बाढ़ में पिता का मेडल बह गया था, लिएंडर पेस ने घर में मेडल्स की बाढ़ ला दी
वो खिलाड़ी जो अपनी 'सबसे खराब' टेनिस खेलकर भी मेडल ले आया.
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Leander Paes और Mahesh Bhupathi (इंडिया टुडे आर्काइव)
जब पेस प्रोफेशनल प्लेयर के तौर पर पहली बार कोर्ट पर उतरे थे उस साल भारत में कुल 2 लाख चौपहिया वाहन बिके थे. इनमें सबसे महंगी कार मारुति एस्टीम 1000 थी. अब दुनिया के सारे ब्रांड भारत में मिलते हैं और पिछले साल हमने 32 लाख कारें खरीदी हैं. साल 1991 में हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर थे. आज हमारे पास लगभग 430 बिलियन अमेरिकी डॉलर हैं... उस वक्त से लगभग 860 गुना ज्यादा. पेस के डेब्यू के वक्त हमारे यहां अखबार बेहद कम बिकते थे.
टीवी और रेडियो के नाम पर बस दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो थे. आज की बात करें तो अब भारत के लगभग 20 करोड़ घरों में टीवी है. उस वक्त यह आंकड़ा साढ़े तीन करोड़ का था. साल 1991 में हमारे पास CNN के रूप में इकलौता सैटेलाइट चैनल था. इसे भी फाइव-स्टार होटल्स में ही देखा जा सकता था. आज भारत की लगभग हर बड़ी भाषा में लगभग 900 सैटेलाइट चैनल्स उपलब्ध हैं.
जब लिएंडर पेस ने बड़े लेवल पर टेनिस खेलना शुरू किया था. मेरे मम्मी-पापा की शादी नहीं हुई थी और आज मैं इतना बड़ा हो गया कि पेस पर लिखने की कोशिश में लगा हुआ हूं.
My 1st year @Wimbledonशॉर्ट में कहें तो इतने किस्से हैं, कि किताब नहीं 'बहुब्बड़ी' किताबा लिखी जा सकती है. लेकिन किताब लिखने में वक्त लगेगा. तब तब आपको सुनाते हैं पेस के किस्से. वह तीन किस्से जिन्होंने पेस को लेजेंड बनाने में भैरंट काम किया.
was in 1989. Since winning the Junior Singles Title in ‘90 these lawns have been my favourite hunting grounds. Great to be back at #SW19
🎾🌱🏆 pic.twitter.com/G4hxxaflqb
— Leander Paes (@Leander) June 30, 2019
# पहिला किस्सा है डेविस कप का
उसी डेविस कप का जहां पेस से ज्यादा डबल्स मैच दुनिया के किसी भी प्लेयर ने नहीं जीते हैं. ये अलग है कि पेस के इस किस्से में डबल्स से ज्यादा सिंगल्स की बहादुरी है. हां, तो साल था 1995 और तारीखें थीं 22-23 और 24 सितंबर. इन तीन तारीखों पर जो हुआ उसने लिएंडर पेस को इंडियन टेनिस की दुनिया में अमर कर दिया.दिल्ली में हुई इस टाई के पहले सिंगल्स मैच में पेस ने दुनिया के सातवें नंबर के प्लेयर सासा हिर्सज़ोन को सीधे सेटों में 6-3, 6-3, 6-4 से हरा दिया. दूसरे सिंगल्स मैच में महेश भूपति को गोरान इवानिसेविच ने पीट दिया. इसके बाद हुए डबल्स मैच में पेस और भूपति ने हिर्सज़ोन और इवानिसेविच को कड़े मुकाबले में 4-6, 7-5, 6-3, 7-6 से हरा दिया. अब स्कोर 2-1 था और दो मैच होने बाकी थे. अब टीम इंडिया को आगे बढ़ने के लिए बस एक मैच जीतना था. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. भूपति को उलट सिंगल्स में हिर्सज़ोन से जबकि पेस को इवानिसेविच से भिड़ना था.
Leander Paes और Mahesh Bhupathi (इंडिया टुडे आर्काइव)
महान आर्थर ऐश ने 90 के दशक में कहा था- '6 फीट से कम हाइट का कोई भी व्यक्ति विम्बल्डन नहीं जीत पाएगा.' ये अलग बात है कि 1992 में पांच फीट और 11 इंच के आंद्रे अगासी ने विम्बल्डन जीतकर उनके इस कोट को गहरी चोट दी थी. लेकिन इससे ऐश की बात की अहमियत कम नहीं होती.
टेनिस में लंबाई का बड़ा महत्व होता है. खासतौर से जब मैच सर्व और वॉली मारने वाले प्लेयर्स के पसंदीदा, ग्रास कोर्ट पर खेला जाता है. ऐसा कोर्ट जहां बिना बड़े सर्व के प्रतिद्वंद्वी को डॉमिनेट नहीं किया जा सकता. और बड़ा सर्व करने के लिए आपकी हाइट 6 फीट से लंबी होनी ही चाहिए. ऐसे में 5 फीट, साढ़े नौ इंच के लिएंडर पेस, 6 फीट और चार इंच के गोरान इवानिसेविच के आगे बेहद कमजोर थे.
इस बात के कई किस्से हैं कि कैसे ग्रैंड स्लैम सिंगल्स का एक भी राउंड ना जीते पेस ने इवानिसेविच को मात दी. उस इवानिसेविच को, जो दो बार का विम्बल्डन फाइनलिस्ट था. मात दी तो दी, जहां से उठकर दी वह बड़ी बात थी. पेस ने इस मैच में 6-7, 4-6, 0-3, 30.40 से पीछे होने के बाद वापसी की थी.
Leander Paes (इंडिया टुडे आर्काइव)
कहने वाले कहते हैं कि लाइंसमैन ने इस मैच के एक अहम पल में गलत फैसला देकर इवानिसेविच की लय बिगाड़ दी थी. कुछ लोग यह भी कहते हैं उस मैच में बैठे फैंस काफी डिस्टर्बिंग थे और वह इवानिसेविच को बार-बार भटका रहे थे. लेकिन पांच सेट के एक मैच में दुनिया का 123वें नंबर का खिलाड़ी इन बाहरी चीजों की मदद से दुनिया के सातवें नंबर के प्लेयर को कैसे हरा सकता है? हमें इसका जवाब मिला इंडिया टुडे के 15 अक्टूबर 1995 के अंक में. रोहित बृजनाथ की लिखी स्टोरी में हमने पाया,
'दिग्गज टेनिस प्लेयर्स के साथ काम कर चुके स्पोर्ट्स साइकॉलजिस्ट जिम लोहर का मानना है कि भीड़, गर्मी, विदेशी धरती, मैच में पीछे होना जैसी चीजें एक प्लेयर को और तैयार कर देती हैं जबकि दूसरा प्लेयर इससे बर्बाद हो जाता है. एक जहां आगे बढ़कर भिड़ने को तैयार होता है वहीं दूसरा दो कदम पीछे हट अपने बहानों के साथ तैयार रहता है. इसे दिमागी मजबूती कहते हैं.'इस मैच में पेस डायरिया के साथ खेले थे. तीसरे सेट के बाद वह दौड़ते हुए सीधे वॉशरूम गए थे. इतनी भीषण गर्मी में उन्होंने कभी भी पांच सेट का सिंगल्स मैच नहीं खेला था- कभी भी नहीं. लेकिन उन्होंने चैलेंज लिया. बकौल पेस,
'मेरा एक हिस्सा कह रहा था कि सब खत्म हो गया. लेकिन दूसरा हिस्सा मुझसे कह रहा था कि एफर्ट लगाओ, और मैं अपने दिल को थपकियां देते हुए बोल रहा था- लड़ो-लड़ो.' पेस के मुताबिक जब वह पांचवें सेट में मैच जीतने के लिए सर्व कर रहे थे, तब वह रो रहे थे. पेस ने कहा, 'मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि मैं इतना आगे निकल आया और यह बहुत ज्यादा था.'
# दूसरा किस्सा है अटलांटा 1996 ओलंपिक का
खाशाबा दादासाहेब जाधव यानी KD जाधव. स्वतंत्र भारत के लिए पर्सनल मेडल जीतने वाले पहले ओलंपियन. जाधव के इस मेडल के एक दर्जन प्रधानमंत्रियों बाद साल 1996. कलकत्ता के रहने वाले 23 साल के लिएंडर पेस ओलंपिक के सेमी-फाइनल में खेल रहे थे. सामने थे वर्ल्ड नंबर 3 आंद्रे अगासी. पेस यह मैच 6-7, 3-6 से हार गए.अब उन्हें ब्रॉन्ज़ मेडल मैच में ब्राज़ील के फेरनान्डो एरिएल मेलिगेनी से भिड़ना था. अर्जेंटीनी/इटैलियन मूल के फेरनान्डो अपनी फाइटिंग स्पिरिट के लिए मशहूर थे. ब्राज़ील के इतिहास के बेस्ट प्लेयर्स में गिने जाने वाले फेरनान्डो मैच को टाइब्रेकर और पांच सेट में खींचने के मास्टर थे. पेस के लिए मैच की शुरुआत अच्छी नहीं रही. पहला सेट वह 3-6 से गंवा बैठे. बाद में इंडिया टुडे से बात करते हुए पेस ने उस मैच के बारे में बताया.
'मैं सुबह जब सोकर उठा तो मूड सही नहीं था, मैंने सारे काम अपने रुटीन से किए लेकिन खुद को मैच के बारे में सोचने से नहीं रोक पाया.'यह मैच बारिश से प्रभावित भी रहा. और पहला सेट हारने के बाद मैच रुकने से पेस की हालत और खराब हुई. पेस बताते हैं,
'मैंने स्ट्रैटजी पर काम नहीं किया, मैं उस वक्त बस मैच खत्म करना चाहता था. मैं इमोशनल टेनिस खेल रहा था, मैं सोच ही नहीं रहा था.'इसके बाद भी पेस ने अगले दोनों सेट 6-2, 6-4 से जीत मैच अपने नाम कर लिया. पेस से हारने के बाद मेलिगेनी ने कहा था,
'आपको कभी नहीं पता होता कि पेस का अगला कदम क्या होगा. उसके खिलाफ खेलना आसान नहीं है.'उस दिन लिएंडर ने टेक्निकली अपने करियर की सबसे खराब टेनिस खेली थी. लेकिन भारत के लिए खेलते वक्त हमेशा की तरह वह एक बार फिर से अपनी 'हिम्मत' से जीते. मैच के बाद जब मशहूर पत्रकार रोहित बृजनाथ ने लॉकर रूम में उनसे पूछा-
तुम आज कैसे जीते? पेस ने कहा- हिम्मत से. ऐसा कहते वक्त पेस की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
बाद में वह पोडियम पर आंद्रे अगासी (तीन ग्रैंड स्लैम) और सर्जी ब्रुगुरा (दो ग्रैंडस्लैम) जैसे लेजेंड्स के साथ खड़े हुए. उस वक्त तक पेस ने ग्रैंडस्लैम सिंगल्स में एक भी राउंड नहीं जीता था. पेस के पूरे करियर की यही खासियत रही है. देश के लिए खेलते वक्त हमेशा उन्होंने अपना बेस्ट दिया.I’ll never get over this day. Just another boy who believed he could. But it took a LOT more than just belief. Look Dada, now we can finally sit on the same table as two Olympic champions 😄 I earned that for you, me, for our people and for our country. It feels GOOD 🏅 pic.twitter.com/y9AHyM87JZ
— Leander Paes (@Leander) August 3, 2019
यह ब्रॉन्ज़ एक मामले में पेस के लिए बेहद खास था. दरअसल उनके पिता वेस पेस ने 1972 में इंडियन हॉकी टीम के साथ जो ब्रॉन्ज़ मेडल जीता था वह एक बाढ़ में बह गया था. लिएंडर के इस मेडल ने उनके पिता के मेडल के खो जाने से घर में खाली हुई जगह भर दी.
# डबल्स और मिक्सड डबल्स
तीसरे किस्से में हम बात करेंगे पेस के करियर की. साल 1973 की 17 जून को पैदा हुए पेस ने साल 1985 में मद्रास में ब्रिटैनिया अमृतराज की टेनिस अकैडमी जॉइन की थी. पेस के पापा के बारे में तो हम काफी बात कर चुके हैं. मां की बात करें तो वह भी एक एथलीट थीं. पेस की मां जेनिफर पेस ने साल 1980 में एशियन बास्केटबॉल चैंपियनशिप में भारतीय टीम की कप्तानी की थी. इससे पहले वह पेस के जन्म से एक साल पहले 1972 में भारत की तरफ से ओलंपिक में भी खेल चुकी थीं.वापस पेस पर आते हैं. अकैडमी आने के बाद पेस के खेल में काफी सुधार हुआ. उन्होंने साल 1990 में जूनियर अमेरिकी ओपन और जूनियर विम्बल्डन का खिताब जीता और वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन भी बने.
अगले ही साल वह प्रोफेशनल बने. प्रोफेशनल टेनिस प्लेयर बनने के बाद शुरू में पेस ने सिंगल्स ही खेला. लेकिन साल 1997 के अंत तक उन्हें लगा कि डबल्स खेलना ज्यादा बेहतर होगा. इसके बाद उन्होंने अपना पूरा फोकस डबल्स पर मोड़ दिया. महेश भूपति के साथ 1996 में ही डबल्स जोड़ी बना चुके पेस साल 1997 खत्म होते-होते पूरी तरह से डबल्स पर फोकस हो गए.
डेविस कप के डबल्स मैच से अपना करियर शुरू करने वाले पेस ने अपना पहला डबल्स टाइटल 1999 में जीता. भूपति के साथ पेस ने उस साल फ्रेंच ओपन और विम्बल्डन दोनों जीत लिए. यह साल पेस-भूपति की जोड़ी के लिए बेहद खास रहा. दोनों ने साल के चारों ग्रैंडस्लैम के फाइनल खेले. इसी साल पेस-भूपति डबल्स में ग्रैंडस्लैम खिताब जीतने वाली पहली भारतीय जोड़ी भी बने थे. साल 1999 में ही पेस ने विम्बल्डन का मिक्स्ड डबल्स खिताब भी जीता.
Leander Paes और Mahesh Bhupathi (इंडिया टुडे आर्काइव)
इससे पहले साल 1998 में वह और भूपति चार में से तीन ग्रैंड स्लैम के सेमी-फाइनल तक पहुंच चुके थे. पेस-भूपति ने इस साल ऑस्ट्रेलियन ओपन, अमेरिकी ओपन और फ्रेंच ओपन के अंतिम-4 तक का सफर तय किया था. साल 1999 में मिली सफलता के बाद पेस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने भूपति के साथ मिलकर 2002 एशियन गेम्स का गोल्ड मेडल जीता.
पेस अपने अब तक के करियर में 18 ग्रैंडस्लैम जीत चुके हैं. इनमें से 8 उन्होंने मेंस डबल्स में जबकि 10 मिक्स्ड डबल्स में जीते हैं. अपने डबल्स करियर में पेस ने 130 से ज्यादा पुरुष और 25 महिलाओं के साथ जोड़ी बनाकर टेनिस खेली है.
इसमें से वह सबसे ज्यादा सफल महेश भूपति के साथ रहे. इन दोनों ने साथ मिलकर तीन ग्रैंडस्लैम अपने नाम किए हैं. जबकि तीन ग्रैंडस्लैम के फाइनल में इन दोनों को हार मिली है. इस जोड़ी के नाम डेविस कप के इतिहास में लगातार सबसे ज्यादा मैच जीतने का रिकॉर्ड भी है. साल 1997 से लेकर 2010 तक इन दोनों ने डेविस कप में लगातार 24 डबल्स मैच जीते थे.
Fans को Autograph देके Leander Paes और Mahesh Bhupathi
डेविस कप के इतिहास में पेस-भूपति ने कुल 27 मैच साथ खेले हैं. इन दोनों ने इन 27 मैचों में से 25 में जीत दर्ज की है जबकि 2 में इन्हें हार का सामना करना पड़ा है. मिक्स्ड डबल्स में पेस और मार्टिना हिंगिस की जोड़ी खूब कामयाब हुई थी. इन दोनों ने मिलकर चार ग्रैंडस्लैम जीते थे.
लिएंडर पेस के रिकॉर्ड्स, मेडल्स, खिताबों की बात तो हर कोई करता है. लेकिन हमारा फोकस आंकड़ों से ज्यादा दिल जीतने वाले किस्सों पर रहता है. पेस के अब तक के करियर से हमने उन्हीं किस्सों को निकालने की कोशिश की है. इस आर्टिकल के जरिए हमने पेस के करियर की अहम बातों को आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है. हमारा यह प्रयास किस हद तक कामयाब रहा, यह बताना आपका काम है. आप अपनी राय कमेंट्स में हमें बता सकते हैं.
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