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बिहार में चुनाव जीतना है तो गठबंधन जरूरी या मजबूरी? आंकड़ों में समझ लीजिए

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सीएम बने हुए हैं. लेकिन इस बार गठबंधन NDA का है. भले RJD सत्ता में नहीं है, पर महागठबंधन बना हुआ है नीतीश के बिना, कांग्रेस और लेफ्ट के साथ. जैसे-जैसे Loksabha Elections 2024 नजदीक आ रहे हैं, हर कोई अपने गुट को मजबूत करने में जुट गया है. अब सवाल उठता है कि बिहार में चुनाव जीतना है तो गठबंधन कितना अहम है?

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Nitish Kumar Tejashwi Yadav Narendra Modi
2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने अकेले लड़ा था. (तस्वीर साभार: ANI/इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
27 फ़रवरी 2024 (Updated: 20 मार्च 2024, 15:26 IST)
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लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के लिए देशभर में गठबंधनों का दौर चल रहा है. INDIA गठबंधन भी गिरते-पड़ते उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत कई राज्यों में गठबंधन पर बात बना चुकी है. इधर भाजपा (BJP) ने बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को अपने गठबंधन में शामिल कर अपनी मजबूती बढ़ा ली है. वहीं दूसरी तरफ बिहार में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) अपनी जन विश्वास यात्रा से इस चुनाव को साधने की कोशिश कर रहे हैं. तेजस्वी बिहार में INDIA गठबंधन के साथ अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

अपनी यात्रा के पहले तेजस्वी ने कहा कि नीतीश जब अकेले चुनाव लड़ते हैं तो उनकी जमानत जब्त हो जाती है. वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की पार्टी राजद एक भी सीट पर चुनाव नहीं जीत पाई थी. इस आर्टिकल में बात करेंगे कि बिहार में लोकसभा चुनावों में गठबंधन के आंकड़ें क्या कहते हैं?

सबसे पहले नजर डालते हैं बिहार में मौजूदा गठबंधन पर. नीतीश NDA में भाजपा के साथ है. उनके साथ चिराग पासवान भी है. दूसरी तरफ INDIA गठबंधन में राहुल गांधी के साथ खड़े हैं- तेजस्वी. तेजस्वी को लेफ्ट की पार्टियों का भी साथ है. मौजूदा हालात में जानकार यही बताते रहे हैं कि तेजस्वी के लिए भाजपा और नीतीश को भेदना मुश्किल जान पड़ता है. इस बात को पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े भी सपोर्ट करते हैं.

PM मोदी के साथ नीतीश कुमार. (फाइल फोटो: PTI)
2019 में कैसा रहा तेजस्वी का प्रदर्शन?

पिछले लोकसभा चुनाव में भी बिहार में गठबंधनों का कुछ ऐसा ही तानाबाना था. नीतीश भाजपा के साथ थे. NDA में BJP, JDU और LJP का गठजोड़ रहा. प्रदर्शन बढ़िया रहा. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें NDA के खाते में रहीं. 

भाजपा ने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें और इन सारी सीटों पर जीत गए. 24.06 फीसदी वोट शेयर्स के साथ पार्टी को कुल 96.1 लाख वोट मिले. नीतीश कुमार ने भी 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. उन्हें सिर्फ एक सीट पर हार मिली. 16 सीटों पर JDU के उम्मीदवार जीत गए. 89 लाख वोट के साथ पार्टी का वोट शेयर 22.26 फीसदी का रहा. लोजपा के लिए भी ये चुनाव सफल साबित हुई. पार्टी ने 6 सीटों पर अपने कैडिडेट्स उतारें और सभी 6 सीटें जीत गए. वोट शेयर 8.02 फीसदी रहा. लोजपा को कुल 32 लाख वोट मिले.

ये भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव की 'जन विश्वास यात्रा' का क्या असर होगा?

NDA का मुकाबला कर रही महागठबंधन को 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ खास हासिल नहीं हुआ. कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली. जबकि पार्टी ने 9 सीटोें पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. कांग्रेस को 7.85 फीसदी वोट शेयर के साथ 31.4 लाख वोट मिले. काग्रेस को किशनगंज की सीट से जीत मिली. इससे पहले 2014 में भी पार्टी को इसी सीट पर जीत मिली थी. वहीं राजद ने 2019 में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जीत एक पर भी नहीं मिली.

