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इज़रायल के कवच आयरन डोम का हमास ने क्या तोड़ निकाला?

युद्ध जैसे माहौल के बीच इज़रायल के लोग आपस में क्यों लड़ रहे हैं?

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इज़रायल की बमबारी में अब तक 119 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. (तस्वीर: एएफपी)
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स्वाति
14 मई 2021 (Updated: 14 मई 2021, 15:46 IST)
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आपको बी आर चोपड़ा की महाभारत याद है? उसमें एक योद्धा अपना साधा हुआ बड़े से बड़ा अस्त्र छोड़ता था. सामने वाला योद्धा उसकी काट में अपना अस्त्र दागता था. दोनों अस्त्र आसमान में जाकर एक-दूसरे से टकराते थे. ज़्यादा मारक अस्त्र सामने वाले अस्त्र को नष्ट कर देता था. ऐसी ही तस्वीरें अभी इज़रायल से आ रही हैं. हमास अपने रॉकेट्स दाग रहा है. और इज़रायल के इंटरसेप्टर मिसाइल उन्हें रोककर नष्ट कर रहे हैं. इनमें से एक मुकाबला तामिर और कत्युशा के बीच भी है. इन दोनों के बारे में आगे विस्तार से बताएंगे आपको.
सबसे पहले आपको युद्ध का अपडेट दे देते हैं. इज़रायल और हमास के बीच चल रही हिंसा का आज 5वां दिन है. हमास की ओर से रॉकेट हमले जारी हैं. गाज़ा के अलावा लेबनन की साइड से भी इज़रायल पर कम-से-कम तीन रॉकेट छोड़े जाने की ख़बर है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इज़रायल ने सीज़फायर के प्रस्तावों को ठुकरा दिया है. उसने कहा है कि वो पहले हमास की सैन्य ताकत को ख़त्म करेगा. उसके कई सीनियर लीडर्स को टारगेट करेगा. इसके बाद ही वो संघर्षविराम पर वार्ता करेगा.
Israel Palestine Fresh Protest
इज़रायली बमबारी में अब तक 83 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. (तस्वीर: एपी)


13 और 14 मई की दरमियानी रात इज़रायल के करीब 160 विमानों ने 40 मिनट के भीतर 450 मिसाइलें गिराईं गाज़ा पर. 14 मई को भी बमबारी जारी रही. ख़बरों के मुताबिक, इज़रायली बमबारी में हमास के अंडरग्राउंड सुरंग नेटवर्क का कई किलोमीटर लंबा हिस्सा नष्ट हो गया. इज़रायल की बमबारी में अब तक 119 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. इनमें 30 बच्चे भी शामिल हैं. 800 से ज़्यादा फिलिस्तीनी जख़्मी हुए हैं. सैकड़ों फिलिस्तीनियों ने बमबारी से बचने के लिए UN द्वारा संचालित स्कूलों में शरण ली है. वहीं हमास के हमले से इज़रायल में एक बच्चे समेत सात लोगों की जान गई है.
इस बीच ग्राउंड ट्रूप्स को तैनात किए जाने की भी ख़बर आई. इसपर कन्फ़्यूजन भी बना. 13 मई की देर रात IDF, यानी इज़रायल डिफ़ेंस फोर्सेज़ ने एक ट्वीट किया. इसमें लिखा था कि IDF की हवाई और ज़मीनी टुकड़ियां गाज़ा स्ट्रिप पर हमला कर रही हैं. इसके बाद एक आधिकारिक बयान आया. इसमें बताया गया कि इज़रायली पैदल सेना गाज़ा क्षेत्र में दाखिल हो गई है. इसके बाद IDF की ओर से एक और बयान आया. इसमें करेक्शन किया गया कि इज़रायली पैदल सेना गाज़ा क्षेत्र में घुसी नहीं है. बल्कि वो सीमा के पास इज़रायली हिस्से से ही अटैक कर रही है.
ऐसा नहीं कि हमास इज़रायल की अकेली चुनौती हो. रॉकेट हमलों से भी ज़्यादा बड़े और खतरनाक एक खतरे से जूझ रहा है इज़रायल. वो भी अपने ही घर, अपने ही शहरों के अंदर! ये इतनी भीषण चुनौती है कि इज़रायल के राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन ने इसे इज़रायल के अस्तित्व पर ख़तरा बताया. क्या है ये मामला, ये भी बताएंगे.
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इज़रायल के राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन. (तस्वीर: एपी)


सबसे पहले तामिर और कत्युशा की बात
ये बात है सेकेंड वर्ल्ड वॉर की. 22 जून, 1941 की तारीख़. इस रोज़ नात्ज़ी जर्मनी ने लॉन्च किया ऑपरेशन बारबरोसा. इसका मतलब था, सोवियत संघ पर औचक हमला. ये सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी का सबसे बड़ा मिलिटरी ऑपरेशन था. साल ख़त्म होते-होते जर्मनी सोवियत की सीमा में डेढ़ हज़ार किलोमीटर से भी ज़्यादा अंदर घुस आया. वो मॉस्को के बाहर तक पहुंच गया.
सोवियत की बहुत बर्बादी हुई. शुरुआत में तो उसके पास कोई डिफेंस ही नहीं था. लेकिन फिर सोवियत ने की वापसी. और इस वापसी में मददगार उसके सबसे मशहूर हथियारों में से एक था- कत्युशा. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के सबसे चर्चित हथियारों में से एक. कत्युशा एक रॉकेट लॉन्चर था. ये एक ट्रक पर फ़िक्स होता था. इसकी ख़ासियत थी इसकी स्पीड और मोबिलिटी. 132 एमएम कत्युशा दस सेकेंड के भीतर चार दर्ज़न वॉरहेड्स फ़ायर कर लेता था. इसकी बैटरी इतनी पावरफुल थी कि कुछ ही सेकेंड के भीतर एक बड़े इलाके को कई टन विस्फ़ोटक से पाट देती थी. इसकी रणनीति थी- शूट ऐंड स्कूट. यानी, इससे पहले कि दुश्मन उसपर अपनी बंदूकें ताने, कत्युशा फ़ुर्ती से फ़ायरिंग करके भाग जाता था.
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कत्युशा सेकेंड वर्ल्ड वॉर के सबसे चर्चित हथियारों में से एक था. (तस्वीर: एएफपी)


यही कत्युशा हमास के भी पास है. वो पहले भी संघर्ष के दौरान इसे इज़रायल के खिलाफ़ इस्तेमाल करता रहा है. इस दफ़ा भी हमास इसे इस्तेमाल कर रहा है. इनके जवाब में इज़रायल जिन इन्टरसेप्टर मिसाइलों को यूज़ कर रहा है, उनमें से एक है तामिर.
हमने आपको आयरन डोम डिफ़ेंस सिस्टम के बारे में बताया था
. उसी आयरन डोम के लॉन्चर सिस्टम का इंटरसेप्टर मिसाइल है तामिर. इंटरसेप्टर, यानी वो मिसाइल जो हमला करने वाले रॉकेट को हवा में खत्म कर देगा. आयरन डोम के हर लॉन्चर में 20 तामिर मिसाइल होते हैं. एक तामिर का वजन करीब 91 किलो. इसकी रेंज 40 किलोमीटर से ज़्यादा है.
एक तामिर मिसाइल की क़ीमत 15 लाख से 75 लाख रुपये के बीच होती है. ये मिसाइल लॉन्च होने पर हमलावर रॉकेट्स के पास पहुंचते हैं और उन्हें हवा में ही नष्ट कर देते हैं. कई बार एक रॉकेट को रोकने के लिए आयरन डोम को दो तामिर छोड़ने पड़ते हैं. तब, जब रॉकेट का टारगेट किसी आबादी वाले इलाके या कोई हाई वैल्यू इमारत हो. ताकि दुश्मन रॉकेट के बचने की कोई आशंका न रहे. ज़ाहिर है, इज़रायल के लिए ख़ुद को डिफेंड करना न तो बहुत आसान है और न ही सस्ता.
इसके अलावा एक और चिंता है. ये है, हमास द्वारा दागे जा रहे रॉकेट्स की संख्या. इस बार हमास ने आयरन डोम से निपटने की एक नई युक्ति खोजी है. वो इसकी क्षमता को चैलेंज कर रहा है. कैसे? इज़रायल और हमास के बीच पिछली बड़ी लड़ाई हुई थी 2014 में. तब भी हमास ने रॉकेट्स छोड़े थे. करीब 50 दिन तक ये संघर्ष चला. इस पूरी अवधि में हमास ने तकरीबन 4,000 रॉकेट्स छोड़े. मगर इस दफ़ा रॉकेट्स की संख्या कहीं अधिक है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 10 मई की शाम से अब तक करीब दो बार ऐसा हुआ कि कुछ ही मिनटों के भीतर गाज़ा की ओर से 100 से भी ज़्यादा रॉकेट्स दागे गए. 10 मई की शाम से 13 मई की दोपहर तक ही गाज़ा से 1,200 से भी ज़्यादा रॉकेट्स छोड़े जा चुके थे.
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आयरन डोम, इज़रायल का विख़्यात मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. (तस्वीर: एएफपी)


आशंका है कि हमास और फिलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद ने इस दफ़ा एक सोची-समझी स्ट्रैटजी के तहत रॉकेट्स की एक भारी खेप जमा कर रखी है. वो जानते हैं कि रॉकेट्स नष्ट करने में इज़रायल का बहुत पैसा बह रहा है. इन्टरसेप्टर मिसाइलों की आपूर्ति भी अनंत नहीं है. इसके अलावा जानकारों का कहना है कि आयरन डोम भले इफ़ेक्टिव हो, मगर उसका भी एक सेचुरेशन पॉइंट है. वो एक बार में अधिकतम कितने रॉकेट्स से डील कर सकता है, इसकी भी एक सीमा है.
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इज़रायल एयरफ़ोर्स हवाई बमबारी कर रही है. (तस्वीर: एपी)


अगर रॉकेट्स की संख्या इस सेचुरेशन पॉइंट के पार गई, तो आयरन डोम एक्जॉस्ट हो जाएगा. ऐसी स्थिति में जो रॉकेट नष्ट नहीं हो पाएंगे, वो नुकसान पहुंचाएंगे. शायद इसीलिए अब इज़रायल ने अपने ग्राउंड ट्रूप्स और आर्टिलरी को भी गाज़ा बॉर्डर के पास तैनात कर दिया है. एयरफ़ोर्स हवाई बमबारी कर रही है. और ग्राउंड फोर्सेज़ गाज़ा की तरफ आर्टिलरी और टैंक से फ़ायरिंग कर रही हैं.
इज़रायल में सिविल वॉर छिड़ने की आशंका?
एक तरफ़ जहां इज़रायल के आगे हमास की चुनौती है. वहीं घरेलू फ्रंट पर भी उसके यहां एक वॉर ज़ोन बन गया है. इज़रायल के कई शहरों में उसके नागरिक आपस में भिड़ रहे हैं. बड़े स्तर पर लूट, आगजनी और तोड़-फोड़ की वारदातें हो रही हैं. लोग एक-दूसरे को लिंच करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके चलते इज़रायल में कई लोग सिविल वॉर छिड़ने की आशंका जता रहे हैं. ये क्या मामला है? ये मामला है नस्लीय नफ़रत और हिंसा का.
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इज़रायल के कई शहरों में उसके नागरिक आपस में भिड़ रहे हैं. (तस्वीर: एपी)


इज़रायल में केवल यहूदी नहीं रहते. यहां ईसाई और अरब मूल के मुस्लिमों की भी काफ़ी तादाद है. इज़रायल की कुल आबादी है करीब 90 लाख. इनमें लगभग 19 लाख मुस्लिम हैं. ये फिलिस्तीनी मूल के लोग हैं. 1948 में अरब-इज़रायल युद्ध हुआ था. उस समय लाखों फिलिस्तीनी अपना घर-बार छोड़कर इज़रायली इलाकों से पलायन कर गए. कइयों को जबरन भगा दिया गया. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सारे फिलिस्तीनी चले गए हों. कई फिलिस्तीनी परिवार इज़रायल में ही रह गए. जब इज़रायल का गठन हुआ, वो देश बना, तो ये फिलिस्तीनी परिवार भी ऑटोमैटिकली इज़रायली नागरिक बन गए.
इनमें से कई अरब आज भी ख़ुद को फिलिस्तीनी मानते हैं. इसकी वजह आप जानते हैं. फिलिस्तीनियों का कहना है कि वो देश तो उन्हीं का था. इज़रायल को जबरन उनकी ज़मीन पर बसा दिया गया. लेकिन यहां एक दिक्क़त थी. फिलिस्तीनी कहने से दुनिया समझती है, बंटवारे में फिलिस्तीन को मिले भूभाग में रहने वाले लोग. मसलन, वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी के निवासी. ऐसे में अगर इज़रायली नागरिकता वाले फिलिस्तीनियों को फिलिस्तीनी कहा जाता, तो कन्फ़्यूजन होता. इसी वजह से इनके लिए नया टर्म चल निकला- अरब इज़रायली.
कागज़ी तौर पर अरब इज़रायलियों के पास भी बाकी इज़रायलियों जैसे अधिकार हैं. मसलन, वोट देने का हक़. संसद में चुने जाने का हक़. मगर आरोप लगता है कि इन अधिकारों से इतर उन्हें सेकेंड क्लास सिटिज़न की तरह बरता जाता है. उनका जीवन स्तर दोयम है. उनके बीच गरीबी ज़्यादा है. देश के संसाधनों में उनकी हिस्सेदारी कम है. अरब बहुमत वाले शहर देश के सबसे गरीब शहरों में गिने जाते हैं. यहां तक कि अरबी और हिब्रू भाषियों, मतलब यहूदी और मुसलमानों के स्कूल तक में बंटवारा है. इल्ज़ाम है कि अरब स्कूलों को फंडिंग भी कम दी जाती है.
नौकरी जैसे अवसरों में भी उनके साथ पक्षपात की शिकायतें आती हैं. पुलिस और प्रशासन द्वारा भी उनके साथ हॉस्टाइल रवैया रखने के आरोप लगते हैं. 2016 के एक सर्वे में सामने आया कि इज़रायल में रहने वाले यहूदियों का लगभग 50 पर्सेंट हिस्सा चाहता है कि अरब मूल वालों को देश से निकाल दिया जाए. या फिर कहीं और ले जाकर बसा दिया जाए. कुल मिलाकर समझिए कि यहूदी आबादी और अरब इज़रायलियों के बीच गहरी खाई है.
Palestine
इज़रायली हमले में 800 से ज़्यादा फिलिस्तीनी जख़्मी हुए हैं. (तस्वीर: एपी)


ईस्ट जेरुसलम का विवाद का कारण?
अगर बसाहट के लिहाज से देखें, तो अरब इज़रायलियों की एक बड़ी संख्या अपनी मेजॉरिटी वाले इलाकों में रहती है. लेकिन कई शहर हैं, जहां यहूदी और अरबों की मिश्रित आबादी है. इन्हीं इलाकों में अभी तनाव गहरा गया है. तनाव के ट्रिगर होने का ज़रिया बना, ईस्ट जेरुसलम. ये फिलिस्तीनी बसाहट का इलाका है. ये इलाका 1967 से ही इज़रायल के कब्ज़े में है. इज़रायल की ओर से इन्हें भी नागरिकता का प्रस्ताव दिया गया था. मगर पूर्वी जेरुसलम के फिलिस्तीनी परिवारों ने इसे ठुकरा दिया. इस आधार पर कि वो तो ऑक्युपाइड आबादी हैं. वो अवैध कब्ज़ा करने वाले की नागरिकता क्यों लेंगे?
इसी ईस्ट जेरुसलम में छह फिलिस्तीनी परिवारों का यहूदियों के साथ प्रॉपर्टी विवाद है. इन परिवारों पर घर से बेदखल होने का ख़तरा है. इस घटना को जेरुसलम पर कब्ज़े की इज़रायल की कलेक्टिव कोशिश से जोड़कर देखा गया. तनाव बढ़ा. यहूदी अल्ट्रा राइट विंग वालों ने आग और धधकाई.
10 मई को अल-अक्सा मस्ज़िद परिसर में इज़रायली फोर्सेज़ की एंट्री से टेंशन और बढ़ी. उसके बाद एक तरफ़ जहां हमास ने इज़रायल पर हमला शुरू कर दिया. वहीं इज़रायली शहरों, ख़ासकर मिक्स्ड आबादी वाले शहरों में, दोनों समुदायों के बीच भी हिंसा शुरू हो गई.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिस तरह की सांप्रदायिक हिंसा अभी हो रही है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. इंतिफ़ादा के समय भी ऐसे हालात नहीं बने थे. कैसे हालात? राजधानी टेल अविव समेत कई शहरों में हिंसा हो रही है. इनमें से एक ही शहर है लोड. अल-अक्सा परिसर में पुलिसिया कार्रवाई के चलते यहां भी अरब समुदाय में नाराज़गी थी. 10 मई की रात कुछ अरब युवाओं ने एक मस्ज़िद के बाहर प्रोटेस्ट किया. उन्होंने फिलिस्तीन का झंडा भी फहराया. पुलिस यहां पहुंची और उसने प्रोटेस्टर्स पर स्टन ग्रेनेड्स और टीयर गैस छोड़े. इसी रात एक अरब व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस सिलसिले में तीन यहूदी अरेस्ट किए गए. इस हत्या ने आग में घी का काम किया. अरब भीड़ ने शहर में कई जगहों पर आगजनी की. कुछ प्रार्थना स्थलों में भी आग लगाई.
इसके बाद क्रिया और प्रतिक्रिया की ऐसी श्रृंखला बनी कि कोई फ़र्क ही नहीं रह गया. कट्टरपंथी यहूदियों ने भी उत्पात मचाना शुरू किया. आसपास के शहरों से भी कई कट्टरपंथी यहूदी लोड पहुंच गए. कुछ तो अपने साथ असॉल्ट रायफ़ल तक लेकर आए थे. सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट सर्कुलेट होने लगीं. मोबलाइज़ेशन की अपील जारी होने लगी.
कुछ पोस्ट्स में तो सिविलियन आर्मी तक बनाने की अपील थी. अब कट्टरपंथी यहूदी अरब आबादी को चिह्नित करके अटैक करने लगे. अरबों की ओर से भी हिंसा और उपद्रव हुआ. 13 मई की सुबह प्रार्थना स्थल जा रहे एक यहूदी पर चाकू से वार किया गया. लोड शहर के मेयर ने कहा कि हालात गृह युद्ध जैसे नज़र आ रहे हैं.
पीएम नेतन्याहू ने क्या कहा?
लोड के घटनाक्रम के चलते 13 मई को ख़ुद प्रधानमंत्री नेतन्याहू यहां दौरे पर पहुंचे. उन्होंने यहूदियों और अरबों, दोनों से अपील की. कहा, एक-दूसरे पर हमले रोकें. नेतन्याहू ने यहां सेना तैनात करने की बात कही. कहा कि अराजकता रोकने के लिए सख़्ती बढ़ाने से भी वो नहीं हिचकेंगे. नेतन्याहू बोले-
मॉब वॉयलेंस गाज़ा से हो रहे हमलों की तुलना में ज़्यादा बड़ा ख़तरा है इज़रायल के लिए. ये लिंचिंग्स बंद कीजिए. मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपका खून कितना खौल रहा है. आप किसी सूरत में क़ानून को हाथ में नहीं ले सकते.
Benjamin Netnyahu
इज़रायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू. (तस्वीर: एपी)


लोड की बेक़ाबू स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने यहां इमरजेंसी डिक्लेयर कर दी. यहां नाइट कर्फ़्यू भी लगा दिया गया. 500 से ज़्यादा पैरामिलिटरी जवानों को भी तैनात किया गया. वेस्ट बैंक में तैनात फोर्स का कुछ हिस्सा डायवर्ट करके शहर की सुरक्षा में लगाया गया. इसके बावजूद हालात संभले नहीं हैं. आशंका है कि यहां हिंसा और भड़क सकती है.
लोड के बाद अकरे, हफिफ़ा जैसे शहर भी हिंसा की चपेट में आए. ये वो शहर हैं, जिन्हें अपने यहां के सामुदायिक सद्भाव पर नाज़ हुआ करता था. यही हाल कई और शहरों का है. भीड़ एक-दूसरे की दुकानों और रेस्तराओं को टारगेट कर रही है. लोगों के घर जलाए जा रहे हैं. दूसरी कम्युनिटी का कोई हाथ आ गया, तो लोग उसे लिंच करने की कोशिश कर रहे हैं.
राजधानी टेल अविव की भी स्थिति चिंताजनक है. यहां 'बात याम' नाम का एक इलाका है. 12 मई को कट्टरपंथी यहूदियों की एक भीड़ ने अरब आदमी को कार से घसीटा. और पीट-पीटकर अधमरा कर दिया. वो आदमी खून में लथपथ सड़क पर पड़ा रहा. ये वारदात घटनास्थल के पास मौजूद चैनल 11 के कैमरे से लाइव टेलिकास्ट हो गया.
12 और 13 मई को कट्टरपंथी यहूदियों द्वारा कई शहरों में रैलियां निकालने की ख़बर आई. इस दौरान कई स्थानों पर वो पुलिस से भी भिड़ गए. कुछ जगहों पर उनकी अरब लोगों से भी झड़प हुई. टेल अविव में तो कट्टरपंथी यहूदियों की एक भीड़ लाइव कैमरे पर पुलिस के साथ गुंथ गई. पुलिस अब तक 500 से भी ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है. इनपर दंगे और उपद्रव में शामिल होने का आरोप है.
सांप्रदायिक हिंसा और उपद्रव इज़रायल के कई शहरों में फैल गया है
नेगेव डेज़र्ट में अरबों ने यहूदी ड्राइवरों पर पत्थर फेंके. जफ़ा शहर में अरबों की एक भीड़ ने 19 साल के एक सैनिक को इतना पीटा कि उसकी खोपड़ी फ्रैक्चर हो गई. टेल अविव में यहूदी भीड़ ने पत्रकारों तक पर हमला किया.
Yitzhak Yosef
इज़रायल में यहूदियों के मुख्य पुजारी हैं यित्ज़ात योसेफ़. (तस्वीर: एएफपी)


लीडर्स लोगों से शांत होने की अपील कर रहे हैं. इज़रायल का एक राजनैतिक दल है- रिलिजियस ज़ाइनिज़म पार्टी. ये कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी है. इसके मुखिया हैं बेत्ज़ालेल स्मोत्रिक. उन्होंने कहा कि बाथ याम में अटेम्पटेड लिंचिंग की जो वारदात हुई, वो भीषण थी. इसपर वो भी शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं. इज़रायल में यहूदियों के मुख्य पुजारी हैं यित्ज़ात योसेफ़. उन्होंने भी यहूदियों से अपील की. कहा कि हिंसा तुरंत रोकी जानी चाहिए. विपक्ष के नेता भी जनता से शांत होने की अपील कर रहे हैं.
आबादी को एक-दूसरे से दूर रखकर, उन्हें अलग-अलग इलाकों, अलग-अलग स्कूलों में बांटकर इज़रायल की समस्या सुलझेगी नहीं. न ही शहरों में आर्मी तैनात करने से हल निकलेगा. क्योंकि सांप्रदायिक नफ़रत का असर तात्कालिक उपायों से ख़त्म नहीं होता. इज़रायल को गाज़ा सीमा, वेस्ट बैंक और जेरुसलम के अलावा अपनी सारी सरहदों पर भी आर्मी की बड़ी डिप्लॉयमेंट लगानी पड़ती है. केवल संघर्ष के समय नहीं, आमतौर पर भी. लेकिन अगर देश के भीतर भी एक कम्युनल वॉर फ्रंट हावी हो जाए, तो ये सरहदों की सुरक्षा से ज़्यादा बड़ी चुनौती होगी.

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