The Lallantop
Advertisement

"सद्दाम हुसैन जैसा हाल होगा", इजरायल के मंत्री की अर्दोआन को चेतावनी

अर्दोआन के बयान ने इस तनाव को और भड़का दिया है. दिलचस्प ये है कि तुर्किए उस नेटो का सदस्य है, जिसमें अमेरिका और यूरोप के ताक़तवर देश हैं.

Advertisement
israel katz israeli minister warns Recep Tayyip Erdogan
तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन (बाएं) और इजरायली विदेश मंत्री इसराइल कात्ज़ (फोटो-एपी)
30 जुलाई 2024 (Published: 20:45 IST)
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

“तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन, सद्दाम हुसैन की तरह इज़रायल पर हमले की धमकी दे रहे हैं. उनको याद रखना चाहिए कि सद्दाम के साथ क्या हुआ था.”
 

ये चेतावनी भरा बयान इज़रायल के विदेश मंत्री इसराइल कात्ज़ का है. एक एक्स पोस्ट में उन्होंने अर्दोआन और सद्दाम हुसैन की तस्वीरें भी लगाईं. और, अर्दोआन को टैग भी किया.

तुर्किए के विदेश मंत्री हकन फ़िदान ने फौरन इसका जवाब दिया. उन्होंने इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की तुलना एडोल्फ़ हिटलर से कर दी. बोले, जिस तरह हिटलर का अंत हुआ था, वैसा ही अंत नेतन्याहू का भी होगा. इस ज़ुबानी जंग की शुरुआत 28 जुलाई को हुई थी. जब अर्दोआन ने एक सभा में इज़रायल को धमकी दी थी. कहा था, जैसे हम लीबिया और नगोरनो-कराबाख़ में घुसे, उसी तरह हम इज़रायल में भी जा सकते हैं.

Majdal Shams Attack
 मजदल शम्स पर रॉकेट हमले के बाद का मंज़र (फोटो- इजरायली डिफेंस फोर्स)

उनका बयान ऐसे समय में आया, जब इज़रायल और हिज़बुल्लाह में ज़बरदस्त तनातनी चल रही है. हिज़बुल्लाह लेबनान का चरमपंथी संगठन है. 28 जुलाई को इज़रायल के क़ब्ज़े वाले गोलन हाइट्स के शहर मजदल शम्स पर एक रॉकेट हमला हुआ था. इसमें 12 लोगों की मौत हो गई. मरने वालों की उम्र 11 से 20 के बीच थी. इज़रायल ने हमले का आरोप हिज़बुल्लाह पर लगाया. हिज़बुल्लाह ने इससे इनकार किया है. हालांकि, इज़रायल बदला लेने पर अड़ा हुआ है. अर्दोआन के बयान ने इस तनाव को और भड़का दिया है. दिलचस्प ये है कि तुर्किए उस नेटो का सदस्य है, जिसमें अमेरिका और यूरोप के ताक़तवर देश हैं. ऐसे देश, जो इज़रायल को हथियार और डिप्लोमेटिक सपोर्ट देते हैं. एक और बात, कुछ समय पहले तक तुर्किए इज़रायल का पांचवां सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर था. मई 2024 में उसने इज़रायल के साथ व्यापार पर रोक लगा दी थी. अब दोनों एक-दूसरे को देख लेने की बात कर रहे हैं.

तो समझते हैं कि-
- इज़रायल और तुर्किए क्यों भिड़ गए?
- इज़रायल ने सद्दाम हुसैन वाली धमकी क्यों दी?
- इज़रायल-तुर्किए संबंधों का इतिहास क्या है?


