जवाहर लाल नेहरू ने अपनी जिंदगी के कितने दिन जेल में बिताए?
आज बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि नेहरू की जिंदगी बहुत अय्याशी में बीती. क्या ऐसा था?
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जवाहर लाल नेहरू जब तक जिंदा थे, बहुत बड़े जननेता थे. उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि आप शायद कल्पना भी न कर सकें. विदेशों में भी नेहरू की बहुत धाक थी. भारत की आजादी के बाद दुनिया के कई देशों को शुबहा था. कि क्या आजाद होने के बाद भारत अपने दम पर जी लेगा? सर्वाइव कर लेगा? भारत के साथ आजाद हुए पाकिस्तान को देखते हुए ये सवाल ज्यादा उठता था. कइयों ने तो मान लिया था कि भारत एक मुल्क के तौर पर फेल हो जाएगा. ऐसे लोग भी जब नेहरू की ओर देखते, तो कहते. कि इस आदमी के रहते भारत की उम्मीदें, उसकी संभावनाएं नहीं मरेंगी. विदेशों में अब भी नेहरू की बड़ी इज्जत है. लेकिन भारत में स्थितियां बदल गई हैं. अब नेहरू को लेकर विवाद ज्यादा हैं. बहुत लोग जानते ही नहीं कि नेहरू ने देश के लिए क्या किया. लोग आज की कांग्रेस और उसके नेताओं को देखकर नेहरू को जज करते हैं. इसके पीछे दशकों तक नेहरू के खिलाफ फैलाए गए झूठों का बहुत बड़ा हाथ है. इसीलिए हम बता रहे हैं नेहरू की जेल यात्राओं के बारे में.
कार्टून साभार: http://nehruportal.nic.in
जेल यात्राएं नेहरू बैरिस्टर थे. खूब अमीर परिवार था उनका. ऐसा परिवार, जिन्हें खानदानी रईस कहा जाता है. गांधी के असर में नेहरू फ्रीडम स्ट्रगल में शामिल हुए. 1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल नौ बार जेल गए. सबसे कम 12 दिनों के लिए. सबसे ज्यादा 1,041 दिनों तक. ऐसा नहीं कि राजनीतिक बंदी होने के नाते जेल में बड़ी अच्छी सुविधाएं मिलती हों. वो अंग्रेजों की जेल थी और उनकी सजा में सश्रम कारावास भी था. इन सबके बारे में थोड़ा-थोड़ा बताते हैं आपको-
ये है लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल. नेहरू ने जेल की पहली सजा यहीं पर काटी. 6 दिसंबर, 1921 को जब उन्हें गिरफ्तार किया गया, उसी रात उन्हें इलाहाबाद से लखनऊ भेज दिया गया (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
पहली बार- 6 दिसंबर, 1921 से 3 मार्च, 1922
नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत दौरा हुआ. कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने प्रिंस के दौरे का बहिष्कार किया. ब्रिटिश हुकूमत कांग्रेस और खिलाफत कार्यकर्ताओं पर सख्ती दिखाने लगी. गिरफ्तारियां होने लगीं. प्रिंस जब इलाहाबाद पहुंचा, तो सड़कें-गलियां एकदम वीरान पड़ी थीं. इलाहाबाद में थे नेहरू. वहां प्रिंस के बहिष्कार को कामयाब बनाने में उनका बड़ा हाथ था. 6 दिसंबर को पुलिस 'आनंद भवन' पहुंची और नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके पिता मोतीलाल नेहरू भी अरेस्ट किए गए. नेहरू पर सेक्शन 17 (1) के तहत केस चला. उन्हें छह महीने जेल और 100 रुपया जुर्माना भरने की सजा मिली. नेहरू ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया. उन्हें लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल में बंद किया गया. 3 मार्च, 1922 को 87 दिन जेल की सजा के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. नेहरू रिहा नहीं होना चाहते थे. उन्होंने कहा था-
मैं नहीं जानता कि मुझे रिहा क्यों किया जा रहा है. मेरे पिता को अस्थमा है. वो और मेरे सैकड़ों साथी अभी भी जेल में हैं. मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं कि करो या मरो. आजाद भारत के लिए संघर्ष जारी रखो. जब तक आजादी नहीं मिल जाती, चैन से नहीं बैठना है.
ये लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल का वो कमरा है, जहां नेहरू को बंद रखा गया था (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
दूसरी बार- 11 मई, 1922 से 31 जनवरी 1923
इस बार कुल 266 दिन बिताए उन्होंने जेल में. पहले 11 मई, 1922 से 20 मई, 1922 तक उन्हें इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट जेल में रखा गया. फिर वहां से लखनऊ डिस्ट्रिक्ट जेल शिफ्ट कर दिया. अपनी पहली जेल की सजा काटकर बाहर आने के बाद नेहरू विदेशी कपड़ों के बहिष्कार की मुहिम में जुट गए. नेहरू गिरफ्तार यूं हुए कि 11 मई को वो अपने पिता से मिलने जेल गए थे. वहां उल्टा उनको ही गिरफ्तार कर लिया गया. फिर इलाहाबाद भेजकर वहां की जिला जेल में डाल दिया. उन्हें 18 महीने सश्रम कारावास की सजा हुई. जेल भेजे जाते समय नेहरू ने कहा था-
भारत को आजाद कराने की इस लड़ाई में शामिल होना सम्मान की बात है. महात्मा गांधी के नेतृत्व में काम करना दोहरे गर्व की बात है. अपने प्यारे देश के लिए तकलीफ उठाने से अच्छा क्या होगा. हम भारतीयों के लिए इससे ज्यादा भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि या तो अपने देश के लिए संघर्ष करते हुए मर जाएं या फिर हमारा ये सपना पूरा हो जाए.तीसरी बार- 22 सितंबर, 1923 से 4 अक्टूबर, 1923
ये सबसे छोटे वक्त की सजा थी. बस 12 दिन. सजा का बैकग्राउंड ये था कि दो रियासतें थीं- नाभा और पटियाला. दोनों में ठनी हुई थी. इसका फायदा उठाते हुए ब्रिटिश सरकार ने नाभा के राजा को गद्दी से हटा दिया. रियासत चलाने के लिए अपना आदमी नियुक्त कर दिया. इससे सिख भड़क गए. सिखों के कई जत्थे नाभा पहुंचे. अंग्रेजों ने उन्हें बुरी तरह पीटा. फिर अरेस्ट करके जंगलों में छोड़ दिया. ये सारी खबर मिलने पर नेहरू यहां के लिए निकले. एक जत्थे में शामिल हो गए. पुलिस ने उनसे नाभा से निकल जाने को कहा. मगर नेहरू और उनके साथी नहीं माने. उन्हें जेल में डाल दिया गया. अपनी आत्मकथा में नेहरू ने इस सजा के बारे में लिखा है-
मुझे, मेरे साथी ए टी गिडवानी और के संथानम को बहुत बुरी स्थितियों में नाभा जेल के अंदर रखा गया था. जेल की कोठरी बेहद गंदी थी. छोटी सी वो कोठरी नमी और सीलन से भरी थी. छत इतने नीचे था कि हाथ से छू सकते थे. रात को हम फर्श पर सोते थे. सोते हुए जब कोई चूहा मेरे चेहरे पर से गुजरता, तब अचकचाकर मेरी नींद खुल जाती थी.
नैनी सेंट्रल जेल की इस कोठरी में बंद रखे गए थे नेहरू (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
चौथी बार- 14 अप्रैल, 1930 से 11 अक्टूबर, 1930
इस दफा नेहरू कुल 181 दिनों तक इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद रहे. उन्हें जेल यूं भेजा गया कि फरवरी 1930 में कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने गांधी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने की इजाजत दे दी. गांधी अपने कुछ सहयोगियों के साथ डांडी यात्रा पर रवाना हुए. नेहरू इस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. वो और उनके सहयोगी आंदोलन का विस्तार करने में जुटे थे. इस आंदोलन ने जिस तरह से लोगों को एकजुट किया, उससे अंग्रेज सरकार परेशान हो गई. उन्होंने सख्ती काफी बढ़ा दी. 14 अप्रैल, 1930 को नेहरू रायपुर जा रहे थे. वहां हिंदी प्रॉविंशल कॉन्फ्रेंस का तीसरा सेशन था. रास्ते में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें छह महीने जेल की सजा मिली. लोगों के नाम संदेश देते हुए नेहरू बोले-
हंसते रहिए. संघर्ष जारी रखिए. इलाहाबाद के अपने भाइयों और बहनों से मैं क्या कह सकता हूं? जो प्यार उन्होंने मुझे दिया है, उसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूं. मैं उम्मीद करता हूं कि इलाहाबाद के लोग देश को आजाद कराने के लिए इस संग्राम में पूरी तरह से हिस्सेदारी करेंगे. इलाहाबाद का सम्मान बरकरार रखिएगा.
ये डायग्राम है नैनी सेंट्रल जेल की उस बैरक का, जिसमें नेहरू को बंद रखा गया था. इसे बनाया था खुद नेहरू ने (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
पांचवीं बार- 19 अक्टूबर, 1930 से 26 जनवरी, 1931
100 दिनों तक नेहरू इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में बंद रहे. गिरफ्तार यूं हुए कि वो किसानों को एकजुट कर रहे थे. कि वो अंग्रेज सरकार को टैक्स न दें. ऐसे ही एक अभियान के दौरान उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. कई मामले चले उन पर. राजद्रोह का मुकदमा भी चला. अलग-अलग मामलों में मिली सजा को मिलाकर कुल दो साल की सश्रम कैद हुई. जुर्माना अलग. जुर्माना न चुकाने पर पांच महीने की सजा और. इसी बार में उन्होंने इंदिरा को कई चिट्ठियां लिखीं, जो आगे चलकर 'ग्लिम्पसेज़ ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' में छपीं. अपने केस के ट्रायल के दौरान नेहरू ने कहा था-
आजादी-गुलामी और सच-झूठ के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता है. हमें ये मालूम चल चुका है कि खून बहाकर और तकलीफें सहकर ही आजादी हासिल होगी. देश की आजादी के इस महान संघर्ष में सेवा करना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी है. मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरे देश के लोग बिना थके ये संघर्ष जारी रखेंगे. तब तक, जब तक कि हमें कामयाबी नहीं मिल जाती. जब तक कि हमें अपने सपनों का भारत नहीं मिल जाता है. आजाद भारत जिंदाबाद.
ये देहरादून जेल है. यहीं पर कैद रहते हुए नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को वो चिट्ठियां लिखनी शुरू कीं, जो आगे जाकर 'ग्लिप्सेज़ ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' नाम से प्रकाशित हुईं. ये काम अधूरा रह गया था. अगली बार जब नेहरू जेल लौटे, तब जाकर उन्होंने इसका काम पूरा किया (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
छठी बार- 26 दिसंबर, 1931 से 30 अगस्त, 1933
इस बार कुल 614 दिन जेल में रहे नेहरू. उन्हें इस जेल से उस जेल शिफ्ट किया जाता रहा. पहले नैनी सेंट्रल जेल, फिर बरेली डिस्ट्रिक्ट जेल, फिर देहरादून जेल, फिर वापस नैनी सेंट्रल जेल. नेहरू किसानों से अपील कर रहे थे कि वो जमींदारों को लगान देना बंद कर दें. तब तक, जब तक कि सरकार किसानों की परेशानियां दूर नहीं करती. ये अपील बड़ी हिट हुई. इसे दबाने के लिए यूनाइटेड प्रोविंस की सरकार अध्यादेश ले आई. कहा, किसान अगर लगान देने से इनकार करता है तो ये अपराध माना जाएगा. नेहरू को इलाहाबाद से बाहर न निकलने और किसी भी तरह की राजनैतिक गतिविधि में शामिल न होने का आदेश दिया गया. मगर नेहरू नहीं माने. नतीजा, उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. दो साल के सश्रम कारावास और 500 रुपया जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई.
अल्मोड़ा जेल में नेहरू की कोठरी. तस्वीर में दिख रहा बिस्तर, मेज और कुर्सी वही हैं जिनका इस्तेमाल नेहरू ने किया था. नेहरू जब जेल में बंद होते थे, तो बहुत ज्यादा पढ़ते-लिखते थे (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
सातवीं बार- 12 फरवरी, 1934 से 3 सितंबर, 1935
इस दफ़ा कुल 558 दिन जेल में बिताए नेहरू ने. पहले अलीपुर सेंट्रल जेल में रखा गया उनको. फिर देहरादून जेल भेजे गए. फिर नैनी सेंट्रल जेल और वहां से अल्मोड़ा जेल. 17 और 18 जनवरी, 1934 को नेहरू कोलकाता (तब का कलकत्ता) पहुंचे. वहां के अल्बर्ट हॉल में उन्होंने सभाएं की. यहां दिए गए भाषणों की वजह से उनके ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ. उन्हें इलाहाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया. फिर से उनके ऊपर राजद्रोह का केस चला. अपना पक्ष रखते हुए नेहरू बोले-
अगर राजद्रोह का मतलब है भारत की आजादी और विदेशी गुलामी के सारे निशानों को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करना, तो बेशक मैंने राजद्रोह किया है.नेहरू को दो साल जेल की सजा सुनाई गई.
ये साल 1941 की तस्वीर है. नेहरू देहरादून जेल में बंद थे (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी)
आठवीं बार- 31 अक्टूबर, 1940 से 3 दिसंबर, 1941
कुल 399 दिनों की जेल. क्या हुआ था कि दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. कांग्रेस ने भी अपनी एक वॉर कमिटी बनाई. नेहरू इसके अध्यक्ष थे. अबुल कलाम आजाद और सरदार पटेल भी थे इसमें. इस कमिटी ने एक प्रस्ताव जारी किया. मांग रखी कि ब्रिटिश सरकार भारत को आजाद कर दे. नेहरू ने सत्याग्रह शुरू करने का ऐलान कर दिया. इसी सिलसिले में उन्होंने 6-7 अक्टूबर, 1940 को गोरखपुर में कुछ भाषण दिए. इन्हीं भाषणों की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें चार साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई.
ये हैं नेहरू, अहमदनगर फोर्ट जेल में. ये आजादी के बाद की तस्वीर है. जेल की इस कोठरी के बाहर दीवार पर लिखा है कि नेहरू इसी सेल में रहे थे. इसी जेल में बंद रहते हुए नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया लिखी थी (फोटो: नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी )
नौवीं बार- 9 अगस्त, 1942 से 15 जून, 1945
ये आखिरी बार था, जब नेहरू जेल में डाले गए थे. ये जेल में बिताया गया उनका सबसे लंबा वक्त था- कुल 1,041 दिन. ये 'भारत छोड़ो आंदोलन' का दौर था. शायद भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे ऐतिहासिक दौर था ये. क्योंकि यहां से शुरू हुआ रास्ता आगे चलकर आजादी तक पहुंचा. कांग्रेस ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का प्रस्ताव पारित किया. नेहरू समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए. नेहरू को सबसे पहले अहमदनगर किले की जेल में बंद रखा गया. वहां से बरेली सेंट्रल जेल भेजा गया. फिर वो अल्मोड़ा जेल भेजे गए.
नेहरू देशभक्त थे. लीडर थे. इस देश को आजाद कराने में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. बस आजाद नहीं कराया, बल्कि आजादी के बाद के सबसे शुरुआती, सबसे कच्चे सालों में भारत का नेतृत्व भी किया. उनके योगदान को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. अफसोस कि बहुत सारे लोग नेहरू को उनके असली रूप में नहीं जानते हैं. उनके बारे में जाने कैसा-कैसा कूड़ा पढ़कर और सुनकर बैठे हैं. नेहरू जैसे नैशनल हीरोज़ सम्मान के पात्र हैं. उनके नीतियों की आलोचना की जा सकती है, की जानी चाहिए, पर आलोचना की भी सभ्यता होती है. आपसे अपील है कि असली इतिहास पढ़िए. वॉट्सऐप छाप झूठी हिस्ट्री के शिकार मत होइए.
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