन्ना ठीक समय पर इलाज करवाने को तैयार हो गए होते, तो शायद उन्हें बचाया जा सकता था. मगर वो तो अपनी सेहत को लेकर इतने लापरवाह थे कि बिस्तर पर पड़ जाने और टीबी होने की बात मालूम चलने पर भी सिगरेट पीना नहीं छोड़ा. ठीक और फिट दिखने का इतना मोह था उनको कि जब चलने के लायक नहीं रहे, तो भी बहन से जिद करते. कि उनको सूट-बूट पहनाकर, जेब में रुमाल रखकर ही स्ट्रैचर पर लिटाया जाए.
उनकी एक जिद ने देश तबाह कर दिया. दूसरी जिद ने उनका शरीर बर्बाद कर दिया.
ये 3 दिसंबर, 1946 की तस्वीर है. जिन्ना के साथ हैं लियाकत अली खान. दोनों लंदन स्थित इंडिया ऑफिस गए थे. लियाकत जिन्ना के भरोसेमंद साथी थे. यही वजह थी कि जिन्ना ने लियाकत को पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनाया. मगर फिर लियाकत और उनके बीच दरार आ गई. जिन्ना का भरोसा उठ गया लियाकत से (तस्वीर: Getty)
जिन्ना के करीबी उनके मरने का इंतजार कर रहे थे जिन्ना अपने जीते-जी ही काफी हद तक अलग-थलग किए जा चुके थे. बल्कि इतिहास तो ये बताता है कि जब वो बीमार पड़े, तब उनके कई करीबी बस इसलिए उन्हें देखने जाते थे कि टटोल सकें. और कितनी जिंदगी बची है जिन्ना के अंदर. उन्हें जिन्ना के मरने का इंतजार था. फातिमा जिन्ना ने एक किताब लिखी. नाम था- माय ब्रदर. ये किताब लंबे समय तक पाकिस्तान में प्रकाशित नहीं हो पाई. इजाजत नहीं मिली. फिर जब इसे पब्लिश किया गया, तब भी इसके कई सारे अहम हिस्से उड़ा दिए गए. ऐसे हिस्से, जिसमें फातिमा पाकिस्तानी हुकूमत की आलोचना कर रही थीं. उनपर सवाल कर रही थीं. फातिमा, जो कि न केवल जिन्ना की बहन थीं, बल्कि बहुत लंबे समय तक उनके साथ साये की तरह जुड़ी भी रहीं. फातिमा ने जो लिखा, उसका निचोड़ है-
- जिन्ना को उनके सबसे करीबी सहयोगियों ने धोखा दिया. - अगर जिन्ना को ये धोखा नहीं मिला होता, तो उनकी सेहत इतनी ज्यादा न गिरी होती. इसी खराब सेहत ने आगे चलकर उनकी जान ले ली. - आजाद पाकिस्तान में जिन्ना ने खुद के लिए गर्वनर जनरल की जगह ली. अपने करीबी सहयोगी लियाकत अली खान को उन्होंने प्रधानमंत्री बनाया. लॉर्ड माउंटबेटन जिन्ना के इस फैसले से कतई खुश नहीं थे. माउंटबेटन को लगता था कि जिन्ना का प्रधानमंत्री बनना पाकिस्तान के हित में है. उन्होंने जिन्ना को राजी करने की लाख कोशिश की. लेकिन जिन्ना नहीं माने. आगे चलकर लियाकत अली खान ने भी जिन्ना को धोखा दिया. ये उनके ही दौर में हुआ कि धार्मिक पार्टियां पाकिस्तान में जड़ें जमाने लगीं.