14 मई 1948 को इज़रायल की स्थापना हुई. मार्च 1949 में तुर्किए ने औपचारिक रूप से इज़रायल को मान्यता दे दी.  तुर्किए ऐसा करने वाला पहला मुस्लिम-बहुल देश था. तब तुर्किए को तुर्की के नाम से जाना जाता था. जून 2022 में तुर्की ने यूनाइटेड नेशंस में अपना नाम बदलकर तुर्किए कर लिया. 
-मान्यता देने के एक बरस बाद तुर्किए ने तेल अवीव में अपना डिप्लोमेटिक मिशन खोला. ये वो समय था, जब अरब देश इज़रायल के साथ एक युद्ध लड़ चुके थे. दूसरा शुरू करने की तैयारी भी करने लगे थे. मगर तुर्किए ने इससे दूरी बनाकर रखी. उसने इज़रायल के साथ रिश्ते को तरजीह दी.
- 1956 में इज़रायल, फ़्रांस और ब्रिटेन ने मिस्र पर हमला किया. वो स्वेज़ नहर पर क़ब्ज़े की लड़ाई थी. इस पर तुर्किए ने आपत्ति जताई. डिप्लोमेटिक संबंधों का लेवल कम कर दिया.
- 1963 में संबंध थोड़े सुधरे. तब भी पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल नहीं किए गए.
- फिर 1967 में दूसरा अरब-इज़रायल युद्ध हुआ. उस दफ़ा इज़रायल ने ईस्ट जेरूसलम के साथ-साथ वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी, गोलन हाइट्स और सिनाइ पेनिनसुला पर क़ब्ज़ा कर लिया. तुर्किए ने इसका विरोध किया.
- फिर 1969 में ऐसी घटना हुई, जिसने दोनों देशों के बीच के संबंध को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया. यहूदी कट्टरपंथियों ने अल-अक़्सा मस्जिद में आग लगा दी. ये मस्जिद मुसलमानों के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह है. इस घटना के बाद रिश्ते और ख़राब हुए.
- 1975 तुर्किए ने यासिर अराफ़ात के फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाज़ेशन (PLO) को मान्यता दे दी. जबकि इज़रायल PLO को आतंकी संगठन मानता था.
- 1980 में दोनों देशों के रिश्ते पर पटरी पर लौटे. और, फिर उतर भी गए.
-तुर्किए ने इज़रायल में अपना राजदूत नियुक्त किया. वे संबंधों को कॉन्सुलेट से एम्बेसी के लेवल पर ले गए. मगर उसी बरस एक और घटना हो गई. इज़रायल ने पूरे जेरूसलम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया. इसके बाद तुर्किए ने फिर से संबंध कम कर दिए.
- फिर आया 1987 का साल. फ़िलिस्तीन में पहला इंतिफ़ादा शुरू हुआ. इंतिफ़ादा यानी इज़रायल के अवैध कब्ज़े के ख़िलाफ़ हिंसक विरोध-प्रदर्शनों की श्रृंखला. तुर्किए ने इंतिफ़ादा का समर्थन किया.
एक बरस बाद उसने फ़िलिस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे दी. जिससे इज़रायल के साथ उसके रिश्ते पटरी से उतर गए.
- 1990 के दशक में मिडिल-ईस्ट में शांति की कोशिशें शुरू हुईं. नॉर्वे में इज़रायल और PLO के बीच बातचीत हुई. उन्होंने बाद में वाइट हाउस के अहाते में ओस्लो अकॉर्ड्स पर दस्तखत भी किए.
- इसी क्रम में इज़रायल और तुर्किए के रिश्ते सुधरते गए. दोनों देशों ने सिक्योरिटी, डिफ़ेंस और इकोनॉमी से जुड़े कई समझौते किए. हालांकि, ये बहुत लंबे समय तक नहीं चल पाया.
- सितंबर 2000 में इज़रायल के कद्दावर नेता एरियल शेरॉन ने अल-अक्सा मस्जिद का दौरा किया. इससे फ़िलिस्तीन में हिंसा भड़की. इससे तुर्किए नाराज़ हुआ.
- 2006 में जब इज़रायल ने लेबनान पर हमला किया, तब भी तुर्किए ने कड़ा विरोध जताया था.
- 2008 में इज़रायल ने गाज़ा पट्टी की नाकेबंदी कर दी. तुर्किए ने इसकी पुरज़ोर मुखालफ़त की. 
- मई 2010 में तुर्किए के कुछ कार्यकर्ताओं ने गाज़ा का नेवल ब्लॉकेड तोड़ने की कोशिश की. इज़रायली सैनिकों ने जवाबी हमला किया. इसमें 10 लोगों की मौत हो गई. नाराज़ तुर्किए ने डिप्लोमेटिक संबंध तोड़ लिए. 2013 में इज़रायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को माफ़ी मांगनी पड़ी. 2016 में इज़रायल मारे गए लोगों के परिवार वालों को मुआवजा देने के लिए तैयार हुआ. तब जाकर रिश्ते सामान्य हुए. हालांकि, तब तक तुर्किए ने हमास को डिप्लोमेटिक सपोर्ट और उसके नेताओं को शरण देना शुरू कर दिया था. जिससे रिश्तों में दरार बनी रही. फिर आई 7 अक्टूबर 2023 की तारीख. 

07 अक्टूबर 2023

हमास ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. 11 सौ से अधिक लोगों की हत्या कर दी. 250 से अधिक को बंधक बनाकर ले गए. तुर्किए ने हमले की निंदा नहीं की. जब इज़रायल ने जंग का एलान किया और गाज़ा में बमबारी शुरू की, तब वो खुलकर सामने आया. उसने इज़रायल के अटैक का विरोध करना शुरू किया. 24 अक्टूबर 2023 को अर्दोआन ने तुर्किए की संसद में कहा, हमास कोई आतंकी संगठन नहीं है. ये मुजाहिदीनों का समूह है, जो अपने लोगों और अपनी ज़मीन को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. इसके दो दिन बाद एक रैली में अर्दोआन बोले, इज़रायल युद्ध अपराधियों जैसा बर्ताव कर रहा है. और, पश्चिमी देश उसको रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे.

इस बयान से इज़रायल नाराज़ हो गया. उसने तुर्किए से अपने सभी डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया. नवंबर 2023 में तुर्किए ने भी इज़रायल से अपने डिप्लोमेट्स को लौटने के लिए कह दिया. तब से तुर्किए और इज़रायल के बीच तकरार बढ़ती गई है. अर्दोआन ने नेतन्याहू को गाज़ा का कसाई, राक्षस और हिटलर तक कहा. इसके बरक्स वो हमास के साथ सहानुभूति जताते हैं. अप्रैल 2024 में अर्दोआन ने हमास के सरगना इस्माइल हानिया से मुलाक़ात भी की. फिर मई 2024 में इज़रायल के साथ व्यापार बंद करने का एलान कर दिया. 2023 में दोनों देशों के बीच लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था. अर्दोआन के एलान का इज़रायल ने तगड़ा विरोध किया था. कहा था कि वो तानाशाही रवैया दिखा रहे हैं. उनको अपने लोगों की कोई फ़िक्र नहीं है.

जवाब में इज़रायल ने तुर्किए के साथ फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट खत्म कर दिया था. और, तुर्किए के प्रोडक्ट्स पर 100 फीसदी का टैरिफ़ लगा दिया था. उस दौरान इज़रायल ने कहा था कि वो फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट को दोबारा शुरू कर सकता है. अगर अर्दोआन की जगह समझदार आदमी राष्ट्रपति बनता है तो. इससे दोनों देशों के बीच तल्ख़ी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. अर्दोआन के हालिया बयान के बाद हालात और बिगड़ गए हैं. उन्होंने इज़रायल पर निशाना साधने के लिए लीबिया और अज़रबैजान के नगोरनो-काराबाख का ज़िक्र किया. 2020 में तुर्किए ने लीबिया में UN के समर्थन वाली सरकार के लिए अपने सैनिक उतारे थे.

नगोरनो-कराबाख़ वाला मामला थोड़ा अलग है. ये इलाक़ा अज़रबैजान की सीमा के अंदर है. इसमें आर्मेनियाई लोगों की बहुतायत थी. उनको स्वायत्तता मिली हुई थी. 2023 में अज़रबैजान ने फ़ौज भेजकर नगोरनो-कराबाख़ पर क़ब्ज़ा कर लिया. लगभग एक लाख आर्मेनियाई लोगों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा. तुर्किए अज़रबैजान का पुराना सहयोगी है. मिलिटरी और ट्रेनिंग में सपोर्ट देता रहा है. मगर उसने कभी ये नहीं माना था कि उसके अपने सैनिक नगोरनो-कराबाख गए थे. दिलचस्प ये है कि इज़रायल की भी अज़रबैजान से अच्छी दोस्ती है.

