PM मोदी के भाषण के दौरान अडाणी पर जिस JPC जांच का नारा लगा, अगर वो हुई तो क्या होगा?
नेहरू और इंदिरा गांधी पर पीएम मोदी ने क्या कहा?
एक नाम है जो लोकसभा के बाद राज्यसभा में गूंजता रहा, एक व्यक्ति है जिसके खिलाफ जांच की मांग को लेकर संसद हंगामाखेज रही. नाम से आप सब वाकिफ हैं. गौतम अडानी. जिन पर शेल कंपनियों और बेनामी संपत्ति से धन अर्जित करने का आरोप लगा है. लोकसभा के बाद आज बारी राज्यसभा की थी. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोलना था. वक्त मुकर्रर था दोपहर के दो बजे. तय वक्त से थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री का भाषण शुरू हुआ.
प्रधानमंत्री मोदी जैसे से बोलने के लिए उठे, विपक्ष ने नारेबाजी शुरू कर दी. सभापति जगदीप धनखड़ ने तुरंत ही इंटरवीन किया. सख्त लहजे में चेतावनी दी कि ऐसा मत कीजिए, साथ ही निर्देश दिया कि प्रधानमंत्री के भाषण के अलावा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं जाएगा. चूंकि विपक्ष ने पीएम का स्वागत तल्ख लहजे में किया तो भाषण की शुरूआत में ही एक शायरी के जरिए विपक्ष निशाने पर आ गया.
आपने ध्यान दिया होगा कि प्रधानमंत्री जब बयान दे रहे थे तो पीछे से कुछ आवाजें आ रही हैं. विपक्ष के गलियारे से नारे लग रहे थे. अडानी-मोदी भाई-भाई, JPC की जांच कराओ. पूरे भाषण के दौरान ऐसे ही नारे लगते रहे. प्रधानमंत्री का भाषण आज भी एक घंटे से ज्यादा चला. चुंकि लोकसभा के भाषण में प्रधानमंत्री ने एक बार भी अडानी का जिक्र नहीं किया था. तो ये पहले से तय माना जा रहा था आज भी इस पर कोई बात नहीं होगी. मगर विपक्ष लगातार ये मांग करता रहा कि अडानी पर बोलिए. इतने शोर के बावजूद पीएम ने अपने भाषण को कांग्रेस पर हमले और अपनी सरकार की उपलब्धियों के इर्द-गिर्द ही बुना. इस दौरान नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के एक बयान पर तंजिया जवाब भी दिया.
प्रधानमंत्री का भाषण जैसे-जैसे बढ़ता गया, नारों की इंटेंसिटी भी बढ़ती गई. प्रधानमंत्री अपनी सरकार की योजनाएं गिनाते रहे, विपक्ष...'अडानी पर बोलो' जैसे नारों को मॉडिफाई करता रहा. अडानी पर सवालों का जवाब तो नहीं दिया, मगर आज प्रधानमंत्री के भाषण में देश के पहले पीएम नेहरू का जिक्र जरूर आ गया.
"हमसे नेहरू का नाम छूट जाता है. लेकिन हमें ये समझ नहीं आता कि उनकी पीढ़ी का कोई व्यक्ति अपने नाम के पीछे नेहरू क्यों नहीं लिखता है?"
नेहरू से बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी का कारंवा इंदिरा गांधी पर भी पहुंचा.
"सत्ता में वो कौन लोग थे इन्होंने आर्टिकल 356 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया था. 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया."
इंदिरा गांधी पर चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करने का आरोप लगाया, अब तक संसद में काफी हंगामा हो चुका था. आखिर आते-आते नारेबाजी पर प्रधानमंत्री के सब्र का बांध टूट गया. फिर जो बयान दिया, उसमें भावुकता भी थी और एग्रेशन भी.
"देश देख रहा है एक अकेला कितनों को भारी पड़ रहा है."
इस पूरे भाषण से एक बात फिर साफ हो गई विपक्ष और खासकर राहुल गांधी की तरफ से पूछ गए अडानी पर सवालों को प्रधानमंत्री तरजीह नहीं दी. या कह सकते हैं कि उन सवालों का जवाब नहीं दिया. संसद में विपक्ष की तस्वीर नहीं दिखाई गई. मगर दो शब्दों की गूंज तो हर किसी के कानों तक पहुंची. पहली अडानी, दूसरी JPC. संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगह पर विपक्ष ने अडानी मामले की JPC जांच की मांग की. JPC का इतना हल्ला है, हर विपक्षी सांसद इसकी मांग कर रहा है.
अडानी मामले में संसद में JPC-JPC के नारे लग रहे हैं और संसद के बाहर गांधी जी की प्रतिमा के सामने भी विपक्षी सांसद यही मांग दोहरा रहे हैं. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये JPC क्या बला है? JPC मतलब ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी होता है. अडानी मामले में विपक्ष JPC की मांग इसलिए क्योंकि इस कमेटी में सभी दलों के सांसदों को शामिल किया जाता है. पहले ये जान लीजिए संसद में कितनी तरह की समितियां या कमेटी होती हैं.
मुख्यत: दो तरह की समितियां होती हैं.
>> स्थायी समिति यानी स्टैंडिंग कमेटी
>> तदर्थ समिति यानी एडहॉक कमेटी
स्टैडिंग कमेटी वो होती हैं, जिनका गठन समय-समय पर संसद के अधिनियम की प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियम के हिसाब से किया जाता है. इन कमेटियों का कार्य अनवरत प्रकृति का होता है. यानी काम चलता रहता है. कई समितियां तय समय सीमा के लिए गठित की जाती हैं. एडहॉक कमेटी वो होती हैं जो किसी विशिष्ट प्रयोजन या जांच के लिए नियुक्त की जाती हैं और जब वे अपना काम खत्म कर लेती हैं और अपनी रिपोर्ट सबमिट कर देती हैं, तब उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है. JPC भी इसी श्रेणी में आती है.
>> इसमें राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही सदनों के सदस्य शामिल किए जाते हैं
>> किसी भी मामले में JPC गठित करने के लिए बाकायदा संसद के एक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाता है
>> दूसरे सदन द्वारा इस पर सहमति ली जाती है.JPC गठित होने के बाद सांसदों की टीम मामले की पूरी जांच करती है.
>> ऐसा नहीं है कि कोई भी MP, JPC में आ जाए. पार्टियाँ अपने सदस्यों के नाम आगे बढ़ाती हैं और फिर उन्हें अप्रूव किया जाता है.
एक सवाल और मन में आता है कि JPC में कुल कितने सदस्य होते हैं? जवाब है कि कोई नंबर तय नहीं होता है. कोशिश होती है कि ज्यादा से ज्यादा पार्टियों के सदस्य शामिल हों. सदस्यों की संख्या उस दल की ताकत के हिसाब से देखी जाती है. एक बात और JPC की जो टीम बनती है, उसमें राज्यसभा की तुलना में लोकसभा के दोगुने सदस्य होते हैं. यानी अगर आज किसी मामले में JPC को गठित किया जाए तो उसमें सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी के सबसे ज्यादा सदस्य होंगे. अगर एक बार JPC गठित हो गई तो उसे मामले की गहनता से जांच के लिए विशेषाधिकार मिल जाते हैं. इनका इस्तेमाल करके वो ज़रूरी जानकारी हासिल कर सकती है. कोई भी विभाग उन्हें सीक्रेट फाइल का बहाना कर जांच से नहीं रोक सकता है. सदस्यों में सांमजस्य ना बैठने पर जेपीसी के अध्यक्ष के मत का महत्व बढ़ जाता है. आमतौर पर किसी सीनियर सांसद को ये जिम्मेदारी दी जाती है और चलन ये है कि सत्ताधारी पार्टी अपने ही किसी नेता को अध्यक्ष अप्वांइट करती है. दिलचस्प बात ये है कि
>>2014 में मोदी सरकार आने के बाद आज तक किसी भी मामले में JPC का गठन नहीं किया गया है,
>>इससे पहले राफेल डील विवाद और नोटबंदी के मसले पर भी विपक्ष ने JPC के गठन की मांग की थी. लेकिन सरकार ने विपक्ष की मांगें नहीं मानी थी.
तो फिर सवाल है कि क्या JPC कभी नहीं बनी? जवाब है- नहीं. मोदी सरकार से पहले कई मामलों में JPC बनी है.
साल था 1987, राजीव गांधी की सरकार और बोफोर्स घोटाला. आरोप सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री पर लगे थे. विपक्ष ने भारी हंगामा किया और आखिरकार राजीव गांधी सरकार को जेपीसी जांच के लिए तैयार होना पड़ा. कमेटी बनी और जांच में महीनों लगे. रिपोर्ट भी आई मगर कुछ हासिल नहीं हुआ. राजीव गांधी सरकार को क्लीन चिट मिल गई. 1992 में हर्षद मेहता शेयर मार्केट घोटाले में भी जेपीसी गठित हुई और इस बार हर्षद मेहता को दोषी पाया गया. सरकार ने जेपीसी की सिफारिशों पर काम किया और आगे चलकर हर्षद मेहता को सजा भी हुई.
PRS Legislative Research के एक लेख के मुताबिक, जेपीसी का जनादेश इसे गठित करने वाले प्रस्ताव पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, "शेयर बाजार घोटाले पर जेपीसी कमेटी को वित्तीय अनियमितताओं को देखने, घोटाले के लिए व्यक्तियों और संस्थानों पर जिम्मेदारी तय करने, नियामक खामियों की पहचान करने और जरूरी सिफारिशें करने के लिए भी कहा था. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए साल 2011 में जेपीसी बनी. UPA सरकार ने कांग्रेस नेता रहे पीसी चाको को उसका अध्यक्ष नियुक्त किया. जिसको लेकर काफी हंगामा हुआ. क्योंकि तब विपक्ष में रही बीजेपी ने आरोप लगाया कि जेपीसी की रिपोर्ट बदल दी गई थी. हालांकि तत्कालीन सरकार ने इससे इनकार किया था. जेपीसी से जुड़े कुछ और तथ्य ये हैं कि
>>कमेटी की सिफारिशें जांच में सहयोग कर सकती हैं
>>सरकार उसको हूबहू मानने के लिए बाध्यकारी नहीं होती है.
जेपीसी ने जो कहा , उसके आधार पर सरकार आगे की जांच शुरू करने का विकल्प चुन सकती है, लेकिन उसे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. PRS में लिखे लेख से ये भी पता चलता है कि जेपीसी और अन्य समितियों की सिफारिशों के आधार पर की गई कार्रवाई पर सरकार को संसद में रिपोर्ट पेश करनी होती है. समितियां सरकार के जवाब के आधार पर संसद में 'कार्रवाई रिपोर्ट' पेश कर सकती हैं. मतलब कार्रवाई पर अपनी इत्तेफाकी या नाइत्तेफाकी जाहिर कर सकती हैं. जेपीसी की जो सबसे बड़ी ताकत होती है वो ये कि
>>अगर प्रूफ जुटाने के लिए मामले से जुड़े व्यक्ति को कमेटी बुलाना चाहे तो उसे पेश होना होगा.
>>अगर अडानी वाले मामले में जेपीसी गठित हुई तो उन्हें कमेटी के सामने पेश होना पड़ सकता है.
>>अगर व्यक्ति आने से मना कर दे तो ऐसा करना संसद की अवमानना मानी जाती है.
मगर ये तो बहुत हाईपोथेटिकल बात होगी. फिलहाल सवाल तो ये है कि सरकार क्या अडानी मामले पर JPC का गठन करेगी या नहीं ? फिलवक्त सरकार का रुख देख, ऐसा होना बहुत दूर की कौड़ी नजर आता है. क्योंकि कोई भी सरकार JPC का गठन अपनी इच्छा से करना नहीं चाहती है. तो साफ है कि चुनावी माहौल में मोदी सरकार अडानी पर JPC के गठन का रिस्क तो नहीं ही लेने जा रही. ये तो हुई संसद की बात. मगर अडानी का मामला अब सिर्फ संसद तक सीमित नहीं है, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है.
10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सुनवाई करने जा रहा है. 9 फरवरी यानी आज अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की अडानी पर आई रिपोर्ट को लेकर एक और जनहित याचिका दायर की गई. याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी ने मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला के सामने तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की. न्यायालय संबंधी मामलों को कवर करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि मामला क्या है तो एडवोकेट विशाल तिवारी ने कहा,
''एक ऐसी ही याचिका कल भी आ रही है. यह हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित है जिसने देश की छवि को धूमिल कर नुकसान पहुंचाया है. इस पर कल भी सुनवाई हो सकती है.''
विशाल तिवारी ने, दायर PIL में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के नेतृत्व में एक समिति के गठन की मांग की है. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस PIL पर सहमति व्यक्त की है और कहा, इस तरह की सभी याचिकाओं पर 10 फरवरी को सुनवाई करेंगे. इससे पहले एक और विचाराधीन याचिका में शॉर्ट सेलिंग को धोखाधड़ी का अपराध घोषित करने और हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नैथन एंडरसन के खिलाफ जांच की मांग की गई थी.
इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ML शर्मा ने दायर किया था. याचिका में पूछा गया था कि क्या मनगढ़ंत कृत्रिम साधनों को आधार बनाकर शेयर मार्केट में स्टॉक क्रैश करके जानबूझकर शॉर्ट सेलिंग करना, आईपीसी की धारा 420 और सेबी एक्ट 1992 की धारा 15HA के तहत दंडनीय अपराध नहीं है? क्या सेबी निवेशकों की सुरक्षा के लिए शॉर्ट सेलिंग स्टॉक में ट्रेडिंग को निलंबित करने के लिए बाध्य नहीं है? तो अब अडानी मामले में संसद के साथ-साथ निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर रहेंगी.
वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: PM मोदी के भाषण के दौरान अडाणी पर जिस JPC जांच का नारा लगा, अगर वो हुई तो क्या होगा?