ये 14 अगस्त, 1947 की तस्वीर है. कराची स्थित गवर्नमेंट हाउस में प्रोग्राम था. यहीं मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के गर्वनर जनरल की शपथ ली. उन्हें शपथ दिलवाने माउंटबेटन वहां पहुंचे थे. जिन्ना चाहते थे कि इस कार्यक्रम में उनकी कुर्सी माउंटबेटन से ऊंची हो. मगर अंग्रेजों ने ये बात नहीं मानी. कहा कि जिन्ना तो शपथ लेने के बाद गर्वनर जनरल बनेंगे. शपथ लेने तक तो वो माउंटबेटन के बराबर नहीं (फोटो: Getty)
जिन्ना को मारने की साजिश रची गई थी? जिन्ना की मौत के दो साल बाद तक फातिमा जिन्ना को किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलने की इजाजत नहीं दी गई. 1951 में जिन्ना की तीसरी बरसी आई. तब जाकर फातिमा को इजाजत मिली कि वो पाकिस्तान के नाम एक रेडियो संदेश दे. अपने रेडियो संदेश में जैसे ही फातिमा ने जिन्ना की मौत वाले दिन ऐम्बुलेंस के रुकने का जिक्र करना शुरू किया, प्रसारण काट दिया गया. फातिमा को ताउम्र शक रहा. कि उस दिन यूं ही नहीं ऐम्बुलेंस का पेट्रोल खत्म हुआ था. बल्कि ये शायद कोई साजिश थी.
लोग कहते हैं कि जिन्ना का इलाज कर रहे डॉक्टरों का रवैया भी उन्हें लेकर बहुत ढुलमुल था. जिन्ना के डॉक्टरों को पता था कि उनकी तबीयत बहुत खराब है. टीबी की बात पता चलने से पहले भी जिन्ना को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. अक्सर वो बेदम होने तक खांसते रहते. फिर भी डॉक्टरों ने उन्हें क्वेटा जाने की सलाह दी. ये कहकर कि क्वेटा का मौसम उनके लिए बेहतर होगा. फिर उन्हें क्वेटा से जियारत भेज दिया. ये कहकर कि जियारत का ठंडा मौसम उन्हें रास आएगा. जिन्ना को सिल्क का पाजामा पहनकर सोने की आदत थी. वो रातभर बिस्तर में कांपते-ठिठुरते रहते. ठंड में जिन्ना की टीबी की बीमारी और बढ़ गई. न्यूमोनिया भी हो गया उन्हें. इन्फेक्शन बहुत बढ़ गया. फिर उन्हें क्वेटा लाया गया. फिर कुछ दिन बाद कराची लाया गया. इतनी बुरी हालत में की गई इतनी यात्राओं ने उनकी तबीयत को और बिगाड़ा. तो क्या हुकूमत से लेकर डॉक्टरों तक ने जिन्ना को मौत की तरफ धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी? जिन्ना का इलाज कर रहे डॉक्टरों का रवैया कैसा था, इसके लिए फातिमा की किताब 'माय ब्रदर' के पेज नंबर 32 पर दर्ज एक हिस्सा पढ़ाते हैं आपको. ये उन दिनों की बात है, जब जिन्ना को इलाज के लिए क्वेटा ले जाया गया था. कई हफ्तों से बिस्तर पर पड़े रहने के बाद उनकी तबीयत में मामूली सुधार हो रहा था. वो अपने पैरों पर खड़े हो पा रहे थे. किस्सा यूं है-
कुछ देर रुककर उन्होंने (जिन्ना ने) पूछा- डॉक्टर, मुझे सिगरेट पीना पसंद है. मैंने कई दिन से सिगरेट नहीं पीया है. क्या मैं अब स्मोक कर सकता हूं? डॉक्टर इलाही बख्श ने भरोसा दिलाने के अंदाज में कहा- जी सर, अभी दिनभर में एक सिगरेट पीने से शुरू कीजिए. मगर धुआं अंदर मत लीजिएगा.
ये 15 अगस्त, 1947 की तस्वीर है. अंग्रेजों ने भारत को आजाद कर दिया था. पाकिस्तान की संसद में जिन्ना गर्वनर जनरल की हैसियत से पहला भाषण दे रहे थे (फोटो: Getty)
जिन्ना को एक किनारे क्यों कर दिया गया था? लियाकत और जिन्ना के बीच तनाव था, ये बस फातिमा ने नहीं कहा. जिन्ना के निजी सचिव सैयद शरीफुद्दीन पीरजादा ने भी ऐसी ही बात कही. उनका कहना था कि जिन्ना लियाकत अली खान के तौर-तरीकों ने नाखुश थे. जिन्ना का लियाकत में जो भरोसा था, वो खत्म हो गया था. ऐसा क्या हुआ था कि जिन्ना के सहयोगी उनसे दूर हो गए थे? कहते हैं कि इसकी जड़ में जिन्ना की सेकुलर अप्रोच थी. जब तक पाकिस्तान नहीं बना था, तब तक जिन्ना मुसलमान-मुसलमान की रट लगाते नहीं थकते थे. पाकिस्तान का आइडिया ही यही था कि हिंदुओं और मुसलमानों का एक साथ निभना नामुमकिन है. लेकिन फिर जब पाकिस्तान बन गया, तब जिन्ना का सेकुलर चेहरा जोर मारने लगा. ये उनके करीबियों को मंजूर नहीं था.
जिन्ना की पहली शादी काफी छुटपन में हुई. वो इंग्लैंड में थे, जब उनकी पहली पत्नी मर गई. बाद में उन्होंने अपने से 26 साल छोटी रतनबाई से प्रेम विवाह किया. रतनबाई की भी मौत हो गई. कहते हैं कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद फातिमा अपना क्लिनिक बंद करके जिन्ना के साथ रहने आ गईं. वो ताउम्र अपने भाई के साथ साये की तरह जुड़ी रहीं. जिन्ना के गुजरने के बाद फातिमा की काफी दुगर्ति हुई (फोटो: Getty)
धर्म के नाम पर अलग मुल्क बनाने वाले जिन्ना का विरोधाभास जिन्ना ने मजहब के नाम पर मुसलमानों के लिए अलग मुल्क बनाया. मगर उनका करेक्टर मजहबी नहीं था. वो धर्मांध नहीं थे. लोग कहते हैं, जिन्ना ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस्लाम के नाम का इस्तेमाल किया. चूंकि कांग्रेस सेकुलर थी और लोकप्रिय भी थी, तो जिन्ना हिंदू-मुस्लिम एकता की पिच पर नहीं खेल सकते थे. वो कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा भी नहीं हो सकते थे. इसीलिए उन्होंने इस्लाम के नाम का इस्तेमाल कर अपनी राजनीति के लिए बिल्कुल ही अलग एक नया मैदान बनाया. मुसलमानों को एकजुट किया. पाकिस्तान बनाया. वरना अपनी ज्यादातर जिंदगी में तो वो सेकुलर ही रहे थे. उन्हें पारसी रतनबाई से इश्क हुआ. जिन्ना के जीने का तौर-तरीका भी कट्टर इस्लामिक नहीं रहा. वो सूअर का मांस खाते थे. जो कि मुसलमानों के लिए हराम समझा जाता है. शराब पीते थे. कहते हैं कि उन्होंने कभी पाबंदी से पांच वक्त की नमाज तक नहीं पढ़ी.
जिन्ना विरोधाभासों से भरे थे. जब भारत सरकार ने मालाबार हिल्स के उनके घर पर कब्जा करने की कोशिश की, तो जिन्ना दुखी हुए. उन्होंने नेहरू को कहलवाया कि उनका घर न छीना जाए. कि वो एक दिन वहां लौटना चाहते हैं. मगर एक शिवरतन मोहाता के कराची स्थित 'मोहाता पैलेस' पर जब पाकिस्तान ने कब्जा किया, तो जिन्ना ये बोलकर निकल गए कि ये सरकारी मामला है (फोटो: Getty)
...जब गर्वनर की अंग्रेज पत्नी ने जिन्ना की पत्नी के कपड़ों पर नाक-भौं सिकोड़ी जिन्ना की पत्नी रतनबाई बड़ी आधुनिक थीं. उनके मॉडर्न तौर-तरीकों से अंग्रेजों को भी झेंप हो जाती थी. एक किस्सा तब का है, जब रतनबाई और जिन्ना साथ ही थे. बॉम्बे के गर्वनर की पत्नी थीं, लेडी विलिंगडन. उन्होंने गर्वनमेंट हाउस में एक पार्टी रखी थी. जिन्ना भी पहुंचे थे रतनबाई के साथ. रतनबाई ने गहरे गले की ड्रेस पहनी थी. लेडी विलिंगडन को उनका ये आधुनिक लिबास पसंद नहीं आया. उन्होंने अपने एक मातहत से कहा कि रतनबाई को शॉल दे दो. ताकि उनका लिबास शॉल के नीचे छुप जाए. इसपर जिन्ना अपनी कुर्सी से खड़े हुए. उन्होंने लेडी विलिंगडन से कहा-
अगर श्रीमती जिन्ना को ठंड लगेगी और अगर उन्हें शॉल की जरूरत महसूस होगी, तो वो खुद ही मांग लेंगी.ये कहकर जिन्ना रतनबाई का हाथ थामे डायनिंग टेबल से उठ खड़े हुए. वो पार्टी से चले गए. इसके बाद जब तक लॉर्ड विलिंगडन गर्वनर रहे, जिन्ना उनकी किसी पार्टी में नहीं गए.
अयूब खान ने अपनी किताब में लिखा कि मुस्लिम लीग का कामकाज बर्बाद था. और ये बर्बादी जिन्ना के जीते-जी शुरू हो गई थी. अयूब के मुताबिक, चौधरी खलीकुज्जामन ने जिन्ना के जीते-जी उनकी अथॉरिटी को चुनौती दी थी. ये सच है कि पाकिस्तान के बनने के बाद से ही जिन्ना का कद घटने लगा था. बाद में महीनों में उनकी पूछ लगातर घटती रही (फोटो: Getty)
जिन्ना का सेकुलरिज्म पाकिस्तान के करेक्टर से मैच नहीं कर रहा था जिन्ना ऐसे ही रहे थे जिंदगी भर. जब पाकिस्तान बनकर तैयार हुआ, तो जिन्ना को उसका 'कट्टर इस्लामिक' होना मंजूर नहीं था. इसकी एक झलक 11 अगस्त, 1947 को दिए गए उनके भाषण में भी दिखती है. वहां बोलते हुए जिन्ना ने कहा था-
आप आजाद हैं. आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं. आप अपने मस्जिदों में जाने को आजाद हैं. इस मुल्क में आप अपनी इबादत की मनचाही जगह जाने को आजाद हैं. आप किसी भी धर्म के हो सकते हैं. किसी भी जाति, किसी भी संप्रदाय के हो सकते हैं. आपके मजहब का, आपकी जाति का या फिर आपके संप्रदाय का सरकार के कामकाज से कोई लेना-देना नहीं. पाकिस्तान की नजर में उसका हर नागरिक बराबर है.उनकी इस बात से मुस्लिम लीग पसीना-पसीना हो गई. कराची में प्रेस को निर्देश दिया गया. कि जिन्ना के भाषण का ये अंश न छापे. जिन्ना सेकुलर नहीं हैं, ये साबित करने के लिए मुस्लिम लीग ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. जिन्ना की मौत के बाद भी ये कोशिश चलती रही. ये बात कि जिन्ना शराब पीते थे और सूअर का मांस खाते थे, इन्हें छुपाने की कोशिश की गई. आगे चलकर ज़िया-उल-हक़ ने तो ये तक साबित करने की कोशिश की कि 11 अगस्त को भाषण देते वक्त जिन्ना अपने होशो-हवास में नहीं थे. कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार ने एक बार दीना वाडिया (जिन्ना की बेटी) से संपर्क किया था. दीना न्यू यॉर्क में रहती थीं. उनसे कहा गया कि वो ये बात कहें कि उनके पिता ने कभी शराब नहीं पी. कभी हैम (पोर्क) नहीं खाया. ये भी किस्सा ही है कि दीना वाडिया ने ये कहने से इनकार कर दिया था. कहते हैं कि दीना के इनकार करने पर पाकिस्तानी हुकूमत की ओर से उन्हें धमकाया गया था. कहा गया था कि वो किसी से भी इस बात का जिक्र न करें.
सेकुलर जिन्ना और शिया जिन्ना, दोनों 'अछूत' थे पाकिस्तान किस रास्ते पर आगे बढ़ेगा, ये जिन्ना के आगे ही साफ हो गया था शायद. फिर जब वो मरे, तब उनके अंतिम संस्कार के वक्त भी हुआ तमाशा भी आने वाले दिनों के पाकिस्तान की दर्दनाक झलक दिखा गया. जिन्ना के दादा काठयावाड़ी हिंदू थे. नाम था- पूंजा गोकुलदास मेघजी ठक्कर. उन्होंने धर्म बदला था. मुसलमान हो गए थे. इस्माइली एक सेक्ट है इस्लाम में. मुसलमानों की सबसे सताई हुई कौमों में से एक. ज्यादातर मुसलमान इनको मुसलमान ही नहीं मानते. गुजरात में इसका बहुत असर था पहले. मतलब उस दौर में, जिसकी हम बात कर रहे हैं. उधर ही शुरू हुआ था ये. तो जिन्ना के दादा इस्माइली हो गए थे. बाद में जिन्ना ने शिया इस्लाम कबूल किया. मगर सुन्नी मुसलमान तो शियाओं से भी नफरत करते हैं. उनके लिए तो शिया भी सच्चे मुसलमान नहीं हैं. जिन्ना का शिया होना पाकिस्तानी हुकूमत और यहां तक कि मुस्लिम लीग के लिए भी शर्मिंदगी की बात थी. जब तक पाकिस्तान बनने का संघर्ष चला, तब तक इस बात ने ज्यादा सिर नहीं उठाया. लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना का शिया होना कइयों को पाकिस्तान की शान में बट्टा लगाने लगा. सेकुलर जिन्ना जितने 'अछूत' थे, शायद उतने ही 'अछूत' थे शिया जिन्ना.
जिन्ना ने खुद पारसी रतनबाई से शादी की. मगर जब उनकी बेटी दीना को एक पारसी से प्यार हुआ, तो जिन्ना इस शादी के खिलाफ थे. उनको लगता था कि अगर दीना ने पारसी से शादी की, तो उनके राजनैतिक करियर पर खराब असर पड़ेगा. उनकी तमाम आपत्तियों के बावजूद दीना ने लव मैरिज की. बॉम्बे डाइंग के मालिक नेस वाडिया जिन्ना के परनाती हैं (फोटो: Getty)
दो अलग-अलग तरीके से अंतिम संस्कार हुआ उनका जिन्ना का अंतिम संस्कार दो अलग तरीकों से हुआ. एक, जो उनकी बहन फातिमा जिन्ना ने करवाया. दूसरा, जो पाकिस्तानी हुकूमत ने किया. पहले फातिमा और चंद करीबियों ने मिलकर चुपके-चुपके शिया रवायतों के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किया. जिन्ना की लाश को गुसल करवाया गया. फिर गवर्नर जनरल के उसी बंगले में, जहां जिन्ना ने आखिरी सांस ली थी, उनका नमाज-ए-जनाजा पढ़ा गया. उस वक्त उस कमरे के भीतर बस तीन-चार शिया ही मौजूद थे. लियाकत अली खान चूंकि सुन्नी थे, सो कमरे के बाहर खड़े थे. शिया तौर-तरीकों से अंतिम संस्कार की ये रस्में अदा करने के बाद फातिमा ने जिन्ना की लाश पाकिस्तान सरकार के सुपुर्द कर दी. पाकिस्तानी हुकूमत इतिहास से, लोगों के दिमाग से ये याद खुरचकर फेंक देना चाहती थी कि जिन्ना शिया थे. इसीलिए आधिकारिक कार्यक्रम में राजकीय सम्मान के साथ जिन्ना की अंतिम विदाई हुई. मगर सुन्नी रवायतों के मुताबिक. मरने वाला क्या था, किसमें यकीन रखता था, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया. नीचे जिन्ना के अंतिम संस्कार के वक्त का एक विडियो देखिए-
