The Lallantop
Advertisement

कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण 'खत्म' होने का पूरा सच

कर्नाटक सरकार ने आरक्षण का गणित बदल दिया है. अब मुस्लिम भी नाराज़ हैं और बंजारा समुदाय भी.

Advertisement
Karnataka CM Bommai
कर्नाटक मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अलग मुस्लिम कोटा खत्म कर दिया है (फोटो सोर्स- आज तक)
pic
शिवेंद्र गौरव
28 मार्च 2023 (Updated: 28 मार्च 2023, 21:06 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल 24 मई, 2023 को ख़त्म हो रहा है. विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. इस बीच कर्नाटक की बीजेपी सरकार (Karnataka BJP Government) ने आरक्षण को लेकर कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं, जिन पर बवाल खड़ा हो गया है. सड़क से लेकर अदालत तक सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है. मुस्लिम समाज कह रहा कि उनके साथ अन्याय हुआ है. और यही आरोप बंजारा जाति के लोगों का भी है. स्वाभाविक रूप से विपक्ष इसे सरकार का खतरनाक खेल करार दे रहा है.

कर्नाटक में आरक्षण का गणित कैसे बदला गया? सरकार का नया फैसला क्या है और इसका विरोध क्यों हो रहा है. आज की मास्टरक्लास में इसे विस्तार से समझते हैं.

सरकार का फैसला क्या है?-

कर्नाटक सरकार ने 24 मार्च, 2023 को नौकरी और शिक्षा से जुड़े आरक्षण को लेकर कुछ निर्णय लिए. जिनसे कर्नाटक में आरक्षण का पूरा गणित बदल गया. इन्हीं में से दो निर्णय ऐसे भी हैं जिन्हें साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित बताया जा रहा है. 

पहला कि मुसलमानों को 2B कैटेगरी के तहत मिलने वाला 4% आरक्षण ख़त्म कर उन्हें आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की कैटेगरी यानी EWS में डाल दिया गया. 

और दूसरा कि इस 4% आरक्षण को वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय में बांट दिया गया. 

दिसंबर, 2022 में वोक्कालिगा समुदाय को 2C कैटेगरी में डाला गया. अब इस कैटेगरी में वोक्कालिगा समुदाय को मिलने वाला आरक्षण 4 फीसद से बढ़कर 6 फीसद हो गया है, जबकि पंचमसालियों, वीरशैवों और दूसरी लिंगायत श्रेणियां जिन्हें 2D कैटेगरी में 5 फीसद मिलता था, वो बढ़कर 7 फीसद हो गया है. वहीं EWS कैटेगरी में डाले जाने के बाद मुस्लिम समुदाय को इस कैटेगरी के 10 फीसद आरक्षण के लिए ब्राह्मणों, वैश्यों, मुदालियर, जैन, और दूसरे समुदायों के साथ लड़ना होगा.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. हम धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए कोई समस्या नहीं पैदा करना चाहते थे इसलिए हमने एक सक्रिय कदम उठाया है. बोम्मई के मुताबिक, EWS समुदाय में मुसलमानों को कई मौके मिलेंगे. कोटे में कोई बंटवारा नहीं होगा.

बोम्मई ने ये भी कहा कि ‘कैटेगरी 1’ के तहत पिंजारा, नदाफ जैसी जिन 12 मुस्लिम उप-जातियों को जो आरक्षण मिल रहा है उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. और सरकार इन पिछड़ी जातियों के विकास के लिए बोर्ड भी बनाएगी.

लेकिन कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल मुस्लिमों के 4 फीसद आरक्षण को ख़त्म किए जाने का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि राज्य में पिछले 30 सालों से मुसलमानों के लिए पिछड़ा वर्ग कोटा है. ये एक क़ानून की तरह स्थापित हो चुका है. बिना किसी वैज्ञानिक आधार के, बिना किसी आयोग की रिपोर्ट के इसे बदला नहीं जा सकता.

कांग्रेस के इस बयान के मायने क्या हैं? ये विरोध क्यों हैं, इसे समझेंगे लेकिन पहले कर्नाटक में सभी कैटेगरी के आरक्षण में क्या बदलाव हुआ है ये जान लेते हैं.

आरक्षण में क्या बदलाव हुए?

कर्नाटक में कैटेगरी I में पिछड़ा वर्ग को रखा गया है और इन्हें 4% आरक्षण दिया गया है.
- कैटेगरी II को 2 सब कैटेगरी में बांटा गया है. कैटेगरी II(A), II(B),
-कैटेगरी III को भी दो कैटेगरी में बांटा गया है. कैटेगरी III(A) और III(B).
- कैटेगरी II(A) में अन्य पिछड़ा वर्ग को रखा गया है और इन्हें 15% आरक्षण दिया गया है.
- II(B) में मुस्लिमों को रखा गया था, और 4% का आरक्षण दिया गया था. लेकिन अब इस कैटेगरी में रिजर्वेशन ख़त्म कर दिया गया है.
- III(A) में वोक्कालिगा आदि समुदायों को रखा गया है और इन्हें 4% आरक्षण दिया गया था, जिसे अब बढ़ाकर 6% कर दिया गया है.
- III(B) में लिंगायत और बाकी समुदायों को 5% आरक्षण दिया गया था जिसे अब बढ़ाकर 7 फीसद कर दिया गया है.
-SC कैटेगरी में अनुसूचित जाति के लोगों को 17 फीसद आरक्षण दिया गया था. ये अभी भी उतना ही है लेकिन इसको 4 हिस्सों में बांट दिया गया है. 
-ST कैटेगरी में अनुसूचित जनजाति के लोगों को 7 फीसद आरक्षण दिया गया था, इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.
-वहीं EWS कैटेगरी में 10 फीसद आरक्षण दिया गया है. लेकिन अब इस कैटेगरी में मुस्लिम भी शामिल कर दिए गए हैं.

एक और बात, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 फीसद तय की है. और EWS कैटेगरी के 10 फीसद आरक्षण को छोड़ दें तो कर्नाटक सरकार 50 फीसद आरक्षण की सीमा पहले ही क्रॉस कर चुकी है. अक्टूबर, 2022 में कर्नाटक सरकार ने SC और ST का आरक्षण क्रमशः 15 से बढ़ाकर 17 फीसद और 3 से बढ़ाकर 7 फीसद करने का ऐलान कर दिया था. इस तरह कर्नाटक में कुल आरक्षण 56 फीसद हो जाता है. बोम्मई ने ये ऐलान करते वक़्त कहा था कि ये SC/ST कम्युनिटी को सरकार का दीवाली गिफ्ट है. हालांकि देश भर में एक पक्ष का मानना ये भी है कि EWS कोटे से 50% वाला सुप्रीम कोर्ट का बैरियर अपने-आप टूट चुका है.

नए ऐलान के बाद विरोध (फोटो साभार-SDPI Karnataka)
मुस्लिम आरक्षण का इतिहास-

मुस्लिम समुदाय की शिकायत है कि बोम्मई सरकार के फैसले से उनकी सामजिक दशा सुधारने के लिए लिया गया सौ साल पुराना फैसला पलट गया है. इस शिकायत का मर्म समझने के लिए कर्नाटक में मुसलमानों को मिले आरक्षण के इतिहास को समझना होगा.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने इस विषय पर एक विस्तृत खबर की है. इसके मुताबिक, आजादी के पहले से अब तक कई कमीशन बने. इन सभी ने कर्नाटक के मुसलमानों को एक पिछड़ा समुदाय माना. प्रोफ़ेसर एस. जैफेट, बंगलुरु सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर रहे हैं. उन्होंने 2015 में कर्नाटक के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर एक स्टडी की थी.

प्रोफ़ेसर जैफेट इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहते हैं,

"साल 1918 में मिलर पैनल से लेकर साल 1990 में ओ चिन्नप्पा रेड्डी कमीशन तक, सभी ने मुसलमानों को सामाजिक रूप से पिछड़ा माना है."

कर्नाटक के मुसलमानों को सामजिक और शिक्षा के स्तर पर पिछड़ा मानते हुए पहली बार  4%  आरक्षण 2B कैटेगरी के तहत साल 1994 में मिला. उस वक़्त HD देवेगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. लेकिन मुसलमानों को आरक्षण देने की कवायद साल 1918 में तत्कालीन मैसूर रियासत के वक़्त से ही चल रही थी.

साल 2019 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल एंड इकॉनमिक चेंज के रिसर्च स्कॉलर, अजहर खान ने एक रिसर्च पेपर तैयार किया था. इस पेपर के मुताबिक,

"मैसूर के तत्कालीन महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने साल 1918 में मिलर कमेटी बनाई थी. इस समिति ने पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण, स्कॉलरशिप और आयुसीमा में छूट जैसी चीजों की सिफारिश की थी. नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए कुछ छूट दी गई थी. और इस समिति ने मुसलमानों को भी पिछड़ा वर्ग माना था. आजादी के बाद, 1961 में, आर नागन गौड़ा कमेटी ने (जिसे मैसूर पिछड़ा वर्ग आयोग भी कहते हैं.) मुसलमानों को पिछड़े वर्गों में रखने की सिफारिश की. कमेटी ने 10 से ज्यादा मुस्लिम जातियों को सबसे पिछड़ा माना था."

लेकिन इस समिति की रिपोर्ट लागू नहीं हो सकी. प्रभावी उच्च जाति वर्ग ने भी इसका विरोध किया था. इसके बाद साल 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने पहला कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया. इस आयोग का कहना था कि जाति के कारण पिछड़ापन हिन्दुओं में है. और ईसाई या मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए पिछड़े वर्ग में गिने जाने की जरूरत नहीं है. हालांकि इस आयोग का ये भी कहना था कि राज्य की नौकरियों में मुसलमानों की संख्या बहुत कम है और इस समुदाय को सामजिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं बल्कि बतौर धार्मिक अल्पसंख्यक अलग से आरक्षण देना चाहिए.

