कहानी श्रवण राठौड़ की, जिन्होंने नदीम के साथ मिलकर रातों-रात हिंदी म्यूज़िक सीन बदल दिया था
जिन गुलशन कुमार ने स्टार बनाया, उन्हीं की मौत के इल्ज़ाम ने श्रवण राठौड़ का करियर बर्बाद कर दिया.
नदीम अभी किस फीलिंग से गुज़र रहे हैं, ये समझने के लिए आपको साइकॉलोजी एक्सपर्ट होने ज़रूरत नहीं है. 30 से ज़्यादा सालों तक म्यूज़िक कंपोज़िंग पार्टनर रहने के बाद अब वो फाइनली अलग हो चुके हैं.''मेरा शानु नहीं रहा. हमने पूरी लाइफ एक साथ देखी. हमने अच्छा-बुरा समय साथ देखा. हम कई मायनों में एक साथ बड़े हुए. हमारा संपर्क कभी नहीं टूटा. कोई भी दूरी हमें अलग नहीं कर सकती थी. मैं दुख से भरा हुआ हूं, जब मैं आपसे ये कहा रहा हूं कि मेरा दोस्त, मेरा साथी और इतने सालों तक मेरा पार्टनर रहने वाला श्रवण नहीं रहा. उसके जाने के बाद एक खालीपन महसूस रहा है. मैंने उसके बेटे से बात की, जिसका रो-रोकर बुरा हाल है. जब से श्रवण की तबीयत बिगड़ी थी, मैं लगातार उसके बेटे के साथ टच में था. श्रवण की पत्नी और उनके बेटे की तबीयत भी खराब है. वो लोग अभी भी अस्पताल में हैं. मैं इतना असहाय महसूस कर रहा हूं मैं इस मुश्किल वक्त में फिज़िकली उनके साथ नहीं हूं. ताकि मैं अपने दोस्त को आखिरी विदाई देने में उनकी मदद कर सकूं.''
अपनी जवानी के दिनों में नदीम सैफी (बाएं) अपने पार्टनर श्रवण राठौड़ के साथ.
# कौन थे श्रवण कुमार राठौड़ और वो म्यूज़िक फील्ड में कैसे आए? श्रवण कुमार राठौड़ का जन्म 13 नवंबर, 1954 को राजस्थान के सिरोही जिले में हुआ था. उनके पिता चतुर्भुज राठौड़ क्लासिकल सिंगर थे. उन्होंने बचपन से ही अपने तीनों बच्चों को म्यूज़िक की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी. श्रवण के दोनों भाई रूप कुमार राठौड़ और विनोद राठौड़ भी मशहूर सिंगर हैं. मगर श्रवण की दिलचस्पी गाने के साथ-साथ म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स में भी थी. वो भी अब्बा की तरह सितार, हार्मोनियम और तबला बजाते थे. अभी बच्चे थोड़े ही बड़े हुए थे कि चतुर्भुज राठौड़ बंबई शिफ्ट हो गए. वो वहां के एक संगीत संस्थान में नए सिंगर्स और कंपोज़र्स को ट्रेन करते थे. बताया जाता है कि कल्याण जी-आनंद जी वाली कंपोज़र जोड़ी के कल्याण जी वीरजी शाह भी चतुर्भुज राठौड़ के स्टूडेंट हुआ करते थे. पिता जी के साथ बच्चे भी बंबई आ गए थे. ये लोग संगीत का रियाज़ वगैरह करने के बाद शहर में घूमते. वहां से इन्हें काफी एक्सपोज़र मिलता. अलग-अलग तरह के लोगों से मुलाकात होती.
अपनी मुलाकात के बाद स्ट्रगल के दिनों में म्यूज़िक बनाते नदीम और श्रवण.
