शायर होता है दूसरी दुनिया का इंसान. इस दुनिया में काफी कुछ मिसफिट सा. हमेशाखयालों की दुनिया में रहने वाला. कोई दुनिया की बात करता है, कोई जिंदगी की. कोईफिलॉसफी की तो कोई इश्क की... इश्क के शायरों का नाम जिस लिस्ट में लिखा जाए, येनाम उसमें ऊपर रखना. जनाब बशीर बद्र का. तो लल्लन सोच रहा है कि कुछ किस्सा करिश्माहो जाए. कुछ बेशकीमती गजलें साथ में मुफ्त रहें. बशीर की गजलों में वो खासियत है,जो हर आमो खास को पढ़ने-सुनने के लिए आकर्षित करती है. कान, जुबान और दिमाग के लिएसीधी आसान भाषा, दिल के लिए ढेर सारे इमोशन, महफिल को जमाने वाली लय और बंदिश और वोसब कुछ जो बिखरे हुए शब्दों को बटोर कर गजल बनाता है.सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा हम भीदरिया हैं हें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगासात साल की उम्र से गजलें लिख रहे हैं. इतना तजुर्बा उनको बता गया कि लोगों की जबानपर चढ़ने लायक लिखना बहुत जरूरी है. अगर साहित्य को बचाना है तो उर्दू-अरबी-फारसीको बेजा ठेल कर नहीं लगाना. इसका खयाल आया, तभी तो कहा"ग़ज़ल चांदनी की उंगलियों से फूल की पत्तियों पर शबनम की कहानियां लिखने का फ़नहै. और ये धूप की आग बनकर पत्थरों पर वक्त की दास्तान लिखती रहती है. ग़ज़ल में कोईलफ़्ज ग़ज़ल का वकार पाए बगैर शामिल नहीं हो सकता. आजकल हिन्दुस्तान मेंअरबी-फ़ारसी के वही लफ़्ज चलन-बाहर हो रहे हैं जो हमारे नए मिज़ाज का साथ नहीं देसके और जिसकी जगह दूसरी ज़बानों के अल्फ़ाज़ उर्दू बन रहे हैं."वो शाख़ है न फूल, अगर तितलियां न हों वो घर भी कोई घर है जहां बच्चियां न होंपलकों से आंसुओं की महक आनी चाहिए ख़ाली है आसमान अगर बदलियां न होंदुश्मन को भी ख़ुदा कभी ऐसा मकां न दे ताज़ा हवा की जिसमें कहीं खिड़कियां न होंमै पूछता हूं मेरी गली में वो आए क्यों जिस डाकिए के पास तेरी चिट्ठियां न होंबेहद मजाकिया आदमी हैं बशीर बद्र साहब. शायरी में तो हैये है, अपने साथ रहने वालोंकी महफिल में भी अपनी खुशनुमा आदतों के लिए जाने जाते हैं. शराब, सिगरेट का शौकफरमाते नहीं. खेमेबाजी, चुगली और लगाई बुझाई का हुनर भी नहीं है. मोहब्बत के शायरहैं, मोहब्बत बांटते हैं. टाइमपास का क्या जुगाड़ है उनका. मरहूम शायर निदा फाजलीउनकी आदतों पर कह गए हैं "जहां भी मिलते हैं, गजलें सुनाते हैं. ये बता कर कि शेरनए हैं."