अयोध्या में 'बाबरी विध्वंस' से पहले ही शुरू हो गया था 'मंदिर निर्माण', जब संतों और HC के बीच टकराव हो गया
9 जुलाई, 1992 को विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण शुरू किया. इसके बाद अयोध्या से लेकर संसद तक बवाल मच गया. 17 दिन चली कार सेवा के बीच केंद्र में नरसिम्हाराव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया गया.
जब अशोक सिंघल, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा सहित विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता गारा उठाकर शिलान्यास स्थल की ओर ले चले तो करीब चार हजार साधू और स्वयंसेवक गारा उठाने के लिए कतारबद्ध हो गए. 'जय श्रीराम' के घोष के साथ ये लोग तगाड़ी (तलसा) में गारा अपने सिर पर उठाकर चारों ओर डालने लगे. यह सब कुछ आधे घंटे तक चला और सुबह 11.30 बजे तक निर्माण का काम राम जन्मभूमि न्यास के बुलाए ठेकेदारों और करीब 50 मजदूरों के जिम्मे आ गया.
5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी. लेकिन 28 साल पहले ऊपर लिखा पूरा घटनाक्रम घटित हो चुका था. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के भी पांच महीने पहले. 9 जुलाई, 1992 को. ये पहल थी विश्व हिंदू परिषद की. जिसने न सिर्फ राम मंदिर आंदोलन को नया मोड़ दिया बल्कि देश की राजनीति का मिजाज़ ही बदल दिया.
विश्व हिंदू परिषद का राम मंदिर निर्माणइंडिया टुडे मैग्जीन के जुलाई, 1992 के अंक के मुताबिक, लगभग हफ्ते भर से ऐसी अफवाह थी कि 9 जुलाई को विश्व हिंदू परिषद की मंदिर निर्माण शुरू करने की योजना है. पर कोई ये नहीं समझ पाया था कि मंदिर के लिए 100 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े चबूतरे के निर्माण की योजना में एक झटके में अमल शुरू हो जाएगा. VHP ने जिस तरह से काम शुरू किया उसे गुपचुप कार्रवाई ही कहा जा सकता है. 8 जुलाई की रात विनय कटियार और उनके साथियों ने शिलान्यास स्थल में छतरी हटा दी तो अगली सुबह की कार्रवाई का भेद खुल गया.
तब 'विवादास्पद स्थल' कहे जाने वाले क्षेत्र के पास सर्वदेव अनुष्ठान करने के लिए महंत रामचंद्र परमहंस कुछ अन्य साधु-संतों और तीर्थयात्रियों के साथ कुछ 'कारसेवक' छोटे-छोटे कलशों में 'सरयू जल' लेकर आए. शिलान्यास स्थल के आसपास की जमीन पर जल छिड़ककर उसे पवित्र किया गया. शिलान्यास स्थल के छोटे चबूतरे पर निर्माण शुरू करने के अनुष्ठान के बतौर दीप जलाए गए तो शंख ध्वनि गूंज उठी.
ये सब उस जगह हो रहा था जिसे विवादित स्थल मानकर हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन के हिस्से को राज्य सरकार को अधिग्रहीत कर दिया था. यानी उस जगह पर किसी भी तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता था.
फिर कैसे बदली राजनीति?ये सब उन्हीं दिनों हो रहा था जब हर्षद मेहता स्कैम ने केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार की रातों की नींद हराम कर रखी थी. सरकार में वाणिज्य मंत्री पी चिदंबरम का कनेक्शन हर्षद मेहता से जुड़ने की खबरें आईं तो उनको इस्तीफा देना पड़ा. आरोप लगे थे कि चिदंबरम की कुछ फर्जी कंपनियों ने हर्षद मेहता की फर्म में इन्वेस्ट किया है.
दूसरी तरफ बीजेपी के भी दिन अच्छे नहीं चल रहे थे. संवाददाता दिलीप अवस्थी ने इंडिया टुडे मैग्जीन में लिखा कि ‘पिछले कुछ महीनों से भारतीय जनता पार्टी के हाथ से जमीन खिसकती नज़र आ रही थी. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उसे किसी टकराव के नाटकीय मुद्दे की सख्त जरूरत थी. साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पार्टी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को भी अपनी नाकामियां ढंकने के लिए किसी बहाने की तलाश थी.’
दोनों ही पार्टियों के लिए VHP का राम मंदिर निर्माण बचने का बढ़िया रास्ता था. जिसे दोनों पार्टियों ने भुनाया भी. बीजेपी के लिए तो राम मंदिर मुद्दा था ही. हर्षद मेहता स्कैम से ध्यान हटाने के लिए कांग्रेस की सरकार के लिए अच्छा मौका था. जब निर्माण कार्य शुरू हो गया तो मामला बढ़ता देख गृह मंत्री शंकर राव चव्हाण उच्चस्तरीय दल के साथ 12 जुलाई को अयोध्या का दौरा करने पड़ा.
चव्हाण वहां करीब 35 मिनट रुके. और निर्माणकार्य में जुटे करीब 10 हजार कारसेवकों की भीड़ 'जय श्रीराम' और 'मंदिर वहीं बनाएंगे' के नारे लगाते रहे. चव्हाण राम जन्मभूमि मंदिर वाले हिस्से में भी गए. वहां प्रसाद लिया और पुजारियों ने उन्हें रामनामी चादर भी पहनाई. राज्य में तब की कल्याण सिंह सरकार के मंत्री लाल जी टंडन उन्हें विवादास्पद ढांचे के चारों ओर घुमाते रहे. चव्हाण ने वहां साधु-संतो और महंतों से बातचीत की. लेकिन बाहर निकल बोले- 'मैं अभी इस मामले में कुछ नहीं बोलूंगा. पहले मुझे अपनी रिपोर्ट, कैबिनेट, संसद और राष्ट्रीय एकता परिषद के सामने रखनी है. वैसे यह मुद्दा तो अदालत का है.'
लेकिन इस पूरे मामले ने कांग्रेस को विश्व हिंदू परिषद, RSS और बीजेपी पर आरोप लगाने का मौका जरूर दे दिया. इधर, बीजेपी भी बाजी छोड़ना नहीं चाहती थी. चव्हाण के दौरे पर बीजेपी के तब के सांसद विनय कटियार ने कहा- "अच्छा हुआ कि उन्होंने अपनी आंखों से सब देख लिया. मुझे उम्मीद है कि इसे भाजपा सरकार के खिलाफ मामला नहीं बनाया जाएगा. "
लोकसभा में तब के विपक्ष के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने बयान दिया -
"हमारे विरोधी भले ही निर्माण से विचलित हैं पर इससे देश के करोड़ों लोगों में उत्साह भर गया है."
9 जुलाई, 1992 को शुरू हुई कारसेवा 26 जुलाई तक चली. लेकिन इन 17 दिनों में पूरे देश का माहौल गर्म हो गया. संसद से लेकर अयोध्या तक बवाल मचा हुआ था. वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब 'अयोध्या का चश्मदीद' में लिखते हैं कि 13 जुलाई को गृहमंत्री चव्हाण ने लोकसभा में बयान दिया. उन्होंने कहा-
"चल रहे निर्माण और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे की सुरक्षा के लिए किए गए इंतजामों को सीधे देखने के लिए मैंने 12 जुलाई, 1992 को अयोध्या का दौरा किया. सरसरी तौर पर मेरी राय बनी है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिग्रहीत जमीन पर निर्माण कार्य जारी रहने की इजाजत देकर अदालत के आदेश का उल्लंघन किया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का हमें इंतजार करना होगा."
इधर अयोध्या में जैसे-जैसे केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ रही थी वैसे-वैसे मंदिर निर्माण भी तेज हो रहा था. टकराव की स्थिति बढ़ती जा रही थी. 15 जुलाई, 1992 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर निर्माण फौरन रोकने का आदेश दिया. कोर्ट ने आदेश दिया कि दो दिन में राज्य सरकार जवाबी हलफनामा पेश करे. लेकिन अदालत के फैसले से साधु-संतों में रोष पैदा हो गया. उन्होंने तीखी प्रतिक्रियाएं दीं. और ये ऐलान कर दिया कि कारसेवा यानी मंदिर निर्माण नहीं रोका जाएगा.
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संसद में भी विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी नोकझोंक चल रही थी. बीजेपी ने ऐलान कर दिया कि 20 जुलाई को अयोध्या दिवस मनाया जाएगा. इस बीच विपक्ष ने नरसिंह राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया. हालांकि, तीन दिन तक प्रस्ताव पर चर्चा के बाद 17 जुलाई को राव ने अपनी सरकार बचा ली.
एक तरफ संसद तो दूसरी तरफ अयोध्या भी अखाड़ा बनी हुई थी. साधु-संत और हाईकोर्ट आमने-सामने थे. संत मंदिर निर्माण रोकने को तैयार नहीं थे. यहां तक कि हाईकोर्ट के स्टे लगाने के बाद निर्माण और तेज़ हो गया. हेमंत शर्मा की किताब के मुताबिक राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी ने गृह मंत्रालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा- 'अयोध्या मसले पर हाईकोर्ट का फैसला लागू कराने की इच्छाशक्ति राज्य सरकार में है ही नहीं.'
इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का भी बयान आया. उन्होंने कहा-
ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार आकस्मिक योजना के तहत ताकत के जरिए मंदिर निर्माण रोकने का फैसला कर चुकी है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुने बिना केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इकतरफा फैसला सुना दिया है.
ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह की सरकार को हटाने का मन बना लिया है. कल्याण सिंह का बयान इस बेचैनी को दर्शा भी रहा था. यहां गौर करने वाली बात ये थी कि अब राज्य सरकार जिसे चबूतरा निर्माण बता रही थी मुख्यमंत्री ने अपने बयान अब उसे 'मंदिर निर्माण' कहा था.
फिर 22 जुलाई, 1992 को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट ने अयोध्या के सभी मुद्दों को निपटाने के लिए एक बड़ी खंडपीठ के गठन की पेशकश की, लेकिन इस शर्त पर कि राज्य सरकार को अयोध्या में चल रहा निर्माण रोकना होगा.
संतों को मनाने का काम लगातार चल रहा था. माहौल बिगड़ता देख प्रधानमंत्री राव भी इस कवायद में जुट गए थे कि मंदिर निर्माण कैसे भी रोका जाए. 22 जुलाई, 1992 को राव ने बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं- लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और विजयाराजे सिंधिया से भी मुलाकात की. राव ने उनसे मंदिर निर्माण रुकवाने की अपील की.
भारी मान-मनौव्वल के बाद 24 जुलाई, 1992 को विश्व हिंदू परिषद ने निर्माण कार्य रोकने की बात मान ली. रणनीति में बदलाव के तहत मंदिर परिसर के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित शेषावतार (लक्ष्मण) मंदिर में कारसेवा करने का ऐलान किया. ये मंदिर राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत 2.77 एकड़ जमीन से बाहर था. जिसके अंदर किसी भी तरह के निर्माण पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई हुई थी. महंत नृत्यगोपालदास ने प्रधानमंत्री से मुलाकात करने के बाद कहा कि कारसेवा जारी रहेगी, पर जगह बदल सकती है. आखिरकार 26 जुलाई, 1992 को विवादास्पद स्थल पर मंदिर निर्माण रुक गया.
इस पूरे घटनाक्रम के चार महीने बाद बाबरी मस्ज़िद ढहा दी गई थी.
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