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'मल-मूत्र' से लेकर 'म्यूज़िक सीडी' तक, बलून का अजब-गजब इस्तेमाल कर रही दुनिया

अब ये वो गुब्बारे नहीं रहे जो 'लिबिर लिबिर' करते थे. अब इनको चाहिए फुल इज्जत. तभी तो जो गुब्बारे कल तक बच्चों के खेलने की चीज़ हुआ करते थे. वो आज जेम्स बॉण्ड की तरह जासूसी से लेकर दुश्मन को चिढ़ाने तक के काम में आ रहे हैं.

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not only spy and espionage north korea sending trash balloons to south korea
हवा में उड़ता हॉट एयर बलून (फोटो-विकीपीडिया)
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मानस राज
26 नवंबर 2024 (Published: 15:06 IST)
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बीते दिन एक खबर आई कि एक 'कथित' चीनी जासूसी बलून को ताइवान में देखा गया. हालांकि दूसरे देशों में इस तरह के गुब्बारे दिखना और इसका आरोप चीन पर लगना, ये कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले भी कनाडा ने एक कथित चीनी बलून को स्पॉट किया था.

यानी अब बलून का काम सिर्फ जन्मदिन में सजाने तक सीमित नहीं है. कम से कम बचपन में तो हम यही जानते थे कि गुब्बारे सिर्फ जन्मदिन की पार्टी तक सीमित हैं. पर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब गुब्बारे बस जन्मदिन नहीं बल्कि जासूसी और मौसम की जानकारी इकठ्ठा करने में भी इस्तेमाल होते हैं. यानी अब ये वो गुब्बारे नहीं रहे जो 'लिबिर लिबिर' करते हैं. अब इनको चाहिए फुल इज्जत. और हद तो तब हो गई जब पता चला कि तानाशाह किम जोंग उन के सरपरस्ती वाला देश नॉर्थ कोरिया गुब्बारों में कुछ बेहद अलग चीज़ भेज रहा है. वो भी अपने पड़ोसी को. हमने देखा है कि खड़ूस पड़ोसी पर भड़ास निकालने के लिए लोग उसके दरवाजे पर कूड़ा फेंक देते हैं. वैसा ही कुछ किया नॉर्थ कोरिया ने.

दरअसल, मई 2024 से नॉर्थ कोरिया गुब्बारे में कचरा भरकर साउथ कोरिया भेज रहा है. अब तक वो ऐसे 15 सौ से ज़्यादा गुब्बारे साउथ कोरिया की सीमा में भेज चुका है. इन गुब्बारों में मानव मल, पुराने कपड़े, मोज़े और सिगरेट के बड्स जैसी चीज़ें होती हैं. पिछले कुछ दिनों से ऐसे गुब्बारों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है.

साउथ कोरिया भी नॉर्थ कोरिया के बलून कैंपेन का जवाब देने लगा है. आधिकारिक तौर पर उसने बॉर्डर पर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर लगाए हैं. इनमें नॉर्थ कोरिया के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा वाले मेसेज बजाए जाते थे. 2018 में इनको हटा लिया गया था. मगर बलून वॉर के बीच इसको दोबारा शुरू किया गया है.

north korea balloons
नॉर्थ कोरिया के कचरे से भरे गुब्बारे (फोटो-एएफपी)

ग़ैर-सरकारी स्तर पर, साउथ कोरिया के एक्टिविस्ट्स गुब्बारे उड़ा रहे हैं. उनके गुब्बारों में नॉर्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन की आलोचना वाले पर्चे, म्यूजिक सीडीज़ और फ़िल्मों के कैसेट्स वगैरह होते हैं. कहने-सुनने में ये मज़ाकिया लग सकता है. मगर दोनों देशों ने इसको गंभीरता से लिया है. साउथ कोरिया ने जून की शुरुआत में छह साल पुराना सैन्य समझौता तोड़ दिया. ये समझौता नॉर्थ कोरिया के साथ शांति स्थापित करने की कोशिशों के तहत किया गया था. कई जगहों पर फ़ौज भी तैनात की गई है. वे गुब्बारों में किसी केमिकल या बायोलॉजिकल हथियार की जांच कर रहे हैं. आम लोगों को कहा गया है कि वे ख़ुद से पैकेट ना खोलें. 24 जून को साउथ कोरिया के राष्ट्रपति योन सुक योल ने कहा कि नॉर्थ कोरिया जानबूझकर हमें उकसा रहा है. हमारी तैयारी पूरी है. ऐसी किसी भी कोशिश का क़रारा जवाब दिया जाएगा.

इतिहास

इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो दिखेगा कि बलून के शुरुआती इस्तेमाल का क्रेडिट जाता है Montgolfier भाइयों को. Joseph Michel Montgolfier और Jacques Etienne Montgolfier को. कागज़ बनाने वाले परिवार में पैदा हुए ये दो भाई शुरू से ही एविएशन और उड़ान में दिलचस्पी रखते थे. 1775 में जोसफ ने एक पैराशूट बनाया और उसे टेस्ट करने के लिए अपने घर की छत पर से ही कूद गए. इसके बाद से ये दोनों भाई बलून पर प्रयोग करते रहे.

montgolfier brothers balloon
लंदन स्थित म्यूजियम मं मौजूद मॉडल (फोटो-विकीपीडिया)

1783 में दोनों भाइयों ने कपड़े का एक बलून बनाया और उसे उड़ाकर भी दिखाया. इस बलून ने लगभग 2 किलोमीटर की दूरी तय की और 10 मिनट तक हवा में रहा. फिर यहां से लगातार बलून के क्षेत्र में विकास होता रहा. लंदन के साइंस म्यूजियम में आज भी Montgolfier भाइयों के बलून का मॉडल रखा हुआ है.अब जब आज की तारीख में बलूंस इतने एडवांस्ड हो गए हैं कि उनसे जासूसी से लेकर मौसम रिपोर्ट तक मिल जा रही है, तो ये भी जान लेते हैं कि किस तरह के गुब्बारों का इस्तेमाल आज की तारीख में किया जाता है.

जासूसी गुब्बारे

अधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले बलूंस का इस्तेमाल जासूसी करने और सर्विलांस में किया जाता है. हालांकि आज के समय में जासूसी के लिए उन्नत ड्रोन हैं पर बलून इस्तेमाल करने के अपने फायदे हैं. जैसे, पहला फायदा तो है खर्च कम आना.

2023 Chinese balloon
जासूसी गुब्बारा (फोटो- विकीपीडिया)

दूसरा फायदा है की बलून कुछ हज़ार किलोग्राम तक का लोड भी उठा लेते हैं जिससे इनपर जासूसी उपकरण और कैमरे लगाना आसान हो जाता है. और तो और ये ड्रोन या जहाज़ की तरह तेज़ी से नहीं बल्कि धीरे-धीरे मूवमेंट करते हैं. इस वजह से ये जल्दी रडार की पकड़ में नहीं आते. इनके साथ दिक्कत ये है कि ये बलून पूरी तहर से हवा के अनुसार चलते हैं इसलिए इन्हें मनचाही दिशा में भेजना मुश्किल हो जाता है.

वैज्ञानिक इस्तेमाल 

जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, इन बलूंस का इस्तेमाल वैज्ञानिक या साइंटिफिक स्टडी के लिए किया जाता है. इन गुब्बारों में वैज्ञानिक उपकरण लगे होते हैं जो साइंटिस्ट्स को उनके अध्ययन में मदद करते हैं. मौसम का हाल बताने वाली एजेंसियों में इनका इस्तेमाल हवा का तापमान नापने, हवा की स्पीड, प्रेशर, दिशा और कभी-कभी हवा में मौजूद दूसरे कणों का पता लगाने के लिए किया जाता है. अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने एक फुल टाइम बलून फैसिलिटी स्थापित की हुई है. हर साल ये फैसिलिटी करीब 4-6 बलून बनाकर उन्हें ऊपर भेजती है.

Nasa Balloon
नासा का वैज्ञानिक उपकरणों से लैस बलून (फोटो-नासा)
मनोरंजन 

उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी में साल 2023 में एक बलून फेस्टिवल का आयोजन किया गया. इस फेस्टिवल में कई सारे बलूंस का प्रदर्शन किया गया. ये गुब्बारे पर्यटन और मनोरंजन को बढ़ावा देने के लिए थे. इसमें नीचे की तरफ एक बास्केट लगी होती है जिसमें एक बार में 4 से 6 लोग आ सकते हैं. फिर इसमें बैठ कर लोग आसमान से शहर की सैर करते हैं. यूरोप में हॉट एयर बलून टूरिज़्म का खूब प्रचलन है.

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बनारस के घाटों के ऊपर उड़ते हॉट एयर बलून (फोटो-इंडिया टुडे)
भारत का पहला गुब्बारा 

साल 1948 में, देश की आजादी के ठीक अगले बरस डॉ होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भारत ने अपना पहला साइंटिफिक बलून लॉन्च किया. इस बलून को डॉ भाभा ने कॉस्मिक किरणों के अध्ययन के लिए उड़ाया था. फिर 1950 में मुंबई स्थित Tata Institute of Fundamental Research (TIFR) ने गुब्बारों के फैब्रिकेशन का काम शुरू किया और मुंबई और हैदराबाद से कई गुब्बारे लॉन्च किए गए. 


फिर लगभग 2 दशक बाद TIFR ने ही हैदराबाद में एक फुल टाइम बलून फैसिलिटी की शुरुआत की. ये फैसिलिटी आज भी ऑपरेशनल है. अलग-अलग फील्ड के वैज्ञानिकों ने अब तक इस फैसिलिटी से 500 से अधिक गुब्बारे साइंटिफिक कामों के लिए उड़ाए जा चुके हैं. इसके अलावा भारत के बेंगलुरु स्थित Indian Institute Of Astrophysics और हैदराबाद स्थित Osmania University भी अपने स्तर पर खुद के बलून प्रोग्राम्स चलाती हैं.

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