पुतिन से दुश्मनी मतलब मौत? रूस के इन ताकतवर लोगों ने ऐसा किया, अब कोई जिंदा नहीं
पुतिन से दुश्मनी के बाद मार दिए गए रूस के चर्चित और ताकतवर लोगों की सूची बहुत लंबी है.
रूस में दो 'पुतिन' हुए. एक ग्रेगरी रास्पुतिन और दूसरा व्लादिमीर पुतिन. एक सत्ता का करीबी, दूसरा सत्ता का केंद्र. दोनों के इर्द-गिर्द कहानियां और किंवदंतियां हैं. रास्पुतिन उसी साल पैदा हुआ, जिस साल महात्मा गांधी पैदा हुए. 1869 में. एक गरीब किसान के घर पर. यूराल की पहाड़ियों के पास. तुरा नदी के किनारे. यूरोप और एशिया के मिलान की जमीन, साइबेरिया में.
रास्पुतिन को किसान होना था, लेकिन जोगी हो गया. सड़कों पर टहलने वाला, कचरे में घूमने वाला रास्पुतिन इतना मजबूत हुआ कि जार निकोलस सेंकेंड का दिमाग कहा जाने लगा. जार के शयनकक्ष तक उसकी पहुंच थी. राजकुमारियों और रानियों पर उसका सम्मोहन था. उसकी सनक और सेक्स की कहानियां रूस ही नहीं पूरी दुनिया में फैल चुकी थीं. सत्ता की इसी नजदीकी के चलते रास्पुतिन मारा गया.
सत्ता के समीकरण तिलिस्म होते हैं. इस तिलिस्म के चलते फर्श से अर्श पर लोग पहुंचते हैं. अचानाक न जाने क्या होता है कि आसमान से तारे की तरह टूटकर गिर पड़ते हैं. मर जाते हैं. हत्या होती है. हादसा होता है. और होती है तरह-तरह की बातें. शासक के साथ उनके समीकरण की कहानी कही जाती है. बिगड़े संबंधों में उनके अंत के सूत्र तलाशे जाते हैं. ऐसी ही कहानियां इस समय रूस के राष्ट्रपति और सत्ता के एक मात्र केंद्र व्लादिमीर पुतिन के इर्द-गिर्द बुनी जा रही हैं.
वजह, प्रेसिडेंट पुतिन के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले येवगेनी प्रिगोझिन की मौत. 23 अगस्त को एक विमान हादसे में प्रिगोझिन की मौत हो गई. हादसे के वक्त विमान रूस के तेवेर शहर के आसमान में उड़ रहा था. अभी ये साफ नहीं हो पाया है कि विमान को मार गिराया गया या फिर इसमें हवा में ही विस्फोट हुआ.
पुतिन के बारे में कहा जाता है कि उनके साथ बिगड़े समीकरण, उनका विरोध और उनसे बगावत मौत को न्योता देती है. ऐसी ही मौतें हैं, जिनके बैकड्रॉप में पुतिन के साथ समीकरण बनने-बिगड़ने और बगावत की कहानियां हैं. रहस्य हैं और कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ हैं.
येवगेनी प्रिगोझिन- अगस्त 2023येवगेनी प्रिगोझिन एक समय पुतिन के खास हुआ करते थे. उन्हें पुतिन का पर्सनल शेफ़ यानी निजी खानसामा कहा जाता था. पुतिन के संपर्क में आने से पहले वो मॉस्को की सड़कों पर हॉट डॉग बेचते थे. बताया गया है कि उससे भी पहले छोटी-मोटी चोरी करते थे. फिर सत्ता समीकरण का हिस्सा हो गए. देश भर में रेस्त्रां की चेन चलाने लगे. उनकी कैटरिंग कंपनी ‘कॉनकोर्ड’ सेना, सरकारी कार्यक्रम और सरकारी स्कूलों में खाना बनाने और फूड प्रोडक्ट सप्लाई करने वाली एकमात्र कैटरिंग कंपनी हो गई. चौचक पैसा बनाया. पैसे के बाद नंबर आया ताकत का जिसके फार्मूले प्रिगोझिन को मालूम ही थे. मॉस्को की गलियों में गुंडई के गुण उन्होंने बचपन में ही सीख लिए थे. अब दुनिया भर में गुंडई करने की बारी थी. सर पर हाथ था, पुतिन का. मतलब रूस की सरकार का हाथ.
येवगेनी प्रिगोझिन को ताकत मिली "वेग्नर ग्रुप" से. ये एक प्राइवेट मिलिट्री कंपनी (private military company) है. बोले तो निजी सेना. प्रिगोझिन इसी प्राइवेट आर्मी के प्रमुख थे. इस प्राइवेट आर्मी को रूस ने यूक्रेन युद्ध में पूर्वी यूक्रेन में तैनात किया था. यूक्रेन के शहर बूचा में हुए नरसंहार में वेग्नर ग्रुप का नाम आया था. इस प्राइवेट मिलिट्री को इसकी बर्बरता के लिए जाना जाता है.
बूचा नरसंहार के मामले में रूस को संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संगठन से बाहर कर दिया गया था. इस प्राइवेट आर्मी की शुरुआत रूस की सैन्य खूफिया एजेंसी GRU में लेफ़्टिनेंट कर्नल के पद पर काम कर चुके दमित्री उत्किन ने की थी. वेग्नर ग्रुप की शुरुआत से जुड़ा जो दूसरा नाम आता है, वो येवगेनी प्रिगोझिन का ही है. कहा जाता है कि प्रिगोझिन का पैसा था, उत्किन की ट्रेनिंग और पुतिन की शह, जिसने वेग्नर को ताकतवर बनाया था.
एक समय आया, पुतिन के लिए काम करने वाली ये प्राइवेट आर्मी पुतिन के खिलाफ बगावती हो गई. 23 जून 2023 को पूरी दुनिया में येवगेनी प्रिगोझिन और वेग्नर ग्रुप 'कीवर्ड' बन गए थे. वजह थी बगावत. इस दिन वेग्नर ग्रुप ने मास्को शहर की तरफ रुख किया था. खबर चली की पुतिन का तख्ता पलट होने वाला है. पुतिन ने सख्ती की तो प्रिगोझिन बेलारूस भाग गए. बाद में समझौता हुआ और मुसीबत टल गई. कहा जाता है इसी के बाद येवगेनी प्रिगोझिन पुतिन के निशाने पर थे. अब ठीक दो महीने के बाद 23 अगस्त को प्रिगोझिन की मौत की खबर आई है. विमान दुर्घटना में प्रिगोझिन के अलावा छह अन्य लोगों की जान गई है. इनमें वेग्नर ग्रुप के संस्थापक दिमित्री उत्किन का भी नाम शामिल है. कहा जा रहा है कि येवगेनी प्रिगोझिन और दिमित्री उत्किन को पुतिन के खिलाफ बगावत का सिला मिला है.
पावेल एंतॉव- दिसंबर, 2022पावेल एंतॉव मॉस्को के पूर्व में स्थित व्लादिमीर शहर के अमीर कारोबारी थे. उनका मीट प्रोसेसिंग का बिजनेस था. 2019 में फोर्ब्स ने उनकी सम्पत्ति 14 करोड़ डॉलर बताई थी. वो रूस के सबसे अमीर नेता थे. उन्होंने भी पुतिन का विरोध किया. वो भारत के ओडिशा राज्य में संदिग्ध अवस्था में मरे पाए गए थे.
मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक वो अपने कुछ साथियों के साथ ओडिशा में छुट्टी मनाने आए थे. रायगढ़ होटल में अपना 65वां जन्मदिन मना रहे थे. अगले दिन ख़बर आई कि तीसरे फ्लोर से गिरकर उनकी मौत हो गई. पावेल एंतॉव ने यूक्रेन में रूस के 'विशेष सैन्य अभियान' की आलोचना की थी. यूक्रेन पर रूसी हमले और राजधानी कीव पर एयरस्ट्राइक को एंतॉव ने 'आतंकी कृत्य' बताया था. उन्होंने अपने बयान पर माफी मांग ली थी. पर कहने वाले कहते हैं कि उन्हें माफी नहीं मिली. पुतिन ने उन्हें माफ नहीं किया.
राविल मैगनॉव- सितंबर 2022लुकोइल. रूस का जाना-पहचाना नाम है. ये एक तेल कंपनी है. इसके निदेशक मंडल के अध्यक्ष थे, राविल मैगनॉव. ये भी पुतिन के आलोचक थे. यूक्रेन पर रूस हमले के खिलाफ इन्होंने आवाज उठाई थी. पुतिन से युद्ध जल्द से जल्द खत्म करने की अपील की थी. युद्ध की त्रासदी के लिए पुतिन को जिम्मेदार बताया था.
मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक राविल मैगनॉव की भी मौत पावेल एंतॉव की ‘स्क्रिप्ट’ के अनुसार हुई. मॉस्को के एक अस्पताल की खिड़की से गिरकर मैगनॉव की संदिग्ध और रहस्यमय मौत हो गई. कॉन्सपिरेसी थ्योरी को बल मिला इनकी कंपनी लुकोइल के अधिकारिक बयान से. कंपनी ने पहले कहा कि मैगनॉव किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, लेकिन फिर बाद में न जाने क्यों कंपनी ने अपने बयान को पब्लिक डोमेन से हटा लिया.
डैन रैपोपोर्ट- अगस्त 2022डैन रैपोपोर्ट, एक अमीर इन्वेस्टमेंट बैंकर थे. उनकी एक और पहचान थी. पुतिन के आलोचक के तौर पर. साल 2012 में उन्हें देश निकाला हुआ. तभी से वो अमेरिका में थे. उनकी भी लाश मिली, वॉशिंगटन के एक अपार्टमेंट में. जैसे औरों की मौत हुई थी वैसी ही, रहस्यमय और संदिग्ध.
पुलिस को उनकी लाश के पास से फ़्लोरिडा का ड्राइविंग लाइसेंस, एक काली टोपी, क़रीब दो लाख रुपये और नारंगी रंग की चप्पल मिलीं. रैपोपोर्ट पुतिन के विरोध के मामले में काफी मुखर थे. सोशल मीडिया में उनके काफी फॉलोवर थे. वे अक्सर सोशल मीडिया पर पुतिन को घेरते थे. विदेशों में पुतिन के खिलाफ माहौल बनाते थे. उन्होंने भी यूक्रेन पर हमला करने, रूस और दुनिया पर युद्ध थोपने के लिए पुतिन को जिम्मेदार ठहराया था.
डेनिस वोरॉनेंकॉव- मार्च 2017डेनिस वोरॉनेंकॉव. साल 2011 से 2016 तक रूस की संसद के सदस्य थे. 2016 में चुनाव हारने के बाद वोरॉनेंकॉव ने रूस छोड़ दिया. रूस छोड़कर वो अपनी पत्नी के साथ यूक्रेन में बस गए. यूक्रेन जाते ही उनके स्वर बदले और वो पुतिन के विरोधी हो गए. उनकी मुखर आलोचना करने लगे. उनकी विदेश नीति को विध्वंसक बताने लगे.
23 मार्च, 2017 को डेनिस वोरॉनेंकॉव की हत्या कर दी गई. जैसे ही डेनिस वोरॉनेंकॉव कीव के प्रीमियर पैलेस होटल से निकले, हमलावर ने उनकी पीठ पर तीन गोलियां दाग दीं. गोली लगने से मौके पर ही उनकी मौत हो गई. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको ने इस हत्या में रूस का हाथ बताया और इसे आतंकवादी कृत्य कहा था.
मिख़ाइल लेसिन- नवंबर 2015मिख़ाइल लेसिन, साल 2015 में वॉशिंगटन के एक होटल के कमरे में मृत पाए गए थे. वो रूसी प्रेस मंत्री थे. उनके परिवार ने उनकी मौत के बाद बयान दिया था कि लेसिन की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. लेकिन वॉशिंगटन के मुख्य चिकित्सा परीक्षक और जांच अधिकारियों ने एक साल तक जांच करने के बाद बताया कि लेसिन की मौत सिर पर ज़ोर के हमले से हुई थी. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि उन्हें कुछ नशीला पदार्थ दिया गया था.
