निर्भया केस के 12 साल बाद AAP लगाएगी 'महिला अदालत', जानिए 16 दिसंबर 2012 की उस रात हुआ क्या था?
Nirbhaya Case को 12 साल हो चुके हैं. इसकी स्मृति में AAP Mahila Adalat का आयोजन कर रही है. इसमें आप संयोजक Arvind Kejriwal, दिल्ली की मुख्यमंत्री Atishi और सपा प्रमुख Akhilesh Yadav के शामिल होने की ख़बर है. आप का दावा है कि महिलाओं पर बढ़ते अपराध के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की जाएगी.
निर्भया गैंगरेप केस की वीभत्स घटना को आज यानी 16 दिसंबर, 2024 को 12 साल हो गए हैं. इन 12 सालों में ‘गंगा में बहुत पानी बह चुका’ है. फिर अंततः केस के दोषियों को 20 मार्च, 2020 की सुबह फांसी दे दी गई. उस घटना के ठीक 12 साल बाद यानी 16 दिसंबर को आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली में ‘महिला अदालत’ (AAP Mahila Adalat) लगाने की घोषणा की है.
वही AAP, जिसकी स्थापना के शुरुआती कारणों में ‘निर्भया के साथ न्याय के लिए किया गया प्रोटेस्ट’ भी अहम रहा. ख़बरें हैं कि AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के साथ यहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी मौजूद होंगे. त्यागराज स्टेडियम में ये ‘महिला अदालत’ आयोजित होगी. जिसमें देशभर में गैंगरेप की घटनाओं के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होना है.
इस प्रदर्शन की ख़बरें तो अलग-अलग माध्यमों से आप तक पहुंचेगी ही. लेकिन आज निर्भया केस के बारे में जान लेना भी ज़रूरी हो जाता है. ऐसे में जानेंगे कि उस दिन हुआ क्या था और आगे क्या-क्या हुआ?
पूरा मामला क्या है?तारीख थी 16 दिसंबर. साल 2012. वो लड़की -जिसे निर्भया नाम दिया गया- दिल्ली के मुनीरका में देर रात अपने दोस्त के साथ फ़िल्म देखकर घर लौट रही थी. कोई ऑटो नहीं मिला. आख़िर में एक ख़ाली बस उनके पास आकर रुकी. निर्भया और उसका दोस्त बस में चढ़े. लेकिन उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उस बस में इंसान नहीं थे. निर्भया के साथ अगले कुछ समय उस चलती बस में जो कुछ हुआ, उसका असर सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि पूरे देश में हुआ.
उसके ज़ख्मों के दर्द को महसूस करके देशभर के युवा सड़कों पर उतर गए. उनकी आंखों में आंसू थे और सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा था. इस ग़ुस्से को शांत करने के लिए सरकार ने गंभीर रूप से घायल निर्भया को सिंगापुर के एक अस्पताल में भर्ती करवाया. लेकिन कुछ ही दिनों में उसने दम तोड़ दिया. मोमबत्तियां सिर्फ इंडिया गेट पर ही नहीं जलीं, न्याय के लिए आवाज़ उठाती मशालें शहर-शहर जलने लगीं.
निर्भया को लेकर राजनीति हुई, महिलाओं का रेप और उस पर होने वाली हिंसा बड़ा मुद्दा बना. आखिरकार सरकार ने रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश जे एस वर्मा के नेतृत्व में महिला अपराध क़ानून की समीक्षा करने और मौजूदा कानूनों को और सख्त बनाने के लिए एक कमेटी बनाई. वर्मा कमेटी ने महिला अपराध क़ानूनों में भारी बदलाव की सिफारिश की. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बलात्कर के केस में उम्रकैद से लेकर फांसी की सज़ा तक तय करने की बात कही.
इसके अलावा महिलाओं/लड़कियों का पीछा करने या उन पर एसिड हमले करने के जुर्म में भी सख्त सजा का प्रावधान करने की सिफारिश की. इस उम्मीद के साथ कि इन कानूनों से महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराधों में कमी आएगी. लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि ये उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. निर्भया की हत्या के बाद कानूनों में बदलाव तो किए गए लेकिन बलात्कार, एसिड हमले, छेड़छाड़ और घरेलू हिंसा जैसे क्रूरता के मामलों में कमी नहीं आई. बहरहाल, उसकी बात फिर कभी.