अब इज़रायल के जवाब की चर्चा कर लेते हैं. जिसका ज़िक्र हमने शुरुआत में भी किया. इज़रायल के विदेश मंत्री इसराइल कात्ज़ ने अर्दोआन की तुलना सद्दाम हुसैन से कर दी. कहा कि वो उन्हीं के नक़्शेक़दम पर चल रहे हैं. उन्हें सद्दाम का हश्र याद रखना चाहिए.

क्या किया था सद्दाम ने?

 17 जनवरी 1991 को इज़रायल की तरफ 42 मिसाइलें दागी थीं. पर क्या सद्दाम हुसैन ने ये फ़िलिस्तीन के समर्थन में किया था? क्या ये हमला फ़िलिस्तीन पर अवैध इज़रायली कब्ज़े के ख़िलाफ़ था? जवाब है, नहीं. ये एक कूटनीतिक हमला था. सद्दाम हुसैन ने गल्फ़ वॉर में मुस्लिम देशों का ध्यान भटकाने के लिए ये तरकीब अपनाई थी. हालांकि, उसकी तरक़ीब नाकाम रही थी. मगर सद्दाम ने इज़रायल पर मिसाइलें दागी क्यों थी? 
इसकी एक कड़ी 1980 के दशक में हुए ईरान-इराक़ वॉर से जुड़ती है. सद्दाम ने ईरान से जंग लड़ने के लिए ख़ूब क़र्ज़ लिया. कुवैत, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से. मगर आठ बरस बाद भी वो जीत हासिल नहीं कर पाया. आख़िरकार, उसको जंग खत्म करनी पड़ी. हालांकि, क़र्ज़ बना रहा. सद्दाम ने क़र्ज़़ देने वाले देशों से रियायत की अपील की. मगर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी. नाराज़ सद्दाम ने जुलाई 1990 में अपनी सेना कुवैत में भेज दी. बड़ी आसानी से वहां क़ब्ज़ा भी कर लिया. अमेरिका और दूसरे पश्चिमी और अरब देशों ने इसका विरोध किया. सद्दाम को निकलने के लिए कहा. मगर वो नहीं माना. आख़िर में अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन सेनाओं ने हमले का प्लान बनाया. इनमें कई मुस्लिम देश भी थे. ऐसे में सद्दाम को लगा कि अगर मुस्लिम देशों का ध्यान भटका दिया जाए तो जंग आसान हो जाएगी. इसलिए, जनवरी 1991 में उसने इज़रायल पर मिसाइलें दागनी शुरू कर दीं. उसको लगा था कि इज़रायल जवाबी हमला करेगा. फिर उसको मुस्लिम देशों का साथ मिल जाएगा. मगर अमेरिका ने इज़रायल को समझाया. इज़रायल ने जवाबी हमला नहीं किया. फिर गठबंधन सेना ने इराक़ी सेना को बड़ी आसानी से हरा दिया. हालांकि, उन्होंने तब सद्दाम को कुर्सी से नहीं हटाया. हटाया 12 बरस बाद. 2003 में अमेरिका ने इराक़ में फ़ौज उतारी. सद्दाम की सरकार गिराई. उसको गिरफ़्तार कर मुकदमा चलाया. 2006 में फांसी पर लटका दिया.

इस बवाल के बीच इज़रायल ने मांग रखी है कि तुर्किए नेटो से निकाला जाए. नेटो 32 देशों का सैन्य संगठन है. अप्रैल 1949 में स्थापना हुई थी. तुर्किए 1952 में इसका सदस्य बना था. अर्दोआन 2002 से तुर्किए की सत्ता संभाल रहे हैं. उनके कार्यकाल में तुर्किए ने नेटो के कई अहम फ़ैसलों में अड़ंगा लगाया है. हाल के समय में उसने स्वीडन की सदस्यता और मार्क रुटा की नियुक्ति में अड़ंगा लगाया था. ये अलग बात है कि उसने बाद में अड़ंगा हटा लिया. इसको लेकर अर्दोआन की काफ़ी आलोचना हुई. कहा गया कि वो अपनी शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं. 

वीडियो: अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी के लिए ऐसा क्या बोला कि अखिलेश यादव भड़क गए?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement