जैनेंद्र दोस्त जाने-माने रंगकर्मी हैं. वर्तमान में भिखारी ठाकुर के रंगमंच केपुनर्जीवन के लिए काम कर रहे हैं. इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दीविश्वविद्यालय (वर्धा) से नाट्यकला और फ़िल्म अध्ययन में एम.ए. किया है. इसके बादथियेटर और परफॉर्मेंस स्टडीज़, JNU से एम.फिल. तथा पीएच.डी. किया है. भिखारी ठाकुरपर बनायी गई इनकी फ़िल्म ‘नाच भिखारी नाच’ की सराहना की जा रही है. जैनेंद्र,भिखारी ठाकुर रंगमंडल प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र, छपरा के डायरेक्टर हैं. जैनेंद्रने भिखारी ठाकुर की 132वीं जयंती पर खूब सारा रिसर्च करके लिखा है. जैनेंद्रसे dostjai@gmail.com पर संपर्क किया सकता है.--------------------------------------------------------------------------------नाच ह कांच, बात सांच, एह में लागे ना आंचभोजपुरी क्षेत्र में नाच और भिखारी ठाकुर पर्यायवाची की तरह हैं. नाच के संदर्भ मेंभिखारी ठाकुर की ये पंक्तियां “नाच ह कांच, बात ह सांच, एह में लागे ना सांच” नाचविधा के कई पहलुओं को इंगित करती हैं. यहां पर कांच शब्द का तात्पर्य कच्चा,rawness, क्षणभंगुर है. भिखारी ठाकुर ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताया है कि'नाच है तो कच्ची और क्षणभंगुर चीज़, पर यह सच्चाई की बात करता है जिसे किसी आंचयानी परीक्षा से डर नहीं है'.भिखारी ठाकुर : उस्तरे से उस्ताद तकबिहार में नाच विधा के सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कलाकार रहें हैं भिखारी ठाकुर.भिखारी ठाकुर बीसवीं शताब्दी के महान लोक नाटककारों-कलाकारों में से एक रहे हैंजिन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है. भिखारी ठाकुर ने सन 1917 में अपनीनाच मंडली की स्थापना कर भोजपुरी भाषा में बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा,भाई-बिरोध, पिया निसइल, गंगा-स्नान, नाई-बाहर, नकल भांड और नेटुआ सहित कई नाटक,सामाजिक-धार्मिक प्रसंग गाथा और गीतों की रचना की है. उन्होने अपने नाटकों औरगीत-नृत्यों के माध्यम से तत्कालीन भोजपुरी समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहजतरीके से नाच के मंच पर प्रस्तुत करने का काम किया था. उनके नाच में किया जाने वालाबिदेसिया उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक है. 1930 से 1970 के बीच भिखारी ठाकुर की नाचमंडली असम और बंगाल, नेपाल आदि कई शहरों में जा कर टिकट पर नाच दिखाती थी. बिलकुलसिनेमा जैसा. सिनेमा के समानांतर.बिदेसिया नाटक प्रस्तुत करते भिखारी ठाकुर रंगमंडल के कलाकारश्री शिवलाल बारी एवंश्री लखिचंद मांझीभिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार राज्य के छपरा जिले के छोटे से गांवक़ुतुबपुर के एक सामान्य नाई परिवार में हुआ था. पिता दलसिंगर ठाकुर और मां शिवकलीदेवी सहित पूरा परिवार जज़मानी व्यवस्था के अंतर्गत अपने जातिगत पेशा जैसे किउस्तरे से हजामत बनाना, चिट्ठी नेवतना, शादी-विवाह, जन्म-श्राद्ध और अन्यअनुष्ठानों तथा संस्कारों के कार्य किया करता था. परिवार में दूर तक गीत, संगीत,नृत्य, नाटक का कोई माहौल नहीं था. नाच विधा से जुड़ने के पूर्व भिखारी ठाकुर केजीवन को समझने के लिए उनके जीवनी गीत का सहारा लिया जा सकता है.भिखारी ठाकुर: एक गीत में जीवन का सारनौ बरस के जब हम भइली। बिद्या पढ़न पाट पर गइली।।वर्ष एक तक जबदल मति। लिखे ना आइल रामगति।।मन में विद्या तनिक ना भावत। कुछ दिन फिरलीं गाय चरावत।।गाइया चार रही घर माहीं। तेहि के नित चरावन जाहीं।।जब कुछ लगलीं माथ कमावे। तब लागल विद्या मन भावे।।माथ कमाईं नेवतीं चिट्ठी। विद्या में लागल रहे दिठी।।बनिया गुरु नाम भगवाना। ऊहे ककहरा साथ पढ़ना।।अल्पकाल में लिखे लगलीं। तेकरा बाद खड़गपुर भगलीं।।ललसा रहे जे बहरा जाईं। छुरा चलाकर दाम कमाईं।।गइलीं मेदनीपुर के जिला। ओहीजे कुछ देखलीं रामलीला।।घर पर आके लगलीं रहे। गीत-कवित्त कतहूं केहू कहे।।अर्थ पुछि-पुछि के सीखीं। दोहा छंद निज अक्षर लिखीं।।सादी-गवना रहुए भइल। लिखे में पहिले भोर पर गइल।।साधु पंडित के डिग जाहीं। सुनी श्लोक घोखी मन माहीं।।निजपुर में करिके रामलीला। नाच के तब बन्हलीं सिलसिला।।तीस बरिस के उमिर भइल। बेधलस खुब कालिकाल के मइल।।नाच मंडली के धरि साथ। लेक्चर दिहीं जय कहिं रघुनाथ।।बरजत रहलन बाप-महतारी। नाच में तूं मत रह भिखारी।।चुपे भाग के नाच में जाई। बात बनाके दाम कमाईं।।उक्त गीत के माध्यम से भिखारी ठाकुर बताते हैं-जब वो नौ वर्ष के थे तब पढ़ने के लिए स्कूल जाना शुरू किया. एक वर्ष तक स्कूल जानेके बाद भी उन्हें एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं हुआ तब वो अपने घर के गाय को चराने काकाम करने लगे. धीरे-धीरे अपने परिवार के जातिगत पेशे के अंतर्गत हजामत बनाने का कामभी करने लगे. जब हजामत का काम करने लगे तब उन्हें दोबारा से पढ़ने लिखने की इच्छाहुई. गांव के ही भगवान साह नामक बनिया लड़के ने उन्हें पढ़ाया. तब जा कर उन्हेंअक्षर ज्ञान हुआ. उनकी शादी हो गई. उसके बाद वो हजामत बना कर रोज़ी-रोटी कमाने केमक़सद से खड़गपुर (बंगाल) चले गए. वहां से फिर मेदनीपुर (बंगाल) गए तथा वहांरामलीला देखा. कुछ समय बाद वो बंगाल से वापस अपने गांव आ गए और गीत-कवित्त सुननेलगे. सुन कर लोगों से उसका अर्थ पूछ कर समझने लगे और धीरे-धीरे अपना गीत-कवित्त,दोहा-छंद लिखना शुरू कर दिया. एक बार गांव के लोगों को इकट्ठा कर रामलीला का मंचनभी किया. तीस वर्ष की उम्र होने के बाद अपनी नाच मंडली बना ली. नाच में जाने काउनके मां-बाप विरोध करते थे. वो छुप-छुप कर नाच में जाते थे तथा कलाकारी दिखा करपैसे कमाते थे.इस गीत ने कई महत्वपूर्ण बातों को स्पष्ट किया है. जैसे कि भिखारी ठाकुर नाच विधाके कलाकार थे. उनके पूर्व में भी नाच विधा का प्रचलन था. भिखारी ठाकुर के कला जीवनमें सबसे पहले उन्होंने लिखना शुरू किया और फिर रामलीला का मंचन किया उसके बाद नाचमें काम करते हुए नाच मंडली बनाई. भिखारी ठाकुर से लिए एक इंटरव्यू में जब रामसुहागसिंह ने पूछा कि “नाच गाना और कविता की ओर आपकी अभिरुचि कैसे हुई?” तब भिखारी ठाकुरने कहा था कि “मैं कुछ गाना जानता था. रामसेवक ठाकुर नामक एक हजाम ने मेरा एक गानासुन कर तारीफ़ की और मात्रा की गणना बताया. बाबू हरिनंदन सिंह ने सबसे पहले मुझेरामगीत का पाठ पढ़ाया”.कुल मिला कर हम देख सकते हैं कि भिखारी ठाकुर का प्रारम्भिक जीवन भी सामान्यग्रामीण युवक की तरह ही है, जो अपने घर और जातिगत पेशे का कार्य करता है. जिसकीशादी होती है. जो रोज़ी-रोटी के लिए विस्थापित होता है. जो अपने आसपास के रामलीला,नाच आदि को देखता है. धीरे-धीरे इन सब से प्रभावित हो कर लिखना और गाना शुरू करताहै. लेकिन भिखारी ठाकुर में ख़ास बात थी वो यह कि वो समाज के प्रति बहुत जागरूक थे.समाज के कुरीतियों पर पैनी नज़र थी. साथ ही साथ समाज में प्रचलित गीत-नृत्य, नाटककी अनेक कला विधाओं पर भी अच्छी समझ थी और दिन-ब-दिन बनती चली गई. उनकी यही समझउन्हें महान बनाते चली गई.भिखारी ठाकुर का नाच एवं नाटक : 1917 से जारी है…तीस बरिस के उमिर भइल। बेधलस खुब कालिकाल के मइल।।नाच मंडली के धरि साथ। लेक्चर दिहीं जय कहिं रघुनाथ।।इस गीत में भिखारी ठाकुर ने लिखा है कि जब वो तीस वर्ष के हुए तब उन्होंने नाचमंडली बनाया. भिखारी ठाकुर का जन्म 1887 में हुआ था. 1887 में तीस वर्ष जोड़ने पर1917 का वर्ष आता है. यानि भिखारी ठाकुर ने 1917 से अपना रंगमंचीय जीवन शुरू कियाथा. 1917 से आज तक भिखारी ठाकुर की रंगमंचीय यात्रा अनेक पड़ावों के साथ लगातारजारी है.भिखारी ठाकुर ने जब अपना जातिगत पेशा छोड़ कर कला की तरफ़ रूख किया तब उन्होंनेसबसे पहले अपने गांव में रामलीला की. परंतु जल्द ही रामलीला को छोड़ कर वो नाच कीतरफ़ अग्रसर हुए. मेरा ऐसा मानना है कि रामलीला छोड़ने के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारणरहे होंगे. सबसे महत्वपूर्ण कारण यह कि रामलीला सालों भर चलने वाली चीज़ कम से कमभोजपुरी समाज में तो नहीं हो सकती. क्योंकि भोजपुरी समाज एक श्रमिक समाज है. उसेदिन भर की थकान के बाद थोड़ी भक्ति, थोड़ा मनोरंजन, एवं थोड़ी सामाजिक बातें चाहिए.इन सबके लिए नाच उपयुक्त विधा पहले से ही चली आ रही थी. दूसरा यह भी कि भिखारीठाकुर का कवि मन जो अलग-अलग प्रसंगों पर रचना कर रहा था उसकी अभिव्यक्ति भी सिर्फ़रामलीला करने से बाधित होती. क्योंकि रामलीला के मंचन में लगातार कुछ नया करने कीगुंजाइश न के बराबर होती है. तीसरा प्रश्न रोज़ी-रोटी का भी रहा होगा. क्योंकि नाचएक व्यवसायिक विधा के रूप में भोजपुरी अंचल में पहले से प्रचलित था.भिखारी ठाकुर के नाच के लबार के रूप में जैनेन्द्र दोस्तभिखारी ठाकुर के पूर्व में भी रसूल मियां एवं गुदर राय इस नाच विधा के मशहूर कलाकाररहे हैं. नाच विधा के ढांचागत या संरचनागत स्वरूप में भिखारी ठाकुर ने कोई ख़ासपरिवर्तन नहीं किया. गीत-संगीत, नृत्य-कॉमिक और अंत में नाटक किए जाने के क्रमानुगतस्वरूप को उन्होंने वैसे ही रखा. परंतु विषय-वस्तु के स्तर पर भिखारी ठाकुर ने नाचविधा को कई नए नाटक, प्रसंग और गीत दिए. भिखारी ठाकुर से पूर्व के नाच में मुख्यतःलोककथाओं पर आधारित नाटक या छोटे-छोटे सामाजिक प्रसंग पर नाटक करने का सूत्र मिलताहै. परंतु भिखारी ठाकुर ने सामाजिक विषय पर तत्कालीन समय के हिसाब से नाटक रचे.इतना ही नहीं अपने नाटकों में भोजपुरी समाज में प्रचलित लोक गीत, नृत्य की विधाओंको भी खूब शामिल किया. नाटकों के चरित्र, समाजी, लबार, सूत्रधार, संगीत, नृत्य, कोसुदृढ़ किया. अपनी धुन और अपना ताल विकसित किया. और रच डालें कई नाटक, प्रसंग औरगीत.--------------------------------------------------------------------------------भिखारी ठाकुर के नाटक#1 बिदेसियायह भिखारी ठाकुर का सबसे प्रसिद्ध नाटक है. इस नाटक का मुख्य विषय विस्थापन है. इसनाटक में रोजी-रोटी की तलाश में विस्थापन, घर में अकेली औरत का दर्द, शहर में पुरुषका पराई औरत के प्रति मोह को दिखाया गया है.#2 भाई-बिरोधयह नाटक ग्रामीण समाज में भाई-भाई के झगड़े को मुख्य रूप से दिखाता है. इस नाटक मेंदो भाईयों एवं उनकी पत्नियों के बीच झगड़ा होता है जिसका कारण झगड़ा लगाने वाली एकमहिला है.#3 बेटी-बियोग उर्फ़ बेटी-बेचवाइस नाटक का मुख्य विषय तत्कालीन समाज में व्याप्त बेमेल विवाह तथा अमीरों द्वाराबुढ़ापे में ग़रीब लड़कियों को ख़रीद कर शादी करने पर आधारित है.#4 बिधवा-बिलापयह नाटक समाज में विधवा महिलाओं के समस्याओं को उजागर करता है. विधवा के साथ समाजका व्यवहार, उसके धन के प्रति लोगों के लालच को इस नाटक में बख़ूबी दिखाया गया है.#5 कलियुग-प्रेम उर्फ़ पिया निसइलयह नाटक समाज में फैली नशाखोरी की समस्या पर आधारित है, जो नशाखोरी से तबाह होते एकपरिवार की कहानी को बयां करता है. नाटक में नशाखोर बाप शराब के लिए घर का सब कुछबेच चुका है. पत्नी और बेटा दाने-दाने को मोहताज हैं. एक दिन शराबी नशे में चूर होकर घर आता है और पत्नी, बेटे से गाली-गलौज और मारपीट करता है. शराबी अपने बेटे केहाथ में पहने कंगन को छीनकर बेचना चाहता है. पत्नी ऐसा करने से मना करती है. पत्नीअपने शराबी पति को समझाने की कोशिश करती है. परंतु शराबी नहीं मानता है. वो घर मेंएक दूसरी औरत को भी लाना शुरू कर देता है. अंत में शराबी का दूसरा बेटा जो बाप केनशे के कारण घर छोड़ बाहर कमाने चला गया था. वो पैसे कमा कर वापस आ जाता है और मांअपने दोनों बेटे के साथ खुशी खुशी रहने लगती है.#6 राधेश्याम-बहारयह नाटक कृष्ण की लीलाओं पर आधारित है.#7 गंगा-स्नानग्रामीण समाज में गंगा स्नान करने का बहुत महत्व होता है. गंगा स्नान के समयजगह-जगह गंगा किनारे मेला लगता है जिसमें ग्रामीण समाज खूब उत्साह से हिस्सा लेताहै. मेले में शहर और गांव के व्यापारी आकर अपनी दुकान लगते है और ग्रामीण समाज अपनीज़रूरत के हिसाब से खरीददारी करते हैं. गंगा स्नान नाटक में एक परिवार को गंगास्नान के लिए जाते दिखाया गया है. उस परिवार में एक बूढ़ी मां है जो परिवार द्वाराउपेक्षित है. इस नाटक में भिखारी ठाकुर ने गंगा स्नान के माध्यम से परिवार मेंबुज़ुर्गों की उपेक्षा को दिखाया है.#8 पुत्र-बधयह एक पारिवारिक नाटक है. ग्रामीण समाज में कई मर्द दो-दो शादी करते है. इस नाटकमें नायक ने दो शादियां रचाई हैं. दोनों सौतन का झगड़ा, धन के लालच में अनैतिकसंबंध इस नाटक का मुख्य विषय है.