बाद में निर्भया के बलात्कारियों और हत्यारों को भी कड़ी सजा मिली. छह में से चार को फांसी पर लटका दिया गया. एक ने जेल में ख़ुदकुशी कर ली और एक नाबालिग़ अभियुक्त सज़ा काटने के बाद छूट गया. निर्भया की मां कहती हैं,
निर्भया केस ने सबको हिलाकर रख दिया. सभी ने जवाबदेही की मांग की. तब उम्मीद जगी थी. यहां तक कि उसके माता-पिता के रूप में हमने सोचा था कि चीजें सुधर जाएगी और हम निर्भया की पुनरावृत्ति नहीं देखेंगे. लेकिन ये नहीं हुआ. उन्होंने हमसे कई वादे किए, फास्ट ट्रैक कोर्ट होंगे. लेकिन निर्भया को भी न्याय मिलने में 8 साल लग गए, बहुत संघर्ष के बाद.
निर्भया की मां मानती हैं कि भारत में हजारों लड़कियों और महिलाओं का भविष्य खतरे में है. लेकिन अपनी बेटी खो चुकी निर्भया की मां अपने जीवन में आए इतने भयानक तूफ़ान के बाद भी नहीं टूटी हैं. वो मानती हैं कि लड़कियां पैदायशी मज़बूत होती हैं. लेकिन उन्हें अफ़सोस है कि 50 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद महिलाओं को अपने सम्मान और सुरक्षा के लिए लड़ना पड़ता है.
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फांसी से ठीक पहले क्या हुआ था?निर्भया गैंगरेप के दोषियों को 20 मार्च, 2020 की सुबह फांसी दे दी गई. लेकिन इस फांसी से पहले रात के साढ़े तीन बजे तक देश के सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई होती रही. 19 मार्च की दोपहर से लेकर 20 मार्च की सुबह फांसी तक क्या-क्या हुआ, ये जानते हैं. 19 मार्च की दोपहर को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वॉरंट खारिज करने की याचिका रद्द की.
फिर रात नौ बजे दोषियों के वकील एपी सिंह ने इस फैसले को चैलेंज किया. दिल्ली हाईकोर्ट में. सुनवाई शुरू हुई. दलील दी कि याचिकाएं सुनी नहीं जा रही हैं, क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से कोर्ट बंद हैं. लेकिन हाईकोर्ट किसी भी दलील से संतुष्ट नहीं हुआ. 19-20 मार्च की दरम्यानी रात 12 बजे दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की. इसके साथ ही एपी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास पहुंचकर एपी सिंह ने अपनी याचिका पर फौरन सुनवाई की अपील की. शिकायत की कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी उन्हें मिलने में देर हो रही है. रात ढाई बजे जस्टिस भानुमति की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच सुनवाई के लिए बैठी. यहां पर भी एपी सिंह ने कोरोना वायरस की वजह से याचिकाएं न सुने जाने की दलीलें दीं. लेकिन ये सभी खारिज कर दी गईं. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई तर्क नहीं है, जिसके बल पर राष्ट्रपति द्वारा खारिज हुई दया याचिका पर उंगली उठाई जाए.
20 मार्च को तड़के साढ़े तीन बजे सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की. फिर सुबह चार बजे चारों दोषियों को फांसी के लिए तैयार किया गया. अक्षय, विनय, पवन और मुकेश. किसी ने कुछ खाया नहीं. विनय ने कपड़े बदलने से भी इनकार किया और रोते हुए माफ़ी मांगी. सभी से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई, लेकिन किसी ने कुछ बताया नहीं. सुबह साढ़े पांच बजे फांसी घर में चारों को एक साथ खड़ा किया गया.
उनके चेहरे ढके गए. इसके पवन जल्लाद ने लीवर खींच कर सभी को एक साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया. तकरीबन 30 मिनट बाद डॉक्टर ने चारों के शरीर की जांच की. सुबह के छह बजे उन्हें मृत घोषित किया. उसके बाद सभी शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया. ये उस मामले की एक दिन की वो टाइमलाइन थी, जो पिछले सात सालों से अदालतों में घूम रहा था.
(नोट- इस ख़बर को लिखने में हमारी साथी रहीं नूपुर पटेल की लिखी गई ख़बर- ‘निर्भया के 10 साल: रेप, क्रूरता, घरेलू हिंसा- कितना बदले हम?’ और हमारी साथी रहीं प्रेरणा की लिखी गई ख़बर- निर्भया केस: फांसी से ठीक पहले अदालत में दलीलों से लेकर दोषियों के पोस्टमॉर्टम तक क्या-क्या हुआ? से इनपुट लिया गया.
वीडियो: आसान भाषा में: निर्भया से लेकर कोलकाता डॉक्टर केस, भारत में महिला सुरक्षा के क्या हालात हैं?