पिज्जा-बर्गर नहीं 'भुने हुए चूहे के साथ सलाद' खाते थे 800 साल पहले इंडियावाले
इंसान जबसे इस धरती पर है तबसे वो कपड़ा -मकान भले न जानता हो, पर वो खाना जानता था. क्योंकि खाने के बिना ज़िंदा रहना मुमकिन नहीं था. समय के साथ इंसान और विकसित हुआ. विकसित हुआ तो खाने के साथ-साथ स्वाद पर भी ध्यान दिया.
इंसानी सभ्यता की अब तक की समझ से हमें एक बात साफ है कि इंसान को जीने के लिए तीन बुनियादी चीज़ों की ज़रूरत है; रोटी, कपड़ा और मकान. इंसान ने पहले पेड़ों की पत्तियों से कपड़े बनाये, फिर जानवरों की छाल आई और आज मॉडर्न ज़माने में कपास के धागे से बने कपड़े पहने जा रहे हैं. मकान के साथ भी कुछ ऐसा ही था. पर एक चीज़ जो शायद इनमें सबसे अहम है, वो है रोटी. इंसान जबसे इस धरती पर है तबसे वो कपड़ा -मकान भले न जानता हो, पर वो खाना जानता था. क्योंकि खाने के बिना ज़िंदा रहना मुमकिन नहीं था.
समय के साथ इंसान और विकसित हुआ. विकसित हुआ तो खाने के साथ-साथ स्वाद पर भी ध्यान दिया और स्वाद के लिए चाहिए होते हैं मसाले. चूंकि मसालों का इतिहास बहुत पुराना है, इसलिए भारत में इसे कोई विशेष इंग्रीडिएंट नहीं माना जाता. मसालों का कोई हौव्वा भारत में कभी नहीं रहा. हां, बाहर से यहां आने वाले विदेशियों के लिए मसाले ज़रूर एक नायाब चीज़ थे.
पर भारत ऐसा देश है जहां स्वाद थोड़ा कड़वा हो, चलेगा! पर न्यूट्रीशन भरपूर होना चाहिए. इसकी एक बानगी देखने को मिली 2017 में. इस साल राजस्थान के Binjor में हड़प्पा सभ्यता के एक साइट की खुदाई हुई. सोचिये यहां क्या मिला होगा, बर्तन, पेंटिंग. नाह. यहां मिले लगभग 4 हज़ार साल पुराने 7 लड्डू. ये एक साइज के लड्डू थे. और इसे इस तरह रखा गया था कि ये दब के टूटे न. ASI की जांच में पता चला कि इन्हें बनाने के लिए जौ, आटे और चने को पीसकर तेल के साथ बनाया गया था. माने आज की भाषा में मल्टीग्रेन, प्रोटीन युक्त लड्डू.
इतिहासकार कोलीन टेलर भी अपनी किताब 'Feasts and Fasts: The History of Food In India' में बताती हैं कि भारत के प्राचीन ग्रंथों में खाने के स्वाद से ज़्यादा उसकी न्यूट्रीशनल वैल्यू पर ज़ोर दिया जाता था. खाना पचने में आसान हो, उम्र के हिसाब से हो. माने बुज़ुर्ग लोगों को कोई ऐसी चीज़ नहीं खिलानी चाहिए जिसे चबाने में उन्हें दिक्क़त हो. अब उस समय खाने में क्या उपयोग होता था ये तो हमें पता चलता है पर उसकी रेसिपी कहीं नहीं मिलती .जैसा हमें हरप्पा सभ्यता के लड्डूओं में जौ, आटा और चनों का उपयोग दिखा, कुछ वैसे ही.
खैर, भारत में लोगों के खानपान को लेकर कोई रिटेन दस्तावेज़ तो नहीं मिलते. जो मिलते भी हैं, वो लिमिटेड हैं. हरप्पा के समय से थोड़ा फ़ास्ट-फॉरवर्ड करें तो हम पहुंचते हैं साल 1127 में. इस समय की एक किताब हमें मिलती है जिससे हमें भारत और यहां के लोगों की फ़ूड हैबिट्स का भी पता चलता है. इस किताब का नाम है, मनसोल्लासा. हालांकि मनसोल्लासा के नाम से कन्फ्यूज नहीं होना है क्योंकि इस नाम से एक और ग्रन्थ है जिसे जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने लिखा था.
बहरहाल, कोलीन टेलर के मुताबिक मनसोल्लासा अपने आप में एक अनूठी किताब है. इसमें अलग-अलग तरीकों के खाने, उन्हें पकाने और कैसे खाया जाए, इस बारे में भी विस्तार से बताया गया है. इसे दुनिया की सबसे पुरानी कुकबुक्स में से एक माना जाता है. मनसोल्लासा को अभिलाषितार्थ चिंतामणि यानी 'इच्छा पूरी करने वाला अनमोल रत्न' भी कहा जाता है.
पर मनसोल्लासा बस एक रेसिपी या कुकिंग बुक नहीं है. ये एक तरह की ऑल इन वन किताब है. इसके 100 चैप्टर्स हैं जिन्हें कविता की तरह लिखा गया है. उस समय के भारत में लिखने की ये पद्धति काफी प्रचलित थी जिसमें कहनियों को कविता के रूप में लिखा जाता था. अब ज़रा मनसोल्लासा के पन्ने पलटते हैं और जानते हैं इसमें है क्या?
मनसोल्लासा के 100 चैप्टर्स में राजा की योग्यता, शासन करने का तरीका, अर्थशास्त्र, भोजन, संगीत, मनोरंजन, खेल जैसे विषयों के बारे में विस्तार से लिखा गया है. यहीं नहीं, इसमें जंग लड़ने वाले हाथियों की ट्रेनिंग से लेकर महिलाओं के लिए मेकअप के टिप्स भी दिए गए हैं. माने उस समय की एक कम्प्लीट लाइफ गाइड बुक.
मनसोल्लासा के तीसरे हिस्से 'भर्तुर उपभोगकरण' में खाने से जुड़े 20 चैप्टर हैं. इसमें 1820 छंद हैं जिनमें कई तरह के खाने, पकवान और उन्हें बनाने की रेसिपी का वर्णन किया गया है. कुछ अतरंगी डिशेज़ का ज़िक्र भी इसमें है जिसे सुनकर आप नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं पर उस समय इन्हें बड़े चाव से खाया जाता था. जैसे भुने हुए चूहे. जैसे आज चिकन को बारबेक्यू करते हैं वैसे ही.
भारत के कई हिस्सों में आज भी आपको ये फ़ूड हैबिट्स देखने को मिल जाएंगी. इसके अलावा इसमें बारबेक्यू किये हुए कछुए और अन्य पकवान शामिल हैं. पर वेजीटेरियन लोग घबरायें नहीं, उनके लिए भी मनसोल्लासा में अनाज, दालों, सब्ज़ियों के साथ-साथ 40 फलों का भी ज़िक्र है. इतिहासकार कोलीन टेलर बताती हैं कि मनसोल्लासा में बताये गए 40 फलों में से किसी का भी अंग्रेजी नाम हमें नहीं पता.
सलाद का चलनआजकल लोगों में सलाद खाने का चलन है. कई रेस्टोरेंट ऐसे खुल गए हैं जो सिर्फ सलाद की डीशेस ही बेच रहे हैं. ऐसे कई मॉलीक्युलर गैस्ट्रोनॉमी रेस्टोरेंट हैं जो सलाद के लिए हज़ारों चार्ज करते हैं.
पर मनसोल्लासा में सलाद का भी ज़िक्र है. इसमें सलाद की एक रेसिपी है जिसमें कच्चा आम, करेला, केला और कटहल पर तिल और काली सरसों की ड्रेसिंग का इस्तेमाल किया जाता है. अब ऐसे सलाद के लिए आजकल रेस्तरां वाले ठीक-ठाक चार्ज करते हैं.
कई लोग हैं जिन्हें घर के खाने से अच्छा फ़ास्ट फ़ूड लगता है. ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि फ़ास्ट फ़ूड टेस्ट में मज़ेदार होते हैं. इसलिए मनसोल्लासा में फ़ास्ट फ़ूड के शौक़ीनों के लिए भी पकवान हैं. एक डिश है 'पुरिका'. डीप फ्राई किये हुए छोटे-छोटे डिस्क. आज आप गोलगप्पे के बाद जो पापड़ी मांगते हैं, ये वही पापड़ी है. पर ये मेनू यहीं ख़त्म नहीं होता. इसमें दही में मैरीनेट माने भिगोये हुए उड़द की दाल के पकौड़े, आज के समय का दही वड़ा समझ लीजिये. इसके अलावा दोसिका माने डोसा, पोलिका यानी पूरन पोली, और स्वाद से भरपूर कई तरह के मंडक. अब ये मंडक क्या है? आज आप जो पराठे खाते हैं, उसे ही मनसोल्लासा में मंडक कहा गया है.
स्नैक्स - कुछ कुरकुरा हो जाएऑफिस में कंप्यूटर पर बैठे हों या एक घर पे किसी किताब के साथ, अगर साथ में थोड़े स्नैक्स मिल जाएं तो काम में मन लगा रहता है. तो परेशान न होइए, इसका ज़िक्र भी मनसोल्लासा में है. कई सारे स्नैक्स हैं जैसे मटर की पैटी. वही जो बन के बीच में रखकर खाते हैं. और दाल के पकौड़े, जिसे कहीं-कहीं दाल वड़ा भी कहते हैं. पर ऐसा नहीं है कि नॉनवेज वालों के लिए कोई चॉइस नहीं है. मनसोल्लासा में मछलियों की 35 वैराइटी है. किताब में ये भी टिप दी गयी है कि मछलियों को क्या खिलाया जाए? कैसे काटा जाए कि खाने में आसानी हो. इनमें से फ्राइड रोहू मछली, तांबे के बर्तन में पका हुआ केकड़ा और भुने हुए कछुए, ये सारी डिशेस आज भी उत्तर भारत के कई इलाकों में लोकप्रिय है.
पर स्नैक्स के अलावा भी नॉनवेज में कई वैराइटी हैं. जैसे कीमे से तैयार हुआ कबाब जो आज लखनऊ में सबसे ज़्यादा प्रचलित है. भेड़ के खून को दलिया या जौ के आटे के साथ मिलाकर एक तरह की पुडिंग तैयार की जाती है. इसे ड्रिशीन कहा जाता है और ये डिश आज भी काफी चाव से खाई जाती है.
आफ्टर फ़ूडअब खाना खा लिया तो पचाने के लिए भी कुछ चाहिए. गर्मियों में आमतौर पर लोग छाछ पीते हैं. मनसोल्लासा में भी छाछ पीने और बनाने की विधि बताई गई है. इसके अलावा एक और डिश या यूं कहें कि ड्रिंक बहुत प्रचलित है, पनाका. इसमें बहुत से फलों को साथ मिलाकर दही के साथ परोसा जाता है. एकदम हेल्दी और आसानी से पचने वाला, आज के ज़माने के फ्रूट स्मूदी जैसा.
कुछ मीठा हो जाएखाने के बाद हमारे यहां मीठा खाने का चलन है. मनसोल्लासा भी इस चलन को चरितार्थ करता है. इसमें राजा की पसंदीदा मिठाईयां शामिल हैं. मिल्क मेड मिठाईयों के अलावा इसमें गोलामू माने गेंहू से बने डॉनट का भी ज़िक्र है. चावल के आटे से बना पंटुआ और काले चने के आटे से बने केक का ज़िक्र भी मनसोल्लासा में मिलता है. मनसोल्लासा में एक चीज़ का ज़िक्र बार-बार किया गया है कि मिट्टी के बर्तनों में बना खाना हमेशा मेटल के बर्तनों से स्वादिष्ट होता है.
शराब का शौकशराब एक ऐसी चीज़ है जो हर तरह से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही है. फिर भी प्राचीन समय से लोग इसका सेवन करते रहे हैं. मनसोल्लासा में भी इसका ज़िक्र है. आज जैसे वाइन, बीयर, व्हिस्की जैसी अलग-अलग वैराइटी शराब में है, वैसा ही कुछ कुछ मनसोल्लासा में भी है. इसमें अंगूर और गन्ने से बनी शराब, नारियल और खजूर से बनी शराब के बारे में बताया गया है. और आज नॉर्थ इंडिया में खासकर पूर्वी यूपी और बिहार में प्रचलित समर ड्रिंक ताड़ी का भी ज़िक्र इसमें है.
इन सभी चीज़ों से एक चीज़ तो तय है कि मनसोल्लासा सिर्फ एक फ़ूड कुक बुक नहीं बल्कि एक 360 डिग्री किताब है जो लगभग सब कुछ कवर करती है. जैसे इसके कई चैप्टर्स में संगीत वाद्ययंत्र, नृत्य, खेल, परफ्यूम, पेंटिंग, बागवानी माने गार्डनिंग जैसी चीज़ों के बारे में डिटेल में बताया गया है.शुक्र है कि इतिहास की ये नायब किताब समय की मार से बच गई. आज ये राजस्थान के बीकानेर में ‘बीकानेर आर्काइव’ और पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में सुरक्षित रखी हुई है. इसके अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध हैं.
दक्षिण एशियाई स्टडीज़ की प्रोफेसर, मंदाक्रांता बोस, बताती हैं कि मनसोल्लासा भारत में नृत्य शैलियों पर इनफार्मेशन सेने वाला सबसे पहला ग्रंथ है जिसे खोजा जा सका. संगीत और मानव विज्ञान के प्रोफेसर ब्रूनो नेट्टल मनसोलासा को संगीत, नृत्य और अन्य प्रदर्शन कलाओं पर विस्तृत जानकारी देने वाला विशाल ग्रंथ मानते हैं.
कुलजमा बात ये है कि मनसोल्लासा भारतीय खान-पान के इतिहास को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन है. यह एक ऐसा एतिहासिक-दस्तावेज़ है, जो हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति और जीवनशैली से गहराई से परिचित कराता है. इसलिए इसे भारतीय खान-पान और संस्कृति के अध्ययन का एक अनमोल स्रोत माना जाता है.
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