इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर बंटा अंतरराष्ट्रीय मीडिया, किसने क्या लिखा?
एक तरफ पश्चिमी देश इजरायल के समर्थन में हैं, तो दूसरी ओर अरब देश फिलिस्तीन के साथ खड़े हैं. कई देशों ने हमास के हमले को सही भी ठहराया है.
इजरायल और गाजा पट्टी के बीच शुरू हुए हमलों में दोनों तरफ 500 से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं. हजारों लोग घायल हुए हैं. पहले फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने दावा किया कि उसने इजरायल पर 5 हजार रॉकेट दागे हैं. इसके बाद इजरायल ने भी गाजा पट्टी पर हमले शुरू कर दिये. इस संघर्ष में दुनिया के देश गुटों में बंट गए हैं. और इस सालों के विवाद के नए तरीके से सिर उठाने पर दुनिया भर की मीडिया प्रमुखता से कवर कर रही है. पश्चिमी देश सहित अरब देशों के अखबारों और दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म ने इस टकराव की खबरें लगातार प्रकाशित कर रहे हैं. आपको बताते हैं कि इन्होंने क्या लिखा है.
अमेरिकी अखबार द वाशिंगटन पोस्ट ने अपने पहले पन्ने पर कई तस्वीरों के साथ इस खबर की बड़ी कवरेज की है. शीर्षक दिया है- हमास के हमले के बाद इजरायन ने जंग का एलान कर दिया. अखबार ने लिखा है कि इस्लामिक चरमपंथी समूह हमास ने जमीन, समुद्र और हवाई तीनों तरीके से इजरायल पर हमला किया. इजरायली नागरिक इस संघर्ष के आदी हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने ऐसे दिन का अनुभव नहीं किया होगा. अखबार ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का भी बयान छापा, जिसमें कहा गया है कि अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा है. राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि उन्होंने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ फोन पर बात की और कहा कि इजरायल को अपनी और अपने लोगों की आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है.
अखबार ने इस तनाव को लेकर अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की बैठक का भी जिक्र किया है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन औरा दूसरे उच्च अधिकारी स्थिति पर चर्चा के लिए वॉइट हाउस में इकट्ठा हुए थे. खुफिया एजेंसी के एक प्रवक्ता ने अखबार को बताया कि CIA डायरेक्टर विलियम जे बर्न्स ने वॉशिंगटन में रुकने के लिए जॉर्जिया में पहले से तय एक सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस को कैंसिल कर दिया. ताकि इजरायल में पैदा हुए संकट पर राष्ट्रपति और राष्ट्रीय सुरक्षा की चर्चा में मदद कर सकें.
वहीं ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने इजरायल और गाजा के बीच शुरू हुए इस संघर्ष को लेकर कई खबरें छापी हैं. साथ ही इस विवाद का विश्लेषण भी किया गया है. और ऐतिहासिक घटनाक्रमों को भी जगह दी गई है. अखबार ने एक लेख का शीर्षक दिया है- '1973 के बाद इजरायल को मिली सबसे बड़ी चुनौती की कीमत आम लोग चुकाएंगे'. इसमें 50 साल पहले हुए योम किप्पूर युद्ध का भी जिक्र किया गया है. अखबार ने लिखा कि 50 साल बाद इतिहास ने खुद को दोहराया. इजरायली नागरिक राकेट साइरन के साथ जगे. इजरायल बनने के 75 साल बाद पहली बार फिलिस्तीनी फोर्स ने ग्रीन लाइन (बॉर्डर) के भीतर के इलाकों पर कब्जा कर लिया. दर्जनों इजरायली नागरिकों को उनके घरों में बंधक बना लिया गया या उन्हें गाजा पट्टी लेकर चले गए.
गार्डियन ने लिखा है कि इस हवाई और जमीनी हमले की टाइमिंग ने इजरायलियों और फिलिस्तीनी दोनों को अचंभित कर दिया. इस हमले को इजरायल की खुफिया एजेंसियों की बड़ी असफलता बताई गई है. जिन्हें अनुमान था कि हमास इस स्तर युद्ध नहीं छेड़ने वाला है. क्योंकि दोनों पक्ष हाल में कतर, मिस्र और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में एक समझौते पर पहुंचे थे. अखबार ने लिखा कि अब ऐसा लगता है कि गाजा के लोग, जो पिछले 16 सालों में चार युद्ध देखे चुके हैं, इसकी भारी कीमत चुका सकते हैं.
कनाडा के अखबार टोरंटो सन ने भी गाजा के हमलों पर कई खबरें छापी हैं. अखबार ने अपने एक लेख में लिखा है कि गाजा को शांति चुनने, चीजों में बदलाव के लिए आतंक को खारिज करने की जरूरत है. पूरी दुनिया ने किडनैपिंग, सड़कों पर बंधक बनाए गए जवानों को घसीटे जाने, मारे गए नागरिकों की बॉडी के साथ भीड़ के जश्न के फोटोज और वीडियो को देखा. बूढ़ी महिलाओं और जवान लड़कियों को बंधक बनाया गया. ये पूरी तरह से बर्बरता है. अखबार ने लिखा है कि इस तरह की घटनाओं में दोनों तरफ से शांत रहने को नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि हमास ने सुनियोजित तरीके से ये हमला किया, जिसके लिए महीनों से प्लानिंग की गई होगी. क्योंकि पूरे इजरायल में यहूदी शबात मना रहे हैं.
रूसी अखबार द मॉस्को टाइम्स ने रूसी सरकार के बयान को छापा है. लिखा है कि रूस ने गाजा में तुरंत सीजफायर की अपील की है. रूस के विदेश मंत्रालय ने हमास के हमले के बाद इजरायल और फिलिस्तीनी फोर्स से सशस्त्र संघर्ष रोकने की अपील की है. रुसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद से दोनों पक्षों को शांति स्थापित करने के लिए समझौता प्रक्रिया शुरू करने को कहा है. जखारोवा के मुताबिक, लंबे समय से चले आ रहे इजराय और फिलिस्तीन विवाद को हथियार से नहीं, बल्कि राजनयिक माध्यम से ही सुलझाया जा सकता है. रूस 1967 के बॉर्डर के आधार पर एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के गठन को लेकर अपने स्टैंड पर कायम है.
इसी तरह हांगकांग स्थित 'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' अखबार ने भी फिलिस्तीन राष्ट्र को लेकर चीन के स्टैंड का जिक्र किया है. हालांकि अखबार ने चीन सरकार का बयान छापा है कि इस पर तुरंत युद्धविराम लगना चाहिए. चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो फिलिस्तीन और इजरायल के बीच तनाव और हिंसा बढ़ने से काफी चिंतित है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तुरंत कदम उठाना चाहिए ताकि दोनों पक्षों के बीच शांति बहाल हो सके. अखबार ने लिखा कि तनाव बढ़ने से चीन दुविधा की स्थिति में है क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगियों के उलट, मिडिल ईस्ट में अरब और इजरायल के साथ चीन के संबंध अच्छे हैं.
इजरायल और फिलिस्तीन विवाद को अरब देशों के अखबारों ने भी प्रमुखता से छापा है. सऊदी अरब के अंग्रेजी अखबार ‘अरब न्यूज’ ने पहले पन्ने को इसी संघर्ष से भर दिया. अखबार ने पहले पन्ने पर 7 अक्टूबर की हिंसा की तस्वीरों को लगाकर इसकी तुलना 50 साल पहले हुए योम किप्पूर युद्ध से की है. अखबार के एडिटर-इन-चीफ फैसल जे अब्बास ने एक लेख में लिखा है कि इसका परिणाम जो भी हो, हमास अपनी जीत घोषित करेगा. लेकिन ये गाजा की वास्तविकता को नहीं बदल सकेगा और इजरायली सेना की कार्रवाई को फिलिस्तीनी भुगतेंगे.
फैसल अब्बास ने लिखा है कि इस तरह का हमला महीनों की प्लानिंग के बाद ही हो सकता है. ये उसी तरह का हमला है, जो फिलिस्तीनियों के अधिकारों को लगातार दबाये जाने के परिणाम के रूप में चेताया जा रहा था. जो दावा कर रहे हैं कि ये हमला बिना उकसावे के किया गया है, वो गलत हैं. ये इजरायली सरकार की तरफ से लगातार की जा रही कार्रवाई की प्रतिक्रिया है. लेकिन नागरिकों की हत्या और किडनैपिंग को सही नहीं ठहराया जा सकता है. उन्होंने सऊदी सरकार के बयान को दोहराते हुए लिखा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को 'दो राष्ट्र' के समाधान को लेकर शांति प्रक्रिया में आगे बढ़ना चाहिए.
मध्य-पूर्व की खबरों पर नजर रखने वाली वेबसाइट मिडिल ईस्ट आई ने इस संघर्ष को कई एंगल से कवर किया है. वेबसाइट ने एक्सपर्ट के हवाले से लिखा है कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शुरू हुआ संघर्ष एक नए फेज में जा सकता है. एक फिलिस्तीन विश्लेषक आमिर मखौल ने बताया कि यह एक अप्रत्याशित और रणनीति के तहत किया गया हमला है, जिसके एक निश्चित अंत का अनुमान लगाना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि अगर ये हमले रुक भी जाते हैं तो इसका प्रभाव लंबे समय तक रहेगा.
एक और विश्लेषक हानी मसरी ने मिडिल ईस्ट आई को बताया कि इजरायल इस स्थिति का इस्तेमाल अपने आतंरिक संकट से ध्यान हटाने के लिए कर सकता है, जो नेतन्याहू सरकार के विवादित ज्यूडिशियल रिफॉर्म प्लान के बाद शुरू हुआ था. उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति कब्जे वाली गाजा पट्टी की खतरनाक आर्थिक स्थिति, वेस्ट बैंक और फिलिस्तीनियों पर इजरायल के लगातार हमले का परिणाम है.
वहीं ईरान के अखबार 'ईरान डेली' ने टैंक पर चढ़े हमास चरमपंथियों की तस्वीर को पहले पन्ने पर जगह दी है. साथ ही लिखा कि “धरती पर आखिरी कब्जे को खत्म करने की सबसे बड़ी लड़ाई.”
बहरहाल, निश्चित रूप से ये विवाद तुरंत थमता तो नहीं दिख रहा है क्योंकि समर्थन को लेकर देश बंट गए हैं. पश्चिमी देशों ने इज़रायल को सपोर्ट देने का वादा किया है. जबकि अधिकतर अरब देश हमास के हमले को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं.