भगवान शिव से लेकर रामदेव तक... वक्त के साथ ऐसे बदले योग के रूप-स्वरूप
योग के योगा बनने की पूरी टाइमलाइन.
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हमारे एक चाचा हैं. उनके सामने भूल के भी किसी बीमारी का ज़िक्र नहीं करना होता है. अगर कहीं बता दिया कि आपको फलाना बीमारी है, तो बस! कोई न कोई ऐसा योग निकल आएगा, जिससे आपकी वो फलाना बीमारी सही हो सकती है. और बात यहीं ख़तम नहीं होगी. चाचा बाकायदे वो योग करके दिखाएंगे और आपसे भी करवा के ही मानेंगे.21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है. इसी बहाने हम सबको अपने ऐसे वाले चाचा याद आ जाएंगे. ज़रा सोचिए चाचा के अलावा ऐसी क्या क्या बातें हैं, जो हमारे लिए योग से जुड़ी हैं? भारत में योग की शुरुआत करीब 5000 साल पुरानी है. मोहनजोदड़ो के एक तरह के सील पर योग की मुद्रा में बैठे बाबाजी की तस्वीर खुदी है. उनके आसपास कुछ जानवर घूमते दिखाई देते हैं. इन बाबाजी को पशुपति शिव माना जाता है. भागवत गीता में कृष्ण ने सैकड़ों बार योग शब्द इस्तेमाल किया है. गौतम बुद्ध और उपनिषदों की सलाह में भी योग के कई तरीकों की बात की गई है. पतंजलि अपने योग सूत्र में ध्यान, अध्यात्म और योग के आसन, तीनों की बात करते हैं. इसके अलावा गोरखनाथ का हठ योग भी है. हर दूसरी चीज़ की तरह योग भी समय के साथ बदलता गया, और इसमें ढेरों नए तरीके शामिल होते गए. अब योग करना हम आपको क्या ही सिखा पाएंगे. वक्त के साथ योग के तरीकों और उसकी समझ में जो भी बदलाव आएं हैं, उसके बारे में ही बता देते हैं आपको. 1) मोहनजोदड़ो के योग वाले बाबा के बाद ऋग्वेद में 'योगम' की बात की जाती है. इसे 'योग' यानी 'जोड़' से समझा जाता था, जिसमें मन और शरीर के योग की बात की जाती है. 2) कठोपनिषद में पहली बार योग शब्द का इस्तेमाल किया गया. इसे दिमाग और शरीर के एक होने और अपने 'हायर सेल्फ' से जुड़ने का एक माध्यम माना गया है. इसी उपनिषद में 'प्राण' यानी प्राणवायु की बात भी पहली बार की गई थी. 3) योग षड्दर्शन, यानी भारतीय दर्शन (फिलॉसफी) के छह स्कूलों में से एक है. योग स्कूल में भी सांख्य स्कूल की तरह ज्ञान पाने के कुछ प्रमाणित तरीके हैं. और इसी तरह ब्रह्मांड को dualism से समझा जाता है. यानी ब्रह्मांड 'पुरुष' और 'प्रकृति' से बना है. यहां 'पुरुष' का मतलब है कांशसनेस (consciousness) और प्रकृति का मतलब है मैटर या substance. हालांकि योग दर्शन को जो चीज़ अलग बनाती है, वो है इसका भगवान से दूर होना. योग काफी हद तक नास्तिक फिलॉसफी है. 4) शक्ति कल्ट में देवी पूजा की जाती थी. ये फीमेल सेक्सुअलिटी और तंत्र से जुड़ा हुआ था. तंत्र में योग, प्राणायाम और मंत्र के साथ कुछ सीक्रेट वाले पूजा-पाठ, सब मिले-जुले थे. रीढ़ की हड्डी और उससे जुड़े शरीर के चक्र, जिनका ख्याल रखकर आप स्वस्थ रह सकते हैं. और जिन्हें जगाकर आप आध्यात्मिक रूप से जग सकते हैं. इन्ही चक्रों को योग और शक्ति कल्ट, दोनों में इस्तेमाल किया जाता है. 5) योग की बात होती है तो पतंजलि का नाम ज़रूर लिया जाता है. इनकी किताब 'योग सूत्र' में अष्टांग योग यानी योग के आठ स्टेजों की बात की गई है. योग के 'आसन' यानी पोजीशन को उन आठ स्टेजों में से एक बताया है. अष्टांग योग को याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी, गार्गी से हुई बातचीत में भी समझाते हैं. 6) बुद्धिज़्म में योग का कांसेप्ट नहीं है. लेकिन ध्यान, प्राणायाम और मंत्र की बातें ज़रूर की जाती है, जो योग से सीधे तरीके से जुड़ी हुई हैं. 7) अब हठ योग के बारे में बात करते हैं. माना जाता है कि हठ योग की शुरुआत शिव से हुई थी. उन्हें लगा कि उस सुनसान जगह पर कोई नहीं है और पार्वती को हठ योग के बारे में बताने लगे. जबकि वहां एक शातिर मछली छिपी हुई थी. उसने सब कुछ सुन लिया. मछली इतनी सयानी कि उसने ये सारी बातें फैला दीं. ये ज्ञान पहुंच गया गोरखनाथ तक. उन्होंने तंत्र और शारीरिक अनुसाशन को मिलाकर हठ योग की शुरुआत कर दी. 8) 1893 में स्वामी विवेकानंद ने पहली बार विश्व धर्म सम्मलेन में दुनिया को योग के बारे में बताया. वहीं पर उन्होंने 'राज योग' के बारे में भी बताया. राज योग का इस्तेमाल नक्षत्रों की पोजीशन और ज्योतिष विज्ञान समझने के लिए किया जाता है. 9) इसके बाद तो दुनिया के कई हिस्सों से कई तरह के योग निकले. जैसे परमहंस योगानंद का 'क्रिया योग', स्वामी विष्णुदेवनंद का 'सिवानंद योग'. ये सब 1920 से 1940 के दशक की बात थी. 10) आध्यात्मिक गुरु ओशो ने भी योग और ध्यान को अध्यात्म आजमाने का एक तरीका बताया है. फिर 1980 के दौर में बिक्रम चौधरी 26 नए तरीके के योग लेकर आएं. ये एक तेज़ तापमान वाले गरम कमरे में किए जाने वाले योग पोजीशन थे, जिनका कॉपीराइट भी कराया गया था. इन्हें 'bikram's hot yoga' का नाम दिया गया. इन पर बाद में सेक्सुअल हैरेसमेंट का केस भी चला.