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स्पेस में फंसा एस्ट्रोनॉट, लौटा तो देश ही नहीं बचा था!

आखिरी सोवियत नागरिक का क्या हश्र हुआ?

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साल 1991 में सोवियत संघ के विघटन के वक्त उनका एक अंतरिक्ष यात्री स्पेस में ही छूट गया था, जिसे आखिरी सोवियत नागरिक माना जाता है (सांकेतिक तस्वीर: getty)
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कमल
11 अगस्त 2023 (Updated: 9 अगस्त 2023, 13:58 IST)
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धरती से रॉकेट में बैठकर एक एस्ट्रोनॉट स्पेस स्टेशन तक जाता है. उसे पांच महीने तक अंतरिक्ष में रहना था. लेकिन इसी दौरान पता चलता है कि जिसे वो अपना देश कहता था, वो ख़त्म हो गया है. ऊपर से देखने में धरती वैसी ही दिखती थी. लेकिन एक पूरा देश नक़्शे से ग़ायब हो चुका था. और ये कोई आम देश नहीं था. ये देश लगभग 70 साल पहले एक विष्फोटक क्रांति के नतीजे में बना था. और आज जब वो टूटा तो फुस्स की आवाज़ भी नहीं हुई. सोवियत संघ नामक महाशक्ति बिखर गई लेकिन पीछे छूट गया उसका आख़िरी नागरिक. अनंत आकाश में अकेला. क्या थी सोवियत संघ के आख़िरी नागरिक की कहानी. कैसे वो स्पेस में अकेला रह गया और क्या अंजाम हुआ उसका. चलिए जानते हैं. 

बस के पीछे हल्के होना और रॉकेट की उड़ान 

कहानी शुरू होती है, मई 18, 1991 की तारीख़ से. कजाकिस्तान के बाइकोनूर कोस्मोड्रोम पर एक बस आकर रुकी. ये वही जगह है, जहां धरती ने अनंत आकाश से पहली बार आंखें दो चार की थीं. दुनिया का पहला सैटेलाइट, स्पुतनिक यहीं से लौंच हुआ था. और पहले अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन ने भी यहीं से रॉकेट में बैठकर उड़ान भरी थी. बहरहाल उस रोज़ जब बस बाइकोनूर पहुंची, उसमें से दो लोग उतरे. इनके नाम थे, सरगे क्रिकालेव और एनाटोली आर्टसबार्स्की. गागरिन की परंपरा में आज इन्हें भी एक रॉकेट में बैठना था. एक दस मंज़िला सोयूज़ रॉकेट जो सीधा उन्हें मीर स्पेस स्टेशन तक ले जाने वाला था.

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बाएं से दाएं , एनाटोली आर्टसबार्स्की, हेलेन शरमन और सरगे क्रिकालेव (तस्वीर: Getty)

ये उस दौर की बात है, जब कजाकिस्तान सोवियत संघ का एक हिस्सा था. और अंतरिक्ष में सोवियत संघ की तूती बोलती थी. अमेरिका बेशक चांद पर कदम रखने वाला पहला देश था. लेकिन सोवियत वैज्ञानिकों ने दो कदम आगे जाकर अंतरिक्ष में घर बनाने की शुरुआत कर दी थी. इस शुरुआत के नतीजे में बना मीर स्पेस स्टेशन. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बाद में बना. तब सिर्फ़ मीर था और इसमें अंतरिक्ष की पहली लैब बनाई गई थी. जिसमें ज़ीरो ग्रैविटी में किए जाने वाले परीक्षणों की शुरुआत हुई. चूंकि ये स्पेस स्टेशन था. लिहाज़ा इसके रख रखाव आदि के लिए हर वक्त किसी ना किसी को स्पेस स्टेशन में मौजूद रहना था. आज बारी क्रिकालेव और आर्टसबार्स्की की थी. इससे पहले भी दोनों अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके थे. और जाने से पहले हर बार वो एक पुरानी परंपरा का पालन करते थे. क्या थी ये परंपरा?

इस परंपरा की शुरुआत 3 दशक पहले हुई थी. 1961 में यूरी गागरिन बाइकोनूर कोस्मोड्रोम तक स्पेस लौंच के लिए बस में बैठकर पहुंचे. बैठे-बैठे उन्हें अहसास हुआ कि तेज की पेशाब लगी है. उन्होंने ड्राइवर से बस रोकने के लिए कहा. बस से उतरकर गागरिन बस के दायीं ओर वाले पिछले टायर की तरफ़ गए. और वहां खुद को हल्का किया. तब से ये एक परंपरा बन गई. एक गुड लक चार्म. क्रिकालेव और आर्टसबार्स्की ने भी ऐसा ही किया. इसके बाद दोनों सोयूज़ रॉकेट में बैठे. दोनों सोवियत नागरिक थे.उनके साथ एक तीसरी एस्ट्रोनॉट भी थीं. ब्रिटेन की हेलेन शरमन. शरमन और दोनों सोवियत एस्ट्रोनॉट्स को लेकर रॉकेट ने धरती से 350 किलोमीटर ऊपर उड़ रहे मीर स्पेस स्टेशन की तरफ़ उड़ान भरनी शुरू कर दी.

असंभव लेकिन जरूरी था 

जैसे ही तीनों का स्पेस क्राफ़्ट मीर स्पेस स्टेशन के नज़दीक पहुंचा, उसके गाइडेंस सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया. गाइडेंस के बिना स्पेसक्राफ्ट को स्पेस स्टेशन से डॉक कराना बहुत मुश्किल काम था. बड़ी अनहोनी हो सकती थी. फ़िल्म इंटर स्टेलर का सीन याद कीजिए. एस्ट्रोनॉट कूपर डॉकिंग की कोशिश कर रहा है. वो रोबोट से पूछता है. रोबोट जवाब देता है, 'ये असंभव है',. तब कूपर कहता है, "लेकिन ये ज़रूरी है". कूपर की ही तरह क्रिकालेव ने भी ज़रूरी को सम्भव करके दिखाया. और मैन्यूअल कंट्रोल के ज़रिए स्पेस स्टेशन को ठीक निशाने पर सटा दिया. तीनों अब मीर स्पेस स्टेशन के अंदर थे. अंतरिक्ष में इंसान का पहला घर, जहां इंसान कुछ दिन गुज़ार सकता था. लेकिन इस घर की हालत ख़स्ता थी. वहां से लौटे एस्ट्रोनॉट्स बताते थे कि स्पेस स्टेशन में बदबू आती है. रहने की जगह एक बाथ रूम स्टॉल से ज़्यादा नहीं थी. हालांकि क्रिकालेव को इन सब बातों से कोई फ़र्क़ ना पड़ता था.

वो हमेशा कहते थे, "स्पेस में जाते हुए लगता है, वापिस घर लौट रहा हूं. बाक़ी लोग टाइम काटने के लिए किताबें पढ़ते थे. लेकिन मैं खिड़की के पास बैठकर धरती की उन जगहों और चीजों को ढूंढने की कोशिश करता था, जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा था, और ना वहां जाने का मौक़ा मिल पाया था". 

ढूंढने और देखने का ये क्रम कुल आठ दिन चला और फिर कुछ दिनों के लिए टूट गया. क्योंकि क्रिकालेव अब दुकेले पड़ने वाले थे. ब्रिटेन की हेलेन शरमन वापस लौट रही थीं. क्रिकालेव और आर्टसबार्स्की को पांच महीने और स्पेस स्टेशन पर रहना था. जिस दौरान उन्हें 6 बार स्पेस वॉक पर जाना था. और स्पेस स्टेशन की मरम्मत करनी थी. काम मुश्किल था. लेकिन क्रिकालेव खुद को खुश क़िस्मत समझते थे. आख़िर कितने लोगों को ये मौक़ा मिलता था कि खिड़की से बाहर देखें और सामने पूरी धरती एक अनंत स्पेस टाइम में तैरती दिखाई दे. ऊपर से देखने पर पूरी धरती एक दिखाई देती थी. ना कोई सीमा दिखती थी, ना अलग सा कोई देश. लेकिन जिनके पैर धरती को छूते थे. उनके लिए ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और थी. जो क्रिकालेव को इतनी ऊपर से इस समय नज़र नहीं आ रही थी. दुनिया में एक बहुत बड़ा बदलाव होने जा रहा था. एक महाशक्ति अपनी आख़िरी सांसे गिन रही थी.

स्पेस में फंसा, नीचे टूट रहा था सोवियत संघ  

19 अगस्त, 1991. मॉस्को के रेड सक्वायर पर सुबह सुबह मिलिट्री टैंकों का एक क़ाफ़िला घुस आया. सोवियत प्रीमियर मिखाईल गोर्बाचेव छुट्टियां मनाने के लिए गए थे. उनके पीठ पीछे उनकी ही पार्टी के कुछ लोग, उन्हें हमेशा के लिए छुट्टी पर भेज देना चाहते थे. सोवियत संघ 15 देशों से मिलकर बना था. और 1991 की गर्मियों में इनमें से अधिकतर बग़ावत पर उतर आए थे. गोर्बाचेव इन देशों को अधिक स्वायत्ता देने के पक्ष धर थे. लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी को लग रहा था, इस तरह सोवियत संघ का नामों निशान मिट जाएगा. उनका डर सही था. लेकिन इस बारे में कुछ करने के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी. सोवियत विघटन को रोकने के लिए गोर्बाचेव को सत्ता से बाहर करने की कोशिश हुई. उन्हें नज़रबंद कर दिया गया. लेकिन इन सब का भी कोई फ़ायदा ना हुआ.अक्टूबर महीने तक लगभग पक्का हो चुका था कि सोवियत संघ टूट जाएगा. ये सब धरती पर चल रहा था, लेकिन इसका असर अंतरिक्ष तक होने वाला था.

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 25 दिसंबर, 1991 के दिन सोवियत संघ का विघटन हुआ था (तस्वीर: getty) 

सोवियत संघ से बग़ावत करने वालों में एक कजाकिस्तान भी था. सोवियत स्पेस प्रोग्राम की चाभी बाइकोनूर कोस्मोड्रोम में थी. और ये कोस्मोड्रोम कजाकिस्तान के हिस्से में आता था. कजाकिस्तान की बग़ावत को शांत करने के लिए सोवियत नेताओं ने एक प्रस्ताव दिया. प्रस्ताव ये कि वो स्पेस स्टेशन पर जाने का अगला मौक़ा एक कज़ाक नागरिक को देंगे. इस फ़ैसले का एक बड़ा असर सरगे क्रिकालेव की ज़िंदगी पर पड़ा. क्योंकि पहले तय हुआ था कि क्रिकालेव सिर्फ़ पांच महीने के लिए मीर स्पेस स्टेशन पर रहेंगे. और उनकी जगह एक दूसरा एस्ट्रोनॉट लेगा. सरगे क्रिकालेव इंजिनयीरिंग का काम देखते थे. इसलिए ज़रूरी था उनकी जगह कोई अनुभवी व्यक्ति ले. लेकिन ज़मीन पर हुए घटनाक्रम के चलते एक नया एस्ट्रोनॉट आने वाला था. जिसे ज़रूरी अनुभव नहीं था. और जिसका मतलब था, क्रिकालेव को तय समय सीमा से ज़्यादा दिन तक स्पेस में रहना होगा? कितने दिन? इसका जवाब किसी के पास नहीं था.

2 अक्टूबर 1991 के रोज़ एनाटोली आर्टसबार्स्की धरती पर वापस लौट आए. क्रिकालेव को पांच महीने से ज़्यादा का वक्त हो चुका था. और अब वो अकेले थे. अकेलेपन से भी बड़ी दूसरी समस्याएं थीं क्योंकि स्पेस स्टेशन पर एक भी दिन रहने के लिए महीनों की तैयारी लगती है. पूरा कार्यक्रम पहले से तय होता है. ऐसे में तय सीमा से अधिक रहने में बहुत ख़तरा हो सकता है. स्पेस स्टेशन हर 90 मिनट में धरती का एक चक्कर लगाता है. इसलिए यहां धरती की तरह उजाले और अंधेरे की साइकिल नहीं होती. अंतरिक्ष यात्रियों को 45 मिनट की रौशनी मिलती है. और फिर 45 मिनट का अंधेरा. जिसका मतलब एक दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त के दर्शन होते हैं. नजारा सुंदर हो सकता है. लेकिन ये चीज़ आपकी नींद पर भयानक असर डालती है. इसके अलावा. स्पेस स्टेशन पर आर्टीफ़िशियल रौशनी कभी बंद नहीं की जाती. इसलिए एस्ट्रोनॉट्स इस बात की ट्रेनिंग लेते हैं कि उजाले में भी कैसे सोया जाए. नींद लेते वक्त भी कई दिक्कतें हो सकती हैं. मसलन सोते हुए आपके मुंह से जो कार्बन डाई आक्सायड निकलती है, ज़मीन पर वो हवा में बह जाती है. लेकिन स्पेस स्टेशन में नींद के दौरान आपके चेहरे के आसपास CO2 के बुलबुले इकट्ठे हो सकते हैं. जिनसे दिमाग़ में ऑक्सिजन की कमी हो सकती है. और भयंकर नुक़सान हो सकता है. इसके अलावा स्पेस में मौजूद रेडिएशन में लम्बे समय तक रहने से कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है, हड्डियां कमजोर पड़ जाती हैं. नर्वस सिस्टम स्लो हो जाता है. और आदमी भयंकर बीमार पड़ सकता है.

क्या हुआ आखिरी सोवियत नागरिक का? 

क्रिकालेव मुख्य इंजिनीयर थे. उन्हें वापिस लाने के लिए ज़रूरी था, किसी और को उनकी जगह भेजना. लेकिन हर रॉकेट के लौंच में करोड़ों रुपए का खर्च आना था. और सोवियत संघ की हालत ऐसी नहीं थी कि वो और रॉकेट भेज सके. तिजोरियां ख़ाली हो चुकी थीं. इसलिए सोवियत स्पेस प्रोग्राम में भारी कटौती की गई. खुद मीर स्पेस स्टेशन को भी बेचने की बात चली. क्रिकालेव की पत्नी और एक 9 महीने की बच्ची थी. उन्हें भी महज़ कुछ रुपयों में अपना गुज़ारा चलाना पड़ रहा था. क्रिकालेव के पास हालांकि एक ऑप्शन था. स्पेस स्टेशन में एक कैप्सूल था. जिसमें बैठकर वो धरती पर लौट सकते थे. लेकिन इसका मतलब होता, स्पेस स्टेशन एकदम ख़ाली हो जाता. और बिना देख रेख के वो जल्द ही बर्बाद भी हो सकता था. इसलिए क्रिकालेव ने वहीं रहना चुना.

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311 दिन स्पेस मे रहने के बाद सरगे क्रिकालेव धरती पर वापस लौटे/मीर स्पेस स्टेशन (तस्वीर: Getty ) 

25 दिसंबर, 1991 वो आख़िरी तारीख़ थी जब सोवियत संघ का हथौड़ा और दरांती वाला झंडा आख़िरी बार क्रेम्लिन के ऊपर फहराया. उसकी जगह रूस के तीन रंग वाले झंडे ने ले ली. सोवियत संघ ख़त्म हो चुका था. लेकिन उसका एक नागरिक, आख़िरी नागरिक अभी भी स्पेस में बैठा था. स्पेस में होने के चलते क्रिकालेव को दुनियाभर से खबरें मिल रही थीं. धरती से 350 किलोमीटर ऊपर से उन्होंने अपने देश को टूटते हुए देखा. उन्होंने देखा कि कैसे जिस शहर में उनकी पैदाइश हुई थी, उसका नाम लेनिन ग्राड से बदलकर सेंट पीटर्सबर्ग हो गया था. और जिस सोवियत पासपोर्ट को वो अपनी पहचान मानते थे. वो अब महज़ काग़ज़ का एक टुकड़ा बनकर रह गया था. ऊपर से देखने में दुनिया वैसी ही थी, लेकिन फिर भी पूरी तरह बदल गई थी. क्रिकालेव को 5 महीने स्पेस में रहना था. लेकिन वो पूरे 311 दिन तक स्पेस में रहे. जो अपने वक्त में एक रिकॉर्ड था.

25 मार्च 1992. ये वो तारीख़ थी जब क्रिकालेव को वापस लाया गया. धरती के 5 हज़ार चक्कर लगाने के बाद आख़िरकार क्रिकालेव ने कजाकिस्तान में लैंड किया. उनका शरीर कमजोर पड़ चुका था. हालत ख़राब थी. सांस लेने वाली हवा इतनी घनी महसूस हो रही थी, मानो ब्रेड पर रखकर उसे आप चाकू से काट सको. क्रिकालेव सोवियत संघ के आख़िरी नागरिक और 15 देशों के हीरो थे. लेकिन वो यहीं नहीं रुके. रिकवर होने के बाद एक बार फिर उन्होंने अपना स्पेस सूट पहना. और आने वाले सालों में कुल 803 दिन तक स्पेस में रहे. मीर स्पेस स्टेशन का क्या हुआ?

सोवियत विघटन के बाद 1992 में रूस के नए राष्ट्रपति बोरिस येल्त्सिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने मुलाक़ात की. और यहां से नींव पड़ी अमेरिका रूस संयुक्त स्पेस प्रोग्राम की. जिसके तहत एक नया इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाने की क़वायद शुरू हुई. मीर स्पेस स्टेशन ने सालों तक काम किया और और फिर उसके पुर्ज़े दक्षिणी प्रशांत महासागर में गिरा दिए गए.

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