The Lallantop
Advertisement

क्या गाजा पर कब्जा करेगा इजरायल? 'खुफिया दस्तावेज' से फिलिस्तीनियों को निकालने का प्लान पता चला!

डॉक्यूमेंट में लिखा है कि जब गाज़ा के लोग, वहां से निकलकर मिस्त्र चले जाएंगे, तो उन्हें वापस आने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इस प्लान के लिए पश्चिमी देशों से कैसे सहयोग पाना है, इस डॉक्यूमेंट में ये भी बताया गया है.

Advertisement
israel gaza plan palestine to sinai egypt
इज़रायली PM नेतन्याहू (बाएं) और मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सिसी (फोटो सोर्स- आजतक और Getty)
pic
शिवेंद्र गौरव
3 नवंबर 2023 (Published: 15:57 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

इजरायल-हमास के बीच जारी जंग (Israel Hamas war) के बीच लीक हुए एक डॉक्यूमेंट (Gaza plan document) ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. हिब्रू वेबसाइट मेकोमिट (Mekomit) के मुताबिक, इज़रायल के ख़ुफ़िया विभाग ने इस डॉक्यूमेंट में गाज़ा पट्टी को पूरी तरह खाली करवाने और यहां रह रहे करीब 23 लाख लोगों को कथित रूप से मिस्त्र के सिनाई भेजने का प्लान सामने रखा है. खुफिया विभाग ने इसे आने वाले दिनों में इज़रायल के पास मौजूद 3 विकल्पों में सबसे बेहतर बताया है. खुफिया सूचनाएं बाहर निकालने में माहिर विकीलीक्स ने भी मेकोमिट के हवाले से सोशल मीडिया साइट X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट करके कहा है कि 10 पन्ने का ये डॉक्यूमेंट, 7 अक्टूबर को हमास के इज़रायल पर हुए हमले के एक हफ्ते बाद तैयार किया गया.

‘प्लान गाज़ा’

दस्तावेज में, गाज़ा में रहने वालों को सिनाई भेजने के प्लान की जमीनी रणनीति 4 चरणों में बताई गई है. विकीलीक्स ने भी इनका उल्लेख किया है-

पहला, गाज़ा पर जमीनी हमला शुरू करने से पहले, इज़रायल, उत्तरी गाज़ा के लोगों को दक्षिणी गाज़ा की तरफ जाने को कहेगा. ऐसा किया भी गया है. फिलिस्तीन सहित कई देशों की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गाज़ा में इज़रायली एयरफ़ोर्स द्वारा गाज़ा के आसमान से पर्चे फेंके गए, गाज़ा के लोगों के फ़ोन पर मैसेज भेजे गए. और उन्हें साउथ गाज़ा की तरफ जाने को कहा गया. जाहिर है, नेतन्याहू की बिना मर्जी, ऐसा संभव नहीं है. यहां बता दें कि गाज़ा पट्टी के दक्षिणी छोर पर एक बॉर्डर क्रॉसिंग है- रफ़ाह बॉर्डर. गाज़ा से मिस्र जाने का अकेला रास्ता यही है.

दस्तावेज में दूसरा स्टेप बताया गया है कि लोगों को चेतावनी देने के बाद, इज़रायल उत्तर से दक्षिण गाज़ा की तरफ जमीनी मिलिट्री ऑपरेशन शुरू करेगा. जिससे ‘उत्तर से दक्षिण तक पूरी गाज़ा पट्टी पर कब्जा हो जाएगा. हमास के भूमिगत बंकरों की सफाई की जाएगी.’ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमास के ज्यादातर ठिकाने, दक्षिणी गाज़ा में ही हैं.

प्लान का तीसरा स्टेप है- रफ़ाह क्रॉसिंग पॉइंट को खाली करवाना. ताकि लोगों को सिनाई की तरफ भेजते वक़्त कोई दिक्कत न आए.

चौथा और आख़िरी स्टेप है- सिनाई के उत्तरी क्षेत्र में तंबू लगाकर अस्थायी बस्तियां बनाना ताकि जब तक वहां आबादी के लिए शहरी इंतजामात न हों, उन्हें इन तंबू वाली बस्तियों में ठहराया जा सके.

हवा-हवाई है या असलियत?

पहली बार इस डॉक्यूमेंट की चर्चा, हिब्रू के एक और मीडिया संस्थान कैल्कलिस्ट लोकल न्यूज़ पर हुई. इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि इज़रायल के इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट की मंत्री गिला गैमलियल ने एक डॉक्यूमेंट में गाज़ा के लोगों को सिनाई भेजने के प्लान की सिफारिश की है. कैल्कलिस्ट ने दस्तावेज में प्लान के वो चरण भी बताए जो हम आपको शुरू में ही बता चुके हैं. बाद में मेकोमिट की रिपोर्ट आई. उन्होंने scribd के आर्काइव में बतौर पीडीएफ फाइल सेव किए गए इस डॉक्यूमेंट को अपनी रिपोर्ट के साथ, चस्पा भी किया है. रिपोर्ट में मेकोमिट ने विस्तार से इस डॉक्यूमेंट को डिकोड किया है. उनकी भाषा हिब्रू है. हम आपको हिंदी में बता रहे हैं.

मेकोमिट के मुताबिक, इज़रायली खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने इस डॉक्यूमेंट के प्रामाणिक होने की बात स्वीकारी है. ये भी कहा है कि मिनिस्ट्री के पॉलिसी डिपार्टमेंट की तरफ से इसे सुरक्षित तरीके से बांटा जाना था. और इसे "मीडिया तक नहीं पहुंचना चाहिए था."

मेकोमिट के अनुसार ही, डॉक्यूमेंट में लिखा है कि रफ़ाह क्रॉसिंग की तरफ ट्रांसपोर्ट लेन को इस्तेमाल के लायक छोड़ना जरूरी है. और जब गाज़ा के लोग, गाज़ा पट्टी छोड़कर मिस्त्र चले जाएंगे, तो उन्हें वापस आने की अनुमति नहीं दी जाएगी. अधिकारी ने ये भी बताया कि मंत्रालय की ये स्टडी, सैन्य खुफिया जानकारी पर आधारित नहीं है, और इसका इस्तेमाल केवल सरकारी स्तर पर चर्चा के लिए किया जाता है.

रफ़ाह  बॉर्डर क्रॉसिंग: गाज़ा से बाहर जाते लोग (फोटो सोर्स- AFP)

डॉक्यूमेंट में आगे लिखा है, “गाज़ा के लोगों के लिए जिस अभियान की सिफारिश की गई है, वो उन्हें ‘प्लान से सहमत होने के लिए प्रेरित करेगा और उन्हें (गाज़ा के लोगों को) अपनी जमीन छोड़ने पर मजबूर करेगा. मैसेज से ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अब उनके लिए वापस लौटने की कोई उम्मीद नहीं है, भले ही ये सही है या गलत.”

डॉक्यूमेंट कहता है,

"अल्लाह ने ये तय किया है कि हमास की लीडरशिप के चलते आपने ये ज़मीन खो दी गई. आपके पास, मुस्लिम भाइयों की मदद से दूसरी जगह जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है."

इस प्लान के लिए पश्चिमी देशों से कैसे सहयोग पाना है, इस डॉक्यूमेंट में ये भी बताया गया है. लिखा है कि सरकार को एक सार्वजनिक अभियान चलाना चाहिए, जो दुनिया भर में गाज़ा के लोगों के इस स्थानांतरण के कार्यक्रम को इज़रायल के लिए सकारात्मक बनाए. इस अभियान में गाज़ा से आबादी के निर्वासन को मानवीय रूप से जरूरी कदम के तौर पर प्रस्तुत किया जाएगा. और इसे दुनिया का समर्थन मिलेगा क्योंकि, इससे गाज़ा की नागरिक आबादी में अपेक्षाकृत कम मौतें होंगी.

ये भी पढ़ें: हमास ने इजरायल पर हमले के लिए किस बात का फायदा उठाया

डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि अमेरिका को इसके लिए तैयार किया जाना चाहिए ताकि वो मिस्र पर गाज़ा के लोगों को सिनाई में आने देने के लिए दबाव बनाए. साथ ही अमेरिका, दूसरे यूरोपीय देशों, खास तौर पर ग्रीस, स्पेन और कनाडा को भी इसमें शामिल करने में मदद करे. हालांकि अधिकारी का कहना था कि ये डॉक्यूमेंट अभी अमेरिका तक नहीं पहुंचा है, सिर्फ इज़रायली सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को भेजा गया है.

डॉक्यूमेंट लीक कैसे हुआ?

मेकोमिट के मुताबिक, इज़रायल और हमास की जंग शुरू होने के करीब 2 हफ़्ते बाद, नेतन्याहू के करीबी और इज़रायल की नेशनल असेंबली के पूर्व प्रमुख मीर बेन शबात के नेतृत्व में एक दक्षिणपंथी रिसर्च संस्थान 'मेशगाव इंस्टीट्यूट' ने एक पेपर पब्लिश किया था. इसमें फिलिस्तीनियों को गाज़ा से ‘जबरन सिनाई भेजने’ की बात कही गई थी. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आई प्रतिक्रियाओं के बाद, इंस्टीट्यूट ने इसे अपने X अकाउंट से हटा लिया. दिलचस्प बात ये है कि इस स्टडी को लिखने वाले थे- अमीर वीटमैन. ये इज़रायल की सत्ताधारी दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी लिकुड के कार्यकर्ता और खुफिया विभाग की मंत्री गिला गैमलियल के करीबी सहयोगी हैं.

मेकोमिट की रिपोर्ट कहती है कि लिकुड पार्टी, मेशगाव इंस्टीट्यूट और इज़रायल के खुफिया विभाग के बीच ये अकेला लिंक नहीं है. करीब एक महीने पहले इज़रायल के इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट ने अपने बजट से लगभग 10 लाख शेकेल (इज़रायली करेंसी) मेशगाव इंस्टिट्यूट को देने का वादा किया था. ताकि वो अरब देशों से जुड़ी रिसर्च कर सके. हालांकि ‘गाज़ा प्लान’ वाले ताजा डॉक्यूमेंट पर मेशगाव इंस्टीट्यूट का लोगो नहीं है. मेकोमिट ने इज़रायली इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के जिस अधिकारी से बात की, उनके मुताबिक, डॉक्यूमेंट, बिना किसी बाहरी एंटिटी के सहयोग के डिपार्टमेंट ने खुद तैयार किया है. लेकिन उन्होंने ये भी स्वीकार कि वे खुद मेशगाव इंस्टीट्यूट के साथ रिसर्च वगैरह पर काम कर चुके हैं.

मेकोमिट बताता है कि ताजा डॉक्यूमेंट, पहली बार किसी दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के एक छोटे से वॉट्सऐप ग्रुप में लीक हुआ. ये ग्रुप, लिकुड के अमीर वीटमैन के साथ मिलकर गाज़ा में इज़रायली बस्तियों को बसाने और वहां से फिलिस्तीनी लोगों को हटाने के लिए लॉबी करता है, माने माहौल बनाता है. इस ग्रुप के एक मेंबर के मुताबिक, डॉक्यूमेंट, लिकुड के एक सदस्य के जरिए उनके ग्रुप तक पहुंचा था. और इसे अब इसलिए बांटा जा रहा है कि ताकि पता लगाया जा सके कि इज़रायली जनता, गाज़ा से फिलिस्तीनियों को हटाने के प्लान को मानने को तैयार है या नहीं.

मिस्र और फिलिस्तीन अब क्या करेंगे?

बेंजामिन नेतन्याहू (जो लिकुड के मुखिया भी हैं) के ऑफिस ने कहा है कि ये डॉक्यूमेंट एक हाइपोथेटिकल एक्सरसाइज और एक कॉन्सेप्ट पेपर है. यानी बस एक काल्पनिक अभ्यास या एक सोच भर है. लेकिन इस डॉक्यूमेंट के सामने आने के बाद फिलिस्तीन और मिस्र की सरकारों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. मिस्र का मानना है कि इज़रायल, गाज़ा की दिक्कत को उसकी दिक्कत बना देना चाहता है. इतनी बड़ी आबादी के मिस्र में विस्थापित होने से उनके यहां समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सिसी ने हाल ही में कहा था कि वे गाजा के लोगों को मिस्र आने देने के लिए रफ़ाह क्रॉसिंग खोलने का कड़ा विरोध करते हैं. इससे मिस्र के इलाकों पर इज़रायली हमले शुरू हो जाएंगे. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि इससे इज़रायल की शांति भी खतरे में पड़ेगी. ये बात दीगर है कि खुद अल-सिसी ने कई साल पहले, गाज़ा के इलाके को मिस्र तक फैलाने और एक ‘आजाद फिलिस्तीन’ बनाने का प्रस्ताव रखा था. तब फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. 

डॉक्यूमेंट बाहर आने के बाद महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबू रुदैनेह ने भी कहा है,

“हम फ़िलिस्तीनी नागरिकों को इस तरह कहीं भी भेजने के ख़िलाफ़ हैं. ऐसी कोशिश हुई भी तो ऐसा होने नहीं दिया जाएगा. जो साल 1948 में हुआ, उसे दोहराया नहीं जाएगा.”

फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास (फोटो सोर्स- आजतक)

बता दें कि साल 1948 में इज़रायल के गठन के पहले हुई जंग के दौरान, फिलिस्तीनियों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था. उन सभी इलाकों से जाना पड़ा था, जो अब इज़रायल में आते हैं. लाखों फिलिस्तीनी, आज भी वेस्ट बैंक, गाज़ा (ये दोनों फिलिस्तीनी इलाके हैं) के अलावा लेबनान, सीरिया और जॉर्डन जैसे कई देशों में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं.

इज़रायल के 'गाज़ा प्लान' वाले डॉक्यूमेंट में मिस्र के विरोध की काट भी बताई गई है. कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत, मिस्र का दायित्व है कि वो गाज़ा के लोगों को अंदर आने दे. और इसमें अमेरिका, 'मिस्र सहित, तुर्की, क़तर, सउदी अरब जैसे देशों पर दबाव डालकर इस काम में मदद दे सकता है.

डॉक्यूमेंट में लिखा है,

"युद्ध ग्रसित क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर आबादी का निर्वासन ही एक प्राकृतिक और जरूरी नतीजा है, जो यूक्रेन, सीरिया और अफगानिस्तान में भी हुआ है. यही एक उचित प्रक्रिया है."

गाज़ा में दूसरे विकल्प क्या हैं?

डॉक्यूमेंट में, गाज़ा के लिए दो और विकल्प बताए गए हैं, एक, फिलिस्तीनी अथॉरिटी को गाज़ा भेजना. और दूसरा विकल्प है- गाज़ा में हमास के विकल्प के तौर पर एक और अरब लीडरशिप खड़ी करना. लेकिन डॉक्यूमेंट ये भी कहता है कि ये दोनों विकल्प, इज़रायल के लिए कूटनीति और सुरक्षा के नजरिए से ठीक नहीं हैं.

डॉक्यूमेंट कहता है कि गाज़ा में फिलीस्तीनी अथॉरिटी का आना, तीनों में से 'सबसे खतरनाक विकल्प' है. क्योंकि इससे 'फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना हो सकती है.' जबकि अभी फिलिस्तीनी अथॉरिटी का कंट्रोल वेस्ट बैंक तक ही सीमित है.

डॉक्यूमेंट कहता है,

"इस तरह हमास के हमले (7 अक्टूबर) का नतीजा, फिलिस्तीनी नेशनलिस्ट मूवमेंट के लिए अभूतपूर्व जीत होगी और फिलिस्तीनी स्टेट बनाने का रास्ता खुलेगा."

दस्तावेज में ये भी कहा गया है कि, वेस्ट बैंक मॉडल, जहां इज़रायली मिलिट्री भी एक्टिव है और फिलिस्तीनी अथॉरिटी का शासन है, वैसा मॉडल गाज़ा में फेल हो सकता है. 

लिखा है कि,

"सिर्फ सेना की मौजूदगी के आधार पर, बिना किसी समझौते के गाज़ा में प्रभावी सैन्य नियंत्रण बनाए रखने का कोई रास्ता नहीं है. क्योंकि कुछ ही वक़्त में इज़रायल के अंदर से और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गाज़ा से वापसी (सैन्य वापसी) की मांग की जाने लगेगी. और ऐसी स्थिति में इज़रायल को कब्जा करने वाली सेना वाली एक उपनिवेशवादी ताकत माना जाएगा."

डॉक्यूमेंट के मुताबिक, गाज़ा में हमास की जगह कोई और स्थानीय अरब संगठन खड़ा करना, इसलिए ठीक नहीं है क्योंकि हमास की टक्कर में कोई स्थानीय मूवमेंट नहीं है और नई लीडरशिप और ज्यादा कट्टरपंथी हो सकती है.

डॉक्यूमेंट के आखिर में कहा गया है कि अगर गाज़ा में नागरिक आबादी बनी रहती है तो गाजा में 'अपेक्षित कब्जे के दौरान कई लाख मौतें होंगी. गाज़ा से लोगों के निर्वासन वाले कदम की तुलना में, इन मौतों से इज़रायल की अंतर्राष्ट्रीय छवि को ज्यादा नुकसान होगा.

वीडियो: दुनियादारी: इजरायल पर यमन से बड़ा हमला, क्या ईरान उकसा रहा है?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement