नए संसद भवन की सिक्योरिटी सर्विस का भगत सिंह से क्या कनेक्शन है?
कौन हैं वो 'रखवाले' जिन्होंने इतने साल संसद को महफूज़ रखा और अब नए संसद भवन की ज़िम्मेदारी संभालेंगे?
देश के नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया है. हमारे गणतंत्र के 73 सालों से चली आ रही गौरवशाली संसदीय परंपराओं को अब एक नया पता मिलेगा. इतने वक्त में संसद के हर पहलू पर बहुत लिखा गया है, हमने खूब सारी तस्वीरें देखी हैं - स्पीकर कहां बैठते हैं, सांसद कहां से एंट्री लेते हैं, वोटिंग कैसे होती है वगैरह. लेकिन आज हम ऐसे पहलू पर फोकस करना चाहते हैं, जो प्रायः नज़रों से ओझल ही रहता है - संसद की सुरक्षा व्यवस्था.
संसद के अलावा भारत में ऐसी कोई और जगह नहीं है, जहां भारत के सारे VVIP's एक समय पर, एक ही जगह इकट्ठा होते हैं. मिसाल के लिए राष्ट्रपति का अभिभाषण - जिसमें दोनों सदनों के अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और सारे सांसद शामिल होते हैं. ऐसे में सुरक्षा का इंतज़ाम कैसे किया जाता है. और कौन हैं वो रखवाले जिन्होंने इतने साल संसद को महफूज़ रखा और अब नए संसद भवन की ज़िम्मेदारी संभालेंगे? आज हम यही जानने वाले हैं.
संसद की सुरक्षा व्यवस्था में शामिल 'रखवाले'संसद की सुरक्षा व्यवस्था में ढेर सारी एजेंसीज़ और उनका इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल होता है. और इसे पूरी तरह समझना या समझाना बड़ा टेढ़ा काम है. आप आगे जो कुछ पढ़नेवाले हैं, उसमें हमने चीज़ों को कुछ आसान बनाकर समझाने की कोशिश की है.
लोकसभा सचिवालय में जॉइंट सेक्रेटरी (सिक्योरिटी) संसद की ओवरऑल सिक्योरिटी के इंचार्ज होते हैं. संसद की सुरक्षा में लगी सारी एजेंसियां, इन्हीं को रिपोर्ट करती हैं. ये हैं-
- पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस लोकसभा
- पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस राज्यसभा
- पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG)
- दिल्ली पुलिस
किसी भी हाई सिक्योरिटी ज़ोन की तरह संसद की सुरक्षा में भी कई घेरे होते हैं. जब तक आप इन सारे घेरों को भेद न दें, तब तक संसद तक नहीं पहुंच सकते. सबसे बाहरी घेरे में आपको नज़र आएगी दिल्ली पुलिस. चूंकि संसद दिल्ली पुलिस के ज्यूरिस्डिक्शन में स्थित है, इसलिए ये दिल्ली पुलिस की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है कि संसद के आसपास लॉ एंड ऑर्डर बरकरार है. सिचुएशन जो भी हो, दिल्ली पुलिस का काम है, रिस्पॉन्ड करना. चाहे वो संसद के आसपास घूमने आए लोगों की भीड़ हो, सड़क पर गाड़ियों से लग रहा जाम हो, या फिर कोई आतंकवादी हमला हो. संसद की ओर जाने वाली सड़कों पर किसी भी मूवमेंट पर नज़र रखना, आने जाने वाले VVIP काफिलों के लिए रूट्स बनाना, उन्हें एस्कॉर्ट करना भी दिल्ली पुलिस के डोमेन में आता है.
संसद परिसर के आसपास ढेर सारी एजेंसियों के हथियारबंद जवान होते हैं - मिसाल के लिए CRPF, ITBP, NSG आदि. लेकिन दिल्ली पुलिस अपनी एंटी टेररिज़म क्रैक टीम को भी इलाके में तैनात रखती है, जिसे कहा जाता है SWAT - Special Weapons and Tactics. जैसा नाम, वैसा काम. इसमें दिल्ली पुलिस के कमांडो होते हैं, जिनके पास किसी भी औचक खतरे से निपटने के लिए हथियार और वाहन होते हैं. अगर आप कभी लुटियंस ज़ोन में घूमने गए हैं, तो आपको नीली वर्दी में कुछ कमांडो नज़र आए होंगे. ये दिल्ली पुलिस की SWAT टीम है. अब इन्हें नई वर्दी मिल गई है, जो कुछ कुछ NSG के ब्लैक कैट कमांडोज़ की तरह दिखती है.
2. पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG)अगले घेरे की ओर बढ़ते हैं. जो बनता है केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप PDG से. डेढ़ हज़ार से ज़्यादा जवान और अधिकारियों से मिलकर बनी PDG एक डेडिकेटेड फोर्स है, जिसका सिर्फ और सिर्फ एक मकसद है - संसद को किसी भी तरह के हमले से बचाना. चाहे वो आतंकवादी हों, केमिकल या बायोलॉजिकल हमला हो, या कोई और आफत, जिसकी अभी कल्पना नहीं की गई है.
PDG के बनने से पहले भी संसद की सुरक्षा में CRPF अग्रणी भूमिका में थी, फिर PDG की ज़रूरत क्यों पड़ी? जवाब है - 13 दिसंबर 2001 का आतंकवादी हमला. इस रोज़ लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के पांच आतंकवादी एक सफेद एम्बेसडर गाड़ी लेकर संसद भवन परिसर में घुस गए थे. इस गाड़ी पर लाल बत्ती लगी थी और शीशे पर होम मिनिस्ट्री और संसद का स्टीकर लगा था. जब ये गाड़ी तय जगह पर रुकी नहीं और गेट नंबर 12 से अंदर आने लगी, तब पार्लियामेंट वॉच एंड वार्ड का ध्यान इसपर गया. हड़बड़ी में इसने उप राष्ट्रपति कृष्ण कांत की गाड़ी को टक्कर मार दी. पार्लियामेंट वॉच एंड वॉर्ड के जेपी यादव ने वॉकी टॉकी पर अलर्ट जारी किया, लेकिन आतंकवादियों ने उन्हें पॉइंट ब्लैंक रेंज पर गोली मार दी. इसी तरह CRPF की कॉन्सटेबल कमलेश कुमारी ने गाड़ी को रोकने की कोशिश की, उनपर भी गोलियों की बौछार हो गई. जेपी यादव के भेजे अलर्ट के चलते ही पूरे संसद भवन के दरवाज़े तुरंत बंद किए गए और CRPF के जवानों ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें सारे आतंकवादी अंततः मारे गए. आतंकवादियों के दो मकसद साफ नज़र आ रहे थे - या तो प्रधानमंत्री वाले गेट नं 5 से घुसना या फिर मेन एंट्रेस से दाखिल होना. एक आतंकवादी मुख्य द्वार तक पहुंच ही गया था, जहां उसकी सुसाइड वेस्ट में धमाका हुआ. एम्बेसडर में कम से कम 30 किलो विस्फोटक था. माने ये एक सुसाइड अटैक होने वाला था. लेकिन संभवतः उपराष्ट्रपति के काफिले की गाड़ियों से टक्कर के चलते बम की वायरिंग लूज़ हो गई और उसे दागा नहीं जा सका. जब ये सब हो रहा था, तब 200 से अधिक सांसद, मंत्री, स्टाफ और मीडिया क्रू संसद भवन के अंदर मौजूद थे. लेकिन किसी पर आंच नहीं आई.
हमले में एक CRPF कॉन्सटेबल, दिल्ली पुलिस के पांच जवान, पार्लियामेंट वॉच एंड वॉर्ड के दो अधिकारी और एक गार्डनर की मृत्यु हुई थी. हमले के बाद इलाके में सेना तैनात कर दी गई थी, जिसने पूरे इलाके की डीप स्क्रीनिंग की थी.
इस हमले के बाद शुरू हुई ब्रेन स्टॉर्मिंग, कि इतनी सारी एजेंसियां हैं - CRPF, ITBP, NSG, दिल्ली पुलिस आदि, तब भी ये सब कैसे हो गया. अब तक व्यवस्था ये थी कि CRPF की दिल्ली में तैनात टुकड़ियों और दिल्ली पुलिस के जवानों का एक पूल बनाया जाता था, जिसे संसद की सुरक्षा का ज़िम्मा दिया जाता था. 2001 के हमले के बाद CRPF मुख्यालय की तरफ से प्रस्ताव दिया गया, कि एक डेडिकेटेड एजेंसी होनी चाहिए, जो सिर्फ संसद की सुरक्षा का काम देखे. ताकि कमांड एंड कंट्रोल में कोई अड़चन न आए. इसी विचार के तहत पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप माने PDG की रेज़िंग हुई. PDG में CRPF के वही जवान होते हैं, जो कमांडो कोर्स पूरा कर चुके होते हैं. फोर्स में यंग जवान रखे जाते हैं, जो 4 साल का टेन्योर पूरा करने के बाद वापस पेरेंट बटालियन में लौट जाते हैं. PDG के पास क्लोज़ कॉम्बैट के लिए हथियार और वाहन होते हैं.
बाकी फोर्सेज़ की ही तरह PDG के पास भी हथियारबंद कॉलम्स के अलावा अपने कम्यूनिकेशन एक्सपर्ट, क्विक रिएक्शन टीम्स और मेडिकल टीम्स होती हैं. सरकार ने 2012 में PDG की रेज़िंग के लिए अप्रूवल दिया था और 2014 की जुलाई में, जब मोदी सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया, उससे ठीक पहले PDG ने आधिकारिक रूप से संसद भवन का चार्ज अपने पास लिया था. वैसे PDG ये चार्ज लेने से कुछ पहले से ही वहां तैनात हो गई थी.
3.पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विसPDG अगर संसद की सिक्योरिटी का हार्डवेयर है, तो पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस, इसका सॉफ्टवेयर है. लोकसभा और राज्यसभा, दोनों के पास अपनी अपनी सिक्योरिटी सर्विस होती है, लेकिन इन दोनों का काम एक ही होता है. इसका इतिहास बड़ा दिलचस्प है. संसद भवन, अंग्रेज़ों के ज़माने में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली थी. 8 अप्रैल 1929 को क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इसमें बम चलाए. ये इतिहास में दर्ज है, कि ये बम चेतावनी के लिए थे, इन्हें किसी की जान लेने के मकसद से नहीं बनाया गया था. क्रांतिकारी एक मैसेज देना चाहते थे. फिर भी, ये एक हमला तो था ही. इसलिए 3 सितंबर को तत्कालीन असेंबली अध्यक्ष वीजे पटेल ने एक कमेटी बनाई, जिसका काम था, असेंबली की सुरक्षा को लेकर अनुशंसाएं देना. इसी कमेटी ने असेंबली की सुरक्षा के लिए एक संगठन बनाने की सिफारिश की, जिसका नाम रखा गया वॉच एंड वॉर्ड. ये नाम आपको सुना-सुना लगा? इसी संगठन के जेपी यादव ने संसद पर हमले का वायरलेस अलर्ट भेजा था. जेपी यादव इस हमले में अपनी ड्यूटी करते हुए शहीद भी हुए थे. 2009 में वॉच एंड वॉर्ड को नया नाम मिला, पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस. जैसा कि हमने अभी-अभी बताया, दोनों सदनों के पास अपनी सर्विस हैं, जो उनके सचिवालय के तहत काम करती हैं.
- पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस का काम होता है संसद में एक्सेस को कंट्रोल करना, स्पीकर और सभापति, उप सभापति और सांसदों को सुरक्षा देना. पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस का काम इसलिए भी जटिल है, कि उन्हें आम लोगों और पत्रकारों के साथ-साथ ऐसे लोगों के बीच भी क्राउड कंट्रोल करना होता है, जो माननीय हैं, संवैधानिक पदों पर हैं. इसलिए सर्विस के स्टाफ से सख्त होने के साथ-साथ पोलाइट व्यवहार भी एक्सपेक्ट किया जाता है. जो मार्शल आपको नज़र आते हैं, वो इसी सर्विस से आते हैं. सर्विस का काम है संसद में प्रवेश पा रहे सांसदों की सही पहचान करना, सामान की फ्रिस्किंग करना. स्पीकर, राज्यसभा के सभापति, उपसभापति राष्ट्रपति आदि की सिक्योरिटी डीटेल के साथ लायज़निंग करना.
- मिसाल के लिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा SPG देखती है. तो जब वो संसद आते हैं, पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस, SPG के साथ काम करती है. राष्ट्रपति के अंगरक्षक सेना से होते हैं, तब उनके साथ लाइज़निंग की जाती है. लाइज़निंग और कोऑर्डिनेशन में पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस का काफी एफर्ट लगता है, क्योंकि इन्हें पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप, दिल्ली पुलिस, NSG आदि से बराबर संपर्क रखना होता है. इसलिए भी, क्योंकि आम विज़िटर्स के साथ फॉरेन डिग्नीटरीज़ भी नियमित रूप से संसद आते हैं. और इन्हें एस्कॉर्ट करना सर्विस की ही ज़िम्मेदारी होती है.
- संसद परिसर में कई बार भारी वाहन आते हैं. मिसाल के लिए जब बजट छपकर आता था, तब ट्रक में कॉपी आती थी. या फिर जब राष्ट्रपति चुनाव आदि के लिए बैलेट बॉक्स आते हैं. कैंपस में इन गाड़ियों की चेकिंग और सिक्योरिटी भी पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस का ही काम है. अगर संसद में कभी आग या दूसरी आपदा आती है, तो सर्विस फर्स्ट रेस्पॉन्डर की भूमिका में आ जाती है.
संसद की सुरक्षा में लगी इन कुछ एजेंसियों पर हमने विस्तार से बात की. लेकिन ये जानें कि ढेर सारी और एजेंसियां होती हैं, जो इस काम में शामिल हैं. मसलन IB, जो इंटेलिजेंस गैदर करती है.
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