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क्या है नेशनल हेराल्ड केस, जिसकी तलवार सोनिया और राहुल गांधी पर हमेशा लटकी रहती है

2004 से 2014 के बीच हुए घोटालों में ये इकलौता मामला है, जिसमें सीधे गांधी परिवार के किसी आदमी का नाम है.

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राहुल गांधी और सोनिया गांधी को वरुण गांधी की बात पसंद नहीं आई होगी.
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केतन बुकरैत
14 सितंबर 2018 (Updated: 14 सितंबर 2018, 12:01 PM IST) कॉमेंट्स
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10 सितंबर को कांग्रेस के भारत-बंद के मामले पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि कांग्रेस ने जानबूझकर भारत बंद उसी दिन बुलाया, जिस दिन नेशनल हेराल्ड केस से जुड़ा एक फैसला आना था. इसी केस में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी ज़मानत पर बाहर चल रहे हैं. राहुल और सोनिया का कहना था कि वो फाइल दोबारा न खोली जाए, जिसमें असोसिएटेड जर्नल्स को कर्ज के तौर पर दिए पैसों का पूरा ब्यौरा है. लेकिन कोर्ट ने 10 सितंबर को उनकी ये याचिका खारिज कर दी.


कांग्रेस के भारत-बंद विरोध-प्रदर्शन की एक तस्वीर
कांग्रेस के भारत-बंद विरोध-प्रदर्शन की एक तस्वीर

देश में 2004 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार रही. इस दौर में हुए कई घोटाले अलग-अलग रिपोर्ट्स में सामने आए. लेकिन नेशनल हेराल्ड इकलौता ऐसा मामला है, जिसमें गांधी परिवार के किसी शख्स का नाम सीधे तौर पर शामिल है. और वो भी किसी एक का नहीं, दो का. सोनिया गांधी और राहुल गांधी. तो आइए आपको बताते हैं कि ये नेशनल हेराल्ड मामला है क्या.

क्या है नेशनल हेराल्ड?

नेशनल हेराल्ड 1938 में शुरू किया गया एक अखबार था. ये पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिमाग की उपज थी, जो इसका इस्तेमाल आज़ादी की लड़ाई में कर रहे थे. असल में पंडित नेहरू ने 1937 में असोसिएटेड जर्नल बनाया था, जिसने तीन अखबार निकालने शुरू किए. हिंदी में नवजीवन, उर्दू में कौमी आवाज़ और अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड. असोसिएटेज जर्नल पर कभी नेहरू का मालिकाना हक नहीं रहा. इसे 5000 स्वतंत्रता सेनानी सपोर्ट कर रहे थे और वही इसके शेयर होल्डर भी थे. इसमें से कई बड़े नेता भी थे.

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देश को आज़ादी मिली. अखबार फिर भी चलता रहा. लेकिन वक्त के साथ-साथ इसकी बिक्री कम होने लगी. साल 2008 आते-आते असोसिएटेड जर्नल ने फैसला किया कि अब अखबार नहीं छापे जाएंगे. साथ ही, ये भी मालूम चला कि असोसिएटेड जर्नल पर 90 करोड़ रुपयों का कर्ज भी चढ़ चुका है.

घोटाला क्या बताया जाता है?

90 करोड़ रुपए के कर्ज की भरपाई के लिए एक ट्रिक अपनाई गई. कांग्रेस ने एक नॉट-फॉर-प्रॉफिट कंपनी बनाई. इसका नाम था यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड. इसका गांधीजी द्वारा शुरू किए गए अखबार 'यंग इंडिया' से कोई लेना-देना नहीं था. कंपनी में 76% शेयर्स राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के पास थे. तो सोनिया और राहुल की ही कांग्रेस ने यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 90 करोड़ रुपए दे दिए. यंग इंडिया ने इसी पैसे का इस्तेमाल करते हुए असोसिएटेड जर्नल को खरीद लिया.

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ये बात सामने कब और कैसे आई?

2012 में बीजेपी नेता सुब्रमनियन स्वामी ने एक जनहित याचिका (PIL) डाली. इसके बाद उन्होंने कांग्रेसी नेताओं पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया. स्वामी ने कहा कि मात्र 50 लाख रुपए खर्च करके 90 करोड़ रुपयों की वसूली कर ली गई. इनकम टैक्स ऐक्ट के हिसाब से कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी थर्ड पार्टी के साथ पैसों का लेन-देन नहीं कर सकती.

स्वामी ने और क्या-क्या आरोप लगाए?

#1. स्वामी ने कहा कि कांग्रेस ने पहले तो 90 करोड़ का लोन दिया. फिर अकाउंट बुक्स में हेर-फेर करके उस रकम को 50 लाख दिखा दिया. यानी 89 करोड़ 50 लाख रुपए यहीं माफ कर दिए गए.


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बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी

#2. अखबार छपना बंद होने के बाद असोसिएटेड जर्नल ने प्रॉपर्टी का काम शुरू कर दिया यानी वो रियल एस्टेट फर्म बन गई, जो दिल्ली, लखनऊ और मुंबई में बिजनेस कर रही थी. स्वामी का आरोप है कि इस रियल एस्टेट फर्म के हिस्से जो भी प्रॉपर्टी थीं, वो भी कांग्रेस के नेताओं ने अपने नाम कर लीं, क्योंकि असोसिएटेड जर्नल को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड खरीद चुकी थी. ये संपत्ति लगभग 2 हज़ार करोड़ की थी और इस तरह 90 करोड़ खर्च करके 2,000 करोड़ की प्रॉपर्टी के वारे-न्यारे हो गए.

कांग्रेस का इन आरोपों पर क्या कहना है?

कांग्रेस का तर्क है कि यंग इंडिया लिमिटेड को चैरिटी यानी दान-पुण्य के लिए बनाया गया था. उनके मुताबिक पैसों का जो लेन-देन हुआ है, वो फाइनैंशियल नहीं, बल्कि कॉमर्शियल था. यानी वित्तीय नहीं, बल्कि व्यावसायिक था.

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