NDA बनाम I.N.D.I.A में आगे कौन? विपक्षी गठबंधन से निपटने के लिए BJP क्या कर रही?
गठबंधन के बाद कांग्रेस का कहना है कि उसे सत्ता नहीं चाहिए.
15 मई 1998 को कांग्रेस के विरुद्ध एक गठबंधन बना था, NDA. एक पार्टी की बहुमत का दौर बीत गया था. जिसे मशहूर पॉलिटिकल साइंटिस्ट रजनी कोठारी ने "कांग्रेस सिस्टम" कहा था. ये गठबंधन के दौर की शुरुआत थी. इससे पहले 90 के दशक में ही नेशनल फ्रंट और यूनाइटेड फ्रंट की दो-दो गठबंधन सरकारें गिर चुकी थीं. एनडीए के साथ 99 की सरकार में 24 दल साथ आए. प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी, जिनके नाम और चहरे पर उस वक्त तमाम छोटे दल साथ आए थे. बीजेपी का तर्क था, कांग्रेस के खिलाफ कोई भी सरकार बनाने के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन ही एकमात्र विकल्प है.
कट टू 2023. 25 साल बाद देश उसी मोड़ पर खड़ा है. बस प्लेयर्स बदल चुके हैं. भाजपा के विरुद्ध लगभग सारी बड़ी-छोटी राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पार्टियों का एक गठबंधन बना है. नाम दिया गया है, INDIA. भाजपा के खिलाफ सारी पार्टियां एक तरफ़, भाजपा के साथ वाली पार्टियां एक तरफ़. क्या है इस गठबंधन की पॉलिटिक्स? इसका गोंद कितना मज़बूत है? और भाजपा इसको काउंटर करने के लिए क्या जुगत लगा रही है?
हेडलाइन विपक्ष ही है, सो वहीं से शुरू करते हैं. 17 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों के बैठक का पहला दिन था. इसमें 26 दलों के नेता इकट्ठा हुए. अनौपचारिक चर्चा हुई और हुआ भोज.
इन 26 दलों में से 15 दल वही हैं, जो पटना में हुई पिछली बैठक में इकट्ठा हुए थे. उनके अलावा आज 11 और दल भी इस बैठक में शामिल हुए. दूसरे दिन, यानी आज 18 जुलाई को बैठक में नया नाम तय हुआ. तय हुआ कि अब कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का नाम INDIA होगा. अब तक जिसे यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस माने UPA के नाम से जाना जाता था, अब INDIA कहलाएगा. एब्रिविएशन वाली कलाकारी अब विपक्ष भी करने लगा है. सो INDIA का भी एक फुल फॉर्म खोजा गया है -
I- Indian
N- National
D- Democratic
I- Inclusive
A- Alliance
हिंदी में: भारतीय राष्ट्रीय लेकतांत्रिक समावेशी गठबंधन. राष्ट्रीय भी, समावेशी भी. इससे आपको गठबंधन के ब्रैंड ऑफ पॉलिटिक्स की कुछ हिंट मिलने लगी होगी. नाम के अलावा और क्या-क्या तय हुआ?
- तय हुआ कि विपक्षी दलों की अगली बैठक मुंबई में होगी.
- 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए दिल्ली में एक सचिवालय बनाया जाएगा.
- 11 सदस्यों की एक कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाई जाएगी. जो सीट बंटवारे का प्लान और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करेगी.
- गठबंधन के संयोजक का नाम अगली बैठक में तय किया जाएगा.
अभी तक कांग्रेस को विपक्ष के अगुवा माना जा रहा था, मगर आज खड़गे ने ये भी कहा कि कांग्रेस ये लड़ाई सत्ता हासिल करने के लिए नहीं लड़ रही है और उसकी प्रधानमंत्री पद या सत्ता में कोई दिलचस्पी नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष ने सभी दलों से आपसी मतभेद किनारे रखकर आगे बढ़ने की अपील की. कहा कि युवाओं, किसानों, ग़रीबों के लिए हमें अपने मतभेदों को पीछे छोड़ना होगा. शुरुआत कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद से अपना दावा छोड़ते हुए की है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और TMC प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा कि हमने रियल चैलेंज लिया है. INDIA जीतेगी. बीजेपी हारेगी.
बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस को TMC प्रमुख ममता बनर्जी, आप संयोजक अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, राहुल गांधी समेत अन्य नेताओं ने भी संबोधित किया. अधिकतर का दावा यही है कि हम देश बचाने, संविधान बचाने, धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए साथ आए हैं. विपक्ष के बाद चलते हैं पक्ष की तरफ़. सत्ता-पक्ष.
जिस समय बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक हो रही थी, उसी समय पोर्ट ब्लेयर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेंगलुरु में इकट्ठा नेताओं पर निशाना साध रहे थे. पोर्ट ब्लेयर में प्रधानमंत्री वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की नई टर्मिनल बिल्डिंग का उद्घाटन करने आए थे. यहां प्रधानमंत्री ने बेंगलुरु में हो रही बैठक को भ्रष्टाचार का सम्मेलन क़रार दिया.
पोर्ट ब्लेयर से अब चलते हैं दिल्ली. जहां आज NDA की बैठक हुई. जिसमें बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), NCP (अजित पवार गुट), लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुट, माने चिराग और पशुपति पारस, अपना दल सोनेलाल, AIADMK समेत 38 दलों के नेता शामिल हुए. NDA में शामिल दलों की लिस्ट आपको स्क्रीन पर दिख रही होगी.
दिल्ली के अशोका होटल में NDA की बैठक हुई. बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत तमाम केंद्रीय मंत्री और पार्टी के नेता शामिल हुए. इसके अलावा सहयोगी दलों के नेताओं में NCP से अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल, लोजपा के दोनों गुटों से चिराग और पशुपति पारस, शिवसेना शिंदे गुट से एकनाथ शिंदे, अपना दल सोनेलाल से अनुप्रिया पटेल आदि शामिल हुए.
अब चूंकि आज हम आपको NDA बनाम INDIA की लड़ाई के बारे में बता ही रहे हैं, सो उनका बैग्राउंड भी जान ही लीजिए. क्रम में पहले NDA बना, सो पहले उसकी कहानी. NDA माने नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस. हिंदी में - राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन. बुनियाद में तो ये भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला एक ऐसा राजनीतिक गठबंधन था, जो सेंटर राइट और बाकी दक्षिणपंथी पार्टियों को समाए हुए थे. लेकिन समय के साथ लेफ़्ट-राइट-सेंटर का फ़र्क़ धुंधला गया.
स्थापना की कहानी और उस वक़्त का माहौल हमने आपको शो के इंट्रो में बताया ही. 1998 का बरस. अटल बिहारी वाजपई और लाल कृष्ण अडवाणी की सदारत में बना ऐंटी-कांग्रेस गठबंधन. शुरुआती दौर में समता पार्टी, AIADMK और शिवसेना, शिरोमणी अकाली दल जैसी पार्टियों ने सहयोग किया था. हालांकि, ये तीनों ही पार्टियां इस गठबंधन से जुड़ती और अलग होती रहीं. सबसे पहले AIADMK, फिर 2003 में समता पार्टी और 19 में शिवसेना, जिसका एक धड़ा पार्टी में टूट के बाद फिर एक तरह से लौट आया, जब महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की कुर्सी गई. खैर, 1998 में लौटते हैं. तेलगु-देशम् पार्टी ने बाहर से सपोर्ट किया, तो अटल बिहारी वाजपई - जिन्होंने इससे पहले 13 दिन की सरकार चलाई थी - फिर प्रधानमंत्री बने. मगर ज़्यादा दिन तक नहीं. 13 दिन के बाद 13 महीने सरकार चली, फिर AIADMK ने हाथ खींच लिए. कुछ और क्षेत्रीय दलों को साथ लेने के बाद 1999 के चुनावों में NDA बड़े बहुमत के साथ जीती. भारतीय जनता पार्टी, सबसे बड़ी पार्टी बनी. वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने पूरे पांच साल सरकार चलाई.
2004 में NDA सरकार ने समय से 6 महीने पहले चुनाव बुला लिया. उन्हें अपने अभियान "इंडिया शाइनिंग" पर पूरा भरोसा था. लेकिन, NDA अपना भरोसा और 2004 का चुनाव हार गई. 182 सीटें मिलीं. उधर कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन UPA ने 222 सीटें निकाल लीं. मोटे तौर पर मुक़ाबला टीम भाजपा और टीम कांग्रेस के बीच ही थी. वाम दलों ने अपने गढ़ - पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में - भाजपा और कांग्रेस को लिए त्रिकोणीय मुक़ाबला बना दिया. पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में, उन्होंने कांग्रेस के साथ मिल कर टिकट बांटे.
2009 के आम चुनाव में NDA आडवाणी के चेहरे पर लड़ी. लेकिन पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी का इंतजार, इंतजार ही रह गया. UPA दोबारा सरकार बनाने में कामयाब रही. और उसने अपना चुनावी प्रदर्शन सुधार भी लिया. NDA की सत्ता में आने की कोशिशें असफल रहीं. बीजेपी को 116 सीटें मिली. NDA के हिस्से कुल 159 सीटें. UPA 2 के आखिरी सालों में सत्तारोधी लहर तेजी से बढ़ी. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू हुआ. एक के बाद एक घोटालों के आरोप लगने लगे. इसी दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी राष्ट्रीय राजनीति में तेजी से उभरने लगा. मोदी 2012 में लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बने थे. बीजेपी ने 2014 में उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया और उन्हीं के नाम को आगे कर चुनाव लड़ा.
2014 में बीजेपी को 282 सीटें मिलीं. NDA गठबंधन ने 336 सीटों पर जीत दर्ज की. प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी. और ये सिलसिला 2019 में भी जारी रहा. जब अकेले BJP को 303 सीटें मिलीं. NDA के पास लोकसभा में 353 सदस्य थे. ये तो हो गई इतिहास की बात. अब वर्तमान पर आ जाते हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सहयोगी दलों को न्यौता भी भेजा. नड्डा का दावा -- पिछले 9 सालों में NDA का ग्राफ़ तेजी से बढ़ा है. हालांकि, अगर बारीकी से ऑब्ज़र्व किया जाए, तो प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में भाजपा का NDA-गठबंधन कमज़ोर हुआ है. अकाली दल, शिव सेना और जद(यू) जैसे पारंपरिक और लंबे समय से चले आ रहे सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया. इसीलिए जैसे-जैसे इधर विपक्ष अपने प्रयास तेज़ कर रहा है.
अब कहानी UPA बनने की. 2004 के लोकसभा चुनाव में NDA की हार हुई. 145 सीटों के साथ, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी. बीजेपी केवल सात सीट पीछे थी. और उसे सत्ता से बाहर रखने के प्रयास शुरू हुए. CPM महासचिव हरिकिशन सिंह सुरजीत ने इस प्रयास का नेतृत्व किया. कुल 14 दल साथ आए. जिसमें कांग्रेस, CPM, DMK, NCP, TRS, JMM, LJP, AIMIM, PDP आदि प्रमुख थे.
चार लेफ्ट पार्टियों - CPM, CPI, RSP और फारवर्ड ब्लॉक - ने बाहर से समर्थन दिया. हरकिशन सिंह सुरजीत, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को भी अपने साथ लेकर आए. 17 मई 2004 को एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर साइन किया गया और इस तरह से ये गठबंधन आस्तित्व में आया. इसका नाम पहले यूनाइटेड सेक्युलर अलायंस या प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस रखने की तैयारी थी. लेकिन इस पर DMK चीफ़ करुणानिधि ने सोनिया गांधी से आपत्ति जताई. साथ ही उन्होंने यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन नाम भी सुझाया. और सबने इसे स्वीकार कर लिया.
