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केन्या में बवाल, सड़कों पर क्यों उतरे लोग?

केन्या की संसद ने एक फ़ाइनेंस बिल पास किया है. इसमें रोटी, कपड़ा, गाड़ी, मोटर समेत दूसरी ज़रूरत की चीज़ों के दाम बढ़ाने का प्रस्ताव है. सरकार लोगों से ज़्यादा टैक्स वसूल कर राजस्व बढ़ाना चाहती है, ताकि अंतराष्ट्रीय बैंकों से लिया कर्ज़ा वापस किया जा सके.

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केन्या में सड़कों पर उतरे लोग (फोटो-गेट्टी)
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साजिद खान
26 जून 2024 (Published: 19:51 IST)
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"ये कल्पना भी नहीं की जा सकती कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी होने का दिखावा कर रहे अपराधी, जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों और संविधान के तहत चल रहे संस्थानों के खिलाफ आतंक फैला सकते हैं. जो भी ऐसा कर रहे हैं, वो बेदाग होने की उम्मीद बिल्कुल न करें. "

ये बयान है केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो का. जिनका कहना था कि हिसंक प्रदर्शन करने वाले गद्दार है. उनको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
 

रुटो ने ऐसा क्यों कहा?

दरअसल, केन्या की संसद ने एक फ़ाइनेंस बिल पास किया है. इसमें रोटी, कपड़ा, गाड़ी, मोटर समेत दूसरी ज़रूरत की चीज़ों के दाम बढ़ाने का प्रस्ताव है. सरकार लोगों से ज़्यादा टैक्स वसूल कर राजस्व बढ़ाना चाहती है, ताकि अंतराष्ट्रीय बैंकों से लिया कर्ज़ा वापस किया जा सके. टैक्स की बढ़ोत्तरी से जनता नाराज़ हो गई. लोग सड़कों पर उतर आए. 25 जून को ये प्रदर्शन हिंसक हो गया. कुछ प्रदर्शनकारियों ने संसद में आग लगा दी. उनको रोकने के लिए पुलिस ने गोली चलाई. अब तक कुल 13 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. हालात इतने बिगड़े कि भारत को केन्या में रह रहे भारतीयों से सावधानी बरतने की अपील करनी पड़ी.

तो समझते हैं-

- केन्या में प्रोटेस्ट हिंसक क्यों हुआ?
- जिस क़ानून का विरोध हो रहा है, उसमें क्या है?
- और, भारत-केन्या संबंधों का इतिहास क्या कहता है?


 

पहले बेसिक्स

केन्या, अफ़्रीका महाद्वीप के पूरब में बसा है. 5 देशों से ज़मीनी सीमा लगती है - तंज़ानिया, युगांडा, साउथ सूडान, इथियोपिया और सोमालिया. आबादी लगभग साढ़े 5 करोड़ है. इनमें 85 फीसदी ईसाई और 11 फीसदी मुसलमान हैं. बाकी 4 फीसदी में दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग हैं. केन्या की राजधानी नैरोबी है. स्वाहिली, अंग्रेज़ी भाषा बोली जाती है.      

पॉलिटिकल सिस्टम

केन्या में प्रेसिडेंशियल सिस्टम वाली व्यवस्था है. राष्ट्रपति ही सरकार और राष्ट्र, दोनों को मुखिया होता है. राष्ट्रपति का चुनाव जनता के डायरेक्ट वोट से होता है. पिछला राष्ट्रपति चुनाव अगस्त 2022 में हुआ था. इसमें विलियम रूटा ने जीत दर्ज की थी. विधायिका की शक्ति संसद के पास है. संसद में दो सदन हैं. ऊपरी सदन को सीनेट, जबकि निचले सदन को नेशनल असेंबली कहते हैं. नेशनल असेंबली में 349 सीट हैं.

इतिहास

हमने इतिहास में पढ़ा है कि मानव सभ्यता की शुरुआत अफ़्रीका से हुई है. वहीं से इंसान दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंचे. इसके कुछ साक्ष्य केन्या से भी मिलते हैं. लगभग 33 लाख साल पुराने साक्ष्य. ये इंसानों द्वारा बनाए गए शुरुआती हथियारों के बारे में हैं. नॉट सो ओल्ड इतिहास में जाएं तो 1895 में अंग्रेज़ों ने ब्रिटिश ईस्ट अफ़्रीकन प्रोटेक्टॉरेट की स्थापना की. इसका मकसद वर्तमान केन्या से लेकर युगांडा की सीमा तक लगे भू-भाग पर कब्ज़ा करना था. पहले अंग्रेज़ यहां सिर्फ़ व्यापार करते थे. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने यहां कब्ज़ा करना शुरू किया. पहले विश्व युद्ध में केन्या की लड़ाई तंज़ानिया से हुई. क्योंकि उस समय तंज़ानिया जर्मनी की कॉलोनी था. वहीं केन्या ब्रिटेन के अधीन था.
1920 में केन्या पर आधिकारिक रूप से ब्रिटेन का कब्ज़ा हो गया. पहले विश्व युद्ध के खात्मे के तुरंत बाद ही वहां आज़ादी की मुहिम शुरू हो गई. अंग्रेज़ इसको दबाने की कोशिश करते रहे. फिर 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध चालू हुआ. ब्रिटेन फिर इसमें व्यस्त हो गया. दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे से एक साल पहले 1944 में केन्या की आज़ादी के लिए केन्यन अफ़्रीकन यूनियन (KAU) बना. 1947 में जोमो केन्याटा इसके लीडर बने.

जोमो केन्याटा (फोटो-विकीपीडिया)


दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन के लिए औपनिवेशिक शासन चलाना मुश्किल होने लगा था. केन्या में भी वैसे ही हालात थे. ब्रिटेन KAU को केन्या का प्रतिनिधि तो मान रहा था, मगर बात आज़ादी तक बात नहीं पहुंच रही थी. इसलिए केन्याई लोगों के बीच अंग्रेजों के ख़िलाफ़ असंतोष फ़ैला. 1952 में ये गुस्सा फूटा और गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत हुई. इसको केन्या लैंड एंड फ्रीडम आर्मी लीड कर रही थी. इन्हें केन्या में माउ माउ के नाम से भी जाना गया. इन्होंने केन्या में रह रहे गोरों के ख़िलाफ़ हमले शुरू किए. इसमें KAU के लोगों का भी नाम आया. नतीजतन, ब्रिटेन ने माउ माउ और KAU पर शिकंजा कसना शुरू किया. KAU को 1952 में बैन कर जोमो केन्याटा को जेल भेज दिया गया. हिंसा की वजह से पूरे देश में आपातकाल लगा दिया गया.
नियति 09 बरस बदली. 1961 में जोमो केन्याटा जेल से आज़ाद हुए. उन्होंने आज़ादी की मुहिम तेज़ की. 1963 में केन्या को आज़ादी मिल गई. जोमो केन्याटा देश के पहले राष्ट्रपति बने. 1978 में जोमो की पद पर रहते हुए मौत हो गई. उस समय तक केन्या में एक लीय व्यवस्था चल रही थी. इसलिए जोमो की जगह उनकी ही पार्टी के डेनियल अराप मोई को राष्ट्रपति बनाया गया. 1991 में एक दलीय व्यवस्था खत्म कर दी गई. 1992 में चुनाव कराए. डेनियल अराप इसमें भी जीते. उनका शासन 2002 तक चला. 2002 में वाइ किबाकी राष्ट्रपति बने. वो 2013 तक राष्ट्रपति रहे. 2013 में उहुरू केन्याटा केन्या के चौथे राष्ट्रपति रहे. उनका कार्यकाल 2022 तक चला. 2022 से विलियम रूटा केन्या के राष्ट्रपति हैं. वो उहुरु केन्याटा के समय में उपराष्ट्रपति के तौर पर काम कर रहे थे. 
ये हुआ केन्या का इतिहास. इस दौर में केन्या ने एक बड़ा आतंकी हमले भी देखा. जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा. ये हमला 1998 में हुआ. अलक़ायदा के आतंकियों ने नैरोबी में अमरीकी दूतावास पर हमला किया. इसमें 224 लोग मारे गए और हज़ारों लोग घायल हुए थे. इसके बाद ही ओसामा बिन लादेन अमरीका की नज़र में आया था. और, उसको गंभीरता से लिया जाने लगा था.

अल-कायदा के हमले के बाद नैरोबी में अमरीकी दूतावास (फोटो- एफ बी आई)



भारत-केन्या संबंध 
केन्या और भारत दोनों पर अंग्रेज़ों का शासन रहा. केन्या के पश्चिम में पड़ने वाला युगांडा भी एक समय अग्रेजों के अधीन होता था. वहां अग्रेज़ों ने रेल नेटवर्क बिछाया था. इसके लिए वो भारत से बड़ी संख्या में मज़दूर ले गया था. इन मजदूरों की बड़ी संख्या पड़ोसी देश केन्या में भी रहती थी. तबसे ही भारत और केन्या के बीच लिंक बनने लगा था. इसलिए, केन्या की आज़ादी से पहले भी भारत के लीडरान वहां के दौरे पर जाते रहे. 1956 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन केन्या गए. 1963 में केन्या को आज़ादी मिली. उसके बाद भारत ने वहां अपना उच्चायोग खोला. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1970 और 1981 में केन्या का दौरा किया. और कौन-कौन से भारतीय नेता केन्या जा चुके हैं?
-1981 में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी.
-1978 में पीएम मोरारजी देसाई.
-जुलाई 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

1981 में केन्या के राष्ट्रपति डेनियल अराप पहली बार भारत की यात्रा पर आए. दिसंबर 2023 में मौजूदा राष्ट्रपति विलियम रूटा भी भारत आए थे.

केन्या की मदद

- 2016 में भारत ने केन्या की सेना को 30 फील्ड एम्बुलेंस गिफ्ट कीं.
- केन्याटा नेशनल हॉस्पिटल में कैंसर के इलाज के लिए भारत में बनी कैंसर थेरेपी मशीन गिफ्ट की.
- भारत ने नैरोबी यूनिवर्सिटी में महात्मा गांधी ग्रेजुएट लाइब्रेरी बनाने के लिए लगभग 8 करोड़ रुपये दिए थे.
- भारत केन्या में दूसरा सबसे बड़ा निवेशक है. 60 से ज़्यादा भारतीय कंपनियों ने रियल एस्टेट, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी और आईटीईएस, बैंकिंग और कृषि आधारित उद्योगों में निवेश किया है.
- 2017 में भारत ने केन्या को कृषि में मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए लगभग 800 करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया था.
- कोविड के दौरान भारत ने केन्या में दवाई भेजी थी.
 

हालिया मुद्दा
केन्या सरकार नया फाइनेंस बिल लेकर आई है. इसको सबसे पहले मई 2024 में संसद में पेश किया गया था. बिल में रोटी पर 16 फीसदी टैक्स और खाने के तेल पर 25 फीसदी ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव था. इसके अलावा, पैसे निकालने पर टैक्स बढ़ाने और गाड़ी की क़ीमत पर ढाई फ़ीसदी का सालाना ओनरशिप टैक्स लगाने की बात भी थी. लोगों के विरोध के बाद सरकार ने कुछ प्रावधानों में फेरबदल किए. मगर अधिकतर चीज़ें हुबहू बरकरार रहीं. मसलन,
- डिजिटल पेमेंट जैसे - बैंक ट्रांसफ़र और डिजिटल मनी पेमेंट्स पर 5 फीसदी टैक्स.
- देश की नेशनल मेडिकल इंश्योरेंस योजना के तहत आने वाले नौकरीपेशा लोगों पर 2.75 फीसदी का अतिरिक्त इनकम टैक्स लगाया गया है.
- अनाज, चीनी, खाने का तेल जैसी चीज़े महंगी होंगी. सेनेटरी पैड और डायपर पर भी एक्स्ट्रा चार्जेस लगाए जाएंगे.
- 50 से ज़्यादा बेड्स वाले अस्पताल बनाने और उसमें इक़्विपमेंट्स लगाने पर 16 फीसदी का एक्स्ट्रा टैक्स रखा गया. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसके चलते इलाज महंगा हो जाएगा.
- इसके अलावा, सरकार इम्पोर्ट टैक्स भी बढ़ाएगी. इससे बाहर से आने वाली चीज़ों के दाम बढ़ेंगे.

