क्या वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़ा करने वाला है इजरायल?
इज़रायल के मंत्री ये बात कह चुके हैं कि गाज़ा पर भी इज़रायल का क़ब्ज़ा होगा और अब वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़े की बात चल रही है. वहीं ट्रंप सरकार में कट्टर इज़रायली नेताओं की भर्ती हो रही है. क्या बचे कुचे फ़िलिस्तीन पर भी इज़रायल का क़ब्ज़ा हो जाएगा? और इसमें ट्रंप सरकार की क्या भूमिका हो सकती है?
‘जूडिया और समरिया पर कब्ज़े का वक्त आ चुका है. हम 2025 में ये इलाका कब्ज़ा लेंगे.’ ये कहना है इज़रायल के वित्त मंत्री बेज़ेलिल स्माट्रिक का. जूडिया और समरिया टर्म का इस्तेमाल यहूदियों की धार्मिक किताब में वेस्ट बैंक के लिए किया जाता है. वेस्ट बैंक. फिलिस्तीन का एक प्रांत. यहां पर इज़रायल ने 1967 से कब्ज़ा कर रखा है. अधिकांश इलाके पर यहां इज़रायल का ही सिक्का चलता है. उसने यहां सैकड़ों अवैध बस्तियां बनाकर रखी हैं. जहां लाखों यहूदी रहते हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस कब्ज़े को अवैध बताता है.
इज़रायल के वित्त मंत्री बेज़ेलिल स्माट्रिक वेस्ट बैंक पर पूरे कब्ज़े की बात कर रहे हैं. उनका कहना है कि डॉनल्ड ट्रंप की सरकार उनके इस प्लान को सपोर्ट करेगी, कम से कम वो तो ऐसी ही उम्मीद कर रहे हैं.
गाज़ा पर कब्ज़े की बात तो इज़रायल पहले से ही करता आ रहा है. इन्हीं दो प्रान्तों से मिलकर बनता है फिलिस्तीन. वही फिलिस्तीन जिसे अब तक उसके हिस्से का न्याय नहीं मिल पाया है. वो सालों से संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए जिरह कर रहा है. लेकिन अब तक का हासिल शून्य.
अब इज़रायल के मंत्री खुलेआम बचे खुचे फिलिस्तीनी इलाके पर भी कब्ज़े की बात कर रहे हैं. लेकिन बात यहीं तक नहीं है. डॉनल्ड ट्रंप ने अभी-अभी राष्ट्रपति चुनावों में जीत हसिल की है. वो अपनी मंत्रिमंडल में कट्टर इज़रायल समर्थक नेताओं को शामिल कर रहे हैं. 2 की चर्चा खूब हो रही है.
पहले - माइक हकबी, वो अमेरिकी राज्य आकंसो के गर्वनर रह चुके हैं. उन्हें इज़रायल का राजदूत बनाया गया है. वो वेस्ट बैंक में बनी अवैध बस्तियों का समर्थन करते हैं. दूसरे - मार्को रुबियो. रिपब्लिकन पार्टी के सांसद. गाज़ा में मारे जा रहे फिलिस्तियों की मौत के लिए पूरी तरह हमास को ज़िम्मेदार मानते हैं. रुबियो ने अमेरिका में पढ़ रहे उन विदेशी छात्रों को देश से निकालने की वकालत की थी, जो गाज़ा में चल रहे युद्ध के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट कर रहे थे. खबरें चल रही हैं कि ट्रंप उन्हें विदेश मंत्री बनाने की तैयारी में हैं.
ट्रंप की जीत के बाद इज़रायली मंत्रियों के बयान और ट्रम्प की सरकार में प्रो इज़रायली नेताओं की भर्ती से चर्चा हो रही है। क्या इज़रायल अब पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लेगा? और ट्रंप हरी झंडी दिखा देंगे? ये बात इसलिए भी चौकाने वाली नहीं है क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप खुद इज़रायल के कट्टर समर्थक रहे हैं. 2017 में उन्होंने जेरुसलम को इज़रायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी, जिसके बाद इसकी खूब आलोचना हुई थी. आइए समझते हैं.
- वेस्ट बैंक का इतिहास क्या है?
- अभी वेस्ट बैंक पर किसका शासन चलता है?
- और क्या वाक़ई इज़रायल, वेस्ट बैंक समेत पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लेगा?
वेस्ट बैंक क्या है?
ये फिलिस्तीन का सबसे बड़ा प्रांत है. मैप देखिए। फिलिस्तीन दो प्रांतों से मिलकर बना है. वेस्ट बैंक और गाज़ा. गाज़ा में लगभग 23 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. वहीं वेस्ट बैंक में लगभग 33 लाख फिलिस्तीनी.
वेस्ट बैंक का क्षेत्रफल लगभग 5 हज़ार 800 वर्ग किलोमीटर है. इसकी एक सीमा जॉर्डन नदी के पश्चिमी किनारे से लगती है. इसलिए, इसे वेस्ट बैंक कहते हैं. ईस्ट जेरूसलम भी इसी के अंदर है. वेस्ट बैंक के अंदर 11 बड़े इलाके हैं. कुछ के नाम और जनसंख्या जानिए,
- अल-खलील सबसे बड़ा इलाका है. आबादी, लगभग साढ़े आठ लाख
- दूसरा है जेरुसलम - आबादी लगभग 5 लाख
- नबलस में लगभग साढ़े 4 लाख
- रामल्लाह और अल-बिरेह में लगभग 3 लाख 30 हज़ार
- जनीन में लगभग साढ़े 3 लाख लोग रहते हैं.
वेस्ट बैंक में कई रिफ्यूजी कैंप भी हैं. इन कैम्पस में लगभग 8 लाख 70 हज़ार शरणार्थी रहते हैं. ये उन फिलिस्तीनियों के वंशज हैं जिन्हें 1948 में इज़रायल ने अपनी ज़मीन से निकाल दिया था. तबसे ये लोग यहीं रह रहे हैं.
इज़रायली सेटलर्स
इसके अलावा वेस्ट बैंक में लगभग 7 लाख इज़रायली सेटलर्स भी रहते हैं. आइए इनके बारे में थोड़ा तफ्सील से जानते हैं. सेटलर्स उन लोगों को कहते हैं जिन्होंने फिलिस्तीन की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा किया हुआ है. जिन बस्तियों में ये रहते हैं उन्हें सेटलमेंट कहते हैं. इन्हें यूनाइटेड नेशंस और अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध बताता है.
इज़रायल की वेस्ट बैंक में ढ़ाई सौ से ज़्यादा अवैध बस्तियां हैं. इज़रायल की सरकार ने इन्हें मेन रोड से जोड़ा हुआ है, जिससे गाड़ियों की आवाजाही इन बस्तियों तक आसानी से लगी रहती है. गाड़ियों के आने से यहां रोज़ाना की ज़रूरत का सामान आसानी से पहुंचता है. वहीं फिलिस्तीनियों की आबादी को मेन रोड से ही कट कर दिया गया है जिससे वहां रोज़ाना की ज़रूरत और मेडिकल का सामान बहुत कम पहुंच पाता है.
तो क्या अब वेस्ट बैंक में ये 'अवैध' बस्तियां बननी बंद हो गई हैं? जवाब है नहीं. ये अवैध बस्तियां 1980 के दशक से बननी शुरू हुई थीं. 2 दशकों तक तो इनके बनने की रफ़्तार धीमी थीं. लेकिन साल 2000 के बाद से इनके बनने की रफ़्तार बढ़ गई. ख़ास तौर से 7 अक्टूबर के युद्ध के बाद से यहां कई बस्तियां बनी हैं. इज़रायल कहता है कि ये बस्तियां सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं. वो ये भी कहता है कि ओस्लो अकॉर्ड में सभी इलाकों में सेटलमेंट बनाने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया था. इसलिए ये सेटलमेंट अवैध नहीं हैं.
अब जानते हैं वेस्ट बैंक पर किसका राज चलता है?
इसका जवाब जटिल है. इसे समझने के लिए आपको ओस्लो अकॉर्ड समझना होगा. 1993 में यासिर अराफात के फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) और इज़रायल की सरकार के बीच एक समझौता हुआ था, इसे ओस्लो अकॉर्ड के नाम से जाना जाता है. इस समझौते में PLO ने इज़रायल को मान्यता दी थी. वहीं इज़रायल ने बदले में PLO को फिलिस्तीन का प्रतिनिधि माना था. और फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) बनाई थी. PA का काम था फिलिस्तीन की आंतरिक सुरक्षा, प्रशासन और सिविलियन मामलों की देख रेख करना.
इस समझौते के तहत वेस्ट बैंक को 3 भागों में बांटा गया था. A,B और C
-भाग A - वेस्ट बैंक का 18 फीसदी इलाका आता है. इस इलाके के अधिकांश मामले PA नियंत्रित करता है.
-भाग B - वेस्ट बैंक का 22 फीसदी इलाका आता है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक मामले PA देखती है वहीं, आंतरिक सुरक्षा का नियंत्रण इज़रायल ने अपने हाथों में रखा है. वो अपनी मर्ज़ी से कहीं भी आ जा सकती है. किसी के भी घर में रेड डाल सकती है.
-आखिरी हिस्सा है C - इसमें वेस्ट बैंक का 60 फीसदी हिस्सा आता है. ओस्लो अकॉर्ड के मुताबिक इस इलाके का फुल कंट्रोल फिलिस्तीनी अथॉरिटी को मिलना था. लेकिन ऐसा कभी हो नहीं पाया. इसके बरअक्स इज़रायल इस पूरे इलाके पर अपना नियंत्रण रखता है. सुरक्षा, स्कूल, हॉस्पिटल, कंस्ट्रक्शन सब कुछ अपने हिसाब से तय करता है.वेस्ट बैंक में इज़रायल के कब्ज़े की वजह से वहां मानवाधिकार उल्लंघन की ख़बरें आती रहती हैं.
जेरूसलम पर किसका कब्ज़ा है?
इसे इज़रायल अपना बताता है. यहीं पर मुसलमान, यहूदी और ईसाइयों के धार्मिक स्थल हैं. अल-अक्सा मस्जिद यहीं है. जो कि टेम्पल माउंट के ऊपर है. इसी टेम्पल की वेस्टर्न वॉल यहूदियों की सबसे पवित्र जगह है. इज़रायल ने इसपर भी कब्ज़ा कर रखा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे मान्यता नहीं देता है. अगर आप वेस्ट बैंक का नक्शा ध्यान से देखें तो ईस्ट जेरूसलम इसी इलाके में पड़ता है. और ईस्ट जेरूसलम में ही ये पवित्र स्थान हैं. लेकिन इज़रायल अपने नक़्शे में ईस्ट जेरूसलम को वेस्ट बैंक से अलग बताता है.
वेस्ट बैंक का इतिहास
ईसा मसीह के क़रीब हज़ार साल पहले यहूदी राजा सोलोमन ने एक भव्य मंदिर बनवाया. यहूदी इसे 'फ़र्स्ट टेम्पल' कहकर पुकारते थे. किंग सोलोमन को इस्लाम और ईसाइयत दोनों में पैगंबर का दर्जा मिला हुआ है. सोलोमन के बनाए फर्स्ट टेम्पल को बाद में बेबिलोनियन लोगों ने तोड़ दिया. फिर करीब 500 साल बाद - 516 ईसा-पूर्व में - यहूदियों ने दोबारा इसी जगह पर एक और मंदिर बनाया. वो मंदिर कहलाया, 'सेकेंड टेम्पल'. यहां यहूदी नियमित पूजा करने आया करते थे. सेकंड टेम्पल 600 साल तक सलामत रहा.
फिर सन् 70 में यहां रोमन्स ने हमला बोला. मंदिर को तोड़ने की कोशिश भी हुई. मंदिर को तोड़ा तो गया, लेकिन पश्चिम की तरफ़ दीवार का एक हिस्सा बच गया. मंदिर की ये दीवार आज भी मौजूद है. यहूदी इसे 'वेस्टर्न वॉल' या 'वेलिंग वॉल' कहते हैं. वो इसे अपनी आख़िरी धार्मिक निशानी मानते हैं. इंटरनेट पर आपने वेस्टर्न वॉल की तस्वीरें देखी होंगी. आज भी यहूदी पंथ के लोग यहां पूजा करने आते हैं. दीवार की दरारों में लोग मन्नत वाली चिट्ठियां रख देते हैं. वो दीवार से लिपटकर रोते भी हैं, इसीलिए वेलिंग वॉल नाम आया.
मुसलमान भी इस जगह को लेकर अक़ीदा रखते हैं. उनका मानना है कि सन् 621 में इसी जगह से इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद ने जन्नत तक का सफ़र किया था. इसे इस्लाम में 'मेराज' कहते हैं. इसी मस्ज़िद में पैगंबर मोहम्मद ने ख़ुद से पहले आए सभी पैगम्बरों के साथ नमाज़ अदा की थी. इस मस्ज़िद से मुसलमानों की एक और मान्यता जुड़ी हुई है. दरअसल, पहले दुनिया के सारे मुसलमान इसी मस्ज़िद की तरफ़ रुख करके नमाज़ अदा किया करते थे. बाद में वो मक्का स्थित मस्ज़िद-ए-हरम की ओर रुख कर नमाज़ अदा करने लगे.
637 में इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर ने जेरूसलाम फ़तेह कर लिया. उसके बाद मुसलमान और ईसाईयों के बीच इस इलाके को लेकर खूब काटमार हुई. 1517 में पूरे फिलिस्तीन पर ओटोमन साम्राज्य का कब्ज़ा हुआ. माने वेस्ट बैंक और जेरुसलम भी ओटोमन का हुआ करता था. ये कब्ज़ा पहले विश्वयुद्ध तक बना रहा. फिर 1948 में UN ने इज़रायल को मान्यता दे दी. फिलिस्तीन का बंटवारा हो गया.
वेस्ट बैंक वाला इलाका फिलिस्तीन के हिस्से आया. लेकिन 1967 के जंग में इज़रायल ने यहां कब्ज़ा कर लिया. तबसे उसका कब्ज़ा यहां बना हुआ है. 1993 के ओस्लो अकॉर्ड में इसे सुलझाने के कोशिश हुई लेकिन बात नहीं बन पाई. इसलिए वेस्ट बैंक के ज़्यादातर इलाके पर इज़रायल का ही दबदबा है.
इज़रायल ने न सिर्फ वेस्ट बैंक बल्कि फिलिस्तीन के दूसरे प्रांत गाज़ा पर भी कंट्रोल बनाए रखा है. और जैसा हमने पहले भी बताया है कि वो बाहरी मदद वेस्ट बैंक में नहीं पहुंचने देता है. गाज़ा और वेस्ट बैंक के लोग आसानी से एक एक दूसरी जगह आ जा भी नहीं सकते. 7 अक्टूबर 2023 से गाज़ा में चल रही जंग की आंच वेस्ट बैंक भी पहुंची है. अब तक इज़रायल के हमले में यहां 740 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. और लगभग 7 हज़ार घायल हुए हैं. सैकड़ों को इज़रायल ने गिरफ्तार भी किया है.
हालिया मुद्दा क्या है?
इज़रायल के वित्त मंत्री कह रहे हैं कि कि अगले साल तक हम पूरे वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा कर लेंगे. वो ये भी उम्मीद कर रहे हैं कि डॉनल्ड ट्रंप की सरकार उनको समर्थन देगी. इसके अलावा 2 प्रो इज़रायली नेताओं के ट्रम्प कैबिनेट में शामिल होने की चर्चा है.
पहले हैं. माइक हकबी, उन्हें इज़रायल का राजदूत बनाया गया है. उन्होंने 2008 में कहा था कि फ़िलिस्तीनी शब्द का कोई अस्तित्व नहीं है. ये इज़रायल से ज़मीन हथियाने के लिए एक राजनीतिक पैंतरा है.
2015 में हकबी बोले, टू स्टेट सोल्यूशन तर्कहीन है. अगर फ़िलिस्तीन राज्य बनाना है तो इज़रायल के बाहर भी पर्याप्त ज़मीन मौजूद है. जिन्हें फिलिस्तीन बनाना हो वो मिस्र, सीरिया या जॉर्डन जैसे पड़ोसी देशों में बनाएं.
दूसरे हैं मार्को रुबियो, ये भी इज़रायल के कट्टर समर्थक हैं. ख़बर है कि ट्रम्प इन्हें अमेरिका का विदेश मंत्री बनाने वाले हैं. प्रो फिलिस्तीनी छात्रों को देश से निकालने की वकालत कर चुके हैं. कहते हैं कि जंग में बाइडन सरकार इज़रायल को पर्याप्त मदद नहीं दे रही है.
कैबनेट के लिए चुने गए लोगों की फ़ेहरिस्त में ट्रंप ने वफ़ादारों और कट्टर समर्थकों को शामिल किया है. आइए आपको इनमें से कुछ ख़ास लोगों से मिलवाते हैं.
सूजी विल्स- इनको चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ बनाया गया है. चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ का पद वाइट हाउस के सबसे ताक़तवर पोजिशंस में से एक है. इस पद पर बैठने वाले शख़्स का काम है वाइट हॉउस के स्टाफ़ को मैनेज करना, राष्ट्रपति की स्ट्रेटेजी तैयार करना, और ये तय करना कि राष्ट्रपति से कौन मिल सकता है कौन नहीं, कौन से फ़ैसले राष्ट्रपति को ख़ुद लेने है और कौन से फैसले निचले पदों के लोग ले सकते हैं. इसके लिए सूजी विल्स को चुना गया है. विल्स इस पद पर बैठने वाली पहली महिला हैं. वो ट्रंप के 2024 और 2016 चुनाव कैम्पेन में उनकी कैम्पेन मैनेजर थीं. वो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन के 1980 चुनाव कैम्पेन की भी मैनेजर रह चुकीं हैं. उस चुनाव में रॉनल्ड को बड़ी जीत हाथ लगी थी.
टॉम होमैन- इनको बॉर्डर कंट्रोल का कार्यभार सौंपा गया है. ट्रंप की पिछली सरकार के दौरान भी इन्होने अप्रवास से जुड़ा पोस्ट संभाला था. टॉम अप्रवास को लेकर ट्रंप की नीति के कट्टर समर्थक हैं. जुलाई में रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन में इन्होने अवैध अप्रवासियों को निशाना बनाते हुए कहा था कि आप अभी से सामान बांधना शुरू कर दें.
माइक वॉल्ज़- इनको नेशनल सेक्युरिटी एडवाइज़र बनाया गया है. वॉल्ज़, ट्रम्प को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ब्रीफ़ करेंगे. वो एक रिटायर्ड आर्मी कर्नल हैं. और, अमेरिकी सेना की ग्रीन बेरेट यूनिट में काम कर चुके हैं. ये यूनिट सेना के लिए मुश्किल ऑपरेशंस को अंजाम देती है. माइक साल 2018 से फ़्लोरिडा राज्य से सांसद भी हैं. वो इंडो पैसिफ़िक में चीन की नीतियों के प्रमुख आलोचक रहे हैं.
एलॉन मस्क और विवेक रामस्वामी को डिपार्टमेंट ऑफ़ गवर्नमेंट एफिसिएंसी का कार्यभार सौंपा गया है. ये एक नया डिपार्टमेंट है. ट्रंप के मुताबिक़ ये डिपार्टमेंट विभाग वाइट हाउस और बजट ऑफिस के साथ मिलकर काम करेगा. मस्क और रामस्वामी प्राइवेट सेक्टर से ट्रंप के सबसे बड़े समर्थक हैं.
जॉन रैटक्लिफ - पूर्व जासूस हैं, और ट्रम्प ने इन्हें सेंट्रल इन्टेलिजन्स एजेंसी (CIA) का प्रमुख नियुक्त किया है। काम - देश के लिए सूचनाएं इकट्ठा करना।जहां से संभव हो, जैसे संभव हो, वैसे। रैटक्लिफ ट्रम्प के पुराने सहयोगी हैं। साल 2020 में NIA के निदेशक के रूप में काम कर चुके हैं। और खबरों में ये भी कहा जाता है कि वो US के लिए कई मौकों पर जासूसी भी कर चुके हैं.
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