क्या होती है मेडिकल लापरवाही जिसके आरोप ने डॉ. अर्चना को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया?
डॉक्टर या हॉस्पिटल की लापरवाही पर मारपीट करने की बजाय अपना सकते हैं ये कानूनी तरीके.
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Medical Negligence. हिंदी में चिकित्सकीय लापरवाही. जब हम सुबह-सुबह अखबार के पन्ने उलटते हैं तो हमें अक्सर ऐसी खबरें दिख जाती हैं जिनमें चिकित्सकीय लापरवाही का आरोप लगाकर अस्पताल या डॉक्टर के खिलाफ प्रदर्शन करने की बात होती है. कई बार मसला हिंसक झड़प तक भी पहुंच जाता है. ऐसा ही एक मसला राजस्थान के दौसा जिले से आया. यहां 28 मार्च को एक गर्भवती महिला की एक प्राइवेट हॉस्पिटल में प्रसव के दौरान मौत हो गई. मौत के बाद जमकर हंगामा हुआ और प्रसव करवा रहीं डॉक्टर अर्चना शर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इसके बाद अगले दिन यानी 29 मार्च को डॉक्टर अर्चना शर्मा ने सुसाइड कर लिया.
एक डॉक्टर का आत्महत्या करना अपनेआप में खबर थी. लेकिन इस मामले को और बड़ा बनाया अर्चना शर्मा के सुसाइड नोट में लिखी एक बात ने. नोट में मृतक डॉक्टर ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि डॉक्टर्स को प्रताड़ित करना बंद करो. इसके बाद राजस्थान और देश के दूसरे इलाकों में डॉक्टर्स की ओर से प्रोटेस्ट हो रहा है. साथ ही चिकित्सकीय लापरवाही पर नए सिरे से बहस भी शुरू हो गई है.
डॉ. अर्चना गौतम सुसाइड केस में प्रोटेस्ट करते दिल्ली के रेजिडेंट डॉक्टर. (तस्वीर- PTI)
क्या होती है चिकित्सकीय लापरवाही? चिकित्सकीय लापरवाही अपने शाब्दिक अर्थ को परिभाषित करता है. चिकित्सकीय लापरवाही यानी किसी डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ द्वारा मरीज के इलाज या देखभाल में की गई लापरवाही, जिससे मरीज को नुकसान हो. हम इसे मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा मरीज के अनुचित या अकुशल उपचार के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं. जहां डॉक्टर, नर्स, सर्जन, फार्मासिस्ट या अन्य किसी मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा दिए गए उपचार से किसी प्रकार का नुकसान हुआ हो.
जैसे- - सही तरीके से दवा न देना - गलत या अनुचित तरीके से सर्जरी करना - सही चिकित्सकीय सलाह न देना - सर्जरी के बाद मरीज के शरीर में कोई बाहरी वस्तु, जैसे पट्टी, कैंची या सुई आदि छोड़ देना. कैसे तय होती है चिकित्सकीय लापरवाही? जब कोई व्यक्ति किसी अस्पताल या डॉक्टर के पास जाता है तो इस उम्मीद के साथ कि उसका सही तरीके से इलाज होगा. मरीज का इलाज किस तरीके से करना है, क्या प्रक्रिया होगी, कौन सी दवा देनी है या नहीं देनी है, ये सब तय करना डॉक्टर की ड्यूटी होती है. लेकिन अगर डॉक्टर अपनी ड्यूटी को सही तरीके से नहीं निभाता है तो इसे इलाज में लापरवाही माना जा सकता है. इस लापरवाही की वजह से बीमारी घातक साबित हो सकती है. गलत इलाज की वजह से होने वाले नुकसान के लिए मेडिकल प्रैक्टिशनर जिम्मेदार हो सकता है. इसे इस तरह से समझा जा सकता है-
1. क्या डॉक्टर, मरीज का इलाज करने में सक्षम है? यानी कि क्या डॉक्टर के पास उस मरीज का इलाज करने की प्रोफेशनल स्किल है? अगर ऐसा नहीं है और फिर भी डॉक्टर ने मरीज को भर्ती कर लिया है और इलाज कर रहा है तो फिर इसे चिकित्सकीय लापरवाही माना जाएगा.
2. क्या मरीज का इलाज बीमारी के अनुसार हुआ है या नहीं? मतलब ये कि कहीं मरीज को बीमारी कुछ और है और डॉक्टर उसको दवा किसी और बीमारी की दे रहे हैं. ऐसी स्थिति में भी डॉक्टर को इलाज में लापरवाही का दोषी माना जाएगा.
3. कौशल की कमी, जल्दीबाजी (समय बचाने के लिए शॉर्टकट लेना), फोकस की कमी, गलत जगह की गई सर्जरी, किसी अंदरूनी अंग को चोट, खून का अधिक बह जाना, गलत चिकित्सकीय सलाह, सफाई की कमी, मरीज के शरीर में कोई बाहरी वस्तु छोड़ देना ये सारी चीजें भी इलाज में लापरवाही के अंतर्गत आती हैं.
मरीज का इलाज करते डॉक्टर. (सांकेतिक तस्वीर- India today)
कानून क्या कहता है? गलती किसी से भी हो सकती है. कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय में स्किल्ड या एक्सपर्ट हो, वो भी गलती कर सकता है. लेकिन मेडिकल फील्ड में होने वाली गलती या लापरवाही किसी व्यक्ति के लिए जीवन और मृत्यु का मामला हो सकता है. इसकी वजह से मरीज को गंभीर समस्या हो सकती है या मौत भी हो सकती है. इसलिए इस लापरवाही को भारतीय कानून अपराध मानता है. ऐसे मामलों में डॉक्टर, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम या हेल्थ सेंटर के खिलाफ केस किया जा सकता है.
अगर इलाज में लापरवाही की वजह से मरीज की मौत हो जाती है तो IPC की धारा 304A के अंतर्गत केस किया जा सकता है. अगर कोर्ट डॉक्टर को दोषी पाता है तो दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा सुना सकता है. इसके अलावा चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में IPC की धारा 337 और 338 के अंतर्गत भी मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है. इसमें छह माह से लेकर 2 साल तक के कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है. कैसे दर्ज कराएं शिकायत? इलाज में लापरवाही होने पर सबसे पहले संबंधित अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को लिखित शिकायत कर सकते हैं. इस शिकायत की कॉपी CMO को दें. यदि इस शिकायत का कोई उत्तर नहीं प्राप्त होता है या फिर उत्तर से आप संतुष्ट नहीं हैं तो फिर आप अपने राज्य की स्टेट मेडिकल काउंसिल में शिकायत दर्ज करा सकते हैं. अगर आप यहां भी संतुष्ट नहीं होते हैं तो फिर इंडियन मेडिकल काउंसिल में शिकायत कर सकते हैं. अगर शिकायत आपराधिक किस्म की है तो पीड़ित द्वारा स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है तो उस पर क्रिमिनल और सिविल दोनों तरह की लायबिलिटी बनती है.
पीड़ित के पास आपराधिक (क्रिमिनल) और दीवानी (सिविल) केस दोनों का विकल्प होता है. इसके अलावा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत डॉक्टर के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट में भी मुकदमा किया जा सकता है. क्रिमिनल केस में दोषियों को जेल की सजा हो सकती है जबकि सिविल केस में पीड़ित नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजे का दावा कर सकता है. क्रिमिनल केस के मामले में अपराध के इरादे को साबित करना बहुत जरूरी होता है.
चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत स्टेट मेडिकल कौंसिल में की जा सकती है. (सांकेतिक तस्वीर- PTI)
कुछ चर्चित मामलों में कोर्ट के फैसलेकुणाल साहा बनाम AMRI हॉस्पिटल
1998 की बात है. अमेरिका की ओहायो यूनिवर्सिटी में रिसर्चर डॉ. कुणाल साहा एक शादी में शामिल होने के लिए अपनी पत्नी अनुराधा साहा के साथ कोलकाता आए थे. यात्रा के दौरान अनुराधा ने अपने शरीर पर कुछ चकत्ते देखे. उन्हें लगा कि ये एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है. वो कोलकाता के AMRI हॉस्पिटल गईं. वहां डॉक्टर सुकुमार मुखर्जी ने उन्हें दो दिन में दो बार 80 MG डेपोमेड्रोल की खुराक दी. जबकि इस दवा के भारतीय निर्माता इसे अधिकतम सप्ताह में एक बार 40-120 MG तक ही लेने की सलाह देते हैं.
डॉ. कुणाल साहा के मुताबिक उन्होंने डॉ. सुकुमार मुखर्जी को टोका तो उन्होंने कहा,
"मैं आपकी पत्नी की तरह रोज 100 मरीज देखता हूं. ये दवा मैजिक की तरह काम करती है. मुझ पर विश्वास करो."इसके बाद भी सुधार नहीं हुआ तो तीन दिन बाद अनुराधा को अस्पताल में एडमिट करा दिया गया. तीन दिन बाद उनकी तबीयत और बिगड़ गई. पूरे शरीर की त्वचा छिलने लगी. डॉक्टर्स की लापरवाही की वजह से उनको दवा के साइड इफेक्ट्स से होने वाली त्वचा की बीमारी हो गई. इसके बाद अनुराधा को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल ले जाया गया. जहां 28 मई 1998 को उनकी मृत्यु हो गई.
डॉ. कुणाल साहा ने अपनी पत्नी के इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए कोलकाता के AMRI हॉस्पिटल के खिलाफ स्टेट मेडिकल काउंसिल में शिकायत की. लेकिन वहां से डॉक्टर को क्लीन चिट मिल गई. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 24 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने AMRI हॉस्पिटल को आदेश दिया कि वो डॉ. कुणाल साहा को 6 करोड़ 8 लाख रुपए का मुआवजा 6 फीसदी सालाना ब्याज के साथ दे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,
"ऐसे डॉक्टरों, अस्पतालों, नर्सिंग होम और अन्य प्रतिष्ठानों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जो उन मरीजों के इलाज में लापरवाही करते हैं जो सम्मान के साथ बेहतर जीवन की उम्मीद में अपना सारा पैसा इनके पास रख आते हैं. मरीज की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि कैसी भी हो, वो सम्मान के साथ व्यवहार का अधिकार रखता है. इसलिए हम आशा और विश्वास करते हैं कि ये निर्णय उन डॉक्टरों, अस्पतालों, नर्सिंग होम और अन्य संबंधित प्रतिष्ठानों के लिए एक रिमाइंडर की तरह कार्य करेगा जो अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लेते हैं."वी. किशन राव बनाम निखिल सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल
साल 2010 के इस मामले में कोर्ट ने पाया कि अस्पताल, मरीज का इलाज टायफाइड के रोगी के रूप में कर रहा था. जबकि मरीज को मलेरिया था. दवाओं का कोई असर न होने के बावजूद ट्रीटमेंट जारी रहा तो मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाया गया जहां पता चला कि मरीज को मलेरिया है. तीन दिन बाद मरीज की मौत हो गई. कोर्ट ने अस्पताल को गलत ट्रीटमेंट का दोषी पाया और 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाया.
जसबीर कौर बनाम पंजाब राज्य
साल 1995 के इस मामले में एक नवजात शिशु अस्पताल में बिस्तर से गायब पाया गया था. खोजबीन शुरू हुई तो बच्चा खून से लथपथ और बाथरूम के वॉशबेसिन के पास पाया गया. जांच में पता चला कि बच्चे को एक बिल्ली उठा ले गई थी. परिवार कोर्ट गया. कोर्ट ने अस्पताल के कर्मचारियों को लापरवाही का जिम्मेदार माना और परिवार को मुआवजे का आदेश दिया.
कुसुम शर्मा बनाम बत्रा अस्पताल
साल 1990 के इस मामले में मरीज की मौत के बाद परिजनों ने डॉक्टर पर अनुभव व कौशल की कमी और ऑपरेशन के बारे में पूरी इन्फॉर्मेशन न देने का आरोप लगाया. परिजनों ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि ये छोटी सर्जरी होगी लेकिन ये छह घंटे तक चली. परिजनों ने चिकित्सकीय लापरवाही का मामला दर्ज कराते हुए मुआवजे की मांग की. इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर अक्सर ऐसी प्रक्रिया को अपनाते हैं जिसमें काफी जोखिम होता है. लेकिन वो ऐसा करता है क्योंकि उसे लगता है कि इसमें सफलता की संभावना है. अगर किसी डॉक्टर ने मरीज के इलाज के लिए अधिक जोखिम उठाया है और ये वांछित परिणाम नहीं आता है तो इसे चिकित्सकीय लापरवाही नहीं माना जा सकता.