लेसिन ने टेलीविज़न नेटवर्क "रूस टुडे" की स्थापना की थी. कहा जाता है कि उनके संबंध भी पुतिन के साथ खराब हुए थे. समीकरण बिगड़े थे. अंदरखाने खबर ये भी थी कि लेसिन अपनी मौत से पहले अमेरिकन खुफिया एजेंसी FBI के संपर्क में थे. कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ के डोमेन में मिख़ाइल लेसिन की मौत भी पुतिन से बिगड़े संबंध और समीकरण के ही खाते में जाती है.
बोरिस नेमत्सॉव - फरवरी 2015बोरिस नेमत्सॉव, रूस के युवा तुर्कों में गिने जाते थे. 1990 सोवियत संघ के टूटने का समय था और बोरिस के उभार का भी. 90 के दशक में वो रूस के उप प्रधानमंत्री थे. उन्हें रूस का संभावित राष्ट्रपति माना जाता था. लेकिन नई सदी के आगाज के साथ रूस में पुतिन का उभार हुआ. उन्होंने साल 2000 में पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की जगह ली.
बोसिस नेमत्सॉव प्रमुख विपक्षी नेता थे. उन्होंने जनादेश का समर्थन करते हुए, पुतिन का स्वागत किया. लेकिन धीरे-धीरे पुतिन की नीतियों के आलोचक बन गए. उन्होंने रूस में पुतिन के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया. ख़ूब प्रदर्शन किए. रैलियां कीं. सड़कें जाम कीं. कई बार गिरफ्तारी दी. लेकिन वो लगातार पुतिन का विरोध करते रहे. फिर आई फरवरी, साल 2015. एक हमलावर ने बोरिस नेमत्सॉव की पीठ पर चार गोलियां दाग दीं. बोरिस भी औरों की तरह यूक्रेन में पुतिन की विस्तार और अतिक्रमण की नीति के खिलाफ थे और खुलकर विरोध कर रहे थे. हमले के कुछ घंटे पहले ही बोरिस नेमत्सॉव ने रूस की जनता से यूक्रेन में रूस के सैन्य दखल, दबंगई और अतिक्रमण के खिलाफ संड़कों पर उतरने की अपील की थी.
बोरिस बेरेज़ॉस्की- 2013बोरिस बेरेज़ॉस्की, वैसे थे तो व्यापारी आदमी. लेकिन सियासत में भी दखल रखते थे. 90 के दशक के अंत में वो पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के करीबियों में गिने जाते थे. कहा जाता है कि पुतिन को रूस की गद्दी पर बैठाने के लिए बोरिस बेरेज़ॉस्की ने पैसा और पसीना दोनों बहाया. पुतिन को राष्ट्रपति बनाने में बेरेज़ॉस्की का महत्वपूर्ण योगदान था. पुतिन जब साल 2000 में बोरिस येल्तसिन की जगह राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे तो बोरिस बेरेज़ॉस्की की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन्होंने बोरिस बेरेज़ॉस्की को उतनी और वैसी मदद नहीं पहुंचाई जैसी और जितनी की उन्हें आशा थी.
बोरिस बेरेज़ॉस्की के भी पुतिन से संबंध और समीकरण बिगड़े और उन्होंने रूस छोड़ दिया. यूके चले गए. कसम खाई कि जिसे गद्दी पर बैठाया है उसे कुर्सी से उतार देंगे. इसके बाद वो खुलकर पुतिन विरोधी हो गए. पुतिन के मुख़ालिफ़त करने वालों को फंड करने लगे. उन्होंने पुतिन के मंत्रिमंडल पर एक पूर्व इंटेलिजेंस अफ़सर अलेग्जे़ंडर लित्विनेंको की हत्या तक के आरोप लगा दिए.
मामला खुली बगावत का था. पुतिन के खिलाफ विरोध और विद्रोह की हर आवाज में बोरिस बेरेज़ॉस्की की आवाज मिली होती थी. इसी बीच उनकी लाश मिली. साल 2013 में. उनके घर के बाथरूम में. गले में फांसी का फंदा था. मामला आत्महत्या का बताया गया, लेकिन अंदरखाने हत्या की कानाफूसी होती रही. कहा जाता रहा कि पुतिन के एक और विरोधी की मौत रहस्य और संदेह की घेरे में धकेल दी गई.
(ये स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने की है.)
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