22 मई 2004 को डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. यूपीए सरकार में NCP से शरद पवार, RJD से लालू प्रसाद यादव, LJP से रामविलास पासवान, JMM से शिबू सोरेन, TRS से के. चंद्रशेखर राव, DMK से टीआर बालू, ए राजा और दयानिधि मारन मंत्री बने.
2006 में तत्कालीन श्रम मंत्री केसीआर तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर UPA से अलग हो गए. 2007 में वाइको की MDMK ने भी UPA का साथ छोड़ा. 2008 में बड़ा झटका तब लगा जब चार लेफ्ट पार्टियों ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर अपना समर्थन वापस ले लिया. सरकार अल्पमत में आई लेकिन अविश्वास प्रस्ताव से बच गई. क्योंकि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने UPA को अपना समर्थन दे दिया था.
2009 में PMK और PDP भी गठबंधन से बाहर हो गए.
2009 का लोकसभा चुनाव UPA के लिए पहली परीक्षा थी. UPA की सत्ता में वापसी हुई. कांग्रेस 206 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई. सीटों की संख्या पहले से ज्यादा थी. लेकिन सहयोगियों की जरूरत अभी भी थी. कांग्रेस के साथ 5 दलों के नेता सरकार में शामिल हुए. तृममूल कांग्रेस, NCP, DMK, नेशनल कॉन्फ्रेंस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग. UPA को इस बार लेफ्ट का समर्थन नहीं मिला. लालू यादव और रामविलास पासवान भी नहीं आए. हालांकि सपा-बसपा के साथ राजद ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया. साथ ही AIMIM, VCK, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट सहित कई पार्टियां बिना किसी मंत्री पद के UPA का हिस्सा थीं.
हालांकि, AIMIM, VCK, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट सहित कई पार्टियाँ बिना किसी मंत्री पद के यूपीए का हिस्सा थीं. 2012 में TMC और DMK ने UPA छोड़ दिया. TMC ने संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका के खिलाफ तमिलों के मानवाधिकार उल्लंघन प्रस्ताव के मुद्दे पर तो TMC ने FDI के मुद्दे पर. AIMIM ने भी इसी साल UPA से अपना रास्ता अलग कर लिया.
2014 के चुनाव में कांग्रेस ने अपना सबसे ख़राब प्रदर्शन किया. कुल 44 सीटें आईं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. 2019 में फिर से कांग्रेस हार गई. तकनीकी रूप से देखा जाए, तो 2014 में UPA खत्म हो गया. हालांकि इस टर्म का इस्तेमाल अभी भी कांग्रेस के साथ आने वाले दलों के लिए किया जाता था. और आज यही गठबंधन हो गया है, INDIA. Indian National Developmental Inclusive Alliance. समीकरण कितने भी बनाए जाएं, बाइनरी एक पंक्ति की है: भाजपा के साथ कौन? भाजपा के ख़िलाफ़ कौन?
कांग्रेस का कहना है कि उन्हें सत्ता नहीं चाहिए. बढ़िया कहना है. उनके विपक्षियों के लिए दिली ख़ुशी का मौक़ा है. लेकिन हमने विशेषज्ञों से भी समझना चाहा, कि एक तरफ़ तो कहा जा रहा है कि हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस के वापसी से पार्टी का वर्चस्व बढ़ा है. दूसरी तरफ़ कांग्रेस इस गठबंधन में tactical backseat लेती हुई दिख रही है.
माने भारतीय राजनीति का नया गणित लिखा जा चुका है. कोलिशन बनाम कोलिशन. यह आपको कुछ-कुछ नॉस्टैल्जिया की तरफ़ ले जाएगा. मगर हम नॉस्टैल्जिया में नहीं जाएंगे. हमारी नज़र रहेगी अब से 2024 तक खींची जा रही राजनैतिक रेखा पर. अभी कई दिल टूटने हैं. कई पुरानी अदावतें ख़त्म होनी हैं. नए समीकरण जुड़ने हैं.