क्या शिवराज को साइडलाइन किया जा रहा? केंद्रीय मंत्रियों को लड़वाने के पीछे की पूरी कहानी
Madhya Pradesh Elections को समझने वाले इसे बीजेपी की मुश्किल होती लड़ाई के रूप में देख रहे हैं. केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव में उतारने के पीछे ये बड़ी रणनीति है...
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की चर्चा राष्ट्रीय मीडिया में जितनी सुस्त थी, अब बीजेपी के फैसले से उतनी ही गरम हो गई है. BJP ने मध्य प्रदेश चुनाव के लिए उम्मीदवारों की जो दूसरी लिस्ट जारी की है, उससे सबकी भौहें तन गईं. पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को चुनाव लड़ने भेज दिया है. इनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक, उदय प्रताप सिंह और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय हैं. खुद कैलाश विजयवर्गीय ने मीडिया के सामने कह दिया कि वे इस फैसले से आश्चर्यचकित हैं. अब वही हो रहा है जो होना था, माने सब बीजेपी के इस फैसले के अपने-अपने सियासी मायने निकाल रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी इस फैसले को आगामी चुनाव में बीजेपी की हार के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने दावा किया कि बीजेपी की डबल इंजन की सरकार डबल हार की ओर बढ़ रही है. कमलनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर लिखा,
"अपने को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा को जब आज ये दिन देखने पड़ रहे हैं कि उसको लड़वाने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं, तो फिर वोट देने वाले कहां से मिलेंगे. भाजपा आत्मविश्वास की कमी के संकटकाल से जूझ रही है. अबकी बार भाजपा अपने सबसे बड़े गढ़ में, सबसे बड़ी हार देखेगी."
बीजेपी राज्य की सत्ता में पिछले 20 सालों (2018 में हार के बाद 2020 के कुछ समय को छोड़कर) से है. पिछले विधानसभा चुनाव में करीबी मुकाबले में उसे हार मिली थी. लेकिन करीब 15 महीने बाद विधायकों के जोड़तोड़ से सरकार में वापस आ गई. अब इस चुनाव में बड़े नेताओं को उतारा जा रहा है. पांच बार से सांसद प्रहलाद पटेल जैसे ऐसे नेता भी हैं जो पहली बार अब विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.
दूसरी लिस्ट आने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने मीडिया के सामने कहा,
'मामा' फैक्टर काम नहीं कर रहा?"मैंने कहा था कि मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने परसों मुझे कुछ दिशा-निर्देश दिए. मैं असमंजस में था और घोषणा होने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गया. मेरा सौभाग्य है कि मुझे चुनावी राजनीति में भाग लेने का अवसर मिला और मैं पार्टी की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करूंगा."
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि जिन सांसदों को चुनाव में उतारा गया है, उन्हें पहले से जानकारी दी गई थी. लेकिन शिवराज सिंह चौहान को नहीं बताया गया था. मुख्यमंत्री के करीबी सूत्र ने अखबार को बताया कि वे आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा था कि कैलाश विजयवर्गीय लड़ सकते हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्रियों के बारे में जानकारी नहीं थी. सूत्र ने कहा कि अब वे भी नहीं जानते कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा.
मध्य प्रदेश की राजनीति को समझने वाले इसे बीजेपी की मुश्किल होती लड़ाई के रूप में देख रहे हैं. इंडिया टुडे मैगजीन के पत्रकार राहुल नरोन्हा कहते हैं कि पार्टी ने आउट ऑफ द बॉक्स जाकर सोचा है, जिसके लिए अमित शाह जाने जाते हैं. नरोन्हा के मुताबिक,
"ये कितना सफल होगा, ये तो परिणाम में ही पता चलेगा. इसके पीछे दो मकसद हैं. एक तो ये कि पार्टी का यूनाइटेड चेहरा दिखेगा, ये एंटी इन्कम्बेंसी को काउंटर करने के लिए किया जा रहा है. कि अगर शिवराज के नाम पर सत्ता विरोधी लहर है तो हमारे दूसरे लोग भी हैं. एक सवाल हवा में छोड़ दिया गया है कि अगर ये सब लड़ रहे हैं तो कोई भी मुख्यमंत्री हो सकता है."
नरोन्हा कहते हैं कि एंटी इन्कम्बेंसी को काटने के लिए बीजेपी अलग रणनीति बना रही है. उनके मुताबिक, जन आशीर्वाद यात्रा जो पूरी हुई, उसमें भी थीम सॉन्ग "मोदी मध्य प्रदेश के लिए, मध्य प्रदेश मोदी के लिए" था. इसमें भी शिवराज का नाम नहीं था. लेकिन पहले जब ऐसी यात्रा निकलती थी उसे शिवराज अकेले लीड करते थे. बीजेपी किसी एक व्यक्ति से फोकस हटाना चाहती है. लेकिन शीर्ष नेतृत्व ये भी जानता है कि शिवराज की लोकप्रियता आज भी है. इसलिए उनको साथ रखा भी जा रहा है लेकिन फोकस हटाते हुए.
ये पहली बार नहीं है, जब बीजेपी ने इस तरह की रणनीति अपनाई. थोड़ा इतिहास को पलटते हैं. साल 2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने तब विदिशा से सांसद शिवराज सिंह चौहान को चुनाव लड़वा दिया. वो भी तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ राघोगढ़ से. शिवराज चुनाव हार गए थे. उसी चुनाव में उमा भारती को भी दिल्ली से भेजा गया था. तब भारती केंद्र में कोयला मंत्री थीं. कांग्रेस के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी थी, इसलिए राज्य में बीजेपी की सरकार भी बन गई.
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इसी तरह 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने कई लोकसभा सांसदों को टिकट दिया था. इनमें केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी, निसिथ प्रमाणिक और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता जैसे नाम शामिल थे. पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ उतार दिया गया था. लेकिन बघेल चुनाव हार गए थे. इस साल त्रिपुरा चुनाव में भी केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक को राज्य भेजा गया था. भौमिक अभी धनपुर से विधायक हैं.
केंद्रीय नेताओं को क्यों लाया गया?मध्य प्रदेश सरकार के साथ काम कर रहे एक सूत्र ने दी लल्लनटॉप को बताया कि पार्टी की जन आशीर्वाद यात्रा इस बार फ्लॉप रही है. लोगों में उत्साह नहीं था. भाजपा ने सबकुछ कर लिया, योजनाएं लाकर देखा गया, लेकिन अंदरखाने बात यही है कि बीजेपी अभी बहुत कमजोर है. इसलिए बीजेपी ने इन लोगों को लाकर कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज करने का काम किया है.
सूत्र ने बताया,
"शिवराज को रिप्लेस करने का प्लान लंबे समय से है. शिवराज के रिप्लेसमेंट के लिए हमेशा जो संभावित नाम रहे हैं, वो नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद सिंह पटेल हैं. अगर चुनाव के बाद ऐसा कुछ होता है तो ये तैयार रहेंगे. ये एक बड़ा राजनीतिक स्टेप है लेकिन साफ है कि हताशा में लिया गया है."
नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से सांसद हैं. अभी उन्हें दिमनी विधानसभा से टिकट मिला है. ये सीट ग्वालियर-चंबर क्षेत्र में है. पिछले चुनाव में इस क्षेत्र में बीजेपी को बुरी हार मिली थी. ग्वालियर-चंबर क्षेत्र में कुल 34 सीटें आती हैं. बीजेपी 2013 के चुनाव में यहां 20 सीटें जीती थी. लेकिन 2018 में सिर्फ 7 सीट पर सिमट गई. इसी तरह, प्रहलाद पटेल का भी महाकौशल, बुंदेलखंड और बघेलखंड क्षेत्रों में अच्छी पकड़ है. केंद्र में भी उनके अच्छे संबंध हैं.
सतना से गणेश सिंह लगातार चार बार से सांसद हैं. अब उन्हें सतना से विधानसभा लड़वाया जाएगा. विंध्य क्षेत्र की राजनीति पर नजर रखने वाले दैनिक भास्कर के समाचार संपादक भारत भूषण श्रीवास्तव बताते हैं कि सतना में बीजेपी के 3 दावेदार थे - पहले रत्नाकर चतुर्वेदी उर्फ शिवा, दूसरे पूर्व जिला अध्यक्ष नरेंद्र त्रिपाठी और तीसरे शंकरलाल तिवारी. शंकरलाल तीन बार विधायक रह चुके थे. पिछली बार कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा से हार गए थे. भारत भूषण के मुताबिक, शंकरलाल की उम्र ज्यादा है इसलिए भी शायद इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया है. रत्नाकर चतुर्वेदी ने लिस्ट आने के बाद ही पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी.
सूत्र के मुताबिक, जितने भी बड़े नेताओं को टिकट दिया गया है, उनका होल्ड अपने क्षेत्र में कई सीटों पर है. लेकिन ये फैसला कैसा होगा, कहा नहीं जा सकता, क्योंकि उन्हें अपना भी चुनाव लड़ना है. बीते दिनों कई नेता पार्टी छोड़कर गए. इसलिए बीजेपी अपना आखिरी दांव खेल रही है.
हालांकि राहुल नरोन्हा मानते हैं कि अगर आप बड़े लीडर को चुनाव लड़ाते हो तो उसका आसपास की सीटों पर प्रभाव पड़ता है. जैसे इंदौर-1 से कैलाश विजयवर्गीय लड़ेंगे, तो इंदौर शहर की सभी सीटों पर उसका प्रभाव पड़ेगा. वे अपनी चुनावी रणनीति के लिए जाने जाते हैं. इसी तरह नरेंद्र सिंह तोमर के लड़ने से ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में पार्टी की हालत सुधर सकती है.
क्या शिवराज के बिना लड़ना संभव?शिवराज सिंह चौहान पिछले 18 सालों (कुछ महीनों को छोड़कर) से राज्य के मुख्यमंत्री हैं. मध्य प्रदेश में "बीजेपी का मतलब शिवराज" कहा जाने लगा. लेकिन बीजेपी की राजनीति देख रहे एक्सपर्ट मानते हैं कि पिछले चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी के भीतर उन्हें डाउनप्ले किया गया.
वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी मानते हैं कि आज की तारीख में बीजेपी के पास शिवराज सिंह चौहान से अच्छा नेता मध्य प्रदेश में नहीं है. दीपक के मुताबिक,
"शिवराज ने खुद का एक वोट बैंक बनाया है जो गरीबों और महिलाओं का है. ये साधारण बात नहीं है. इसलिए शिवराज को बीजेपी ने कभी हटाने की कोशिश नहीं की. अभी बीजेपी कन्फ्यूजिंग सिग्नल दे रही है. ऐसे में बीजेपी के वोटर कन्फ्यूज होंगे."
मध्य प्रदेश के एक और पत्रकार प्रभु पटेरिया कहते हैं कि 13 सितंबर को जब केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई थी, उसमें शिवराज सिंह चौहान भी थे. इसलिए कुछ न कुछ उनके कान में गया ही होगा. पटेरिया मानते हैं कि शिवराज को ये जरूर पता है कि अगर बीजेपी चुनाव जीतती है तो उनका सीएम बनना 100 फीसदी गारंटी वाला नहीं है. इस बार चुनाव बाद ही ये तय हो पाएगा कि अगले मुख्यमंत्री कौन होंगे.
दीपक तिवारी के मुताबिक, बीजेपी ने इस तरह का फैसला लेकर पैनिक जैसा सिग्नल दिया है. हालांकि इससे ज्यादा कुछ बड़ा अंतर नहीं होगा. क्योंकि बीजेपी पूरा कैंपेन अब भी शिवराज और नरेंद्र मोदी की फोटो लगाकर कर रही है.
बहरहाल, जिस एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर का जिक्र हो रहा है उसकी असल कहानी तीन महीने बाद ही सामने आएगी. जब चुनाव के नतीजे आएंगे.
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