सेक्स पर हुआ सबसे विवादित एक्सपेरिमेंट, 10 लोग, 100 दिन और एक कमरे की नाव
इस एक्सपेरिमेंट के जरिए वैज्ञानिक सैंटियागो जीनोव्स एक बहुत पुराने सवाल का जवाब ढूंढना चाहते थे. सवाल ये कि इंसान हिंसा क्यों करता है? जवाब मिला, लेकिन ऐसा जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. क्या था ये एक्सपेरिमेंट, कैसे हुआ, और क्या रहा इसका रिजल्ट?
साल 1972 की बात है. अमेरिका से मेक्सिको जा रहा एक प्लेन हाईजैक कर लिया गया. हाईजैकर्स प्लेन को क्यूबा ले गए. उनकी मांग थी कि बैंक डकैती के आरोप में पकडे गए उनके साथियों को रिहा कर दिया जाए. और एक करोड़ रूपये फिरौती दी जाए. तभी वो प्लेन को छोड़ेंगे. प्लेन में बैठे 104 लोग अपनी जान की खैर मना रहे थे. लेकिन इसी प्लेन में बैठा एक वैज्ञानिक उसी समय कौतुहल से भरा हुआ था. इस घटना के ठीक एक साल बाद वही वैज्ञानिक एक बार फिर एक कैद जैसी हालत में था. हालांकि इस बार कैद उसने खुद ही बनाई थी. हाईजैक वाली घटना से उस वैज्ञानिक को एक आईडिया आया था. एक एक्सपेरिमेंट का. क्या हो अगर 10 लोगों को 100 दिनों तक समंदर के बीचों बीच छोड़ दिया जाए?
इस एक्सपेरिमेंट के जरिए वो एक बहुत पुराने सवाल का जवाब ढूंढना चाहता था. सवाल ये कि इंसान हिंसा क्यों करता है? जवाब मिला, लेकिन ऐसा जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. क्या था ये एक्सपेरिमेंट, कैसे हुआ, और क्या रहा रिजल्ट? सब तफ्सील से आपको बताएंगे.
इस कहानी की शुरुआत होती है एक दूसरी कहानी से. साल 1954. नोबल पुरस्कार विजेता ब्रिटिश लेखक, विलियम गोल्डिंग ने एक किताब लिखी. जो फेमस मतलब बहुत फेमस हुई. वो डायलॉग सुना होगा आपने. दुनिया बड़ी कुत्ती और मतलबी चीज है. तो समझिए बुद्धजीवी टाइप के लोग जब ऐसी बातें करते हैं. तो वो गोल्डिंग की ही किताब का रेफरेंस देते हैं. किताब का नाम - लार्ड ऑफ़ द फ्लाइज़.
कहानी कुछ यूं है. एक प्लेन क्रैश के बाद कुछ लड़के एक द्वीप पर फंस जाते हैं. एक लड़का खुद को ग्रुप का लीडर घोषित कर देता है. शुरुआत में वे लोग साथ मिलकर एक सिस्टम बनाने की कोशिश करते हैं. लेकिन जल्द ही उनमें लड़ाई हो जाती है. जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ते हैं. हिंसा बढ़ती जाती है. और कुछ लड़के मारे भी जाते हैं.
गोल्डिंग की कहानी एक उपन्यास थी. लेकिन चूंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लिखी गई थी. इसलिए इसे लगभग एक रूपक के तौर पर देखा जाता है.
दुनिया मतलबी है. लोग सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम करते हैं. ये बातें, आप लगभग रोज सुनते होंगे, और हो सकता है मानते भी होंगे. कई वैज्ञानिकों का तक मानना है कि इंसान मतलबी जीव है. वो पैदाइशी हिंसात्मक है. हिंसा उसके जीन में है. मीडिया में चलने वाली ख़बरें भी ऐसा ही आभास देती हैं. इतने क़त्ल, इतने रेप, इतने युद्ध. इंसान लगातार हिंसात्मक है. मतलबी है.
लेकिन क्या वाकई? अगर हां, तो क्यों?
मेक्सिको के वैज्ञानिक सैंटियागो जीनोव्स के मन में यही सवाल आया था. 1973 में उन्होंने एक परीक्षण करने का फैसला किया. जीनोव्स अपने समय में एंथ्रोपोलॉजी के जाने-माने विशेषज्ञ थे. बंदरों पर परीक्षण के दौरान उन्होंने पाया था कि हिंसा का एक गहन रिश्ता सेक्स के साथ है. एक दूसरे परीक्षण में उन्होंने पाया था कि अलग-अलग चूहों को एक जगह रख दिया जाए, तो वो आक्रामक हो जाते हैं. हिंसात्मक बिहेवियर पर जानवरों पर किए गए इन एक्सपेरिमेंट्स के बाद जीनोव्स ने इंसानों के साथ परीक्षण दोहराने का फैसला किया.
जीनोव्स ने एक नाव बनवाई. नाव चलाने का अनुभव उन्हें पहले से था. हजारों साल पहले मिस्र वासी जैसी नाव बनाते थे. जीनोव्स ऐसी ही एक नाव पर लम्बी नौका यात्रा कर चुके थे. वो यात्रा भी एक अन्य परीक्षण का हिस्सा थी. तब जीनोव्स ये पता करना चाहते थे कि पुराने लोग यात्रा कैसे करते थे.
बहरहाल, ताजा एक्सपेरिमेंट में जीनोव्स ने ऐसी नाव बनवाई, जिसमें 11 लोग रह सकते थे. कहने को ये नाव थी. हालांकि असलियत में बस एक राफ्ट था. बिना इंजन वाला. जिसमें रात को सोने के लिए एक कैबिन बना था. इस राफ्ट का नाम उन्होंने रखा -'एकैली'. इसके बाद हुई एक्सपेरिमेंट की शुरुआत.
एक्सपेरिमेंट के लिए जीनोव्स को अलग-अलग बैकग्राउंड के लोग चाहिए थे. उन्होंने एक विज्ञापन निकाला. जिसमें दुनियाभर से आवेदन आए. अंत में चुना गया 10 लोगों को. इसके बाद शुरू हुई यात्रा. 13 मई 1973 को एकैली ने अटलांटिक महासागर में बसे कैनेरी आइलैंड से मेक्सिको की तरफ यात्रा शुरू की.
नाव में जीनोव्स को मिलाकर कुल 11 लोग थे. खाने-पीने का इंतज़ाम था. एक टॉयलेट बना था. जो बाहर खुले में था. इसके अलावा बिजली आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुल मिलाकर कहें तो 12x7 मीटर की जगह पर 11 लोगों को 100 दिन तक रहना था. दिक्कत होनी ही थी. और यही जीनोव्स का प्लान भी था. वो लोगों का बिहेवियर स्टडी कर जानना चाहते थे कि इंसान हिंसा क्यों करता है. हालांकि इस एक्सपेरिमेंट को नाम उन्होंने 'पीस प्रोजेक्ट’ दिया था.
उनका कहना था कि वो दुनिया में शांति की कुंजी खोजना चाहते हैं. तो क्या जीनोव्स को शांति की कुंजी मिली. आगे जानते हैं कि आखिर नाव पर हुआ क्या?
जीनोव्स ने जिन लोगों को चुना था. उनमें चार लोग कुंवारे थे. इन्हें जानबूझकर चुना गया था. ताकि लोगों के बीच सेक्सुअल टेंशन पैदा हो. जैसा पहले बताया ये तो जीनोव्स मानकर ही चल रहे थे कि हिंसा के पीछे मुख्य कारण सेक्शुअल तनाव होता है. लोगों में तनाव पैदा हो. इसके लिए जीनोव्स ने कुछ और चीजें कीं. उन्होंने मुख्य जिम्मेदारी महिलाओं को दे दी. जबकि पुरुषों को हल्के काम दिए. जीनोव्स को लगा था कि महिलाओं को लीडर बनाने से पुरुष विरोध करेंगे. इसलिए नाव का कप्तान भी एक महिला को ही बनाया गया.
इसके बाद समंदर के बीचों-बीच शुरू हुआ बिग बॉस. अंतर बस ये था कि इस बिग बॉस में कैमरा नहीं था. इसके बावजूद मीडिया ने चटखारे लेने में कोई कोताही नहीं बरती. यात्रा की शुरुआत के चंद दिनों के भीतर ही नाव को लेकर अफवाहें फैलने लगीं. एक अखबार ने तो बड़े-बड़े शब्दों में लिख दिया- 'सेक्स राफ्ट'.
इधर राफ्ट पर जीनोव्स लगातार ये कोशिश कर रहे थे कि कोई विवाद पैदा हो. चीजें मुश्किल करने के लिए उन्होंने किताब पढ़ना बैन कर दिया था. यानी लोगों के पास समय गुजारने का कोई साधन नहीं था. ऐसे में जवान लोग सेक्स की तरफ देखते, लेकिन जीनोव्स ने प्राइवेसी की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ रखी थी. जैसा पहले बताया, सिर्फ एक कैबिन था, जिसमें सभी लोग साथ सोते थे. सेक्स को लेकर और टेंशन और गिल्ट पैदा हो, इसलिए जीनोव्स ने एक पादरी को भी इस ग्रुप में शामिल किया था. इसके अलावा मैरी नाम की महिला थी जिसकी कहानी अपने आप में काफी अनोखी थी.
मैरी एक रोज शिप में यात्रा कर रही थी. उसने अपनी दोस्त को बताया कि वो अपने पति से तलाक लेने की सोच रही थी. मैरी को पता नहीं था कि उसका पति ये बात सुन रहा था. जैसे ही पति ने ये बात सुनी, वो आगबबूला हो गया. बकौल मैरी, पति उसे जान से मारने पर उतारू था. आखिर में उसे जान बचाने के लिए शिप से पानी में कूदना पड़ा. बाद में जब उसे एक्सपेरिमेंट का विज्ञापन दिखा, तो पति से बचने के लिए वो यहां आ गई.
मैरी की तरह बाकी लोग भी अलग-अलग बैककग्राउंड से आए थे. कोई फायर फाइटर था. कोई वेटर. ये लोग भरी गर्मी में, बिना साधन समंदर में एक छोटी सी जगह पर रह रहे थे. जीनोव्स को उम्मीद थी, जल्द ही उनमें विवाद पैदा होगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कई दिनों तक. फिर एक रोज पता चला कि नाव एक तूफ़ान की तरफ बढ़ रही है. ऐसे में नाव की कप्तान ने फैसला किया कि वो, नाव को पास में तट तक ले जाएंगी.
जीनोव्स ने जैसे ही ये सुना वो नाराज हो गए. उन्हें लगा उनका एक्सपेरिमेंट फेल हो जाएगा. इसलिए उन्होंने कप्तान को बर्खास्त करते हुए नाव की कमान अपने हाथ में ले ली. हालांकि जल्द ही ये जिम्मेदारी उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होने लगी. बीच समंदर में उनकी नाव एक शिप से टकराते-टकराते बची. शिप देखते ही जीनोव्स के हाथ पांव फूल गए. तब शिप की पुरानी कप्तान ने संयम से काम लेते हुए नाव को सही दिशा में आगे बढ़ाया. यहां से नाव की इक्वेशन में एक बड़ा बदलाव हुआ.
जीनोव्स को लग रहा था, लोगों में आपस में संघर्ष पैदा होगा. लेकिन हुआ ये कि लोग इकठ्ठा होकर खुद जीनोव्स के खिलाफ हो गए. ‘लार्ड ऑफ़ द फ्लाइज़’ के लड़कों की कहानी के विपरीत, असलियत में लोगों को जब मुश्किल स्थिति में डाला गया, उन्होंने तमाम परेशानियों का सामना मिलकर किया. मिल बांटकर काम किया. और सेक्शुएल तनाव को भी टकराव तक पहुंचने नहीं दिया.
हालांकि एक चीज जरूर हुई. ये सब लोग जीनोव्स से परेशान हो गए. जो एकदम तानाशाह की तरह बर्ताव कर रहे थे. साल 2018 में इस घटना पर 'द राफ्ट' नाम की एक डाक्यूमेंट्री रिलीज हुई थी. एक्सपेरिमेंट में हिस्सा लेने वाले लोग इस डाक्यूमेंट्री में बताते हैं कि एक बार तो वो सब मिलकर जीनोव्स को मारने को तैयार हो गए थे. उन लोगों ने प्लान बनाया कि जीनोव्स को नाव से धक्का दे देंगे. हालांकि अंत में उन लोगों ने इस प्लान पर अमल न करने का फैसला किया.
जीनोव्स को इसके बाद अलग-थलग कर दिया गया. इसी बीच जीनोव्स को ये खबर भी मिली कि उनकी यूनिवर्सिटी ने इस विवादास्पद एक्स्पेरिमेंट से किनारा कर लिया है. अपने नोट्स में उन्होंने लिखा,
"इस नाव पर सिर्फ़ एक शख़्स ने आक्रामकता दिखाई है. और वो मैं खुद हूं".
आगे की यात्रा में जीनोव्स ने खुद को एक्स्पेरिमेंट से अलग कर लिया. उन्हें लग रहा था कि एक्सपेरिमेंट फेल हो गया. 101 दिन बाद जब राफ्ट मेक्सिको पहुंची. तब तक वो विषाद से गुजर रहे थे. जबकि बाकी लोग कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद अपने-अपने घर चले गए. उन्होंने कभी इस यात्रा को फेलियर की तरह नहीं देखा. उनके लिए ये एडवेंचर की तरह था. एक्सपेरिमेंट में हिस्सा लेने वाली एक महिला ने 2018 में ब्रिटिश अख़बार गार्डियन से कहा था,
“ये एक्सपेरिमेंट सक्सेसफुल था. अगर जीनोव्स ध्यान देते तो उन्हें पता चलता कि इस एक्सपेरिमेंट से एक महत्वपूर्ण बात पता चलती है. कैसे अजनबी लोग, मुश्किल परिस्थिति में भी रिश्ता बना लेते हैं. पता चलता है कि लोग मतभेदों को दूर कर सकते हैं. और यही हिंसा का हल है”
जीनोव्स को ये बात उस समय समझ नहीं आई. हालांकि बाद में उन्होंने हिंसा पर एक पॉलिसी पेपर लिखा. जिसे 1989 में UNESCO की General Conference में अडॉप्ट किया गया. आज भी ये UNESCO का मान्यता प्राप्त डॉक्यूमेंट है. जो कहता है,
"हिंसा इंसान के नेचर में है, ये बात अवैज्ञानिक है. जैसे हिंसा इंसान के दिमाग में पैदा होगी है, वैसे ही शांति की शुरुआत भी इंसानी दिमाग से होती है"
UNESCO ये बात मानता है. लेकिन इस इकलौते एक्सपेरिमेंट से हो सकता है, आप सहमत न हों. लेकिन जरा गौर करेंगे तो पाएंगे कि आम जिंदगी में एक इंसान को हजारों व्यक्ति मिलते हैं. इनमें से 99 % अनुभव अच्छे या कम से कम बुरे नहीं होते. अजनबी लोग भी अधिकतर अच्छा ही बिहेव करते हैं. कोई लिफ्ट रोक देता है. कोई रास्ता बता देता है. लेकिन इसके बावजूद हमारा दिमाग ये मानने के लिए कंडीशन कर दिया गया है कि लोग बुरे होते हैं. क्यूंकि एक बुरा अनुभव हजार अच्छे अनुभवों से ज्यादा ताकतवर होता है. ज्यादा देर तक याद रहता है. बाकी मीडिया तो है ही ये बताने के लिए लिए कि दुनिया की हर समस्या आपकी व्यक्तिगत समस्या है. जैसा की रॉकस्टर में ढींगरा कहता है , निगेटिव बिकता है. ये बात भी हम नहीं कह रहे हैं.
ये भी पढ़ें - तारीख़ एपिसोड 50: जब एक तस्वीर देखकर खुद को नहीं रोक पाए लोग
डच इतिहासकार रटगर ब्रेगमेन अपनी किताब ह्यूमन काइंड: अ होप फुल हिस्ट्री में एक दिलचस्प बात बताते हैं.
ब्रेगमेन लिखते हैं कि जब उन्होंने ‘लार्ड ऑफ़ द फ्लाइज़’ पढ़ी. उन्होंने ये जानने की कोशिश की कि क्या सच में कभी ऐसा हुआ कि कुछ लोग आइलैंड पर छूट गए हों. ब्रेगमेन को पता चला कि 1965 में ऐसा एक बार हुआ था. जिसमें 6 टीनेज लड़के प्रशांत महासागर के एक द्वीप पर फंस गए थे. इस केस में हालांकि वो लोग लड़े नहीं. बल्कि सालों तक उन्होंने साथ मिलकर खुद को जिन्दा रखा. तब तक, जब तक उन्हें बचा नहीं लिया गया. हालांकि ये कहानी ‘लार्ड ऑफ द फ्लाइज़’ की तरह फेमस नहीं हुई. न इसकी करोड़ों प्रतियां मिलीं.
वीडियो: तारीख: जंग में जब औरंगजेब का सामना एक पागल हाथी से हुआ