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ब्लैक बॉक्स में ऐसा क्या होता है जिससे क्रैश हुए विमान की एक-एक बात पता चल जाती है?

ब्लैक बॉक्स आकाश और पाताल में भी नष्ट नहीं होता

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ब्लैक बॉक्स में दो तरह के रिकॉर्डर होते हैं | पहला फोटो: इंडियाटुडे, दूसरा फाइल फोटो
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अभय शर्मा
16 जनवरी 2023 (Updated: 16 जनवरी 2023, 18:00 IST)
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नेपाल में रविवार, 15 जनवरी को क्रैश हुए विमान के 69 यात्रियों के शव मिल चुके हैं. प्लेन में 72 यात्री और क्रू मेंबर्स मौजूद थे. बाकी यात्रियों की तलाश के लिए रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है. इंडिया टुडे के मुताबिक क्रैश हुए विमान का ब्लैक बॉक्स मिल गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि अब प्लेन हादसे की सही वजह पता चल पाएगी. एक जांच कमेटी ब्लैक बॉक्स की पड़ताल करेगी.

क्या होता है ब्लैक-बॉक्स?

इसके नाम के साथ ब्लैक भले ही लगा हो, लेकिन यह बक्सा आम तौर पर नारंगी रंग का होता है. यह स्टील और टाइटेनियम से बनी एक रिकॉर्डिंग डिवाइस है. इसमें कई तरह के सिग्नल, बातचीत और तकनीकी डेटा रिकॉर्ड होते रहते हैं. इसमें दो तरह के रिकॉर्डर होते हैं. डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (DFDR)और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR).

कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) –

यह कॉकपिट में होने वाली, पायलट और उसके सहयोगियों के बीच की बातों को और कॉकपिट की अन्य आवाजों को रिकॉर्ड करता है. यह रेडियो में हो रही उन बातों को भी रिकॉर्ड करता है जो कॉकपिट और एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) के बीच होती हैं. एयर ट्रैफिक कंट्रोल मतलब ग्राउंड (नीचे ज़मीन) में वो स्टाफ जो फ्लाइट को उड़ाने में पायलट की मदद करता है और रेडियो के माध्यम से सदा पायलट के संपर्क में रहता है. इसमें टक्कर होने से पहले की दो घंटे की सारी वार्तालाप रिकॉर्ड रहती है.

डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (DFDR)-

डीएफडीएड विभिन्न उड़ान मापदंडों - जैसे गति, ऊंचाई, उर्ध्वाधर गति, ट्रैक आदि के साथ-साथ इंजन मापदंडों - जैसे ईंधन प्रवाह, ईजीटी, थ्रस्ट की जानकारी रखता है. इसके अलावा फ्लाइट कंट्रोल, दबाव, ईंधन आदि लगभग 90 प्रकार के आंकड़ों की 24 घंटों से अधिक की रिकॉर्डेड जानकारी भी डीएफडीआर में ही होती है.

ब्लैक-बॉक्स नष्ट क्यों नहीं होता?

इसका ऊपरी खोल मोटे स्टील, टाइटेनियम और हाई टेंपरेचर इंसुलेशन से बना होता है. यह इतना मजबूत होता है कि बड़ी से बड़ी टक्कर में भी यह जमीन, आसमान या समंदर की गहराइयों तक में सुरक्षित बचा रह रह सकता है.

यह सैकड़ों डिग्री तापमान झेल सकता है. खारे पानी में भी वर्षों बिना गले-सड़े कायम रह सकता है. बॉक्स के भीतर के उपकरण समुद्र की सैकड़ों फीट गहराई से भी सिग्ननल भेज सकते हैं. यह पानी में एक महीने तक सिग्नल भेज सकता है. यानी दुर्घटना के एक महीने तक की अवधि में इसे आसानी से ढूंढ निकाला जा सकता है. यह बीकन बैटरी से चलता है, जो पांच साल तक डिस्चार्ज नहीं होती.

ब्लैक बॉक्स से आगे क्या?

दुनिया भर के फ्लाइट टेक्निशियंस ब्लैक-बॉक्स का विकल्प ढूंढने में लगे हैं. कोशिश यह भी है कि ब्लैक बॉक्स की जगह सभी रिकॉर्डिंग रियल टाइम में सीधे ग्राउंड स्टेशन पर होती रहे. एयर-टू-ग्राउंड सिस्टम की मदद से समय रहते दुर्घटना भी टाली जा सकती है.

ब्लैक बॉक्स से निकलने वाले डेटा के विश्लेषण में हफ्ते दो हफ्ते लग जाते हैं, जबकि रियल टाइम रिकॉर्डिंग में यह काम जल्द से जल्द हो सकता है. हालांकि, दुनिया भर की वायुसेनाएं और एविएशन कंपनियां ऐसा करने से कतरा रही हैं, क्योंकि एयर-टू-ग्राउंड सिग्नल भी फूल-प्रूफ नहीं होता. अगर ऐन मौके पर सिग्नल में कोई दिक्कत आ जाती है, तो बड़ा डेटा गंवाने का खतरा बना रहेगा.

वीडियो: नेपाल विमान दुर्घटना में को पायलट अंजू की कहानी हिला देने वाली, 10 सेकंड बाद बन जातीं कैप्टन!

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