सरकार ऐसा क्यों कर रही है? क्योंकि उसको अंतरराष्ट्रीय बैंकों का क़र्ज़ चुकाना है. सरकार की कमाई से ज़्यादा खर्च है. जिसके चलते बजट घाटे में चल रहा है. घाटा तभी कम होगा जब कमाई बढ़े. इसको बढ़ाने के लिए सरकार नए टैक्स लगाने की तैयारी कर रही है. टैक्स बढ़ोतरी से केन्या सरकार को लगभग 22 हजार 521 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा. सरकार इसके ज़रिये लोग का बोझ कम करना चाहती है. क्योंकि सरकार अभी सालाना राजस्व का 37 फीसदी ब्याज चुकाने में खर्च कर पा रही है. फिलहाल, केन्या सरकार की उधारी GDP का 68 फीसदी है. जबकि वर्ल्ड बैंक और इंटरनैशनल मॉनेटरी फंड यानी IMF ने इसे 55 फीसदी पर रखने का सुझाव दिया था.
बजट घाटा बढ़ने की वजह से केन्या सरकार को मार्केट से पैसा उठाने में मुश्किल हो रही है. जब वहां बात नहीं बनी तो केन्या सरकार ने IMF का रुख किया. IMF ने सलाह दी कि पहले कमाई के टारगेट को पूरा कीजिए. तभी आपको उधार मिल पाएगा. और, अब कमाई का टारगेट पूरा करने के लिए सरकार टैक्स बढ़ाने की बात कर रही है.

लोग क्यों ग़ुस्सा हैं?
लोगों का कहना है कि बिल से महंगाई बढ़ेगी. वे पिछले कई हफ़्तों से विरोध कर रहे हैं. विरोध के बाद सरकार ने कुछ प्रावधानों को हटाया भी. मगर लोगों की नाराज़गी खत्म नहीं हुई. वे बिल को पूरी तरह निरस्त करने की मांग पर अड़े रहे. इसके बावजूद 25 जून को केन्या की संसद ने बिल पर मुहर लगा दी. इससे लोग भड़क गए. उन्होंने संसद में घुसने की कोशिश की. संसद के एक हिस्से में आग लगा दी. जिसके चलते सांसदों को भागना पड़ा. प्रोटेस्ट को खत्म करने के लिए पुलिस ने फ़ायरिंग भी की. हिंसा में अब तक 13 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. प्रोटेस्ट की एक बड़ी वजह राष्ट्रपति रुटो से भी जुड़ी है.
रुटो ने 2022 का चुनाव ग़रीबी के मुद्दे पर जीता था. उनका जीवन भी ग़रीबी में बीता है. वो बचपन में नंगे पैर स्कूल जाते थे.15 बरस की उम्र में पहली बार जूते पहने थे. इन्हीं कहानियों से रुटो पॉपुलर हुए. लोगों को लगा था कि वे ग़रीबी दूर करेंगे. मगर राष्ट्रपति बनने के बाद उनका चरित्र बदल गया. जब अमरीका की यात्रा पर गए तो सरकारी जहाज की बजाय आलीशान प्राइवेट जेट किराए पर लिया. जब बवाल हुआ तो सफाई दी कि किराया मेरे दोस्तों ने भरा है. पूछा गया कौन दोस्त, तो जवाब नहीं आया. दौरे के महीने भर बाद ही वो फ़ाइनेंस बिल लेकर आ गए.

आगे क्या होगा?
संसद में बिल पास हो चुका है. अब इसपर राष्ट्रपति का दस्तख़त होना बाकी है. राष्ट्रपति या तो 14 दिनों के अंदर साइन करेंगे या बिल में संशोधन के लिए संसद को वापस भेज सकते हैं. रुटो ने नाराज़ लोगों की बात सुनने का इशारा तो किया है. मगर बिल में संशोधन की गुंज़ाइश कम ही है.

बड़ी ख़बरों के बाद अब सुर्खियां जान लेते हैं
पहली सुर्खी इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट(ICC) से है. ICC ने रूस के पूर्व रक्षामंत्री सर्गेई शोइगु और मौजूदा आर्मी चीफ़ वलेरी गेरासिमोव के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट निकाला है. उनके ख़िलाफ़ युद्ध अपराध से जुड़े दो आरोप लगे हैं -  पहला, आम नागरिकों और बुनियादी इंफ़्रास्ट्रक्चर पर हमले का निर्देश दिया. और दूसरा, आम लोगों और इंफ़्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान पहुंचाया. रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से अब तक ICC आठ रूसी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट निकाल चुका है. लिस्ट में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भी नाम है. उनके ख़िलाफ़ मार्च 2023 में अरेस्ट वॉरंट जारी हुआ था. जिसके बाद पुतिन ने विदेश दौरों पर जाना कम कर दिया था.

 नीदरलैंड के हेग स्थित इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट (फोटो-  इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट वेबसाइट)



कितना अहम है ये अरेस्ट वॉरंट?
ये महज सांकेतिक है. इसका कोई असर दिखने की उम्मीद नहीं है. दो वजहें हैं.
1. रूस ICC का सदस्य नहीं है. वो उसके अधिकार-क्षेत्र में नहीं आता. वो पहले भी ICC के अरेस्ट वॉरंट को ख़ारिज कर चुका है.
2. ICC के पास अपनी कोई पुलिस या फ़ौज नहीं है. जब तक सदस्य देश अरेस्ट वॉरंट पर अमल नहीं करते, तब तक कुछ नहीं हो सकता. रूस अपने नागरिकों को कभी प्रत्यर्पित नहीं करता है. और, ICC में आरोपी की अनुपस्थिति के बिना मुकदमा चलाने का कोई क़ानून नहीं है.

ICC क्या है?
ये युद्धअपराध और नरसंहार जैसे जघन्य अपराधों की जांच करने और दोषियों को सज़ा देने वाली अंतरराष्ट्रीय अदालत है. इसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में है. स्थापना 2002 में हुई थी. 120 से अधिक देश इसके सदस्य हैं. उन्हीं की फ़ंडिंग से कोर्ट चलता है. अमेरिका, इज़रायल, भारत, रूस और चीन जैसे देशों ने ICC की सदस्यता नहीं ली है.

पिछले कुछ महीनों में ICC का नाम इज़रायल-हमास जंग में भी आ रहा था. चर्चा थी कि ICC इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, रक्षा मंत्री योआव गलांत के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरंट निकाल सकती है. अमरीका ने इसका तगड़ा विरोध किया था. हालांकि, वो रूसी नेताओं के ख़िलाफ़ निकाले गए अरेस्ट वॉरंट का पूरा समर्थन करता है.

दूसरी सुर्खी इज़रायल से है. सुप्रीम कोर्ट ने अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स यहूदियों के लिए मिलिटरी सर्विस को अनिवार्य बना दिया है. इन अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स यहूदियों को हरेदी कहते हैं. वे यहूदी धर्म की सभी पारंपरिक मान्यताओं को मानते हैं. उसी के हिसाब से जीवनयापन करते हैं. इज़रायल में नौजवानों के लिए मिलिटरी सर्विस अनिवार्य है. मगर उसमें अरब मूल के नागरिकों और हरेदी यहूदियों को इससे छूट मिली हुई थी. 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने छूट खत्म कर दी. साथ ही, सरकार को आदेश दिया कि हरेदी युवाओं को भी अनिवार्य मिलिटरी सर्विस का हिस्सा बनाया जाए. इज़रायल में कई ऐसी पार्टियां हैं, जो इसका विरोध करती रहीं है. उनमें से कई नेतन्याहू सरकार में भी हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का विरोध किया है. और, सरकार से दखल देने की अपील की है.

तीसरी और अंतिम सुर्खी ऑस्ट्रेलिया से है. विकीलीक्स के फ़ाउंडर जूलियन असांज ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए हैं. 25 जून को वो लंदन की जेल से रिहा होकर साइपेन पहुंचे थे. साइपेन नॉर्थ मेरियाना आईलैंड्स की राजधानी है. ये प्रशांत महासागर में बसा द्वीप है. ऑस्ट्रेलिया के क़रीब. इसपर अमरीका का कंट्रोल है. असांज, साइपेन की अदालत में पेश हुए. वहां उनको पांच बरस की सज़ा सुनाई गई. इतना समय वे लंदन की जेल में पहले ही काट चुके थे. इसलिए, उनको तत्काल रिहा कर दिया गया. साइपेन से निकलने के बाद उनका जहाज ऑस्ट्रेलिया में उतरा. 
 

जूलियन असांज ऑस्ट्रेलिया के ही नागरिक हैं. उन्होंने 2006 में विकीलीक्स की स्थापना की थी. इसपर अमरीका की लाखों ख़ुफ़िया फ़ाइल्स पब्लिश की गईं. जिसके बाद उनपर ख़ुफ़िया जानकारियां चुराने और अमरीकी नागरिकों की जान ख़तरे में डालने के आरोप लगे. 2019 में असांज को लंदन में गिरफ़्तार कर लिया गया. अमरीका ने उनको अपने यहां लाने की भरसक कोशिश की. मगर ब्रिटेन की अलग-अलग अदालतों में मामला लटकता रहा. आख़िरकार, जून 2024 में अमरीका ने डील कर ली. असांज ने 18 के बदले एक चार्ज़ में दोष स्वीकार किया और बदले में उनको रिहाई मिल गई.

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