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लोग सब्ज़ियों से ज़्यादा अंडे खा रहे हैं, सर्वे में पता चल गया

Ministry of Statistics and Program Implementation के तहत एक संस्था है नैशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन यानी NSSO . NSSO , Monthly Per-capita Consumer Expenditure जारी करता है जिसका मतलब है एक महीने में एक व्यक्ति द्वारा किया गया खर्च.

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लोगों को खर्च करने की क्षमता बढ़ी है (फोटो-सोशल मीडिया)
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मानस राज
26 फ़रवरी 2024 (Published: 22:35 IST)
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आप खाने में क्या खाने वाले हैं ? क्या आपको भी सब्जियों से बेहतर अब अंडे लगने लगे हैं? अगर हां तो ये सिर्फ आपके साथ नहीं, पूरे देश में हो रहा है. अब आप सोचेंगे कि हमें कैसे पता चला कि लोग सब्जियां कम, अंडे-मछली जैसी चीजें ज्यादा खा रहे हैं. तो इसकी वजह है एक सर्वे. नाम है Household Consumption Expenditure Survey 2022-23. इसी सर्वे की रिपोर्ट में एक ट्रेंड सामने आया है कि लोग अब सब्जियों से ज्यादा अंडे-मछली खाने के लिए खर्च कर रहे हैं. और ये चीज निकलती है सर्वे में ही आई एक रिपोर्ट से जिसे Monthly Per-capita Consumer Expenditure यानी MPCE कहा जाता है. तो समझते हैं कि 
-MPCE रिपोर्ट क्या है?
-और आपके-हमारे खर्चे के बारे में क्या-क्या बताती है ये रिपोर्ट 

आप अपनी घरेलू ज़रूरत पर कितना खर्च करते हैं? माने खाने-पीने से लेकर और कपड़े, टीवी-फ्रिज, इलेक्ट्रॉनिक चीजें, एंटरटेनमेंट आदि पर. हर इंसान का खर्च करने का अलग पैटर्न होता है. कोई सेविंग्स ज्यादा करता है तो कोई शॉपिंग पर ज्यादा खर्च करता है. खर्चों का स्तर किस जगह कितना है? इतनी बड़ी आबादी वाले देश में ये पता कौन करता है ?इसे पता करती है Ministry of Statistics and Program Implementation. इसी मिनिस्ट्री के तहत एक संस्था है नैशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन यानी NSSO . NSSO ,  Monthly Per-capita Consumer Expenditure जारी करता है जिसका मतलब है एक महीने में एक व्यक्ति द्वारा किया गया खर्च.

MPCE बताता है कि एक  व्यक्ति, अपनी तमाम तरह की जरूरतों जैसे खाने, कपड़े, घूमने, सिनेमा देखने  या शौक पर एक महीने में  कितना खर्च करता है? ये एक तरह का सर्वे है जिससे परिवारों और उनकी स्थिति को समझने में मदद मिलती है.  ये सर्वे पूरे देश के शहरी और  ग्रामीण इलाकों से मिली प्राप्त जानकारी के आधार पर,  घरेलू स्तर पर होने वाले खर्चे के पैटर्न को दर्शाता है. ये आंकड़े महीनावार होते हैं. यानी एक महीने में कितना खर्चा किया गया, ये बताता है MPCE. MPCE के आंकड़े 11 साल बाद जारी किए गए हैं. हालांकि ये आँकड़े हर 5 साल पर जारी किये जाते हैं पर 2017-18  में ये रिपोर्ट पेश नहीं की गई. तो सबसे पहले जानते हैं कि ये रिपोर्ट पिछले बीस सालों में आए बदलाव के बारे में क्या बताती है? इस रिपोर्ट में मुख्य रूप लोगों के खर्च करने की तरीकों जैसे खाने, कपड़े आदि पर कितना खर्च कर रहे हैं? इस बारे में बताया गया है.  रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 में  ग्रामीण क्षेत्रों MPCE में तीन हजार सात सौ तिहत्तर रुपये रहा. साल 2011-12 में ये आंकड़ा चौदह सौ तीस रुपये था. इस तरह से ग्रामीण इलाकों में खर्च करने में लोगों की क्षमता में इजाफा हुआ है. वहीं शहरों में देखें तो साल 2011-12 में लोग दो हजार छह सौ तीस रुपये खर्च करते थे. ये भी साल 2022-23 में  छह हजार चार सौ उनसठ पर दर्ज किया गया. साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक खर्च का अंतर भी समय के साथ घटता जा रहा है. पर लोग किस चीज पर कितना खर्च कर रहे हैं, ये भी समझ लेते हैं.

पहले बात आपके खाने की 
आप जितना खर्च कर रहे हैं, उसमें अपने खाने को आप कितनी जगह देते हैं?  रिपोर्ट के आंकड़े इस बात की तसदीक करते हैं कि अगर आप खाने पर कम खर्च कर रहे हैं तो अन्य चीजें जैसे कपड़े, जूते, गाड़ियों पर ज्यादा खर्च करेंगे. और आंकड़े कहते हैं कि चाहे शहरी आबादी हो या ग्रामीण, दोनों ने खाने पर खर्च को बीते सालों में कम किया है. तो आंकड़े समझते हैं.  इन सभी आंकड़ों को देखने से पहले  एक बात समझना जरूरी है. MPCE के आंकड़े एक महीने में एक व्यक्ति द्वारा किए गए खर्चों को दर्शाते हैं. 
अब आंकड़े देखते है:
-शहरी इलाकों को देखें तो साल 2022-23 में उसका 39.17  प्रतिशत खाने पर खर्च किया गया है. जबकि 1999-2000  में ये आंकड़ा 48.06 प्रतिशत था. यानी शहरी आबादी अब खाने पर खर्च कम करती जा रही है.

-ग्रामीण इलाकों को देखें तो साल 1999-2000 में लोग अपने कुल खर्च का 59.46 प्रतिशत खाने पर खर्च करते थे पर साल 2022-23 आते-आते ये खर्च 46.38 प्रतिशत था.

-यहां यह भी बताया गया है कि लोग अनाज जैसे कि चावल, गेहूं के अलावा बेहतर पौष्टिक खाने के लिए कितना पैसा खर्च कर रहे हैं. इसके आंकड़े भी जान लेते हैं. 
: बात करें ग्रामीण इलाकों की तो वहां साल 1999-2000 में खाने पर  कुल खर्च का लगभग 22 प्रतिशत अनाज पर किया जाता था. साल 2022-23 में ये घटकर 4.91 प्रतिशत आ गया है. यानी करीब 17 प्रतिशत का डिकलाइन.

:वहीं शहरी लोग 1999-2000 में अपने कुल खाने के खर्च का 12 प्रतिशत अनाजों पर करते थे. 2022-23  में ये घटकर 3.64 प्रतिशत पर आ गया है.

यानी कुलजमा बात ये है कि चाहे ग्रामीण इलाके का व्यक्ति हो या शहरी इलाके का, उसने अपनी थाली में अनाज पर खर्चा कम कर दिया है. 
पर अनाज पर खर्चा कम हुआ तो कहीं तो बढ़ा होगा. ये भी डेटा दिया है MPCE की रिपोर्ट ने.

रिपोर्ट में अनाज के अलावा अंडे, मछली, मीट; फल और सब्जियों पर हुए खर्च को बताया गया है.

पहले बात ग्रामीण इलाकों की:
-ग्रामीण इलाके का व्यक्ति साल 1999-2000 में अंडे, मछली और मीट पर 3.32 प्रतिशत खर्च करता था. 2022-23 में ये बढ़कर 4.91 प्रतिशत हो गया. 
-सब्जियों के मामले में भी लोग 6.17 प्रतिशत खर्च करते थे जो अब घटकर 5.38 प्रतिशत पर आ गया है.

इन चीजों को एकसाथ देखें तो ग्रामीण इलाकों में MPCE के तहत इनका प्रतिशत 11.21 से बढ़कर 14 प्रतिशत पर आ गया है.

अब चलते हैं शहरों की ओर. शहरी व्यक्ति साल 1999-2000 में अंडे, मछली, मीट; फल और सब्जियों पर 10.68 प्रतिशत खर्च करता था. 2022-23 में ये आंकड़ा अब बढ़कर 11.18 प्रतिशत हो गया है. 
-अंडे, मछली और मीट पर साल 1999-2000 में व्यक्ति 3.13 प्रतिशत खर्च करता था. ये अब बढ़कर 3.57 प्रतिशत हो गया है. 
-सब्जियों के मामले में शहरी आबादी में एक अलग ट्रेंड देखने को मिला है. जो व्यक्ति साल 1999-2000 में 5.13 प्रतिशत सब्जियों पर खर्च करता था वो 2022-23 में 3.8 प्रतिशत हो गया है.

हमने इस रिपोर्ट में देखा कि किस तरह लोगों के खाने-पीने पर होने वाले खर्चे कम हुए हैं. अब ये खर्च कम हुए हैं तो जाहिर हैं व्यक्ति कहीं और खर्च कर रहा होगा. तो उन खर्चों को समझने के लिए जानते हैं रिपोर्ट से जुड़ी कुछ और बातें.

-ग्रामीण इलाकों में लोग 1999-2000 में लोग कुल खर्च का 1.93 प्रतिशत शिक्षा पर करते थे. 2022-23 में ये बढ़कर 3.30 प्रतिशत हो गया है. 
-1999-2000  में ग्रामीण व्यक्ति, अपने मनोरंजन के लिए मात्र 0.42 फीसद खर्च करते थे. 2022-23 में ये 1.09 प्रतिशत हो गया. 
-शहरी इलाकों में लोग 1999-2000 में कुल खर्च का 4.33 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करते थे. अब ये बढ़कर 5.78 प्रतिशत हो गया है. 
-मनोरंजन पर शहरी लोग अपने कुल खर्च का 1.16 प्रतिशत खर्च करते थे. साल 2022-23 में ये 1.58 प्रतिशत हो गया.

इस सर्वे में एक और रोचक बात सामने आई है. 
केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कई सारी समाज कल्याण की योजनाएं चलाती हैं. इनके जरिए लाभाथियों को कई सारी फ्री की चीज़े मिलती हैं. इसमें खाने के प्रोडक्ट्स है जैसे गेंहू, आटा, दाल, तेल. और इसके अलावा कई और प्रोडक्ट्स भी हैं जैसे लैपटॉप, टैबलेट, स्कूल यूनिफॉर्म, साइकिल. 
इन सब स्कीम्स के बारे में आपने भी सुना होगा.

अब इसमें रोचक बात क्या है? इसको ऐसे समझिए. अगर ये परिवार जिन्हे ये चीज़ फ्री में मिली हैं. अगर वो इसे खरीदने जाते तो स्वाभाविक सी बात है. कुछ खर्चा होता. सरकार ने उनका खर्चा बचाया और उन्हें ये चीजे फ्री में दी.

तो इस सर्वे में उनके महीने की खर्चे में इस फ्री में मिलने वाली चीजों का भी दाम जोड़ा और ये देखने को मिला कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी आय वर्ग के लोगों को फायदा हुआ है. 
अगर उदाहरण से समझें.

तो पता चलता है. कि जो ग्रामीण क्षेत्रों के सबसे कमजोर गरीब 5% लोग हैं. उनका महीने का प्रति व्यक्ति खर्च 1373 रुपये  है. लेकिन जब उनको मिलने वाली फ्री चीजों का दाम भी जोड़ा गया तो ये महीने का प्रति व्यक्ति खर्च बढ़कर 1441 हो गया. इसको इस तरीके से भी देखा जा सकता है. कि ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे गरीब 5% लोग हैं उनके ऊपर सरकारें हर महीने प्रति व्यक्ति 68 रुपए खर्च करती है. अगर पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की बात करें. तब भी ये बात सामने आती है कि सरकारी समाज कल्याण योजनाओं की वजह से प्रति व्यक्ति 87  रुपये की चीजें हर महीने प्राप्त हुई है.

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