#9 गबरघिचोरइस नाटक की कहानी भी विस्थापन से जुड़ी समस्या से शुरू होती है. जिसमें विस्थापितपति द्वारा पत्नी को भुला दिए जाने से उत्पन्न समस्या मुख्य है. परंतु यह नाटकस्त्री के अपने बेटे पर अधिकार की वकालत करता है.#10 बिरहा-बहारइस नाटक की कहानी में निम्न जाति के धोबी-धोबिन का मुख्य किरदार है. समाज में कपड़ाधोने वाले धोबी के महत्व को इस नाटक में दिखाया गया है. भिखारी ठाकुर ने इस नाटकमें कपड़ा धुलने वाले धोबी-धोबिन की तुलना आत्मा धोने वाले ईश्वर से की है.#11 नकल भांड आ नेटुआ केभोजपुरी क्षेत्र में भांड और नेटुआ परफ़ॉर्मेंस का एक ऐसा फ़ॉर्म है जिसमेंगीत-संगीत, नृत्य एवं अभिनय समाहित है. भिखारी ठाकुर इस इस लोकप्रिय फ़ॉर्म काइस्तेमाल अपने नाच में किया है. नकल भांड आ नेटुआ के एकपात्री नाटक है जिसमेंसामाजिक कुरीतियों पर गहरा व्यंग है.भिखारीनामा नाटक के एक दृश्य में जैनेन्द्र दोस्त एवं सरिता साज़#12 ननद-भउजाईननद-भउजाई एक पारिवारिक नाटक है जिसमें ननद और भाभी के रिश्तों को दिखाया गया है.इस नाटक में बल-विवाह से उत्पन्न पारिवारिक समस्याओं को दिखाया गया है.--------------------------------------------------------------------------------भजन-कीर्तन, गीत-कविता#1 शिव-विवाह : भगवान शिव के विवाह से संबंधित भजन.#2 भजन कीर्तन (राम) : भगवान राम से संबंधित भजन-कीर्तन.#3 रामलीला गान : यह गाथा गायन की शैली में रामलीला है. इसमें तुलसीकृत रमचरित मानसके आठ कांड का वर्णन है. इसका मुख्य अभिनेता सूत्रधार/गायक है.#4 भजन-कीर्तन (श्रीकृष्ण) : यह गाथा गायन की शैली में कृष्णलीला है. इसमें कृष्णके विभिन्न प्रसंगों को दिखाया गया है. इसका मुख्य अभिनेता सूत्रधार/गायक है.#5 माता-भक्ति : माता-भक्ति प्रसंग भी गाथा गायन की शैली में मां के महत्व, उसकेत्याग, तथा बेटे द्वारा उसको बुढ़ापे में छोड़ देने की कहानी है. इसका मुख्यअभिनेता सूत्रधार/गायक है.#6 आरती : इस खंड में भगवान शिव, कृष्ण, दुर्गा, गंगा एवं राम की आरती-गीत है.#7 बूढ़शाला के बेयान : यह भी गाथा गायन की शैली में ऐसा प्रसंग है जिसमें भिखारीठाकुर ने बुज़ुर्गों को होने वाली विभिन्न समस्यायों को रखा है. भिखारी ठाकुर ने इसप्रसंग के माध्यम से समाज में बूढ़शाला (Old age house) की मांग की है. इसका मुख्यअभिनेता सूत्रधार/गायक है.#8 चौवर्ण पदवीं : यह भी गाथा गायन की शैली है जिसमें समाज में फैले जाति व्यवस्थापर गम्भीर कटाक्ष है. समाज के चारों वर्णों के मेल-मिलाप, समरसता को भिखारी ठाकुरने इस प्रसंग में उठाया है. इसका मुख्य अभिनेता सूत्रधार/गायक है.#9 नाई बाहर : भिखारी ठाकुर नाई जाति से थे. समाज में नाई पिछड़ी जाति होता है जिसेअनेक समस्याओं एवं शोषण का सामना करना पड़ता है. भिखारी ठाकुर ने इस प्रसंग में नाईजाति के दुःख दर्द को दिखाया है.#10 शंका-समाधान : आपको जान कर हैरानी होगी कि इस प्रसंग में भिखारी ठाकुर ने अपनेकिताबों की विभिन्न विद्वानों एवं प्रकाशकों द्वारा चोरी किए जाने को आधार बना करलिखा है. उन्होंने इस प्रसंग में अपने पाठकों की शंका को दूर करते हुए बताया है किअसली क्या है और नक़ली क्या है.#11 विविध : इस खंड में भिखारी ठाकुर ने सत्यनारायण पूजा का महत्व, चउथ चंदा गीत,छपरा (सारन प्रमंडल) से सम्बंधित गीत लिखा है.#12 भिखारी ठाकुर परिचय : यह खंड भिखारी ठाकुर के जीवनी का है. जिसमें उन्होंनेख़ुद अपना परिचय, अपने पूर्वजों के बारे में, अपनी जन्मभूमि के बारे में, अपनीरचनाओं के बारे में, अपने मान-सम्मान के बारे में, बुढ़ापे में अपनी बीमारी के बारेमें लिखा है.--------------------------------------------------------------------------------मुज्ज़फरपुर के पहले नाच से दरबार हॉल (राष्ट्रपति भवन) वाया संगीत नाटक अकादमीअवार्डप्रोफ़ेसर रामसुहाग सिंह द्वारा लिए गए साक्षात्कार में भिखारी ठाकुर ने साफ़-साफ़कहा है कि “मैं तीस वर्ष की उम्र में नाच में शामिल हुआ. सबसे पहले मैंनेबिरहा-बहार नाटक की रचना की जिसकी पहली प्रस्तुति मुज़फ़्फ़रपुर जिले केसर्वमस्तपुर गांव में एक विवाह अवसर पर खेला गया था. भिखारी ठाकुर की रंगमंचीययात्रा की शुरुआत शादी-विवाह के अवसर पर आयोजित नाच से शुरू हुआ था. जिसमेंउन्होंने बिरहा-बहार नामक नाटक जो अब बिदेसिया नाम से जाना जाता है किया था. उसकेबाद भिखारी ठाकुर ने एक से बढ़ कर एक नाटक, गीत, नृत्य की रचना की एवं नाच के मंचसे समाज के समक्ष प्रस्तुत किया.जिस प्रकार पारसी थिएटर एवं नौटंकी मंडलियां देश के अनेक शहरों में जा-जा कर टिकटपर नाटक दिखाया करती थी उसी प्रकार नाच मंडलियां भी टिकट पर नाच करती थी. भिखारीठाकुर ने असाम, बंगाल, नेपाल आदि जगहों पर खूब टिकट शो किए. अनेक राजघरानों सहितज़मींदार भी उन्हें बुलाते थे. अपने समय में भिखारी ठाकुर नाच विधा के स्टार कलाकारबन गए थे. अंग्रेज़ों ने 'राय बहादुर' की उपाधि दी तो हिंदी के साहित्यकारों के बीच'भोजपुरी के शेक्सपियर' और 'अनगढ़ हीरा' जैसे नाम से सम्मानित हुए.उनकी प्रसिद्धी इतनी बढ़ गई थी उनके नाच के सामने लोग सिनेमा देखना तक पसंद नहींकरते थे. उनकी एक झलक पाने के लिए लोग कोसों पैदल चल कर रात-रात भर नाच देखते थे.उनकी इस पॉप्युलैरिटी को सिनेमा जगत के लोगों ने भी खूब भुनाया. हुआ यूं किबिदेसिया नाटक की कहानी पर फ़िल्म बनाने का प्रस्ताव उन्हें मिला. भिखारी ठाकुरबंबई बुलाए गए. भिखारी ठाकुर को मंच पर बैठा कर एक गाना भी शूट हुआ. और 1963 मेंबिदेसिया नामक फ़िल्म रिलीज़ हुई. फ़िल्म के शुरुआत में इस बात का खूब प्रचार कियागया कि भिखारी ठाकुर का बिदेसिया पहली बार बड़े परदे पर. साथ ही साथ यह भी प्रचारकिया गया कि इस फ़िल्म में ख़ुद भिखारी ठाकुर मौजूद हैं. भिखारी ठाकुर के नाम काप्रभाव बिहार-उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल-असाम सहित देश के अनेक हिस्सों मेंफैले भोजपुरियों के बीच खूब था. भिखारी ठाकुर को देखने के लिए लोग सिनेमा हॉल मेंटूट पड़े. फ़िल्म खूब चली. लेकिन जनता जिन्होंने पहले बिदेसिया नाटक देखा था उनकोनिराशा हुई. फ़िल्म की कहानी का बिदेसिया नाटक की कहानी से कोई लेना देना नहीं था.भिखारी ठाकुर की प्रसिद्धि का इस फ़िल्म ने केवल इस्तेमाल किया था. 2012 मेंबिदेसिया नाम से दुबारा फ़िल्म बनी है. यह फ़िल्म भोजपुरी में है. फ़िल्म की कहानीतो बिदेसिया से मिलती-जुलती है परंतु वह नाटक के कथानक की आत्मा को बख़ूबी ख़त्म करबाज़ारवाद की चपेट से ग्रसित है. यह फ़िल्म भी कॉपीराइट जैसे मुद्दों पर विवादों केघेरे में रही है.परंतु फ़िल्मी दुनिया से अलग 1971 में भिखारी ठाकुर के मृत्यु के बाद भी उनकी नाचमंडली चलती रही. उनके परिवार एवं रिश्तेदारों ने उनके नाच को कई वर्षों तक चलायापरंतु धीरे-धीरे यह दल टूट-बिखर गया. कुछ कलाकारों की मृत्यु हुई, कुछ ने काम छोड़दिया तो कुछ कलाकार क़ुतुबपुर गांव के बगल के ही बुद्धू राय की नाच पार्टी में मिलगए तथा भिखारी ठाकुर और बुद्धू राय की संयुक्त नाच पार्टी के रूप में काम करने लगे.राष्ट्रपति से पुरस्कार ग्रहण करते भिखारी ठाकुर के रंगसंगी कलाकार श्री रामचंद्रमांझीवर्ष 2014-15 में मैंने भिखारी ठाकुर के नाच दल के बूढ़े-बुजुर्ग कलाकारों कोएकत्रित किया तथा फिर से नाच दल को “भिखारी ठाकुर रंगमंडल” के नाम से पुनर्जीवितएवं संस्थानिकृत किया है. इस महत्वपूर्ण खोज में भिखारी ठाकुर से प्रशिक्षित औरउनके साथ काम कर चुके रामचंद्र मांझी (उम्र 94 वर्ष), शिवलाल बारी (उम्र 82 वर्ष),लखिचंद मांझी (उम्र 66 वर्ष), रामचंद्र मांझी छोटे (उम्र 70 वर्ष) जैसे दिग्गजकलाकार मिले. रंगमंडल ने भिखारी ठाकुर के नाटकों पुनर्जीवित किया तथा देश केप्रतिष्ठित मंचों पर दुबारा से भिखारी ठाकुर के नाटकों को उन्ही के अन्दाज़ मेंप्रस्तुत कर रही है. भिखारी ठाकुर रंगमंडल गांव में भी शादी-विवाह एवं त्योहार केमौक़े पर लगातार नाच कर रही है. इस रिवाइवल में संगीत नाटक अकादमी ने भरपूर सहयोगकिया है. भिखारी ठाकुर रंगमंडल ने भिखारी ठाकुर की रंग-यात्रा पर दूरदर्शन औरपीएसबीटी के आर्थिक सहयोग से एक डॉक्युमेंटरी फ़िल्म का निर्माण किया है जिसकेद्वारा लोग भिखारी ठाकुर के रंगमंचीय योगदान से परिचित हो रहे हैं. भिखारी ठाकुररंगमडल के रिवाइवल के बाद की सबसे महत्वपूर्ण परिघटना है. भारत सरकार एवं संगीतनाटक अकादमी द्वारा नाच विधा और भिखारी ठाकुर को मान्यता देते हुए इस विधा केवरिष्ठ कलाकार रामचंद्र मांझी जी को ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कर-2017’ से नवाजना. 6फ़रवरी 2018 को भारत के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद ने दरबार हॉल (राष्ट्रपतिभवन) में जब रामचंद्र मांझी जी को यह सम्मान दिया, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा किभिखारी ठाकुर के रंगसंगी नाच विधा के कलाकार को इतना बड़ा सम्मान मिलेगा. इस सम्मानने नाच विधा एवं भिखारी ठाकुर को दोबारा चर्चा में है. 1917 से शुरू हुआ भिखारीठाकुर के नाच का सफ़र आज भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा. इतना ही नहीं भिखारीठाकुर पर अकादमिक जगत में खूब लेखन हुआ है. देश-विदेश के नामी गिरामीविश्वविद्यालयों में कई चर्चित विद्वानों ने उन पर अध्ययन किया है. आज भी लगातार उनपर शोध जारी है. हमें उम्मीद नहीं पूरा विश्वास है कि यह कारवां आगे बढ़ता रहेगा...--------------------------------------------------------------------------------वीडियो- भिखारी ठाकुर की टीम में रहे रामचंद्र मांझी का लौंडा नाच देखिए