The Lallantop
Advertisement

जब अंग्रेज ने रिंग में दारा सिंह को 'भूखा नंगा इंडियन' कहा!

दारा सिंह की ज़िंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प क़िस्से

Advertisement
Dara Singh, professional wrestler & actor hanuman ramayan
दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 के दिन अमृतसर (पंजाब) के गांव धरमूचक में हुआ था. उनका असली नाम दीदार सिंह रंधावा था (तस्वीर- Indiatoday)
font-size
Small
Medium
Large
12 जुलाई 2023 (Updated: 12 जुलाई 2023, 22:52 IST)
Updated: 12 जुलाई 2023 22:52 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

दारा सिंह इन सिंगापोर. सिंगापोर में रहने वाले एक रईस आदमी ने दारा सिंह और उनके उस्ताद को रात खाने पर बुलाया. दोनों तय समय पर पहुंचे. अच्छी ख़ासी मेहमान नवाज़ी हुई. और मेज़बान खुद उन्हें गेट तक छोड़ने भी आया. जाते हुए उसने दारा सिंह (Dara Singh) की ओर एक काग़ज़ का टुकड़ा बढ़ाया. दारा ने देखा उसमें 'पचास' की संख्या लिखी हुई थी. उस समय तो दारा सिंह को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने वो टुकड़ा अपनी जेब में डाल लिया. बाद में गाड़ी में उन्होंने अपने उस्ताद से पूछा,

“इस काग़ज़ के टुकड़े का हम क्या करेंगे?”.

उस्ताद ने बताया, ये नोट ले जाकर बैंक को देंगे तो पैसे मिलेंगे. दारा सिंह को विश्वास न हुआ. बोले,

“अगर काग़ज़ पर लिखने से बैंक वाले इतने पैसे दे देते हैं, तो इसने पचास ही क्यों लिखा, हज़ार लिख देता”.

Dara Singh Wrestling
दारा सिंह ने साल 1949 में सिंगापुर से पहलवानी की शुरुआत की. उन्होंने कई विश्व स्तर के चैम्पियनों के खिलाफ कुश्ती लड़ी और उन्हें हराया (तस्वीर- Mid-day)

उस्ताद ने समझाने की कोशिश की लेकिन दारा सिंह को तसल्ली नहीं हुई. नोट ज्यों का त्यों ही रहा और बात आई गई हो गई. कई बाद साल जब दारा सिंह ने अच्छे ख़ासे पैसे कमाए, उनका एक दोस्त उन्हें बैंक में खाता खुलाने ले गया. बैंक वाले ने काग़ज़ के नोटों वाला एक छोटा सा रजिस्टर उन्हें पकड़ा दिया. दारा को याद आया ऐसा ही नोट उन्हें कुछ साल पहले किसी ने सिंगापोर में दिया था. दारा सिंह ने पूछा, ये क्या है? बैंक वाले ने जवाब दिया- इसे चेक बुक कहते हैं. 

यहां पढ़ें- मणिपुर भारत का हिस्सा कैसे बना?

यहां पढ़ें- मुस्लिम देशों से निकली कॉफ़ी दुनिया भर में कैसे फैली?

जब दारा सिंह के डर से छुपता रहा पहलवान 

बात है साल 1951 की. उस दौर में सिंगापोर मलेशिया का हिस्सा हुआ करता था. और वहां के सबसे बड़े पहलवान का नाम था, तारलोक सिंह. तारलोक खुद की तीस मार खान समझता था. इसलिए अख़बारों में इश्तिहार निकालकर पहलवानों को चैलेंज दिया करता था. ऐसा ही एक इश्तिहार पढ़कर दारा सिंह उससे टक्कर लेने पहुंच गए. 

कुआलालम्पुर के एक छोटे से मेले में कुश्ती का आयोजन था. दारा सिंह अपने भाई के साथ वहां पहुंचे और तारलोक को चुनौती दे डाली. पहला राउंड शुरू भर हुआ था कि दारा ने तारलोक को दोनों हाथों से पकड़ा और ज़मीन पर पटक डाला. लेकिन उसे चित करने के लिए जैसे ही वो आगे बड़े. पीछे से चार पांच लोग दौड़े-दौड़े आए और दारा सिंह को पीछे से पकड़ लिया. तारलोक भाग निकला और फ़ाइट वहीं रुक गई. वक्त बीता, दारा सिंह किसी भी तरह तारलोक से एक और बार दो-दो हाथ करना चाहते थे. लेकिन जैसे ही ये खबर तारलोक के पास पहुंचती कि दारा सिंह आ रहे हैं, तारलोक उस अखाड़े में आता ही नहीं.

ऐसे में एक रोज़ किसी ने दारा सिंह को एक आइडिया दिया. कुआलालम्पुर में एक सालाना मेला लगता था. जिसमें कुश्ती का भी अखाड़ा लगता था. मेले वाले दारा सिंह को न्योता देने आए. दारा ने हां कर दी लेकिन साथ में एक शर्त रख दी. शर्त ये कि दारा सिंह के आने की बात गुप्त रखी जाएगी. ऐसा ही हुआ भी. अख़बार में कुश्ती का इश्तिहार निकला लेकिन दारा सिंह का नाम उसमें से नदारद था.

ऐन कुश्ती के दिन तारलोक पूरे लाव लश्कर के साथ मेले में पहुंचा. वो लड़ने की तैयारी कर ही रहा था, तभी पता चला सामने वाले का नाम दारा सिंह है. उसकी सिट्टी पिट्टी ग़ायब. कुछ देर बाद दारा सिंह के पास एक आदमी आया. तारलोक ने संदेश भेजा था, लड़ने से पहले ही मुक़ाबला बराबर मान लेते हैं. दारा सिंह तैयार ना हुए. इतने में ऐलान हुआ कि जो कुश्ती जीतेगा वो पूरे मलेशिया का चैम्पियन माना जाएगा. कुश्ती शुरू हुई. तारलोक इस बार पहले से ज़्यादा तैयार था. उसने ग़ज़ब की फुर्ती दिखाते हुए दारा सिंह को पीछे से पकड़ लिया. और उन्हें नीचे बिठा दिया. चित करने के लिए जैसे ही वो आगे बढ़ा, दारा एकदम से उठे और उसे पछाड़ते हुए ज़मीन पर दे मारा. सेकेंडों के अंदर उसे चित करते हुए दारा सिंह, मलेशिया के नए कुश्ती चैंपियन बन गए. 

दारा सिंह ने दी अंग्रेज़ पहलवान को पटखनी 

'तुम भूखे नंगे इंडियन लोग'. सामने से आवाज़ आई. अंग्रेज़ी में बोला गया ये वाक्य निकला था चार्ली ग्रीनिज के मुंह से. ग्रीनिज ऑस्ट्रेलिया के सबसे तगड़े पहलवानों में से एक था. उसके सामने थे दारा सिंह. ग्रीनिज कुश्ती के रिंग में गालियां देने के लिए कुख्यात था. दारा सिंह को उनके साथियों ने इस बात के लिए पहले से ही आगाह किया था. तब दारा ने दावा करते हुए कहा था, शर्त लगा लो वो मुझे गाली नहीं दे पाएगा. हालांकि गाली अब दी जा चुकी थी. तीर कमान से निकल चुका था. और गाली सुनकर दारा के ग़ुस्से का पारा ऐसा चढ़ा कि उन्होंने सवारी नाम का एक दांव दे मारा. सवारी ऐसी ख़तरनाक गांठ थी कि देशी अखाड़ों में भी इसके इस्तेमाल की मनाही होती थी. क्योंकि इसमें सामने वाले की सांस घुटने लगती है.

Dara Singh Hanuman
दारा सिंह ने रामानंद सागर के 'रामायण' धारावाहिक में भगवान हनुमान का किरदार निभाया था. उनके इस किरदार को दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया गया था (तस्वीर- Indiatoday)

चार्ली ग्रीनिज की हालत ख़राब थी. वो 'बस बस' कहने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी. ऊपर से मैच का जो रेफ़री था, उसे फ़्री स्टाइल का अनुभव था. कुश्ती के देशी दांवों का उसे कोई इल्म नहीं था. चार्ली की जान गले गले आ चुकी थी. आख़िर में जब रेफ़री में उसकी आंखों के पीछे नसों में खून उतरते देखा, तब जाकर उनके तेज़ी से सीटी बजाई. इसके बाद चार्ली ने रिज़ल्ट की घोषणा का इंतज़ार भी नहीं किया. उसने अपने कपड़े पहने और रिंग से उतरकर बाहर चला गया.

इस बीच एक और चीज़ की चर्चा करना ज़रूरी हो जाता है. वो है दारा सिंह की डाइट. कितना खाते थे, दारा सिंह, इस सवाल में लोगों की ख़ासी दिलचस्पी रहती है. तो खुद दारा सिंह की आत्मकथा से आपको बताते हैं कि दारा सिंह की डाइट कैसी थी? अपनी डाइट का ब्यौरा देते हुए दारा सिंह लिखते हैं, एक दिन में सौ ग्राम शुद्ध घी. दो किलो दूध. सौ ग्राम बादाम की ठंडाई. दो मुर्ग़े या आधा किलो बकरे का गोश्त. सौ ग्राम आंवले, सेव या गाजर का मुरब्बा. दस चांदी के वर्क और दो सौ ग्राम मौसमी फल. चार रोटी दो टाइम. एक वक्त सब्ज़ी और एक वक्त गोश्त. दारा सिंह इसके साथ सही वर्जिश को अपनी सेहत का राज बताते हैं.

राज कपूर को दारा सिंह ने उठा लिया  

एक बार राज राज कपूर ने दारा सिंह को अपनी फ़िल्म के प्रीमियर में बुलाया. मिड ब्रेक में कुछ पत्रकारों ने दारा सिंह को छेड़ना शुरू कर दिया. बोले, पहलवानों को तो उठा के फेंक देते हो. राज कपूर को उठाकर दिखाओ. दारा सिंह ने आव देखा ना ताव. राज कपूर को अपने हाथों में उठा लिया, मानो कोई छोटा सा बच्चा हो.

मुंबई, (तब के बॉम्बे) में राज कपूर की राज कपूर की पार्टियां अपनी शान-ओ -शौक़त के लिए फ़ेमस हुआ करती. हर कोई इन पार्टियों का हिस्सा बनना चाहता था. अक्सर दारा सिंह भी शामिल होते और उनकी पत्नी सुरजीत भी. एक रोज की बात है. सुरजीत और दारा सिंह पार्टी में पहुंचे. और एक रूसी बाला ने दारा सिंह को अपने साथ डांस के लिए इन्वाइट किया. दारा सिंह मना नहीं कर पाए और उस लड़की के साथ चले गए.

सुरजीत वहीं अकेले बैठे रहीं. 10 मिनट गुजरे, 10 मिनट गुजरे, देखते देखते 45 मिनट हो गए, लेकिन दारा सिंह और रूसी लड़की का डांस ख़त्म ना हुआ. इतनी देर में इंडस्ट्री के दो बड़े चेहरे जॉय मुखर्जी और बिस्वजीत, सुरजीत के बग़ल में आकर बैठ गए. लेकिन सुरजीत का ध्यान तो अपने पति पर था. उन्होंने एक नाजर उठाकर भी दोनों को नहीं देखा. तभी जॉय मुखर्जी ने सुरजीत की ये हालत देखकर माहौल को हल्का करने के लिए उनसे कहा,

"चलिए भाभी जी हम दोनों भी डांस करते हैं और आपके पति को जलाते हैं".

सुरजीत का ध्यान ज्यों का त्यों बना रहा. उने चेहरे पर मुस्कुराहट तो आई लेकिन उन्होंने डांस से इंक़ार कर दिया. दारा सिंह अभी भी डांस में मशरूफ़ थे.

जब संजय गांधी ने रिलीज़ करवाई दारा सिंह की फिल्म 

अगला किस्सा इमरजेंसी के दिनों का है. दारा सिंह एक फ़िल्म बना रहे थे. नाम था, ‘राज करेगा खालसा’. फ़िल्म रिलीज़ होती, इससे पहले ही इमरजेंसी लग गई. और सेंसर से क्लियरेंस मिलने में पूरा एक साल लग गया. एक साल बाद जब फ़िल्म सेंसर से पास होकर रिलीज़ हुई. पंजाब में पहले ही दिन उसने गर्दा काट दिया. दारा सिंह खुश थे, क्योंकि फ़िल्म काफ़ी महंगी बनी थी, इसलिए उसका हिट होना बहुत ज़रूरी था. तय हुआ कि फ़िल्म के प्रमोशन के लिए मुख्यमंत्री को भी फ़िल्म दिखाई जाएगी. ज्ञानी ज़ैल सिंह तब पंजाब के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. और दारा के पारिवारिक दोस्त भी थे. ज्ञानी जी को फ़िल्म पसंद तो आई लेकिन फ़िल्म देखने के बाद उन्होंने उसमें फेरबदल की मांग कर डाली. फ़िल्म में एक डायलॉग था,

“वो सरकार जो करप्ट है, हमने उसे बदल देना है”

ज्ञानी जी चाहते थे इसे बदल दिया जाए. दारा सिंह ने सरकार की जगह राज शब्द रख दिया. लेकिन ज्ञानी जी संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने एक और बदलाव की मांग की. फ़िल्म में सिखों ने नीली पगड़ी पहनी हुई थी. जो अकालियों की पहचान मानी जाती थी. ज्ञानी चाहते थे, नीली पगड़ी सफ़ेद में बदल जाए. जो कांग्रेस की पहचान थी. दारा सिंह इसके लिए तैयार ना हुए. क्योंकि इसके लिए उन्हें फ़िल्म का एक बड़ा हिस्सा दोबारा शूट करना पड़ता. इसके बाद ज्ञानीजी ने उन्हें भरोसा दिया कि कुछ दिन में वो मामले को सुलझा लेंगे. तब तक फ़िल्म प्रसारित नहीं होगी.

Dara Singh Raj Kapoor
राज कपूर को सर पर उठाए हुए दारा सिंह (तस्वीर- Social Media/Vindu Dara Singh)

दारा सिंह ज़ैल सिंह के जवाब का इंतज़ार करने लगे. लेकिन इस बात को दो ही दिन बीते थे कि एक नया बखेड़ा शुरू हो गया. निहंग सिखों के एक गुट, बुड्ढा दल के जत्थेदार बाबा संता सिंह ने फ़िल्म के खिलाफ मुहीम छेड़ दी. संता सिंह का कहना था,

"दारा सिंह जिसने केश कतर लिए हैं, वो निहंग सिख का रोल कैसे अदा कर सकता है".

ये कहकर संता सिंह ने फ़िल्म को बैन घोषित कर दिया. फ़िल्म रिलीज़ कराने के लिए दारा सिंह संता सिंह से मिलने गए. लेकिन संता सिंह ने मिलने से इंक़ार कर दिया और ऐलान करते हुए कहा, फ़िल्म रिलीज़ हुई तो पूरे पंजाब में खूनी दंगे होंगे. दारा सिंह ने मान मनव्वल करते हुए संता सिंह से एक बार फ़िल्म देखने की गुहार की. लेकिन संता सिंह नहीं माने. कोई चारा ने देख दारा सिंह दोबारा मुख्यमंत्री के पास पहुंचे. ज़ैल सिंह ने उनसे कहा,

"बेहतर रहेगा तुम फ़िल्म रिलीज़ ना करो”

दारा सिंह ने कहा,

“ज्ञानीजी, फ़िल्म रिलीज़ नहीं हुई तो मेरे 35 लाख डूब जाएंगे”

ज्ञानी जी ने कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद दारा सिंह अकाली दल के एक नेता से मिले. उसने सलाह दी कि एक ज़िले में फ़िल्म को रिलीज़ करके देखो. उसके बाद एक एक कर बाक़ी जगह करना. दारा सिंह ने ऐसा ही किया. फ़िल्म नए नाम से होशियारपुर ज़िले में रिलीज़ हुई. अब फ़िल्म का नाम था, ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं’.फ़िल्म को रोकने के लिए संता सिंह के 30 लोग सिनेमा हॉल बंद कराने पहुंच गए. दारा सिंह ने संयम बरतते हुए उनसे एक बार फ़िल्म देख लेने की गुज़ारिश की. अपने हीरो को इस तरह गुज़ारिश करता देख, उनमें से कुछ लोग फ़िल्म देखने के लिए तैयार हो गए. और फ़िल्म उन्हें इतनी अच्छी लगी कि बाहर आकर उन्होंने दारा सिंह से वादा किया,

“हम बाबा को समझाएंगे कि फ़िल्म सिखों के ख़िलाफ़ नहीं है”.

संता सिंह इस पर भी न माने. उल्टा उन्होंने, जिन 30 लोगों ने फ़िल्म देखी थी, उनके नाक छिदवा कर उनका चेहरा काला कर पूरे शहर में घुमाया दिया. इन तमाम झंझटों के बीच फ़िल्म कुछ शहरों में रिलीज़ हो गई, खूब चली भी, लेकिन बुड्ढा दल ने अमृतसर में फ़िल्म को रिलीज़ नहीं होने दिया. जिसके चलते दारा सिंह को अच्छा ख़ासा नुक़सान हुआ. क़र्ज़ा चढ़ गया. उनकी पत्नी सुरजीत ने उनसे कहा,

“आप निर्माता बने ही क्यों. एक्टर ही बेहतर थे. सब बर्बाद हो गया है”.

तब दारा सिंह ने उन्हें जवाब देते हुए कहा,

“भूसा बेचके थोड़ी लाए थे पैसे? यहीं कमाए थे. फिर कमा लेंगे”

दारा सिंह तो आगे बढ़ गए लेकिन फ़िल्म का किस्सा यहीं ख़त्म न हुआ. इसके कुछ साल बाद एक रोज़ दारा सिंह की मुलाक़ात संजय गांधी से हुई. ज्ञानी ज़ैल सिंह भी वहां मौजूद थे. यहां दारा सिंह ने संजय को याद दिलाया कि कैसे सरकार ने उनकी फ़िल्म रिलीज़ नहीं होने दी. संजय ज़ैल सिंह की ओर मुड़े और बोले,

“ज्ञानी जी ये क्या हो रहा है. इनकी पिक्चर ज़रूर लगनी चाहिए”

अगले ही रोज फ़िल्म को पूरे पंजाब में रिलीज़ करने की इजाज़त मिल गई. असली हैरानी की बात ये थी कि दारा सिंह को बुड्ढा दल के जत्थेदार बाबा संता सिंह का एक ख़त भी आया. जिसमें उन्होंने दारा सिंह से माफ़ी मांगी थी. तब जाकर दारा सिंह को पता चला कि पूरा मामला पॉलिटिक्स का था. कांग्रेस और अकाली दल की पॉलिटिक्स में उनकी फ़िल्म पिट गई थी. दारा सिंह इस एपिसोड से इतने खीज गए कि उन्होंने आगे कोई फ़िल्म ना बनाने का फ़ैसला कर लिया.

Dara Singh with Wife
दारा सिंह अपनी पत्नी सुरजीत कौर के साथ (तस्वीर- Indiatoday)
दारा सिंह और ये का जे

1954 में दारा सिंह को फ़िल्मों में पहला ब्रेक मिला. सीन छोटा था, जिसमें दारा को बस कुश्ती करनी थी. कोई डायलॉग भी नहीं बोलना था. इसके बाद 1960 में उन्हें ‘भक्त राज’ नाम की फ़िल्म में कुश्ती पहलवान का एक और रोल मिला. अंतर इतना था कि इस बार उन्हें 4-5 संवाद भी बोलने थे. दारा सिंह का डायलॉग था-

“छोड़ दो, ये क्या कर रहे हो.”

डायलॉग बोलने की बारी आई तो दारा सिंह पंजाबी लहजे में बोले,

“जे क्या कर रहे हो”

रीटेक पर रीटेक हुए. लेकिन दारा सिंह ने 'ये' को जे ही बोला. अंत में तय हुआ कि ये डायलॉग बाद में डब हो जाएगा. डबिंग क्या होता है, ये दारा सिंह को समझ न आया. ये बात उन्होंने अपने साथी को बताई. उसने समझाते हुए कहा,

“तुझे कौन सा हीरो बनना है, काम कर और भूल जा”

दारा सिंह ने ऐसा ही किया. वो पहलवानी में जुट ग़ए. लेकिन ये बात उनके मन से नहीं गई. डबिंग से पहले उन्होंने रोज़ सैकड़ों बार ये लाइन रिहर्स की. और डबिंग के दिन पूरी तैयारी से पहुंचे. डायरेक्टर ने पूछा, तैयार हो दारा सिंह? दारा सिंह ने तेज आवाज़ में से कहा, हां तैयार हूँ. इसके बाद दारा सिंह ने पूरे आत्मविश्वास से डायलॉग बोला,

“छोड़ दो, जे क्या कर रहे हो.”

दारा सिंह दारा सिंह ही रहे. जे जे ही रहा, ये नहीं बन पाया. बाद में एक डबिंग आर्टिस्ट ने दारा सिंह के लिए ये लाइन रिकॉर्ड की.

वीडियो: तारीख: एडिसन का ये झूठ पता है आपको?

thumbnail

Advertisement

Advertisement