अखंड भारत का कॉन्सेप्ट आप ज़रूर जानते होंगे. मोस्टली इस कॉन्सेप्ट में इंडिया,पाकिस्तान और बांग्लादेश को एक मानने की बात होती है. बहुत बार इसमें नेपाल, भूटान,अफगानिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार, इंडोनेशिया और मलेशिया को भी साथ लपेटलिया जाता है. हम अखंड भारत की अखंड पॉलीटिकल बहस में नहीं घुसेंगे. हम इसकीजियोग्रफी को निशाने पर लेंगे.1947 तक अंग्रेज़ इस पूरे हिस्से पर राज करते थे. पहले इसके दो टुकड़े हुए. फिरदूसरे टुकड़े के दो.लगभग जिस हिस्से को अखंड भारत कहा जाता है, वो सच्ची-मुच्ची में एक अलग एंटिटी है.एक अलग जियोग्रफिकल एंटिटी. इसे इंडियन टेक्टोनिक प्लेट कहते हैं. करोड़ों साल पहलेये वाला अखंड भारत अफ्रीका, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया से सटा हुआ था.फिर इस प्रेम कहानी का वही हुआ जो फिल्मों में होता है - चार दिनों का प्यार औरलंबी जुदाई.इस बात का मर्म समझने के लिए हमें जियोग्रफी की क्लास में चलना होगा.जियोग्रफी की क्लास मतलब नक्शा आएगा. सबसे पहले आप इस दुनिया का नक्शा देखिए. इसनक्शे में ज़मीन के सात बड़े हिस्सों पर ध्यान दीजिए. ज़मीन के इन बड़े हिस्सों कोमहाद्वीप कहा जाता है. इंग्लिश मीडियम वाले 'कॉन्टिनेंट' कहते हैं.हरे और पीले हिस्से को जोड़ने का जी नहीं चाहा कभी?इन सात कॉन्टिनेंट्स के नाम हैं - नॉर्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका,अंटार्कटिका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया.ये नक्शा आपने कईयों बार देखा होगा. लेकिन क्या आपने एक सिंपल सी बात पर गौर कियाहै? एक हिंट देता हूं - साउथ अमेरिका और अफ्रीका की आमने-सामने वाली बाउंड्रीदेखिए. आंखें गड़ाकर देखिए. अगर आपकी नज़र और दिमाग दुरुस्त हैं तो आपको पज़ल के दोटुकड़े दिखेंगे. साउथ अमेरिका और अफ्रीका को नज़दीक लाकर आपका ये पज़ल पूरी करने कामन करेगा. लेकिन अब देर हो चुकी है. ये पहेली पहले ही सुलझ चुकी है. अब आप इस पहेलीके सुलझने की कहानी जान लीजिए.सब दूर भागा जा रहा है - कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्टपंद्रहवीं शताब्दी तक लोगों को दुनिया का आधा हिस्सा ही पता था. 1492 में कोलंबसइंडिया ढूढ़ते-ढूढ़ते अमेरिका पहुंच गया. और 'पुरानी दुनिया' के लोगों को एक 'नईदुनिया' का पता चला. दुनिया के नक्शे बदले और लगभग वैसे बने जैसे हम आज देखते हैं.अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में कुछ लोगों ने जब नक्शा देखा तो इसी अफ्रीका औरसाउथ अमेरिका की बाउंड्री को नोटिस किया. ये बात हवा में उड़ने लगी कि ये हिस्सेजुड़े हुए थे, बाद में कैसे न कैसे तो ये अलग हो लिए. लेकिन इस बारे में सबधीरे-धीरे बोलते थे या आधी बात कहकर सन्नाटे में निकल लेते थे. क्योंकि किसी के पासकोई सबूत नहीं था.