आनंद बख्शी. गीतकार, जिसके गानों ने कपूर खानदान के फ्लॉप हीरो को सबका चहेता 'शशिकपूर' बनाया. जिसके गीतों ने टेलेंट प्रतियोगिता में जीतकर आए एक आउटसाइडर कोहिन्दी सिनेमा का पहला सुपरस्टार 'राजेश खन्ना' बनाया. 4000 से ज़्यादा गीत लिखे,लेकिन एक भी डेडलाइन से लेट नहीं हुआ. आज पढ़ें, उसी सुपरहिट गीतकार की ज़िन्दगी केतीन अनसुने किस्से:माचिस की तीली ने बनाया राजेश खन्ना का सबसे सुपरहिट गीतआनंद बख्शी के पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजरी करते थे. अपनी जवानी में आनंदटेलीफोन अॉपरेटर बनकर सेना में शामिल हो गए. लेकिन बम्बई और सिनेमा अभी बहुत दूरथा. लेकिन चाह थी. सिनेमा की दुनिया में घुसने का प्रयास 'बदला' फिल्म के साथ हुआ,लेकिन चला नहीं. फिर उन्होंने नेवी जॉइन कर ली. बंटवारा हुआ तो बक्शी परिवारशरणार्थी बनकर हिन्दुस्तान आ गया. जब मायानगरी में कुछ ना हुआ तो आनंद बक्षी ने फिरसे सेना जॉइन कर ली और पचास के दशक की दहाई तक वहीं काम करते रहे.उन्होंने 1956 में सेना की नौकरी छोड़ दी फिल्मों में एज़ ए लिरिसस्ट काम करने केलिए आ गए. सिनेमा में पहला ब्रेक भगवान दादा ने फिल्म 'भला आदमी' में दिया. लेकिनपहली बड़ी कामयाबी मिली 'जब जब फूल खिले' में, जिसमें उनका लिखा 'परदेसियों से नाअंखियां मिलाना चल निकला था. इसी फिल्म ने कपूर खानदान के मंझले सुपुत्र शशि कपूरके डूबते करियर को चमकाया.https://youtu.be/kpM0jPd6-7w फिर बारी आई राजेश खन्ना की. पंजाबी लड़का, जो टेलेंटप्रतियोगिता जीतकर सिनेमा की दुनिया में घुस आया था. आनंद बक्शी के करियर काशुरुआती माइलस्टोन बनी 'आराधना', 'अमर प्रेम' और 'कटी पतंग' जैसी फिल्में, जिनकेकांधे चढ़कर राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने. खन्ना के लिए हीलिखे फिल्म 'अमर प्रेम' के गीत 'चिंगारी कोई भड़के' को बक्शी अन्त तक अपनेसर्वश्रेष्ठ गीतों में गिनते रहे. इस गीत को लिखने का ख्याल उन्हें बारिश में अचानकपानी गिरने से जलती माचिस के बुझने का सीन देखकर आया था.अपने पांच दशकों में फैले फिल्मी करियर में बख्शी ने 4000 से ज़्यादा गीत लिखे,लेकिन कभी किसी डेडलाइन को नहीं तोड़ा. उनका कहना था कि ये अनुशासन उन्हें सालों कीफौज की नौकरी ने सिखाया है.जब 'शोले' ने तोड़ा आनंद बक्शी का सिंगर बनने का सपनालिरिक्स राइटर आनंद बख्शी की सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में से एक है 'शोले', हिन्दीसिनेमा का सबसे बड़ा शाहकार. लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि 'शोले' सिंगरआनंद बक्शी की भी claim to fame फिल्म होनी थी. असल में 'शोले' की अोरिजिनलस्क्रिप्ट में एक कव्वाली भी थी. और लेखक जावेद अख्तर ने तय किया कि इसे भोपाल की'चार भांड' स्टाइल में फिल्माया जाएगा, जिसमें कव्वालों के चार ग्रुप एक-दूसरे कामुकाबला करते हैं. ये कव्वाली फिल्म में सूरमा भोपाली वाले ट्रैक का हिस्सा थी.गाने के लिरिक्स कुछ यूं थे,चांद सा कोई चेहरा ना पहलू में होतो चांदनी का मज़ा नहीं आताजाम पीकर शराबी ना गिर जाए तोमैकशी का मज़ा नहीं आताऔर इस गीत को गाने के लिए जिन चार सिंगर्स को चुना गया था वो थे - किशोर कुमार,मन्ना डे, भुपिन्दर और खुद आनंद बक्शी. प्लान के मुताबिक भोपाल से 'चार भांड'गानेवाले कव्वाल बुलाए गए. पंचम ने धुन रची और कव्वाली रिकॉर्ड हुई. लेकिन कभी शूटनहीं हुई. वजह, फिल्म पहले ही निर्धारित तीन घंटे से लम्बी हो चुकी थी. गाने परकैंची चल गई. सबसे ज़्यादा दुखी खुद आनंद बख्शी थे, "अगर वो गाना शोले में होता, तोक्या पता मेरा एज़ ए सिंगर करियर चल निकलता".आनंद बख्शी के करियर स्पैन का अंदाज़ा आप इससे लगाएं कि उन्होंने पांच ऐसेसंगीतकारों के साथ भी काम किया, बाद में जिनकी संतानों के साथ भी काम किया. ये पितापुत्र जोड़ियां थीं - एसडी बर्मन (आराधना) और पंचम (अमर प्रेम), रोशन (देवर) औरराजेश रोशन (जूली), कल्याणजी-आनंदजी (जब जब फूल खिले) और विजू शाह (मोहरा), चित्रगुप्त (अंगारे) और आनंद-मिलिंद (फूल), नदीम-श्रवण (परदेस) और संजीव-दर्शन.जब नए निर्देशक ने बख्शी का लिखा गाना बदलानब्बे के दशक की शुरुआत थी. यश चोपड़ा के बड़े लड़के, आदित्य चोपड़ा अपनी पहलीफिल्म बनाने निकले थे. फिल्म के गीतकार चुने गए आनंद बक्शी. लिरिक्स राइटिंग कीदुनिया के दिग्गज. फिल्म का पहला प्रेम गीत रचा जाना था. आनंद बख्शी ने खूब अच्छेप्रतीकों से भरे, शेरोशायरी वाले बोल लिखे गाने के लिए. लेकिन आदित्य चोपड़ा केइरादे कुछ और ही थे. वो कुछ नया करने निकले थे. "जब मेरे किरदार इस शेरो शायरी वालीज़बान में बात नहीं करते हैं, तो वो गाना इतनी भारी ज़बान में क्यों गायेंगे?" उनकासवाल था.उन्होंने खुद अपनी समझ से गाने की दो शुरुआती लाइन लिखकर आनंद बक्शी को दीं, और कहाकि इसे ही गीत में आगे बढ़ाया जाए. वो लाइनें थीं −"तुझे देखा तो ये जाना सनम,प्यार होता है दीवाना सनम"फिल्म थी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे', जो गज़ब की सुपरहिट हो गई. आदित्य चोपड़ाछोटे थे, नौसिखिये थे. लेकिन निर्देशक थे. आखिर उनकी ही बात मानी गई.इसी गीत के लिए बाद में आनंद बख्शी को उनका तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.https://youtu.be/r7NVIwO8_pI--------------------------------------------------------------------------------ये आर्टिकल मियां मिहिर ने लिखा था.--------------------------------------------------------------------------------विडियो- शॉर्ट फिल्म रिव्यू: पंडित उस्मान