ये जिन्ना का घर है. इसका आधिकारिक नाम है- कायद-ए-आजम हाउस. उर्फ, फ्लैगस्टाफ हाउस. अब इसे म्यूजियम बना दिया गया है (फोटो: Getty)
जिन्ना के मरने का नुकसान क्या बस इतना सा था कि एक आदमी मर गया? नहीं. जिन्ना की बीमारी और इस तरह एकाएक हुई उनकी मौत ने पाकिस्तान को तबाह कर दिया. वो ऐसे कि पाकिस्तान बन तो गया था. मगर उसकी जड़ें अभी जमीन में नहीं पहुंची थीं. जमा ही नहीं था वो. जिन्ना संविधान सभा (कॉन्स्टिट्यूऐंट असेंबली) के मुखिया थे. तब पाकिस्तान के सामने अपना चरित्र तय करने की चुनौती थी. कि इस्लामिक रिपब्लिक पाकिस्तान कैसा मुल्क होगा? उसमें धर्म के लिए कितनी जगह होगी? अल्पसंख्यकों के क्या अधिकार होंगे? उसकी अर्थव्यवस्था कैसी होगी? सिस्टम कैसा होगा? जिन्ना के अचानक चले जाने से सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान का हुआ. कैसे? मिसाल देने के लिए जिन्ना के कुछ भाषणों का अंश पढ़िए. फिर आप तुलना कर सकेंगे. कि जिन्ना कैसा पाकिस्तान बनाना चाहते थे और कैसा पाकिस्तान बनकर तैयार हुआ. अगर जिन्ना और जीते, तो शायद ऐसा न हुआ होता.
अल्पसंख्यकों के बारे में-
पाकिस्तान भले ही एक 'इस्लामिक रिपब्लिक' हो, लेकिन हमने बस मुसलमानों के लिए नहीं बनाया है पाकिस्तान. पाकिस्तान ऐसा मुल्क होगा, जहां सबके बराबर अधिकार होंगे. जहां मजहब देखकर या आपकी चमड़ी का रंग देखकर या आपकी आर्थिक स्थिति देखकर आपके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा. यहां सबके समान अधिकार होंगे. अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक तौर-तरीके मानने, उनके मुताबिक जीने की पूरी छूट होगी.पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कैसी हो? इससे जुड़ा एक बयान-
अविभाजित भारत में बैंकिंग सिस्टम ज्यादातर गैर-मुसलमानों के पास था. बंटवारे के बाद वो लोग पाकिस्तान से हिंदुस्तान चले गए. उनके जाने की वजह से हमारे इस ताजा बनकर तैयार हुए देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है. कारोबार और कारखाने ठीक से चल सकें, इसके लिए जरूरी है कि गैर-मुसलमानी आबादी के जाने से जो खालीपन पैदा हुआ है, उसे जल्द से जल्द भरा जाए.नागरिकों को सरकार के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए, इसपर बोलते हुए ऐडवर्ड्स कॉलेज, पेशावर में उन्होंने कहा-
पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था ने पूरी मानवता के लिए परेशानियां पैदा की हैं. वो वेस्टर्न सिस्टम न्याय नहीं करता. बल्कि इसकी वजह से तो दो विश्व युद्ध हुए. पश्चिमी देशों ने मशीनीकरण किया. औद्योगिकीकरण किया. लेकिन इन सबके बावजूद दुनिया इतनी बदहाल पहले कभी नहीं थी. अगर हम अपने लोगों (पाकिस्तानी आवाम) की दिक्कतें दूर करना चाहते हैं, तो पश्चिमी आर्थिक सिस्टम मददगार नहीं होगा. ये हमारे लोगों को खुशियां नहीं दे सकता. हमें दुनिया के सामने एक ऐसा इकॉनमिक मॉडल पेश करना होगा, जिसमें सामाजिक न्याय का सिद्धांत हो.
मैं चाहता हूं कि आप लोग एक आजाद और संप्रभु मुल्क की आवाम के मानिंद अपना सिर उठाकर जीयें. जब सरकार कुछ अच्छा करे, तो उसकी तारीफ करें. जब सरकार कुछ गलत करे, तो बिना डरे उसकी आलोचना करें. आलोचना करते हुए कभी न डरें. मैं आलोचना का स्वागत करता हूं. जनता की आलोचना से चीजों में बेहतरी आती है.नौकरशाहों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था-
आपको किसी राजनैतिक दबाव में नहीं आना चाहिए. फिर चाहे वो किसी पार्टी का दबाव हो, या किसी नेता का. अगर आप पाकिस्तान को महान बनाना चाहते हैं, तो आपको किसी दबाव में नहीं आना होगा. आपको जनता और मुल्क के सेवक की तरह काम करना होगा. बिना डरे और ईमानदारी के साथ. नौकरशाही किसी भी देश की रीढ़ होती है. सरकारें तो बनती हैं, हारती हैं. प्रधानमंत्री आते-जाते हैं. मंत्री भी आते-जाते हैं. मगर आप, यानी नौकरशाही टिकी रहती है. आपको कंधों पर मुल्क का दारोमदार टिका है. बहुत बड़ी जिम्मेदारी है आपके ऊपर. आपको किसी भी राजनैतिक पार्टी का समर्थन नहीं करना चाहिए. संविधान के मुताबिक जो भी सरकार बने, उसका काम करना आपका फर्ज है.
जिन्ना और गांधी के बीच तीन चीजें एक सी थीं. एक, दोनों गुजरात के काठियावाड़ से ताल्लुक रखते थे. दो, दोनों ने लंदन से बैरिस्टरी की पढ़ाई की. और तीसरी चीज ये कि मरने के बाद दोनों को उनके मुल्क ने अपनी करंसी पर टांक दिया (फोटो: Getty)
जिन्ना ने पाकिस्तान के लिए क्या-क्या नहीं किया मादा ऑक्टोपस अंडे देती है. फिर जब अंडे तैयार होकर फूटने का वक्त आता है, तब उसकी मौत हो जाती है. क्यों? क्योंकि मादा ऑक्टोपस अंडों को भूखी-प्यासी सेती रहती है. उसे अपना, अपनी सेहत का होश नहीं रहता. वो अपनी सारी ताकत, सारी ऊर्जा अंडों को सेने में खर्च कर देती है. जैसे कोई शाप हो. कि या तो बच्चे जी लें, या मां ही जी ले. सो मां अपना सबकुछ खर्च करके बच्चों को जिंदगी दे देती है. जिन्ना भी शायद उसी मादा ऑक्टोपस की तरह थे. उन्होंने अपना सब कुछ देकर पाकिस्तान को सेया. ये तक किया कि तराजू पर तुल गए. कलात के राजा ने पाकिस्तान के लिए फंड दिया. कहा, जितना जिन्ना का वजन है, उतना ही सोना दान देंगे. दुबले-पतले जिन्ना का वजन निकला 40 किलो. कलात के खान ने 40 किलो सोना दान दे दिया. फिर फातिमा जिन्ना को तराजू पर बैठाया गया. कलात की रानी ने फातिमा को एक हार दिया. जिसकी कीमत उस जमाने में 10 लाख रुपये थी. सोचिए, क्या-क्या नहीं किया जिन्ना ने पाकिस्तान के लिए. और पाकिस्तान ने उनके लिए क्या किया? उन्हें 'क़ायदे आजम' का खिताब दे दिया. नोटों पर छाप दिया. चौराहे बनवा दिए. इमारतों का नाम उनके नाम पर रख दिया. लेकिन जिन्ना को अपनाया नहीं.