# नदीम और श्रवण की पहली मुलाकात कैसे हुई? श्रवण राठौड़ की कहानी नदीम सैफी के ज़िक्र के बिना पूरी नहीं हो सकती. 1972 में श्रवण के दोस्त हरिश बोपैया ने उन्हें एक कॉलेज फंक्शन में बुलाया. हरिश इस इवेंट में बतौर सिंगर परफॉर्म करने वाले थे. जब हरिश ने स्टेज पर गाना शुरू किया, तब श्रवण की नज़र कॉन्गो बजा रहे एक लड़के पर गई. बकौल श्रवण,
'वो लड़का जबरदस्त कॉन्गो बजा रहा था. और उसकी पर्सनैलिटी कमाल की थी.'
जब हरिश गाना गाकर स्टेज से नीचे उतरे तो श्रवण ने उनसे उस लड़के के बारे में पूछा. हरिश ने बताया कि उस लड़के का नाम नदीम है. वो भी कंपोज़र बनना चाहता है. इसके बाद उन्होंने नदीम और श्रवन को इंट्रोड्यूस करवाया. श्रवण ने नदीम से कहा कि कुछ गाकर सुनाओ. नदीम ने भगवान राम से जुड़ा भजन सुनाया. स्टीरियोटाइप ने श्रवण को सोचने पर मजबूर किया. उन्हें लगा कि मुस्लिम होकर ये लड़का भजन कैसे गा रहा!
नदीम-श्रवण के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपने करियर में 160 फिल्में की 260 फिल्में रिजेक्ट कर दीं.
जब श्रवण पूछ चुके थे, तो नदीम कैसे पीछे रहते. उन्होंने भी श्रवण को कुछ गाकर सुनाने के लिए कहा. श्रवण ने उन दिनों बॉलीवुड में हिट हो रहा एक कैबरे सॉन्ग सुनाया. अगली मुलाकात का वादा कर दोनों अपने-अपने घर चले गए. इस घटना के ठीक पांच दिन बाद हरिश श्रवण के घर आए. उन्होंने श्रवण को बताया कि नदीम उनसे मिलना चाहते हैं. हरिश और श्रवण, नदीम के घर चल दिए. श्रवण ने वहां जाकर देखा कि नदीम तो बड़ी अमीर फैमिली से आते हैं. काफी फैंसी घर था उनका. उनके घरवालों ने इन बच्चों का प्यार से वेलकम किया. खाना वगैरह खिलाया. इसके बाद नदीम ने श्रवण से कहा कि चलो साथ काम करते हैं. श्रवण मान गए. ये नदीम-श्रवण की ऐतिहासिक जोड़ी की शुरुआत थी. # नदीम-श्रवण ने 16 साल में 100 प्रोड्यूसरों से काम मांगा मगर किसी ने मौका नहीं दिया जब नदीम-श्रवण ने साथ काम करने का फैसला लिया, तब वो बचपना छोड़ प्रोफेशनल होना चाहते थे. उनके करियर का पहला प्रोजेक्ट था, भोजपुरी फिल्म 'दंगल'. ये फिल्म इन लड़कों को इसलिए मिली क्योंकि श्रवण के पिता चतुर्भुज राठौड़, 'दंगल' के प्रोड्यूसर बच्चूभाई शाह के दोस्त थे. सुजीत कुमार स्टारर ये इकलौती फिल्म रही, जिसमें मोहम्मद रफी ने नदीम-श्रवण के लिए गाया. उन्होंने इस फिल्म के लिए 'फूट गइल किस्मतिया' नाम का गाना गाया था. मगर ये फिल्म चर्चित हुई मन्ना डे के गाने 'काशी हिले, पटना हिले' की वजह से. 1973 में बनकर तैयार हुई 'दंगल' 1977 में जाकर रिलीज़ हो पाई. बात ये है 'दंगल' के म्यूज़िकली हिट होने के बावजूद, इन लड़कों का स्ट्रगल खत्म नहीं हुआ. बीच-बीच में छोटी मोटी फिल्मों में काम मिलता रहता. मगर उन्होंने पूरी फिल्म के लिए एल्बम तैयार करने का मौका कोई नहीं दे रहा था. क्योंकि इस दौर में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन और कल्याणजी- आनंदजी जैसे कंपोज़र्स अपने चरम पर थे. दंगल फिल्म का गाना 'काशी हिले पटना हिले' आप नीचे सुन सकते हैं-
1982 में आई फिल्म 'मैंने जीना सीख लिया' के लिए नदीम-श्रवण सोलो म्यूज़िक कंपोज़र थे. मगर ये फिल्म और इसके गाने दोनों ही नहीं चले. 1985 में नदीम-श्रवण ने 'स्टार 10' नाम का एल्बम निकाला. इस एल्बम के 10 गानों को मिथुन, जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर, डैनी, सचिन और सुलक्षना पंडित समेत 10 एक्टर्स ने अपनी आवाज़ दी थी. बताया जाता है कि नदीम-श्रवण को ये एल्बम दिलाने में मिथुन चक्रवर्ती ने बड़ी भूमिका निभाई थी. मगर तमाम कोशिशों के बावजूद फिल्म म्यूज़िक में नदीम-श्रवण को अच्छे मौके नहीं मिल रहे थे.
श्रवण अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि वो 1973 से 1989 के बीच काम मांगने के लिए कम से कम 100 प्रोड्यूसरों से मिले. मगर किसी ने उन्हें काम नहीं दिया. फिर आया साल 1989, जब चीज़ें बदलने लगीं. इस साल नदीम-श्रवण के म्यूज़िक वाली 'इलाका', 'हिसाब खून का' और 'लश्कर' जैसी फिल्में रिलीज़ हुईं. ये छोटी फिल्में सिनेमाघरों में कब लगीं और कब उतर गईं, किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई. मगर नदीम-श्रवण को पहले के मुकाबले, अब ठीक-ठाक काम मिलने लगा था.
नदीम-श्रवण की जोड़ी के नदीम सैफी को बहुत अक्खड़, बदमिजाज़ और मुंहफट माना जाता था. इंडस्ट्री में नदीम मुंह खोलकर फीस मांगते थे. क्योंकि उन्हें पता था कि उनका सक्सेस रेट देखकर उन्हें कोई प्रोड्यूसर मना नहीं कर सकता.
# जब गुलशन कुमार ने रातों-रात बदल दी नदीम-श्रवण की किस्मत 1988 में नदीम-श्रवण 'बाप नंबरी, बेटा दस नंबरी' फिल्म के लिए म्यूज़िक बना रहे थे. इस फिल्म का गाना 'पहली बार हुआ है' अनुराधा पौडवाल और मोहम्मद अजीज़ की आवाज़ में रिकॉर्ड हो रहा था. रिकॉर्डिंग के बाद जैसे ही वो गाना अनुराधा पौडवाल ने सुना, वो वहीं बैठकर रोने लगीं. वो इस गाने में नदीम-श्रवण के काम से बहुत प्रभावित हुई थीं. उन्होंने सुपर कैसेट्स कंपनी के मालिक गुलशन कुमार को फोन लगाया और नदीम-श्रवण के बारे में बताया. गुलशन कुमार उन दिनों दिल्ली में थे. वो अनुराधा की बात सुन दिल्ली से पहली फ्लाइट लेकर मुंबई पहुंच गए. वो नदीम-श्रवण से मिले. उन्हें अपने स्तर पर जांचा-परखा और अपनी कंपनी टी-सीरीज़ के लिए साइन कर लिया. सिर्फ नदीम-श्रवण ही नहीं, गुलशन कुमार ने उनके लिरिक्स राइटर समीर को भी साइन कर लिया था.
समीर बताते हैं कि फिल्म 'इलाका' पर उन्होंने पहली बार नदीम-श्रवण के साथ काम किया. फिल्ममेकर अजीज़ सेजवाल ने उन तीनों की मुलाकात करवाई थी. इसके बाद समीर ने नदीम-श्रवण के लिए तकरीबन एक्सक्लूज़िवली काम करना शुरू कर दिया था. खैर, नदीम-श्रवण ने 24 गाने कंपोज़ करके रखे थे. गुलशन कुमार इन गानों को एक नॉन-फिल्म एल्बम में रिलीज़ करना चाहते थे. 'चाहत' नाम के इस एल्बम से गुलशन कुमार सिंगर अनुराधा पौडवाल को प्रमोट करना चाहते थे. समीर का लिखा 'मैं दुनिया भुला दूंगा, तेरी चाहत में'- इस एल्बम का टाइटल ट्रैक था. वो गाना आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके सुनिए-
महेश भट्ट ने इस एल्बम के पहले तीन गाने सुने. उन्होंने गुलशन कुमार से कहा कि वो इन गानों के इर्द-गिर्द एक कहानी लिखने जा रहे हैं. इन गानों को उस फिल्म में रिलीज़ करना अच्छा आइडिया रहेगा. यहां से फिल्म 'आशिकी' का बीज पड़ा. मगर बीतते समय के साथ गुलशन कुमार को ये लगने लगा कि ये गाने नॉन-फिल्मी गज़ल टाइप के हैं. इन्हें फिल्म में रिलीज़ करना रिस्की सौदा होगा. साथ ही उन्हें फिल्म 'आशिकी' के लीड एक्टर्स का लुक भी अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए वो ये फिल्म बनाने का आइडिया ड्रॉप करना चाहते थे. मगर गुलशन कुमार को मनाने के लिए महेश भट्ट ने फिल्म के पोस्टर पर राहुल रॉय और अनु अग्रवाल का चेहरा कोट से ढंक दिया.
फिल्म 'आशिकी' के पोस्टर पर कोट से चेहरा ढंके राहुल रॉय और अनु अग्रवाल.
'आशिकी' रिलीज़ हुई और फिल्म के म्यूज़िक ने पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए. देशभर में इस फिल्म के एल्बम की दो करोड़ से ज़्यादा यूनिट्स बिकीं. ये हिंदी म्यूज़िक इतिहास का सबसे ज़्यादा बिकने वाला एल्बम बना. टी-सीरीज़ के कर्ता-धर्ता और गुलशन कुमार के बेटे भूषण कुमार की मानें, तो आज तक कोई भी एल्बम 'आशिकी' का रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया है. जब भी हिंदी फिल्म संगीत पर बात होगी, दो अलग-अलग दौर में बांटकर होगी. बिफोर 'आशिकी' और आफ्टर 'आशिकी'. # गुलशन कुमार के कल्त के इल्ज़ाम ने नदीम-श्रवण को बर्बाद कर दिया नदीम-श्रवण ने जो 24 गाने कंपोज़ किए थे, उसमें से 9 गाने 'आशिकी' में रिलीज़ किए. बाकी गानों को महेश भट्ट की ही दूसरी फिल्में 'दिल है कि मानता नहीं' और 'सड़क' में रिलीज़ किया गया. जिन नदीम-श्रवण को कोई फिल्म प्रोड्यूसर अपनी फिल्म नहीं दे रहा था, अब उनके घर के आगे प्रोड्यूसरों की लाइन लगने लगी. 'साजन' फिल्म के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी को साइन किया गया था. मगर फिल्म के प्रोड्यूसर सुधाकर बोकाड़े ने ऐन मौके पर वो फिल्म नदीम-श्रवण को दे दी. इनके अलावा 'फूल और कांटे', 'दीवाना', 'दिलवाले', 'राजा हिंदुस्तानी' और 'परदेस' जैसी फिल्मों ने नदीम-श्रवण को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के टॉप म्यूज़िक कंपोज़र्स की लिस्ट में शामिल कर दिया. उन दिनों जतिन-ललित, आनंद-मिलिंद और अनु मलिक जैसे कंपोजर्स भी उभर रहे थे. वो बड़ी फिल्मों में काम कर रहे थे. बड़े हिट्स दे रहे थे. मगर नदीम-श्रवण के लेवल का सक्सेस उन्हें कभी हासिल नहीं हुआ.
फिल्म 'आशिकी' के लिए मिले अपने पहले फिल्मफेयर अवॉर्ड के साथ नदीम-श्रवण. साथ में हैं माधुरी दीक्षित.
रिपोर्ट्स के मुताबिक नदीम-श्रवण एक फिल्म के लिए 40 से 60 लाख रुपए की फीस लेते थे. तब अनु मलिक को 15 से 20 लाख रुपए प्रति फिल्म मिलते थे. बताया जाता है नदीम-श्रवण ने अपने करियर में 160 से ज़्यादा फिल्मों में म्यूज़िक दिया, जिनमें से 150 फिल्मों में उनका संगीत सफल रहा. नदीम-श्रवण सबके साथ काम नहीं करते थे. वो खुद चुनते थे कि वो किस प्रोड्यूसर की फिल्म करेंगे. अपने एक इंटरव्यू में नदीम बताते हैं कि इस चक्कर में उन्होंने कम से कम 250 फिल्में ठुकराई हैं. जहां तक नदीम और श्रवण की जोड़ी का सवाल है, नदीम ज़्यादा मीडिया फ्रेंड्ली और मुंहफट थे. दूसरी तरफ श्रवण कम बोलने वाले और शांत स्वभाव के इंसान थे.
नदीम-श्रवण के हिट होने के बाद गुलशन कुमार ने उनके साथ काम करना बंद कर दिया था. गुलशन कुमार नए लोगों के साथ काम करना पसंद करते थे. मगर लोगों को लगा कि गुलशन कुमार और नदीम-श्रवण में कुछ खटपट हो गई है. फिल्म म्यूज़िक में मनमाफ़िक सफलता प्राप्त करने के बाद नदीम बतौर सिंगर एक नॉन-फिल्म एल्बम निकालना चाहते थे. उन्होंने इस बारे में गुलशन कुमार से बात की. गुलशन कुमार इस आइडिया के खिलाफ थे. मगर नदीम के साथ पुराने संबंध होने की वजह वो इसके लिए तैयार हो गए. 1997 में नदीम का एल्बम 'अजनबी' रिलीज़ हुआ. ये एल्बम बुरी तरह फ्लॉप हो गया. एल्बम पिटने के बाद खिसियाए नदीम ने कह दिया कि गुलशन कुमार ने उनका एल्बम ढंग से प्रमोट नहीं किया. इसलिए वो फ्लॉप हो गया. उनके इस बयान को ऐसे लिया गया कि गुलशन कुमार नदीम-श्रवण का करियर खराब करना चाहते हैं.
एक फंक्शन के दौरान नदीम और श्रवण के साथ उनके गॉडफादर गुलशन कुमार.
12 अगस्त, 1997 को मंदिर से लौट रहे गुलशन कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गई. म्यूज़िक इंडस्ट्री सन्नाटे में थी. तब नदीम अपनी पत्नी की प्रग्नेंसी संबंधी इलाज के लिए लंदन में थे. मुंबई पुलिस ने उन्हें गुलशन कुमार के कत्ल के मामले में प्राइम सस्पेक्ट माना. कहा गया कि गुलशन कुमार और नदीम की आपस में नहीं बनती थी. नदीम का गुलशन कुमार के बारे में दिया गया बयान, उनके खिलाफ सबूत के रूप में पेश किया जाने लगा. अभी ये सब चल ही रहा था कि लंदन में नदीम की पत्नी को मिसकैरेज हो गया. वो पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद इंडिया नहीं आए. # नदीम और श्रवण के बिगड़ते संबंध और अलगाव नदीम तो लंदन में थे. मगर ये चीज़ें उनके म्यूज़िक पार्टनर श्रवण राठौड़ को बहुत परेशान कर रही थीं. फिल्म इंडस्ट्री उनसे कन्नी काटने लगी थी. फिल्म प्रोड्यूसरों ने अपने कॉन्ट्रैक्ट तो कैंसिल नहीं किए. मगर कोई उनके सपोर्ट में भी खड़ा नहीं हुआ. वो अकेले पड़ गए. हालांकि बाद में नदीम को गुलशन कुमार के हत्या के आरोपों से लंदन के कोर्ट ने बरी कर दिया. नदीम लंदन में रहे और फोन-इंटरनेट की मदद से श्रवण के साथ मिलकर म्यूज़िक बनाते रहे. उन्होंने 'धड़कन' से जबरदस्त वापसी की. आगे भी उन्होंने 'राज', 'कसूर', 'दिल का रिश्ता', 'सिर्फ तुम' और 'ये दिल आशिकाना' जैसी फिल्मों में म्यूज़िक दिया. फिल्म 'धड़कन' का एक चर्चित गाना आप नीचे सुन सकते हैं, जिसकी कंपोजिशन नदीम-श्रवण ने गुलशन कुमार हत्याकांड से पहले ही पूर कर ली थी-
