दुनिया का सबसे खुशकिस्मत आदमी जो तीन बार फांसी के बावजूद जिंदा बच गया!
उस दिन जो हुआ, वो पहले कभी नहीं हुआ था. पूरी प्रक्रिया के पालन के बावजूद मुजरिम ज़िंदा खड़ा था. लीवर खींचा गया. लेकिन मुजरिम जैसे खड़ा था, वैसे ही खड़ा रहा. अपराध की ये एक हैरतंगेज़ कहानी है! जो शायद ही पहले सुनी हो.
कहानी शुरू होती है इंग्लैंड के डेवॉन नाम के शहर से. साल 1885, 23 फ़रवरी की सुबह. जेलर साहब अपनी घड़ी देख रहे हैं. और जल्लाद देख रहा है फ़ांसी के लीवर को. बग़ल में है, फ़ांसी का एक तख्ता, जिस पर खड़ा है एक छोटी हाइट वाला मुजरिम. हाथ पीछे बंधे हैं. मुजरिम ने चेहरे पर सफ़ेद नक़ाब पहना है. नक़ाब के अंदर कुछ दिखाई नहीं देता, लेकिन उम्मीद लॉजिक की मोहताज नहीं होती. मुजरिम का सर आसमान की तरफ़ है. तभी वो घड़ी आ जाती है. जेलर का एक इशारा और जल्लाद लीवर खींच देता है. फ़ांसी में आवाज़ नहीं होती (Capital Punishment). ज़्यादा कुछ बोला नहीं जाता. मौत चाहे ख़तरनाक मुजरिम की ही क्यों ना हो. मौत की इज्जत रखी जाती है. उस दिन भी कोई आवाज़ नहीं हुई. लेकिन आज वजह दूसरी है.
जेलर जल्लाद को देखता है और जल्लाद जेलर को. जो हुआ है, वो पहले कभी नहीं हुआ. पूरी प्रक्रिया के पालन के बावजूद मुजरिम ज़िंदा खड़ा है. लीवर खींचा गया. लेकिन मुजरिम जिन दो फट्टों पर खड़ा था. वो खुले ही नहीं. जेलर साहब आदेश देते हैं कि मुजरिम को फ़ांसी के तख़्त से हटा लिया जाए. इसके बाद मरम्मत करने वाले बुलाए जाते हैं. फट्टों की मरम्मत होती है. अब गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी. इसलिए जेलर साहब एक दूसरे क़ैदी को लेकर आने को कहते हैं. इस नए क़ैदी को फट्टों के ऊपर खड़ा किया जाता है. उसके हाथ दो लोगों ने पकड़े हुए थे. जल्लाद लीवर खींचता है. अबकी बार फट्टा खुलता है और क़ैदी नीचे लटक जाता है. उसे खींचकर ऊपर लाया जाता है. जेलर साहब संतुष्ट थे. (Crime story)
प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हुई. नक़ाब.. फंदा.. लीवर..लेकिन नतीजा एक बार फिर वही था. मुजरिम की प्रार्थनाओं में शायद असर था. क्योंकि फट्टा एक बार फिर नहीं खुला था. जेलर साहब जल्लाद से एक तीसरी कोशिश करने को कहते हैं. लेकिन इस कोशिश का भी कोई असर नहीं हुआ. मुजरिम की किस्मत में इस रोज़ मौत नहीं लिखी थी. जेलर साहब नौकरी की चिंता में एक और कोशिश को तैयार हो रहे थे कि तभी वहां खड़े मेडिकल अफसर से देखा ना गया. वो जेलर के पास आया. बोला,
“फ़ांसी देनी है तो आटे के बोरे मंगा लो. मैं अब और आपको इस इंसान की ज़िंदगी से खेलने नहीं दूंगा”
जेलर साहब ने तंग आकर फ़ांसी रोक दी. मुजरिम को वापस जेल में भेज दिया गया. जेल के तमाम क़ैदियों में ये बात फैल चुकी थी. सबके मन में एक ही सवाल था, क्या कोई जादू था जो फ़ांसी को रोक रहा था, क्या मुजरिम की क़िस्मत अच्छी थी. या वजह कुछ और थी?
हत्या किसने की?इस सवाल का जवाब जानने से पहले आपको इस घटना से 3 महीने पहले लेकर चलते हैं. 15 नवंबर, 1884 की तारीख़. मुजरिम तब मुजरिम नहीं था. उसका नाम था जॉन ली (john babbacombe lee). एक गरीब घर में पैदा हुआ जान ली नेवी में काम कर चुका था. वहां चोट लगने के बाद रिटायर हुआ और एक फ़ौजी कर्नल के घर नौकर का काम करने लगा. नौकरी यूं सब करते हैं, लेकिन सबको नौकर कहा नहीं जाता. जॉन ली वो नौकर था, जिससे नौकरों की तरह पेश आया जाता था. उस पर चोरी का इल्ज़ाम लगाकर उसे जेल भेज दिया गया. 6 महीने बाद उसकी रिहाई हुई. और तब एक नेकदिल औरत ने उसे अपने घर बाग़वानी का काम करने के लिए रख लिया.
इस औरत का नाम था, एमा कीज़. एमा एक अविवाहित किंतु अमीर महिला थी. उसका बड़ा सा घर था जिसमें वो अकेले रहती थी. 15 नवंबर, 1884 की रात एमा जल्दी सोने चली गई थी. सुबह हुई तो लोगों ने देखा, एमा की हत्या हो चुकी है. हत्या के सबूत छिपाने के लिए उसके घर को आग लगा दी गई थी. यूं तो एमा के घर में कई नौकर काम करते थे. जिनमें एक जॉन ली की सौतली बहन, एलिज़ाबेथ हैरिस भी थी. लेकिन उस रोज़ घर में सिर्फ़ एक नौकर था. जॉन ली की उम्र तब 20 वर्ष थी. हत्या के आरोप में उसे गिरफ़्तार कर लिया गया.
उस पर मुक़दमा चला. यूं जॉन ली के ख़िलाफ़ कोई पुख़्ता सबूत नहीं थे. फिर भी उसे दोषी माना गया. ज्यूरी ने 45 मिनट की सुनवाई के बाद उसे फ़ांसी की सजा सुना दी. केस पूरा हो गया, लेकिन इसमें कई पेंच थे. जैसा पहले बताया परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर जॉन ली को फ़ांसी की सजा सुनाई गई. इसके अलावा जिस शख़्स ने उसका केस लड़ा, उसके बारे में ये अफ़वाह भी थी कि उसका जॉन ली की सौतली बहन, एलिज़ाबेथ हैरिस के साथ प्रेम प्रसंग था. इतना ही नहीं, एलिज़ाबेथ हैरिस घटना के वक्त गर्भवती थी. जिस रोज़ हत्या हुई, उस रात की कहानी जॉन ली ने बाद में दो पुलिस वालों को सुनाई थी.
उसके अनुसार उस रात एमा कीज़ के सोने जाने के बाद घर में एक पार्टी हुई. जिसमें शहर का एक संभ्रांत व्यक्ति और उसकी प्रेमिका शामिल हुए थे. शोर सुनकर एमा कीज़ की नींद खुल गई. जिसके बाद तथाकथित संभ्रांत व्यक्ति और एमा कीज़ के बीच लड़ाई हुई. जिसके बाद उसने एमा कीज़ की कुल्हाड़ी से हत्या कर डाली. सबूतों पर पर्दा डालने के लिए घर को जला दिया गया. इस काम में जॉन ली ने भी मदद की थी. लेकिन वो संभ्रांत व्यक्ति कौन था, इसके बारे में उसने किसी को नहीं बताया. लेकिन कई लोगों का मानना था कि वो आदमी वही वकील था, जिसने उसका केस लड़ा था, और जो उसकी बहन का प्रेमी था.
तीन बार फांसी से कैसे बचा?सच जो भी रहा हो. अंत में हुआ ये कि जॉन ली को दोषी ठहराया गया और उसे फ़ांसी की सजा सुना दी गई. सजा सुनाने के बाद जज ने उससे पूछा, "तुम्हें कैसा महसूस हो रहा है". उसने जवाब दिया, "मैं बिलकुल शांत हूं क्योंकि मेरा ईश्वर जानता है कि मैं निर्दोष हूं"
यहां से अब अपन दुबारा एक बार चलते हैं फ़ांसी की तारीख़ पर. फ़ांसी की सुबह जॉन ली ने जेल के दो गार्ड्स को अपने पास बुलाया. और उन्हें बताया कि पिछली रात उसे एक सपना आया था. सपने में उसे दिखाई दिया कि वो फ़ांसी से बच गया है. इत्तेफ़ाक से ऐसा ही हुआ भी. तीन बार की कोशिश के बाद भी उसे फ़ांसी नहीं लग पाई. उसका केस सरकार के पास भेजा गया. गृह सचिव ने जब उसकी कहानी सुनी, उन्होंने उसकी सजा को उम्र क़ैद में बदल दिया. जॉन ली 22 साल तक जेल में रहा.
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1907 में जब बाहर निकला, तब तक वो एक छोटा मोटा सेलेब्रिटी बन चुका था. आम लोगों के लिए वो एक जादू था, और लॉजिकल सोच रखने वालों के लिए एक अनसुलझी पहेली. जॉन ली को फ़ांसी क्यों नहीं हुई. इस पर कई लोगों ने किताबें लिखीं. अपना-अपना लॉजिक दिया. उसे फ़ांसी देने वाले जेलर ने अपने संस्मरण में लिखा कि उस रोज बारिश बहुत हुई थी. जिसके कारण शायद लकड़ी फूल गई थी. इसलिए लीवर खींचने के बाद फट्टे आपस में अटक गए. हालांकि इस बात से इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि जब एक दूसरे क़ैदी के साथ परीक्षण किया गया, तब फट्टे कैसे खुल गए?
इस सवाल का एक मात्र जवाब, एर्नेस्ट बावेन रोलेंड्स नाम के एक लेखक ने अपनी किताब, लाइट ऑफ़ द लॉ में दिया है. जिसके अनुसार एक दूसरा क़ैदी फ़ांसी के तख्ते के नीचे छुपा हुआ था. जैसे ही फ़ांसी का लीवर खींचा जाता, वो एक लड़की डाल कर फट्टों को ब्लॉक कर देता था. दूसरी तरफ जब परीक्षण किया जाता, वो लकड़ी हटा लेता, जिससे लीवर ठीक काम करने लगता. इसके अलावा बाक़ी कई लोगों की राय ये है कि ऐसा होना महज़ इत्तेफ़ाक था. जो उपकरणों के ठीक काम ना करने की वजह से हुआ. असलियत जो भी रही हो, इतना सच है कि जॉन ली, तीन बार फ़ांसी लगाए जाने के बाद भी बच गया. (Weird history)
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जेल से रिहा होने के बाद उसने शादी की. दो बच्चे हुए. हालांकि अपनी पत्नी को छोड़कर वो एक नई प्रेमिका के साथ अमेरिका चला गया. आगे उसका क्या हुआ, ठीक ठीक पता नहीं है, लेकिन कई जगह ज़िक्र मिलता है कि वो 1945 तक अमेरिका में रहा. और वहीं उसकी मौत हो गई.
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