जीने के तौर-तरीके में जिन्ना काफी कुछ नेहरू जैसे थे. आजाद और खुले खयाल के. मगर उनके बीच बुनियादी फर्क ये था कि नेहरू ताउम्र सेकुलर रहे. उन्होंने भारत के करेक्टर को सेकुलर रखने की भरपूर कोशिश की. जिन्ना बदलते रहे. सेकुलर से मजहबी, फिर सेकुलर (फोटो: Getty)
जाते-जाते
जिन्ना को गैर-सेकुलर, गैर-लिबरल दिखाने की कोशिश बस पाकिस्तान ने नहीं की. उनकी अपनी बहन फातिमा जिन्ना ने भी यही किया. मिसाल के लिए उनकी एक किताब का किस्सा आपको थमा रही हूं. पढ़िए-
जिन्ना जब लंदन में बैरिस्टरी कर रहे थे, तब वो एक एफ ई पेज ड्रेक नाम की महिला के घर बतौर पेइंग-गेस्ट रहते थे. मिसेज ड्रेक की एक जवान बेटी थी. जिन्ना की हमउम्र. उन्हें जिन्ना पसंद थे. क्रिसमस के एक रोज पहले शाम की बात है. दरवाजे के बाहर जिन्ना खड़े थे. मिसेज ड्रेक की बेटी उनके पास आई. उन्होंने जिन्ना को भींचकर गले लगाया. और कहा, मुझे किस करो. इस पर जिन्ना बोले- नहीं. मैं किस नहीं कर सकता. हमारे यहां ऐसा करने की इजाजत नहीं.गलती पाकिस्तान की नहीं थी. न वहां की हुकूमत की. न जिन्ना के करीबियों की. गलती किसी की थी, तो जिन्ना की थी. क्योंकि विरोधाभास उनके अंदर था. पाकिस्तान को क्या दोष दें. उसका तो आधार ही था धार्मिक बंटवारा. वो जिन्ना थे, जो शिफ्ट होते रहे. कभी सेकुलर. फिर मजहबी. फिर सेकुलर. आप पेड़ की जड़ में जहर डाल दें, तो उसके फलों को जहरीला होने से नहीं रोक सकते. फिर चाहे कुछ कर लीजिए. जिन्ना भूल गए थे. कि उन्होंने पाकिस्तान को 'रिपब्लिक' नहीं, 'इस्लामिक रिपब्लिक' बनाया है. मगर बना पाकिस्तान कुछ भी नहीं. न एक मुकम्मल रिपब्लिक, न ईरान की तरह एक 'क्रांतिकारी' इस्लामिक रिपब्लिक. जिन्ना की मौत के करीब 16 साल बाद, जुलाई 1965 की बात है. आबिदा हुसैन नाम की एक विज़िटर फातिमा से मिलने आईं. फातिमा ने आबिदा से जो आबिदा कहा, उसमें घनघोर निराशा थी. साथ में एक अजीब सा सिर पीट लेने वाला गुस्सा था. फातिमा ने कहा था-
अगर मेरे भाई को पता होता कि ये सब होगा, तो क्या उन्होंने पाकिस्तान बनवाने के लिए इतनी कड़ी मेहनत की होती? क्या वो ऐसा देश बनाना चाहते, जिसके पास अपना संविधान तक न हो? जहां न्याय न हो? जहां माहिर चापलूस ताकतवर बन बैठे हों और ईमानदार-इज्जतदार लोग पीछे छूट जाएं? अगर पाकिस्तान को ऐसा ही बनना था, तो फिर पाकिस्तान बनाना एक गलती थी.
एक मूर्खतापूर्ण गलती.
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