इसके बाद साल 1977 में देवराज उर्स ने मुस्लिमों को अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण दिया भी लेकिन लिंगायत जैसे प्रभावी समुदायों ने इसका विरोध कर दिया. जिसके बाद साल 1983 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग बनाना पड़ा.

रामकृष्ण हेगड़े की सरकार के वक़्त बने इस आयोग ने साल 1986 में अपनी रिपोर्ट दी. इसमें पिछड़ेपन को आर्थिक आधार पर तय करने, मुस्लिमों का आरक्षण बरकरार रखने और लिंगायतों और वोक्कालिगा को आरक्षण से बाहर करने की बात की गई. इसलिए इसका भी विरोध हुआ.

फिर 1988 में ओ चिन्नप्पा रेड्डी पैनल बना. माने तीसरा पिछड़ा वर्ग आयोग. इसकी रिपोर्ट साल 1990 में आई. इसमें पिछड़े वर्ग से क्रीमी लेयर हटाने को कहा गया लेकिन मुसलमानों को बैकवर्ड क्लास में ही रखने को कहा गया. इसके बाद साल 1994 में वीरप्पा मोइली की सरकार बनी. उन्होंने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए एक नई कैटेगरी 2 बनाई. साल ख़त्म होते-होते देवेगौड़ा नए सीएम बने लेकिन उन्होंने इस कैटेगरी में 4 फीसद आरक्षण को जारी रखा.

पूर्व प्रधानमंत्री HD देवेगौड़ा (फोटो साभार -PTI)

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उस वक़्त कर्नाटक के पुलिस मुखिया ने देवेगौड़ा को कुछ आंकड़े दिए थे . जिसके मुताबिक पूरे प्रदेश की पुलिस में सिर्फ 0.1 फीसद कांस्टेबल मुसलमान थे. ये बाकी समुदायों के मुकाबले बहुत कम संख्या थी. जिसके बाद उन्होंने मुसलमानों को आरक्षण देने का फैसला किया.

बोम्मई सरकार के हालिया निर्णय के बारे में प्रोफ़ेसर जैफेट कहते हैं,

"मुसलमानों को उनके धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि उनके पिछड़ेपन के आधार पर पिछड़े वर्ग में रखा गया है. सरकार का ये निर्णय बहुत अवैज्ञानिक है, और ये तय करने का भी कोई आधार नहीं है कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग पिछड़ेपन से बाहर आया है या नहीं.

विपक्ष के आरोप-

देवेगौड़ा के बेटे, कर्नाटक के पूर्व CM और JD(S) के नेता, HD कुमारस्वामी ने कर्नाटक की BJP सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा,

"उन्होंने(BJP ने) आरक्षण के नाम पर खतरनाक खेल खेला है. कुछ ऐसा करने की कोशिश की है जो असंभव है. ये उनका चुनाव से पहले का हथकंडा है."

जबकि कांग्रेस कहती है कि ये बीजेपी की धार्मिक बंटवारे की राजनीति है. धर्म के आधार पर भेदभाव करना असंवैधानिक है, अमानवीय है. और कांग्रेस सत्ता में आई तो मुस्लिमों का आरक्षण बहाल किया जाएगा.

हालांकि CM बोम्मई का कहना है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय को कानूनी मुसीबतों से बचाने के लिए ये निर्णय लिया है. वो कहते हैं,

"संवैधानिक बहसों के दौरान डॉ. अंबेडकर ने तर्क दिया था कि आरक्षण जातियों के लिए है. और हम मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह से छोड़ना नहीं चाहते हैं. इसलिए इसे कानूनी चुनौतियों से बचाने के लिए भी हमने ये निर्णय लिया है."

बोम्मई के मुताबिक सरकार ने मुस्लिमों का रिजर्वेशन ख़त्म नहीं किया बल्कि इसे सिर्फ EWS कैटेगरी में लाकर बदला है. उन्हें अब आर्थिक मापदंडों का भी फायदा मिलेगा. इधर कर्नाटक में बंजारा और भोवी समुदाय के लोग भी SC कोटा में 4 हिस्सों में बांटे जाने के खिलाफ हैं. कल 27 मार्च, 2023  इन लोगों ने भारी तादात में शिवमोगा में येदियुरप्पा के घर और दफ्तर के बाहर हिंसक विरोध प्रदर्शन किए. जिसके बाद धारा 144 लागू की गई है.

कर्नाटक की चुनावी सरगर्मी बढ़ेगी तो अलग-अलग जाति वर्गों के आरक्षण का ये मुद्दा और गर्माने वाला है. राज्य के बीजेपी चीफ कह रहे हैं कि किसी समुदाय के साथ अन्याय करने के लिए निर्णय नहीं लिया गया है. और वो खुली चर्चा के लिए तैयार हैं. 

वीडियो: असदुद्दीन ओवैसी के टीपू सुल्तान विवाद पर BJP नेता की चुनौती, बोले- बताओ कर्नाटक में कहां आना है?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement