The Lallantop
X
Advertisement

न्यूक्लियर रेडिएशन से हुई सबसे दर्दनाक मौत

जब एक शख्स पर 17 लाख एक्स-रे बराबर रेडिएशन गिरा

Advertisement
nuclear disaster nuclear accident
साल 1999 में जापान में एक शख्स के ऊपर इतना न्यूक्लियर रेडिएशन का ऐसा असर हुआ कि उसकी पूरी खाल गल गई
pic
कमल
7 सितंबर 2023 (Updated: 7 सितंबर 2023, 14:41 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
न्यूक्लियर रेडिएशन 

साल 1999 सितंबर का महीना. टोक्यो के एक अस्पताल में एंबुलेंस का सायरन गूंज रहा था. उसके चारों ओर कई सारे डॉक्टर इकठ्ठा थे. एम्बुलेंस के अन्दर कोई आम मरीज़ नहीं था. अंदर जो नजारा था, उसने जापान के बहुत पुराने घाव जिंदा कर दिए थे. नागासाकी और हिरोशिमा परमाणु विस्फोट को हुए पीढ़ियां गुजर चुकी थी. लेकिन उस रोज डॉक्टरों ने जो नजारा देखा, एक मिनट के लिए उन्हें लगा वो वापिस हिरोशिमा में खड़े हैं. एम्बुलेंस में मरीज़ के नाम पर एक कंकाल था. जिसका मांस उसके शरीर से बस किसी तरह चिपका हुआ था. उसकी स्किन पूरी तरह जल चुकी थी. शरीर के अन्दर का द्रव्य इस तरह बाहर रिस रहा था, मानों कोई किसी कपड़े को निचोड़ रहा हो. शरीर को थामे रखने के लिए पट्टियां बंधी हुई थी. चेहरा खुला था लेकिन आंखों से खून बह रहा था. वो शख्स अभी भी बोल सकता था. और सिर्फ एक ही गुहार लगा रहा था. "मुझे मर जाने दो". इस शख्स का नाम था हिसाशी आउची.

यहां पढ़ें - ज़िया उल हक़ की मौत से मोसाद का क्या कनेक्शन था?

हिसाशी की पैदाइश साल 1965 में हुई थी. ये वो दौर था जब जापान दोबारा अपने क़दमों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था. इसके लिए देश को ऊर्जा की दरकार थी. जापान में नेचुरल रिसोर्सेज़ की कमी थी. लिहाजा देश को उसी ताकत से मदद लेनी पड़ी. जिसने उसे बर्बाद किया था - परमाणु शक्ति. जापान का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर साल 1961 में बना. देखते-देखते इनकी संख्या बढ़ती गई . इन न्यूक्लियर रिएक्टर में काम करने वाले लोगों की जरुरत थी. और इनमें से एक था हिसाशी आउची. 

tokaimura
टोकाइमुरा न्यूक्लियर पॉवर प्लांट (तस्वीर: wikimedia Commons)

हिसाशी जिस न्यूक्लियर रिएक्टर में काम करता था. वो टोकाइमुरा नाम की जगह पर बना हुआ था. ये जगह राजधानी टोक्यो से लगभग 150 किलोमीटर दूर है. और समंदर के ठीक किनारे है. चूंकि किसी रिएक्टर में काफी पानी का इस्तेमाल होता है. इसलिए ये जगह रिएक्टर बनाने के लिए एकदम मुफीद थी. साथ ही यहां रिसर्च इंस्टीट्यूट और ईंधन संवर्धन केंद्र भी बने हुए थे. साल 1997 की बात है. टोकाइमुरा के रिएक्टर में एक धमाका हुआ. दर्ज़न भर लोग न्यूक्लियर रेडिएशन की चपेट में आए. लेकिन मामला दबा दिया गया.

एक खतरनाक न्यूक्लियर हादसा 

इसके ठीक दो साल बाद एक और घटना हुई. हिसाशी आउची टोकाइमुरा के एक ईंधन संवर्धन केंद्र में काम करता था. मोटा मोटी समझें तो नेचर में पाया जाने वाला यूरेनियम सीधा ईंधन के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता. उसे पहले कई प्रोसेस से गुजार कर तैयार करना पड़ता है. ये प्रोसेस काफी लम्बी होती और समय खपाऊ होती है. साल 1999 में टोकाईमुरा में कुछ अधिकारियों ने इस प्रोसेस में तेज़ी लाने के लिए कुछ परीक्षण शुरू किए. जो असल में परीक्षण न होकर, महज लीपापोती थी. ये लोग बीच के कई चरण स्किप कर सीधा रिजल्ट पर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल रही थी. इस चक्कर में हुआ ये कि डेडलाइन निकल गई. 28 सितंबर तक फ्यूल तैयार हो जाना चाहिए था. लेकिन नहीं हुआ. जिसके बाद अधिकारियों ने और भी शॉर्टकट तरीका अपनाने का फैसला किया.

यहां पढ़ें - सांप ही सांप, दुनिया का सबसे खतरनाक द्वीप जहां इंसानों का जाना मना है

30 सितंबर की सुबह के 10 बजे. तीन लोग रिएक्टर में काम कर रहे थे. 34 साल का हिसाशी आउची. 29 साल का मसाटो शिनोहारा और इनका सुपरवाइजर, 54 साल का युटाका योकोकावा. हिसाशी और शिनोहारा एक टैंक में कुछ केमिकल मिला रहे थे. जबकि युटाका उनसे कुछ मीटर दूर अपनी डेस्क में बैठा हुआ था. केमिकल मिलाने के लिए ऑटोमेटिक पंप का इस्तेमाल होता है. और पूरी सावधानी से धीरे-धीरे ये काम किया जाता है. लेकिन उस रोज़ जल्दबाजी में हिसाशी और उसके साथियों ने ये काम हाथ से ही करना चालू कर दिया. जिस प्रोसेस में 5 किलो केमिकल मिलाया जाना था. उसमें उन्होंने 35 किलो केमिकल डाल दिया. वो भी स्टील की एक बाल्टी में. बर्तन के आकार और केमिकल की मात्रा के कारण एक चेन रिएक्शन की शुरुआत हुई और करीब साढ़े 10 बजे लैब में एक तेज़ नीली रौशनी फ़ैल गई.

hisashi ouchi
हिसाशी आउची के ऊपर एक्सपेरिमेंटल इलाज आजमाया गया लेकिन उसका कोई फायदा न हुआ (तस्वीर: wikimedia commons)

ये रेडिएशन से निकलने वाली रोशनी थी. रेडिएशन इतना तेज़ था कि वहां लगे अलार्म बजने लगे. ये अलार्म इमरजेंसी के लिए लगाए गए थे. ताकि यदि कमरे में रेडिएशन का लेवल खतरे से ज्यादा हो तो लोग बाहर भाग सकें. हिसाशी और बाकी दो लोग एक दूसरे कमरे की तरफ भागे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. हिसाशी का चेहरा लाल था और वो उल्टियां कर रहा था. बाकी दोनों लोगों की हालत उससे बेहतर थी लेकिन वे भी चक्कर खा रहे थे. तीनों को तुरंत अस्पताल नजदीकी अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों को अंदाजा था कि तीनों न्यूक्लियर रेडिएशन के के शिकार हुए हैं. लेकिन कितना रेडिएशन, ये बात अभी साफ़ नहीं हुई थी. बाहर से देखने में हिसाशी और उसके साथी चंगे भले नज़र आ रहे थे. उन्हें सिरदर्द और उल्टी की शिकायत थी. डॉक्टरों ने उन्हें दवा देकर इलाज करना शुरू कर दिया. अगले दिन उनका टेस्ट हुआ. और जब टेस्ट का रिजल्ट सामने आया तो डॉक्टरों के होश फाख्ता हो गए.

17 लाख एक्स-रे बराबर रेडिएशन 

हिसाशी आउची के खून में एक भी वाइट ब्लड सेल नहीं था. यानी उसका इम्यून सिस्टम पूरी तरह नष्ट हो चूका था. डॉक्टरों ने पाया कि उसके क्रोमोजोम पूरी तरह ख़त्म हो चुके हैं. क्रोमोसोम यानी इंसानी DNA का रॉ मटेरियल. क्रोमोजोम ख़त्म यानी DNA ख़त्म. DNA ख़त्म यानी शरीर नई कोशिकाएं नहीं बना सकता. इंसानी शरीर में हर वक्त पुरानी कोशिकाएं मरती रहती हैं. और नई बनती रहती हैं. इसी से हम जिन्दा रहते हैं. लेकिन हिसाशी आउची के शरीर में ये प्रक्रिया पूरी तरह बंद पड़ चुकी थी. उसका शरीर नई कोशिकाएं नहीं बना पा रहा था. ये सब इसलिए हुआ था क्योंकि उसके शरीर ने 17 सीवर्ट रेडिएशन अपने अंदर सोख लिया था. सीवर्ट रेडिएशन की इकाई होती है.

इस बात को ऐसे समझिए कि इंसानी शरीर में सेफ रेडिएशन लेवल माना जाता है, जब एक साल में वो एक सीवर्ट के 1 हजारवें हिस्से के बराबर रेडिएशन से एक्सपोज़ हो. आम तौर पर जब आप फ्रैक्चर होने पर हाथ या पैर का x- रे कराते हैं. तो आपका शरीर 1 सीवर्ट के एक लाख वें हिस्से के बराबर रेडिएशन सोखता है. हिसाशी की हालत ये थी कि मानो एक मिनट में उस पर 17 लाख x-ray किरणें एक साथ डाली गई हों. हिसाशी के अलावा बाकी दो लोगों ने शरीर पर 10 सीवर्ट और 3 सीवर्ट रेडिएशन का असर हुआ था. तीन दिन बाद इस रेडिएशन का असर दिखाई देना शुरू हुआ. और तीनों को तुरंत टोक्यो के एक बड़े अस्पताल में भर्ती कराया.

nuclear disaster
इस हादसे के बाद सरकार को करोड़ो का मुआवजा देना पड़ा था (तस्वीर: getty)

हिसाशी की हालत सबसे नाजुक थी. जब तक उसे बड़े अस्पताल ले जाया गया. उसकी त्वचा गलनी शुरू हो गई थी. शरीर का पूरा लिक्विड बाहर रिस रहा था. जिसके कारण उसे पट्टियों में बांधकर रखा हुआ था. उसके शरीर में खून बनना बंद हो चुका था. और दर्द के मारे वो तड़प रहा था. उसकी आंखें खून से सनी हुई थी. डॉक्टरों ने अंदाजा लगा लिया था कि उसका बचना मुश्किल है. इसके बावजूद इलाज जारी रखा. ये एक तरीके का एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट था. जिसके सफल होने की संभावना लगभग शून्य थी. डॉक्टरों ने उसकी बहन के स्टेम सेल लेकर उसकी बॉडी में ट्रांस प्लांट किए. इसका शुरुआती असर देखने को भी मिला. लेकिन जल्द ही ये तरीका भी फेल हो गया. क्योंकि उसका शरीर हद से ज्यादा रेडिएशन का शिकार हो चुका था. हिसाशी इतने दर्द में था कि उसने कई बार डॉक्टरों से इलाज रोक देने के लिए कहा. वो किसी तरह दर्द से निजात चाहता था.

जिंदगी से बेहतर मौत 

दुर्घटना के 59 दिन बाद एक रोज़ हिसाशी को हार्ट अटैक आया. ऐसे हालत में उसकी मौत निश्चित थी.डॉक्टर ने हिसाशी के परिवार से पूछा कि क्या ऐसी हालत में उन्हें हिसाशी को जिंदा रखने की कोशिश करनी चाहिए. परिवार को अभी भी उम्मीद थी. इसलिए उन्होंने डॉक्टर से कहा कि वो हिसाशी को बचाने की पूरी कोशिश करने. लिहाजा 3 बार हार्ट अटैक आने के बाद भी डॉक्टर हिसाशी को बचाने की कोशिश करते रहे. हर बार जब उसे होश में लाया जाता. वो एक ही बात कहता, मुझे मर जाने दो. हिसाशी की ये ख्वाहिश 21 दिसंबर को पूरी हुई. 83 दिन तक दर्द से तड़पने के बाद उसकी मौत हो गई. उसके बाकी दो साथियों का क्या हुआ.

उसका साथी, मसाटो शिनोहारा सात महीने तक जिन्दा रहा. उसके बाद लीवर फेलियर से उसकी भी मौत हो गई. उनका सुपरवाइजर युटाका योकोकावा बच गया. लेकिन उसे लापरवाही बरतने के जुर्म में जेल की सजा हुई. टोकाइमुरा में, जहां ये दुर्घटना हुई. करीब 3 लाख लोगों को घरों के अन्दर बंद रहने को कहा गया. उन सभी का परीक्षण हुआ. और किस्मत से किसी में भी रेडिएशन की मात्रा ज्यादा नहीं पाई गई. न्यूक्लियर रिएक्टर इसके बाद भी काम करता रहा. साल 2011 में जापान में आई सुनामी के बाद ये रिएक्टर पूरी तरह बंद हो गया. इसी साल फुकुशिमा न्यूक्लियर रिएक्टर भी सुनामी की चपेट में आया था. जिसके बाद लाखों लोगों को उस एरिया से बाहर निकालना पड़ा था. फुकुशिमा रिएक्टर से फैला रेडिएशन करोड़ों लीटर पानी में फ़ैल गया था. जिसे ट्रीटमेंट करने के बाद साल 2023 में धीरे-धीरे समंदर में छोड़ा जा रहा है.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement