खालिस्तान पर भारत-कनाडा में तनाव और जस्टिन ट्रूडो के बयान के पीछे असल वजह कुछ और है?
इंदिरा गांधी ने पियरे ट्रूडो के पिता के सामने खालिस्तान का मुद्दा उठाया और नरेंद्र मोदी ने इसी विषय पर उनके बेटे जस्टिन ट्रूडो से चर्चा की.
भारत और कनाडा के संबंध (India Canada Relations) में उतार-चढ़ाव की हमें आदत-सी थी. लेकिन 18-19 सितंबर की दरम्यानी रात कनाडा के PM जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने भारत सरकार पर आरोप लगा दिया कि उसने कनाडा की ज़मीन पर खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या करवाई है. कनाडा सरकार ने भारतीय उच्चायोग में इंटेलिजेंस के मुखिया पवन कुमार राय को निष्कासित भी कर दिया.
भारत सरकार ने कनाडा के आरोप सिरे से खारिज किए और 19 सितंबर को दिल्ली में कनाडा के उच्चायुक्त कैमेरॉन मैके को तलब कर विरोध जताया. सरकार ने भारत में कनाडाई इंटेलिजेंस के स्टेशन हेड ऑलिवियर सिल्वेस्टर को भी निष्कासित कर दिया है.
भारत और कनाडा के बीच संबंध कभी इतने खराब नहीं रहे. दोनों देश ‘जैसे को तैसा’ वाली लीक पर चलते दिख रहे हैं. लेकिन ये तो नज़र आ ही रहा है कि जस्टिन ट्रूडो तल्खी को एक नए स्तर पर ले गए हैं, जहां से जल्द लौटना आसान नहीं होगा. खालिस्तान के मुद्दे पर देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वक़्त भी कनाडा से सहयोग मांगा गया था. तब जस्टिन के पिता कनाडा के PM थे. आज जस्टिन के हाथों में कनाडा की कमान है. तो ट्रूडो के पास इस नाज़ुक मुद्दे के लिए ज़रूरी संवेदनशीलता की कोई कमी नहीं होनी चाहिए. ऐसे में ट्रूडो के हालिया कदम को समझने के लिए उनका राजनीतिक सफ़र देखते है-
जस्टिन - बीबर नहीं, ट्रूडोआज से कुछ 10-15 साल पहले दुनिया जस्टिन बीबर के पीछे पागल थी. उनके गाने हिट, स्टेज शो हिट और वो जो कुछ कह दें, कर दें, वो भी हिट. गाना दर गाना, साल दर साल जस्टिन को दुनिया ने अपनी आंखों के सामने बड़े होते देखने लगी. जस्टिन का खुमार अभी उतरा भी नहीं था कि एक दूसरा जस्टिन दुनिया भर में मशहूर हो गया. पूरा नाम - जस्टिन पियरे जेम्स ट्रूडो. शॉर्ट में, जस्टिन ट्रूडो. 2015 में कनाडा के 23 वें प्रधानमंत्री बने. तब वो महज़ 44 साल के थे. दुनिया में इस वक्त जितने भी राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री हैं, उनके बीच कोई मुकाबला हो तो सबसे पॉपुलर नेताओं की पंक्ति में ट्रूडो ज़रूर खड़े होंगे. ध्यान रहे - हमने पॉपुलर कहा, ताकतवर नहीं. खैर, सच ये भी है कि एक वक्त कनाडा में ही जस्टिन को गंभीरता से नहीं लिया जाता था. फिर उन्होंने इमेज पर ध्यान दिया. सही वक्त पर सही चीज़ें कहनी और करनी सीखीं. और एक बॉक्सिंग का मैच जीतकर प्रधानमंत्री बन गए.
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इंदिरा ने जब खालिस्तान को लेकर पिता से शिकायत कीपियरे ट्रूडो कनाडा के 15वें प्रधानमंत्री थे. उनकी पत्नी थीं मारग्रेट ट्रूडो. मारग्रेट के पिता जिमी सिनक्लेर भी एक कैबिनेट मंत्री रह चुके थे. पियरे और मारग्रेट की पहली औलाद हैं जस्टिन ट्रूडो. उनकी पैदाइश साल 1971 में कनाडा के ओटावा की है. वो बस छह साल के थे, जब माता-पिता का तलाक हो गया. जस्टिन और उनके दोनों छोटे भाई - एलेक्जेंडर और मिशेल, पिता के साथ रहने लगे. इस वक़्त पियरे कनाडा के प्रधानमंत्री थे. 11 की उम्र में पिता के साथ जस्टिन पहली बार भारत आए थे. तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. टेरी मिल्वस्की ने अपनी किताब- 'ब्लड फॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स' में लिखा है कि इंदिरा ने पियरे से शिकायत की थी. खालिस्तान के प्रति कनाडा के नरम रवैये की शिकायत.
पियरे कुल चार बार कनाडा के PM रहे. कनाडा में ये एक रिकॉर्ड है. जब जस्टिन 12 के हुए, तब पियरे ने राजनीति से संन्यास ले लिया. और अपने तीनों बेटों के साथ मॉन्ट्रिएल में शिफ्ट हो गए. यहीं पर जस्टिन ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई खत्म की. उसी कॉलेज से, जहां से उनके पापा ने पढ़ाई की थी. फिर आई यूनिवर्सिटी की पढ़ाई. साल 1994 में जस्टिन ने अंग्रेजी लिटरेचर में BA किया.
कभी ये, कभी वोहोश संभालने के बाद जस्टिन ने कई साल कुछ टिककर नहीं किया. कॉलेज के बाद पूरे एक साल तक जस्टिन घूमते रहे. दुनिया देखते रहे. फिर जस्टिन वापस पहुंचे मैकगिल यूनिवर्सिटी. वहां टीचर बनने की पढ़ाई की. फिर ये पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. एक दूसरे शहर विसलर चले गए. वहां नाइटक्लब में बाउंसर बन गए. फिर वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया से बैचलर ऑफ एजुकेशन की पढ़ाई खत्म की. इसके बाद जस्टिन एक प्राइवेट स्कूल में फ्रेंच और गणित पढ़ाते लगे. फिर सरकारी स्कूल में पढ़ाया. ये 1998 का साल था. तभी अचानक उनके छोटे भाई मिशेल की एक हादसे में मौत हो गई. फिर दो साल बाद, यानी 2000 में उनके पिता की भी मौत हो गई. उन्हें कैंसर था.
इधर टीचर बनने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग करने की सोची. दाखिला भी ले लिया. फिर वो छोड़कर एनवॉयरमेंटल ज्योग्रफी में एडमिशन ले लिया. फिर उसको भी पूरा नहीं किया. फिर साल 2003 में जस्टिन और सोफी एक-दूसरे को डेट करने लगे. सोफी थीं जस्टिन के छोटे भाई मिशेल की दोस्त. 28 मई, 2005 को दोनों ने शादी कर ली. तीन बच्चे हैं - जेवियर, ऐला ग्रेस और हेड्रेन.
थोड़ा इधर-उधर, यानी सोशल वर्क किया. भाई की मौत ऐवलान्च (हिमस्खलन) में हुई थी. तो जस्टिन ने ऐवलान्च के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम शुरू किया. एक ऐवलान्च फाउंडेशन बनाया और उसके डायरेक्टर बन गए. फिर उन्होंने कनाडा ऐवलान्च सेंटर बनाने में मदद की. पर्यावरण से जुड़ी चीजों पर भी काम किया. नस्लीय हिंसा के खिलाफ रैली निकाली.
वो बॉक्सिंग मैच, जिसने ट्रूडो की जिंदगी बदल दीसाल 2006 आ गया था. कनाडा में चुनाव हुए. लिबरल पार्टी हार गई. इसके बाद जस्टिन ने पार्टी के अंदर बात की. युवाओं से जुड़े मामलों की एक समिति में उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया. 2011 के चुनाव में लिबरल पार्टी ने बहुत बुरा प्रदर्शन किया. हाउस ऑफ कॉमन्स में पार्टी खिसककर तीसरे नंबर पर आ गई. पहले नंबर पर थी कंजरवेटिव पार्टी. दूसरे पर थे न्यू डेमोक्रैट्स. ये लिबरल पार्टी के इतिहास में सबसे खराब स्थिति थी. इस वक्त पार्टी के नेता थे माइकल इग्नेटियफ. हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
इग्नेटियफ के चले जाने के बाद जस्टिन पर दबाव बनने लगा कि वो नेतृत्व संभालें. मगर अब भी कई आलोचक उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे थे. उनका कहना था कि जस्टिन के पास अनुभव नहीं है. योग्यता भी नहीं है. ट्रूडो तब खुलकर सामने आए - लिटलरी. उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी के सांसद पैट्रिक ब्राजेउ को बॉक्सिंग रिंग में आकर मुकाबला करने की चुनौती दी. पैट्रिक सेना में रह चुके थे. कराटे में ब्लैक बेल्ट थे. लोग कहने लगे कि जस्टिन हार जाएंगे. और जस्टिन ने कहा,
“लोग अक्सर मुझे कमतर समझ लेते हैं. उन्हें लगता है कि मैं सतही हूं. अगर मैं ये लड़ाई जीत जाता हूं, तो शायद लोग मुझे गंभीरता से लेने लगेंगे.”
ये एक जुआ था. हारने पर जस्टिन की छवि को बहुत बट्टा लगता. ट्रूडो ने मुकाबले से पहले खूब प्रैक्टिस की. वो मुक्केबाजी करते भी थे. प्रफेशनल नहीं, ऐसे ही. उधर पैट्रिक खूब सिगरेट पीते थे. इसी से जस्टिन ने अंदाजा लगाया. कि पैट्रिक ज्यादा देर तक बॉक्सिंग रिंग में ठहर नहीं पाएंगे. मार्च 2012 में ये मैच हुआ. तीसरे राउंड में जस्टिन ने मैच जीत लिया. और फोकस में आ गए.
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लिबरल पार्टी का मुखिया कौन बनेगा, इसकी दौड़ शुरू हो चुकी थी. 2 अक्टूबर, 2012 को जस्टिन ने अपना कैंपेन शुरू किया. लोगों में धीरे-धीरे दिलचस्पी पैदा होने लगी. ट्रूडो की वजह से लिबरल पार्टी के लिए भी समर्थन बढ़ने लगा. 14 अप्रैल, 2013 को नतीजा आया. जस्टिन जीत गए. लिबरल पार्टी के नेता बन गए. 80 फीसद के करीब वोट मिले उनको.
2015 का चुनावउस समय कंजरवेटिव पार्टी की सरकार थी. स्टीफन हार्पर प्रधानमंत्री थे कनाडा के. वो कहते कि जस्टिन नौसिखिया हैं. हार्पर ने करीब दो महीने पहले ही चुनाव का ऐलान करवा दिया. यानी, चुनाव अभियान के लिए काफी लंबा समय था. टीवी डिबेट में ट्रूडो ने सबको चौंका दिया. किसी ने नहीं सोचा था कि वो डिबेट में इतना अच्छा करेंगे. 19 अक्टूबर, 2015. कनाडा में चुनाव हुआ. लिबरल पार्टी ने सबको पीछे छोड़ दिया. हाउस ऑफ कॉमन्स में कुल 338 सीटें हैं. इनमें से 184 सीटों पर लिबरल पार्टी जीती. 2011 के मुकाबले पार्टी को 150 सीटों को फायदा हुआ था. सितंबर 2021 में संघीय चुनाव जीतकर जस्टिन ट्रूडो तीसरी बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने.
हालांकि तीन टर्म जीतने के साथ उनके हाथ विवाद भी आए हैं, पहला बड़ा विवाद था साल 2017 में, जब जस्टिन ट्रूडो अपने परिवार के साथ अरबपति व्यापारी आगा खान के द्वीप पर छुट्टी मनाने बहामास गए. बड़ा हंगामा हुआ. ट्रूडो के एक बिजनसमैन का फेवर लेने पर. इसके अलावा साल 2022 में जस्टिन ट्रूडो ने देश भर में हो रहे वैक्सीन-विरोधी विरोध प्रदर्शनों और राजधानी ओटावा के कुछ हिस्सों को ब्लॉक करने के लिए आपातकाल लागू किया था.
G20 के बाद रुख बदला?ट्रूडो के साथ हालिया विवाद G20 Leaders Summit में हिस्सा लेने के बाद हुआ. G20 समिट 10 सितंबर 2023 की रात को ख़त्म हुआ. रात को ही ट्रूडो को कनाडा लौटना था. लेकिन उनका प्लेन ख़राब हो गया. 12 सितंबर को ट्रूडो का प्लेन दुरुस्त हुआ, तब जाकर वो कनाडा के लिए निकले. और ट्रूडो कनाडा पहुंचे भी नहीं थे कि कनाडा में प्रेस ने ट्रूडो पर निशाना साधना शुरू कर दिया. वजह ये कि एक तो ट्रूडो का ये भारत दौरा कुछ खास नहीं रहा और दूसरा विमान में खराबी के कारण दो दिन की देर भी हो गई. कनाडा की मीडिया ने ट्रूडो के विमान CC-150 पोलैरिस पर खबरें छापीं, जिसका इस्तेमाल लगभग 40 सालों से किया जा रहा है. इसमें आ रही समस्याएं गिनाई गईं और साथ ही उन मौकों की बात की गई, जब इन विमान में खराबी के कारण सरकारी दौरा प्रभावित हुआ.
कनाडा की मीडिया में ट्रूडो के इस दौरे को भी 'नाकाम' बताया गया. द टोरंटो सन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा,
"प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 2018 में ट्रूडो की पहली भारत यात्रा पूरी तरह से एक डिज़ास्टर थी, जिसमें एक दोषी करार दिए आतंकवादी को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित करना भी शामिल था. इस बार ट्रूडो G20 में गए और भारत के साथ संबंधों को और भी खराब कर दिया, साथ ही कनाडा को प्रमुख सहयोगियों से भी दूर कर दिया."
वहीं ट्रूडो और PM मोदी के बीच आधिकारिक अभिवादन पर रिपोर्ट में लिखा गया,
"PM ट्रूडो अधिकारिक अभिवादन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के दौरान अपना हाथ छुड़ाते हुए भी लगे. ट्रूडो से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने हंसकर इस बात को टालने की कोशिश की. लेकिन इससे साफ है कि कोई मसला था."
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कनाडा की मीडिया और वहां के विपक्षी नेताओं का ये भी कहना था कि G20 समिट में भारत और अन्य देशों ने जस्टिन ट्रूडो को नज़रअंदाज किया. कनाडा के मुख्य विपक्षी नेता और विपक्ष के PM उम्मीदवार पियरे पोइलिवरे ने ट्विटर पर टोरंटो सन के फ्रंट पेज को शेयर किया. उन्होंने लिखा,
"पार्टी पॉलिटिक्स एक तरफ, किसी को भी कनाडाई प्रधानमंत्री को बाकी दुनिया द्वारा बार-बार अपमानित होते देखना पसंद नहीं है.''
टोरंटो सन ने PM मोदी के साथ कनाडा के PM ट्रूडो की तस्वीर छापी थी. इसका टाइटल दिया गया...'दिस वे आउट'. अखबार ने जो तस्वीर छापी, उसमें PM मोदी कनाडाई PM से हाथ मिलाते हुए नजर आ रहे हैं. साथ ही ट्रूडो को आगे बढ़ने के लिए इशारा कर रहे हैं. लेकिन अखबार की हेडलाइन का संकेत है - बाहर का रास्ता इधर से.
ट्रूडो ने क्या कहा?जस्टिन ट्रूडो ने 18 सितंबर को कनाडाई संसद में कहा कि पिछले कुछ हफ्तों से कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और भारत सरकार के संभावित कनेक्शन के आरोपों की सक्रिय तौर पर जांच कर रही है. कनाडा की धरती पर किसी कनाडाई नागरिक की हत्या करवाने में किसी विदेशी सरकार का शामिल होना, हमारे देश की संप्रभुता का उल्लंघन है. ट्रूडो ने कहा कि उन्होंने G20 में व्यक्तिगत तौर पर सीधे प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष यह मुद्दा उठाया था. और वे इस हत्या की जांच में सहयोग देने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाएंगे.
इधर ट्रूडो ने कनाडा पहुंचने के बाद कहा कि वो इस बेहद गंभीर मामले पर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. और वो पूरी ताकत से भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस मामले की तह तक जाने के लिए वो कनाडा का साथ दें. ट्रूडो ने साथ ही कहा, वो जानते हैं कि कई कनाडाई नागरिक, विशेष रूप से भारतीय मूल के कनाडाई समुदाय के लोग गुस्से में हैं और शायद डरे हुए हैं. कनाडाई प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि इस तरह की घटनाओं से कनाडा सरकार को बदलने को मजबूर ना किया जाए.
कहा जा रहा है कि अपने देश में मीडिया और विपक्ष के निशाने पर आने के बाद ट्रूडो की सरकार ने खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या का मामला उठाया है. ट्रूडो अपने देश में ये संकेत भी देने की कोशिश कर रहे हैं कि PM मोदी के साथ मीटिंग के दौरान खालिस्तान को लेकर जो भी बात हुई, ट्रूडो उसके दबाव में नहीं हैं.
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