मगर श्रवण मुंबई में अकेले काम करके परेशान हो चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि नदीम इंडिया वापस आएंगे और दोनों फिर से मिलकर म्यूज़िक बनाएंगे. लंदन में कोर्ट से बरी कर दिए जाने के बाद एक मैग्ज़ीन में खबर छपी कि श्रवण, नदीम से सारे संबंध तोड़ना चाहते हैं. मगर प्रेशर की वजह से वो ऐसा नहीं कर पा रहे. इसके जवाब में श्रवण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और कहा कि ये सब बकवास बातें हैं. नदीम और श्रवण एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं. कुछ फॉरमैलिटीज़ बची हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद नदीम वापस इंडिया आएंगे. मगर नदीम इतने डरे हुए थे कि वो कभी इंडिया वापस नहीं आए. इस चीज़ ने श्रवण को तोड़ दिया. 2005 में आपसी सहमति से नदीम-श्रवण ने अलग होने का फैसला लिया.
नदीम दुबई में अपना परफ्यूम का बिज़नेस करने लगे. श्रवण इंडिया में अपने बच्चों को म्यूज़िक इंडस्ट्री के लिए तैयार करने लगे. साथ ही वो फिल्म प्रोडक्शन में भी बेबी स्टेप्स ले रहे थे. 2009 में नदीम और श्रवण ने तीन फिल्मों की डील साइन कर वापसी की. इस डील के तहत बनी पहली फिल्म थी 'डू नॉट डिस्टर्ब'. ये फिल्म और इसका म्यूज़िक दोनों पिट गए. नतीजतन ये डील कभी अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाई.
2013 में फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में नदीम कहते सुने जाते हैं-
नदीम की ओर से कही गई ये बड़ी बचकानी बात थी. क्योंकि श्रवण ने उन्हें कभी इस तरह से नहीं देखा. श्रवण ने मुख्यत: नदीम से अलग होने का फैसला इसलिए लिया क्योंकि वो चाहते थे कि नदीम इंडिया आएं. दोनों ने लंबे समय तक साथ काम किया था. मगर नदीम के लंदन जाने के बाद श्रवण की लाइफ मुश्किल हो गई थी. उन्हें लग रहा था कि एक दिन नदीम वापस इंडिया आएंगे और इंडस्ट्री में उन्हें फिर से उसी सम्मान के साथ देखा जाने लगेगा. जब श्रवण अकेले थे, जब उन्हें एक दोस्त की ज़रूरत थी. तब नदीम इंडिया नहीं आए. इस चीज़ ने श्रवण को बहुत दुखी किया.''इतने सालों में श्रवण बदल गया है. वो अपने बेटों को म्यूज़िक की फील्ड में भेजना चाहता था, इसलिए उसने मुझे कंपटीशन के तौर पर देखना शुरू कर दिया.''
बाद के दिनों में श्रवण राठौड़. श्रवण म्यूज़िक इंडस्ट्री में अपने बेटों को पुश दे रहे थे.
पिछले दिनों चर्चा चल रही थी कि नदीम और श्रवण एक वर्ल्ड टूर के साथ हिंदी फिल्म म्यूज़िक में धमाकेदार वापसी करने वाले हैं. मगर ये सब हो पाता, इससे पहले उनकी जोड़ी हमेशा के लिए टूट गई.