‘कालोऽस्मि: मैं काल हूं’, कैसे बना था परमाणु बम?
परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञनिक के गीता के श्लोक क्यों बोला?
बारिश से भीग रही एक रात में एक शख़्स अपनी खाट पर उलट पलट रहा था. नींद कोसों दूर थी. ‘यही रात अंतिम, यही रात भारी’, वाला जो मोमेंट रावण के सामने आया था, उसकी हालत भी वैसी ही थी. ये किसी रविवार की रात थी. और अगली सुबह रवि देवता, सूरज के दो रूप उगने वाले थे. (Atomic Bomb) महाभारत सरीखा समय सब देखते हुए गुजर रहा था. और गुजरते हुए वो जाकर टिका 5 बजकर 30 मिनट पर. पिछली रात जागा शख़्स अब रेगिस्तान के बीचों बीच खड़ा था. उसकी निगाहें दूर पटल पर स्थित एक बिंदु पर अटकी हुई थीं. ठीक उसी पल में, उस बिंदु ने आकार लेना शुरू किया और देखते देखते बिंदु एक विशाल वृत्त में बदल गया. महाविनाश साक्षात सामने था. मानो भगवान कृष्ण अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखा रहे हों. अर्जुन को भगवान ने गीता सिखाई थी. उसी गीता का एक श्लोक उस शख़्स के होंटों पर था. (Oppenheimer Movie)
हिटलर बना लेता एटम बम!“कालोअस्मि लोक क्षयकृत्प्रवृद्धो". मैं काल हूं. संसारों का नाश करने वाला.
दुनिया का पहला परमाणु बम जापान के हिरोशिमा शहर पर गिराया गया. लेकिन इस बम का विचार शुरू हुआ था, नाज़ी जर्मनी को ध्यान में रखकर. परमाणु बम को बनाया गया मैनहैटन प्रोजेक्ट के तहत. इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले डॉक्टर एडवर्ड टेलर एक इंटरव्यू में कहते हैं,
"आज लोगों को अहसास नहीं लेकिन हिटलर दुनिया जीतने से बस बाल बराबर दूर था".
1939 में हिटलर ने पोलेंड पर आक्रमण किया और दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी. हालांकि जिस बम ने इस युद्ध को ख़त्म किया, उसे बनाने के विचार की शुरुआत 1938 में ही हो गई थी. उस साल जर्मनी के तीन वैज्ञानिकों ने एक ज़बरदस्त खोज की. उन्होंने यूरेनियम एटम को उसके अव्ययों में तोड़ डाला. इस खबर ने जर्मनी के सारे वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया. क्योंकि E= MC स्क्वायर के हिसाब से ऐसी रिएक्शन अपने पीछे बहुत सारी ऊर्जा पैदा कर सकती थी. 1939 में जैसे ही युद्ध शुरू हुआ. सबके दिमाग़ में एक ही विचार कौंधा, इस खोज का इस्तेमाल अब ज़रूर बम बनाने में किया जाएगा. हालांकि ये बात अभी बस थियोरी तक सीमित थी.
जर्मन वैज्ञनिक लियो ज़िलार्ड थियोरी के प्रैक्टिकल में तब्दील होने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे. उन्होंने सीधे अमेरिका का रुख़ किया. ज़िलार्ड अमेरिकी सरकार को इस ख़तरे के प्रति आगाह करना चाहते थे. लेकिन इस काम के लिए उन्हें ज़रूरत थी, एक ऐसी आवाज़ की, जिसमें वजन हो. उन्होंने दुनिया के सबसे महान वैज्ञनिक से मदद मांगी. ज़िलार्ड एलबर्ट आइंस्टीन से मिले. और उन्हें सरकार से बात करने के लिए मनाया. आइंस्टीन ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रैंक्लिन रूज़वेल्ट के नाम एक ख़त लिखा. और उन्हें आगाह किया कि हिटलर के वैज्ञनिक परमाणु बम बनाने में जुट चुके हैं. इसलिए ज़रूरी है कि ये बम अमेरिका पहले बना ले. उनका एक प्रतिनिधि रूज़वेल्ट से मिला भी.
इस खबर की गम्भीरता को समझते हुए रूज़वेल्ट तुरंत हरकत में आए. उन्होंने एक टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट शुरू करने का आदेश दिया. इस प्रोजेक्ट को हम मैनहैटन प्रोजेक्ट (Manhattan Project) के नाम से जानते हैं. लेकिन असल में इसका नाम था मैनहैटन इंजिनीयर डिस्ट्रिक्ट. आगे सवाल था, इस प्रोजेक्ट को लीड कौन करेगा? इस काम की ज़िम्मेदारी मिली, आर्मी कोर के एक जनरल, लेस्ली ग्रोव्स को. ग्रोव्स प्रोजेक्ट की तैयारियों में जुट ग़ए. इसी बीच अक्टूबर 1942 में अमेरिका के ही शिकागो शहर में फ़ुटबाल फ़ील्ड के नीचे बने तहख़ाने में एक बड़ी खोज हुई. वैज्ञानिक एनरिको फ़रमी, लैब में एक परमाणु चेन रिएक्शन करने में सफल हो गए.
परमाणु बम का जनकविश्व युद्ध अधर में था. जर्मनी दिन पर दिन बढ़त बनाता जा रहा था. और जापान ने भी अमेरिका के लिए मुश्किलें बढ़ा दी थीं. ज़रूरी था कि मैनहैटन प्रोजेक्ट को पूरी स्पीड से आगे बढ़ाया जाए. इस काम को अंजाम दिया, जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने. वो शख़्स जो आगे जाकर मैनहैटन प्रोजेक्ट का मुख्य चेहरा बनने वाला था. ओपेनहाइमर को मैनहैटन प्रोजेक्ट के तहत प्रोजेक्ट Y का डायरेक्टर बनाया गया. प्रोजेक्ट Y, इस पूरे मिशन का साइंटिफिक आर्म था. जिसके तहत बम को डिज़ाइन किया जाना था. ओपेनहाइमर एक पेचीदा शख़्सियत के व्यक्ति थे. जिनियस इंसान थे, लेकिन कॉलेज के दिनों में प्रैक्टिकल से डरते थे.
कॉलेज में एक बार उन्होंने अपने प्रोफ़ेसर को ज़हर देने की कोशिश की थी. एक प्रेमिका थी, जिसने उन्हें कमुनिस्ट विचारों से रूबरू कराया. गीता पढ़ते थे, साहित्य में रुचि थी लेकिन लोगों के साथ व्यवहार में अक्खड़ थे. इसके बावजूद जब उन्हें मैनहैटन प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी मिली, उन्होंने बाक़ी सभी चीज़ों को किनारे रखते हुए अपना पूरा ध्यान प्रोजेक्ट पर लगा दिया. मैनहैटन प्रोजेक्ट पर तीन साल तक काम चला. 1942 से 1945 तक. दुनिया में सरकारी खर्चे पर शुरू हुआ, ये पहला साइंस प्रोजेक्ट था, जिसे कई सालों तक चलाया जाना था.
इन सालों में कई मुश्किलें आई. काम पूरी गोपनीयता से होना था. प्रोजेक्ट सफल होगा या नहीं, इसकी कोई ग़ैरंटी नहीं थी. और इसी दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों को जर्मनी से होड़ बनाए रखनी थी. जो पहले सफल होता, दुनिया उसकी मुट्ठी में होती. दुनिया भर के महान वैज्ञानिकों ने मैनहैटन प्रोजेक्ट में अपना योगदान दिया. इनमें ओपेनहाइमर, लियो ज़िलार्ड, एनरिको फ़र्मी का नाम आपने सुना. इनके अलावा नील बोह्र, रिचर्ड फ़ायनमेन, क्लाउस फुक्स जैसे दिग्गज वैज्ञानिकों के नाम शामिल थे. मैन हैटन प्रोजेक्ट के दौरान कुछ दिलचस्प वाक़ये भी हुए.
एक किस्सा वो है जब प्रोजेक्ट के लिए 14 हज़ार टन चांदी लोन ली गई. लोन की रिक्वेस्ट पहुंची US ट्रेज़री डिपार्टमेंट के पास. चूंकि प्रोजेक्ट पूरी तरह सरकार से फ़ंडेड था, इसलिए ट्रेज़री ने सवाल उठाया कि ये रक़म चाहिए क्यों. असली बात ये थी कि ये चांदी पैसे के तौर पर नहीं, परीक्षण के लिए धातु के तौर पर इस्तेमाल की जानी थी. लेकिन चूंकि पूरा मामला गुप्त था, इसलिए ये बात ट्रेज़री के अधिकारियों को नहीं बताई जा सकती थी. फिर भी किसी तरह ये लोन सेंक्शन हुआ. लोन हासिल करने की ज़िम्मेदारी कर्नल केनेथ निकल्स को मिली थी. वो जाकर ट्रेजरी उप सचिव, डेनियल बेल से मिले. बेल बुजुर्ग व्यक्ति थे, जबकि निकल्स की उम्र उनसे कम थी. निकल्स जब मिलने गए, बेल ने उनसे पूछा,
‘आपको अभी कितनी रक़म चाहिए.’
निकल्स ने जवाब दिया, 600 टन चांदी. बेल ने फिर कहा, 'ट्रॉय आउंस' में बताओ. यहां पर ये जान लीजिए कि ट्रॉय आउंस, बहुमूल्य रत्नों के भार का एक मेट्रिक होता है. एक ट्रॉय आउंस, 31.1 ग्राम के बराबर होता है. बहरहाल आगे किस्सा सुनिए. बेल के सवाल पर निकल्स ने जवाब देते हुए कहा,
'मुझे नहीं पता कितने, ट्रॉय आउंस. बस मुझे 600 टन चांदी चाहिए. वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता है. ट्रॉय आउंस हो या टन. चांदी तो उतनी ही रहेगी'.
ये सुनकर बेल ने निकल्स से कहा,
‘नवयुवक, तुम्हारे लिए टन हो सकता है, लेकिन ट्रेज़री में गिनने वाले लोगों को सिर्फ़ ट्रॉय आउंस ही समझ आता है.’
अंत में केनेथ निकल्स को अपनी ज़रूरत की चांदी मिल गई. चूंकि ये लोन था. इसलिए इसे वापिस करना पड़ा. वापसी में पूरे 25 साल लगे. इन सालों में परीक्षण के लिए चांदी इस्तेमाल हुई लेकिन जितनी लोन ली थी, उसके एक प्रतिशत हिस्से से भी कम. 14 हज़ार टन में से महज़ 300 किलो. ये किस्सा कर्नल केनेथ निकल्स की रोड टू ट्रिनिटी में दर्ज है. ट्रिनिटी परमाणु बम के परीक्षण का कोड नेम था. 16 जुलाई, 1945 को ये परीक्षण किया गया था. इस काम के लिए अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के लॉस एलामोस शहर से 330 किलोमीटर दूर रेगिस्तान में एक जगह को चुना गया. जिसका स्पैनिश भाषा में नाम था, "ज़ोर्नाडा, डेल, मुएर्तो" या हिंदी में कहें तो 'मौत का सफ़र'.
परमाणु विस्फोट के दिन क्या हुआ?12 जुलाई को बम का प्लूटोनियम कोर साइट पर लाया गया. 15 तारीख़ तक बम को पूरी तरह असेंबल कर एक 100 फुट ऊंचे टावर पर रख दिया गया. टेस्ट का समय 16 तारीख़ की सुबह 4 बजे नियत था. लेकिन 15 तारीख़ की रात ज़ोरदार बारिश हुई. इसलिए टेस्ट का समय आगे बढ़ाकर 5 बजकर 30 मिनट कर दिया गया. टेस्ट की जगह से 20 किलोमीटर दूर तीन बंकर भी बनाए हुए थे, ताकि टेस्ट का निरीक्षण किया जा सके. जब निरीक्षण का वक्त आया, सब कुछ तैयार था, बम तैयार था. वैज्ञानिक तैयार थे. लेकिन फिर भी कोई ठीक ठीक नहीं बता सकता था, आगे क्या होगा.
थियोरिटीकल गणना में एक सम्भावना ये भी बनती थी कि टेस्ट की चेन रिएक्शन कभी रुके ही नहीं, और वो पूरे वातावरण को भस्म कर डाले. टेस्ट से कुछ महीने पहले वैज्ञानिकों ने इस बात पर खूब माथापच्ची की. लेस्ली ग्रोव्स ने ओपनहाइमर से कहा, अगर ढाई करोड़ में एक भी संभावना ऐसी है कि इस टेस्ट से दुनिया नष्ट हो सकती है, तो टेस्ट नहीं होगा. ओपनहाइमर ने उन्हें जवाब दिया, ऐसा होने की सम्भावना लगभग शून्य है. ओपनहाइमर हालांकि टेस्ट के सफल होने को लेकर पूरी तरह श्योर नहीं थे. टेस्ट से कुछ मिनटों पहले उन्होंने अपने एक साथी से शर्त लगाई. शर्त के अनुसार अगर टेस्ट सफल होता तो ओपनहाइमर उसे 10 डॉलर देते, जबकि असफल होने की सूरत में उस बेचारे को अपनी एक महीने की तनख़्वाह से हाथ धोना पड़ता.
शर्तें और भी लग रही थी. एनरिको फ़र्मी सबसे ये शर्त लगा रहे थे कि ये बम सिर्फ़ न्यू मेक्सिको शहर को नष्ट करेगा, अमेरिका को या पूरी दुनिया को. ठीक 5.30 पर काउंट डाउन शुरू हुआ. गिनती 10 से शुरू हुई, और जब तक 1 पर पहुंची, इंसान दुनिया तबाह करने की ताक़त हासिल कर चुका था. मशरूम के आकार का एक ग़ुब्बारा आसमान में ऊंचा उठा और दुनिया की सबसे ज़्यादा देखी गई तस्वीरों में से एक में तब्दील हो गया.
इस परमाणु परीक्षण से 21 किलोटन विस्फोटक के बराबर ऊर्जा पैदा हुई. बेहतर समझने के लिए कल्पना कीजिए, आसमान में 5 फुट बॉल मैदानों के बराबर आकार का एक आग का गोला, जिसके 15 किलोमीटर के इलाक़े में जो कुछ भी आया, राख हो गया. इस विष्फोट का असर मीलों दूर तक हुआ था. लेकिन सरकार ने परमाणु परीक्षण की बात लोगों से छुपाई रखी. फिर भी एक शख़्स था जिसने इत्तेफ़ाक से इस परीक्षण का पता लगा लिया. कौन था ये शख़्स, इसी से जुड़ा सुनिए एक और दिलचस्प किस्सा.
परमाणु बम का राज कैसे खुला?जिस दिन लॉस एलामोस में परीक्षण हुआ, उसके अगले ही रोज़ वहां से 3000 किलोमीटर दूर न्यू यॉर्क की एक कम्पनी के दफ़्तर में ग्राहकों का तांता लगा हुआ था. कम्पनी का नाम था, ईस्ट मैन कोडेक. जो कैमरे की फ़िल्म बनाया करती थी. ग्राहकों ने कम्पनी से आकर शिकायत की कि उनकी सारी फ़िल्म ख़राब निकल रही हैं. उसमें धब्बे लगे हुए हैं. कोडेक ने जूलियन वेब नाम के एक वैज्ञानिक को कारण पता लगाने का ज़िम्मा सौंपा. जेम्स वेब तहक़ीक़ात करते हुए पहुंचे इंडियाना राज्य की एक फ़ैक्ट्री तक. इस फ़ैक्ट्री में कार्डबोर्ड के वो डिब्बे बनाए जाते थे, जिनमें कैमरा फ़िल्मों को स्टोर किया जाता था.
टेस्टिंग से पता चला कि इन कार्ड बोर्ड से निकले रेडिएशन से फ़िल्में ख़राब हो रही थीं. ऐसा पहले भी हुआ था, लेकिन तब रेडीएशन का कारण रेडियम हुआ करता था. इस बार कारण रेडियम नहीं था. वेब ने लैब टेस्टिंग से पता लगाया कि ये रेडीएशन एकदम नए प्रकार का था. लेकिन ये रेडीएशन आया कहां से, ये सवाल अब भी वेब के सामने बना हुआ था. काफ़ी खोज के बाद वेब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये रेडीएशन हवा के ज़रिए फ़ैक्ट्री तक पहुंचा था. इस बात को हालांकि वेब ने क़ई साल तक छुपाए रखा. साल 1949 में कम्पनी को भेजी अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि कोडेक की फ़िल्म न्यूक्लियर टेस्ट के चलते ख़राब हुई थी. कम्पनी इसके बाद सरकार के पास पहुंची. दोनों के बीच समझौता हुआ कि आगे जो भी टेस्ट होगा, उसका स्केड्यूल कम्पनी को पहले दे दिया जाएगा. ताकि वो अपना प्रोडक्ट बचा सके. बदले में कम्पनी ने वादा किया कि वो इस राज को राज रखेगी.
ट्रिनिटी परीक्षण के बाद क्या हुआ, कमोबेश हम सभी जानते हैं. अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु हमला किया. अमेरिका युद्ध जीतने की ओर अग्रसर था. इसलिए परमाणु हमला क्यों किया गया, इसको लेकर भी काफ़ी विवाद हैं. ख़ासकर इस बात पर कि नागासाकी पर हमले की क्या ज़रूरत थी. ओपनहाइमर खुद नागासाकी पर हमले से काफ़ी दुखी थे. नागासाकी पर हमले के बाद ओपनहाइमर जाकर राष्ट्रपति हेनरी ट्रुमैन से मिले. और उनसे आग्रह किया कि परमाणु हथियारों को आगे युद्ध के इस्तेमाल में ना लाया जाए.
ओपनहाइमर ने ट्रूमैन से कहा,
“मिस्टर प्रेसिडेंट, मुझे महसूस होता है, मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं.”
ट्रूमैन ने जवाब दिया,
“खून मेरे हाथ में है, इसकी ज़िम्मेदारी मुझे लेने दो.”
ओपनहाइमर न्यूक्लियर प्रोग्राम से अलग हो गए. और बाद में उन्होंने हाइड्रोजन बम बनाए जाने का भी भरपूर विरोध किया. इसका नतीजा हुआ कि सरकार ने उनके ख़िलाफ़ फ़ाइल खोल दी. कम्युनिस्ट पार्टी से उनके पुराने रिश्तों का हवाला देकर उनका सीक्रेट क्लीयरेंस छीन लिया गया. ओपनहाइमर नेपथ्य में चले ग़ए. अपनी ज़िंदगी के आख़िरी साल उन्होंने यूनिवर्सिटी में रहकर बिताए. इस दौरान जब जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने न्यूक्लियर बम का हिस्सा बनकर कोई गलती तो नहीं की. उन्होंने एक ही जवाब दिया,
"विज्ञान यही सीखने का नाम है कि कैसे एक गलती बार-बार न की जाए".
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