Nitish Kumar with Tejashwi Yadav
नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव. (फाइल फोटो: ANI)
2014 में माहौल अलग था

2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में दलों के गठबंधन के गणित को समझने के लिए एक साल पीछे यानी 2013 में चलना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और नीतीश कुमार बिहार के. बिहार में भाजपा और जदयू का गठबंधन था. भाजपा ने इस साल नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया. नीतीश इस फैसले से सहमत नहीं हुए और BJP से 17 सालों का पुराना नाता तोड़ा लिया. BJP के मंत्री बिहार सरकार से बर्खास्त कर दिए गए. हालांकि, विधानसभा में नीतीश को राजद का समर्थन मिला और उनकी सरकार बनी रही. 

नीतीश ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले ही दम दिखाने का फैसला किया. 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन नीतीश की पार्टी का इस चुनाव में दम निकल गया. 38 में से सिर्फ दो सीटों पर पार्टी को जीत मिली. माने लोकसभा के मैदान में नीतीश जब अकेले उतरे तो मात्र 2 सीटें मिलीं.

इस साल बिहार में लोकसभा का चुनाव मुख्य रूप से तीनतरफा रहा. नीतीश जिन्होंने अकेले चुनाव लड़ा. दूसरी तरफ कांग्रेस, राजद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठजोड़ रहा. फायदा कितना हुआ? कांग्रेस ने 12 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई. जीत मिली 2 पर. पार्टी को किशनगंज और सुपौल सीट पर सीट जीत मिली. राजद ने इस साल 27 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जीत मिली मात्र 4 पर. राजद के खाते में भागलपुर, बांका, अररिया और मधेपुरा की लोकसभा सीट आई. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कटिहार सीट पर जीत मिली.

वहीं भाजपा ने लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के साथ गठबंधन किया था. भाजपा ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 पर जीत हासिल की. इसी तरह लोजपा ने 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 6 पर जीत गए. रालोसपा के खाते में 3 सीटें आई थीं और उन्होंने तीनों पर जीत हासिल की.

Nitish Kumar with Upendra Kushwaha
उपेंद्र कुशवाहा के साथ नीतीश कुमार. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

इस लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ छोड़ना नीतीश के लिए नुकसानदेह रहा. उन्होंने पार्टी की हार का जिम्मा लिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनके इस फैसले की खूब चर्चा हुई. चर्चा इसलिए भी क्योंकि उन्होंने अपनी जगह महादलित समाज से आने वाले जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया. हालांकि, बाद में नीतीश ने मांझी के हाथ से सत्ता ले ली और फिर से खुद ही कुर्सी पर काबिज हो गए. इसके बाद मांझी ने अपनी ‘हम’ पार्टी बनाई. जो अभी नीतीश और भाजपा के साथ है.

इस साल राज्य में BJP का वोट शेयर 29.38 फीसदी और अकेले चुनाव लड़ने वाली जदयू का वोट शेयर 15.80 फीसदी रहा.

2009 में लड़ाई अलग थी

2009 के लोकसभा चुनाव के लिए लालू यादव की पार्टी राजद और लोजपा ने मिलकर चौथा मोर्चा बनाया था. लड़ाई में एक तरफ जदयू और भाजपा का NDA गठबंधन था तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी साथ थे.

एक नजर भाजपा और जदयू के बीच हुए सीट बंटवारे पर भी जाना चाहिए. NDA के सीट बंटवारे में इस साल बिहार में जदयू के खाते में 25 सीटें आई थीं. वहीं भाजपा ने 15 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा. जदयू को 25 में से 20 पर जीत मिली तो वहीं भाजपा को 15 में से 12 पर जीत मिली. कुल मिलाकर NDA ने इस साल राज्य में 32 सीटें अपने गठबंधन के नाम की.

चौथे मोर्चे में राजद को 4 सीटों पर जीत मिली और लोजपा को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई. 2014 में लोजपा जब BJP के साथ गई तब इन्हें 6 सीटों पर जीत मिली. वहीं 2019 में भी लोजपा BJP के साथ रही और 6 सीटों पर सफल रही.

Nitish Kumar with Ramvilash Paswan and Chirag Paswan
चिराग पासवान और रामविलास पासवान के साथ नीतीश कुमार. (फाइल फोटो: PTI)

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दो-दो सीटों पर जीत मिली.

2004 में RJD का बोलाबोला

2009, 2014 और 2019 की तुलना में 2004 के लोकसभा चुनाव में बिहार में राजद का बोलाबोला रहा. UPA गठबंधन बना. इस गठबंधन में राजद और कांग्रेस के साथ लोजपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और CPI(M) शामिल थे. इन सब दलों ने मिलकर बिहार में 29 सीटों पर जीत हासिल की.

राजद ने 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 पर जीत गए. 30.67 फीसदी का वोट शेयर रहा. लोजपा ने 8 उम्मीदवार उतारे जिसमें से 4 को जीत मिली. वोट शेयर 8.19 फीसदी रहा. कांग्रेस ने 4 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई. जीत मिली 3 पर. राज्य में पार्टी को वोट शेयर 4.49 फीसदी का रहा था. UPA के बाकी दोनों दलों ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत एक पर भी नहीं मिल पाई.

2004 में बिहार में UPA के सामने खड़ी थी NDA गठबंधन. लेकिन NDA की राह इतनी भी आसान नहीं रही. जदयू और भाजपा के गठजोड़ को 40 में से मात्र 11 सीटों पर जीत मिल पाई थी. जदयू और भाजपा के बीच 24 और 16 सीटों का बंटवारा हुआ था. जदयू को 24 में से 6 सीटों पर जीत मिली. पार्टी का वोट शेयर 22.36 फीसदी का रहा. वहीं भाजपा को 16 में से 5 सीटों पर जीत मिली. पार्टी का वोट शेयर 14.57 फीसदी का रहा.

ये भी पढ़ें- "धूर्त, ठग.." प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को क्या-क्या कह डाला?

1999 में 54 सीटों पर हुए थे लोकसभा चुनाव

1999 का लोकसभा चुनाव देश के लिए खास रहा. इस चुनाव में सोनिया गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी आमने-सामने थे. इससे पहले 1998 में बनी वाजपेयी की सरकार टिक नहीं पाई थी. लेकिन 1999 में बनी गैर-काग्रेसी सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. बिहार में तब 54 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए थे. क्योंकि तब बिहार और झारखंड एक साथ थे.

राज्य में NDA गठबंधन को जीत मिली. NDA ने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 41 सीटों पर NDA को जीत मिली. भाजपा ने बिहार में 29 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से 23 पर जीत मिली. भाजपा के सहयोगी दल जदयू ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इनमें से 18 पर जीत मिली.

दूसरी तरफ राजद और कांग्रेस का गठबंधन था. राजद ने 36 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई. 7 पर जीत मिली. कांग्रेस ने 16 सीटों पर अपने कैंडिडेट्स उतारे 4 पर जीत मिली.

BJP के साथ से क्या बदलता है?

2004 में जदयू और भाजपा दोनों के सितारे थोड़े कमजोर रहे. इसके अलावा 2009, 2014 और 2019 के चुनाव के आंकड़े देखें तो नीतीश ने 2024 के चुनाव के ठीक पहले यूं ही ‘पलटी’ नहीं मारी. इन तीन चुनावों में बिहार में जो भी दल भाजपा के साथ रहे उनके सितारे बुलंद रहे. 1999 में भी JDU और BJP का साथ रहा था. और JDU को इसका फायदा ही हुआ.

JDU Lok Sabha Election result
लोकसभा चुनावों में जदयू का प्रदर्शन

2009 और 2019 में नीतीश कुमार की जदयू जब भाजपा के साथ रही तो उन्हें काफी बेहतर परिणाम मिले. 2009 में JDU को 24 और 2019 में 16 सीटों पर जीत मिली.

Lojapa lok sabha election results
लोकसभा चुनाव में लोजपा का प्रदर्शन

लोजपा के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा है. 2014 और 2019 में लोजपा को भाजपा का साथ मिला और इनके सितारे बुलंद रहे. 2014 में तो उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने भाजपा के साथ 3 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी 3 सीटों पर जीत हासिल हुई.

कांग्रेस के साथ गठबंधन कितना सार्थक?
RJD and Congress Lok Sabha Election Result
लोकसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस का प्रदर्शन

1999, 2004, 2014 और 2019 में कांग्रेस और राजद का साथ रहा. 2004 के चुनाव को छोड़ दें तो राजद को कांग्रेस के साथ का कुछ खास फायदा नहीं हुआ. जानकार भी बता रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में भाजपा और जदयू का पलड़ा भारी है. हालांकि, तेजस्वी के साथ कांग्रेस भी अपना जोर लगा रही है.

वीडियो: नीतीश कुमार ने बार-बार पाला बदलने से उन्हें क्या नुकसान क्या फायदा मिला?

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