अल्फ्रेड वेगेनर और इनका प्रपोज़ किया सुपरकॉन्टिनेंट पेंजिया.1 नवंबर 1880 को जर्मनी में सबूत देने वाला एक सपूत पैदा हुआ. इस सपूत का नाम थाअल्फ्रेड वेगेनर. वेगेनर एक जियोलॉजिस्ट थे, मतलब ये धरती की पढ़ाई करते थे. औरधरती के बारे में वेगेनर ने 1912 में एक इंपॉर्टेंट थ्योरी सामने रखी -'कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट थ्योरी'. जैसा कि इसका नाम है, ये थ्योरी कहती है किकॉन्टिनेंट्स ड्रिफ्ट हो रहे हैं, मतलब वो धीरे-धीरे फिसल कर एक दूसरे से दूर जारहे हैं. 20 करेड़ साल पहले ये कॉन्टिनेंट्स अलग-अलग नहीं थे. पहले एक हीकॉन्टिनेंट था. और इस कॉन्टिनेंट का नाम था 'पेन्जिया'. बाद में पेन्जिया टूटा औरआज के कॉन्टिनेंट्स बने.साइंटिस्ट्स ऐसा मानते हैं कि इन कॉन्टिनेंट्स के मिलने बिछड़ने की एक साइकिल चलतीहै1915 में वेगेनर ने इस थ्योरी को डीटेल में बताने के लिए एक किताब पब्लिश की - 'TheOrigin of Continents and Oceans'. वेगेनर ने एक दूसरे में फिट बैठती कोस्टलाइन्सके अलावा कुछ फॉसिल एविडेंस सामने रखे. फॉसिल मतलब मर चुके जानवरों के अवशेष.वेगेनर का आर्ग्यूमेंट था कि अलग-अलग कॉन्टिनेंट्स पर एक जैसे फॉसिल्स मिले हैं, एकजैसी चट्टानें भी मिली हैं. ज़मीन के ये टुकड़े पहले ज़रूर जुड़े रहे होंगे.ये अलग-अलग रंग, अलग -अलग फॉसिल्स का ट्रेस बताते हैं.अगर आपको लग रहा है कि वेगेनर को इस काम के लिए शाबाशी मिली, तो आप गलत हैं. वेगेनरकी इस थ्योरी को भयंकर विरोध झेलना पड़ा. उनका बहुत मज़ाक भी उड़ाया गया. इस थ्योरीको न मानने के पीछे बस एक ही सवाल था - ऐसे कैसे भाई?मतलब ये सब दूर कैसे जा रहे हैं? इसके पीछे क्या मैकेनिज़्म है.इस सवाल का जवाब 1950 और 1960 के दशक में मिला. 50 और 60 के दशक में मैग्नेटिकसर्वे हुए. समुद्र के भीतर कुछ प्लेट की बाउंड्रीज़ के बारे में पता चला. और यहांसे कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट की थ्योरी का अपग्रेडेड निकल कर आया. इस नए वर्ज़न का नामहै प्लेट टैक्टॉनिक्स.पैर के नीचे की ज़मीन खिसक रही है - प्लेट टैक्टॉनिक्सपृथ्वी की सतह का करीब दो तिहाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है. इस पानी को सुखाया जाएऔर फिर पृथ्वी को देखा जाए तो हमें इसका ऊपरी हिस्सा कुछ प्लेट्स में बंटा नज़रआएगा.किनारे में छोटू सी लाल रंग की इंडियन प्लेट है.इन प्लेट्स की बाउंड्री ज़मीन और पानी की मोहताज नहीं हैं. प्लेट्स का कुछ हिस्सासमुद्र में डूबा हुआ है कुछ खालिस ज़मीन है. और प्लेट टैक्टॉनिक्स की थ्योरी कहतीहै कि ये प्लेट्स इधर-उधर भाग रही हैं. क्यों भाग रही हैं? क्योंकि इनके नीचेगरमा-गरम लावा खौल रहा है.प्लेट को कहते हैं लिथोस्फीयर और प्लेट के नीचे का गरम लावा है एस्थीनोस्फीयर.प्लेट-टैक्टॉनिक्स का सीन दूध उवालने वाले पतीले जैसा है. पतीले में सबसे ऊपर मलाईहोती है . और नीचे दूध होता है. ऊपर की मलाई कुछ हिस्सों में बंटी हो और दूध खौलनेलगे तो मलाई के हिस्से इधर-ऊधर भागेंगे. यही है प्लेट-टैक्टॉनिक्स. यही आपके पैरोंके नीचे भी हो रहा है. पृथ्वी में ये मलाई है आपकी टैक्टॉनिक प्लेट. टैक्टॉनिकप्लेट को लिथोस्फीयर भी बोलते हैं. और यहां इस लिथोस्फीयर नाम की मलाई के नीचे गरमखौलता दूध है एस्थीनोस्फीयर. इसके भीतर पृथ्वी के और भी हिस्से हैं लेकिन वो इसपढ़ाई के लिए इतने इंपॉर्टेंट नहीं हैं. एस्थीनोस्फीयर के ऊपर लिथोस्फीयर तैरता औरप्लेट्स में हलचल होती है. ये हलचल बहुत स्लो होती है इसलिए हमें पता भी नहीं चलता.अखंड भारत का सफरहम इंडियन प्लेट के ऊपर फोकस करके इन प्लेट्स की हलचल देखेंगे. सबसे पहले पेन्जियासे शुरू करते हैं.यूएस जियोग्रफिकल सर्वे के मुताबिक करीब 30 करोड़ साल पहले एक ही टुकड़ा था -पेन्जिया. फिर पेन्जिया के दो टुकड़े हुए - लॉरेशिया और गोंडवानालैंड.गोंडवाना पहले ही बन चुका था. वो बाकी हिस्सों के साथ मर्ज होकर पेंजिया बना. फिरपेंजिया टूट कर गोंडवाना और लॉरेशिया में बंटा.लॉरेशिया उत्तरी हिस्से का नाम है इसमें आज के नॉर्थ-अमेरिका, यूरोप और एशिया केहिस्से थे.बाकी बचा ज़्यादातर हिस्सा गोंडवानालैंड में सिमटा हुआ था - साउथ अमेरिका, अफ्रीका,ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और इंडिया.पहले अफ्रीका और साउथ अमेरिका वाला हिस्सा बाकियों से अलग हुआ. फिर इन दोनों को भीअलग होना पड़ा.गोंडवानालैंड का नाम सबसे पहले एडुअर्ड सूज़ ने उछाला था. सूज़ को इंडिया, अफ्रीका,और साउथ अमेरिका में एक जैसे फॉसिल्स मिले थे. तो सूज़ ने कहा कि ये ज़रूर पहले एकसुपरकॉन्टिनेंट का हिस्सा रहे होंगे. सूज़ ने इंडिया के गोंडवाना इलाके से फॉसिल्सकलेक्ट किए थे इसलिए इस सुपरकॉन्टिनेंट का नाम गोंडवानालैंड रखा गया. खैर, करीब 17करोड़ साल पहले गोंडवानालैंड नाम की मलाई भी टूटी और वहां से इंडियन प्लेट निकली.ये इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट की तरफ को जा निकली.इंडियन प्लेट में समुद्र का हिस्सा तो है लेकिन इसमें लदाख , बलूचिस्तान नहीं हैकरीब 5 करोड़ साल पहले इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट में जा घुसी है. और घुसती हीचली गई. इन दो प्लेट्स के टकराने से हिमालय खड़ा हुआ. धीमी स्पीड से ही सही लेकिनये इंडियन प्लेट आज भी यूरेशियन प्लेट में घुसती ही चली जा रही है और हिमालय कीहाइट भी बढ़ती जा रही है.--------------------------------------------------------------------------------साइंसकारी: बस या कार में ट्रैवल करते समय उल्टी क्यों आती है?